पृथ्वी जैसे ग्रह पर जीवन की उम्मीद

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पिछले कई दशकों से खगोल-वैज्ञानिक हमारे सौर-मंडल के बाहर एक दूसरी पृथ्वी की तलाश कर रहे हैं और अब उनका खयाल है कि उन्होंने एक ऐसा ग्रह खोज लिया है जो पृथ्वी जैसा हो सकता है। यह ग्रह पृथ्वी से मात्र 1.1 गुणा बड़ा है, यानी लगभग उसके बराबर है। यह ग्रह करीब 490 प्रकाश वर्ष दूर एक सूरज जैसे तारे का चक्कर काट रहा है। केप्लर-186एफ नामक यह ग्रह खगोल-वैज्ञानिकों द्वारा खोजा गया पहला ऐसा खगोलीय पिंड है जहां की परिस्थितियां उसकी सतह पर तरल पानी की मौजूदगी के लिए अनुकूल हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि इस ग्रह पर पारलौकिक जीवन के पनपने की पूरी संभावना है। नए ग्रह की खोज नासा एम्स सेंटर के सेटी इंस्टीट्यूट की वैज्ञानिक एलिसा क्विंटाना और उनके सहयोगियों ने की है।

क्विंटाना की टीम ने नासा की केप्लर अंतरिक्ष दूरबीन द्वारा जुटाए गए ग्रहों के आंकड़ों के विस्तृत अध्ययन के बाद इस ग्रह के अस्तित्व की जानकारी दी है। केप्लर दूरबीन अभी तक सैकड़ों बाहरी ग्रहों का पता लगा चुकी है लेकिन इनमें से अधिकांश ग्रह जीवन के लिए अनुकूल नहीं हैं। कुछ बहुत बड़े हैं या फिर अपने तारे के बहुत करीब हैं। कुछ ग्रहों के वायुमंडल बहुत घने हैं। कुछ ग्रह बृहस्पति जैसे विशाल गैस पिंड हैं जबकि कुछ अन्य ग्रह अपने तारों के निकट होने के कारण बहुत ज्यादा गर्म हैं।

ऐसे ग्रहों की परिस्थितियां जीवन के पनपने में सहायक नहीं होती। अत: केप्लर-186 एफ की खोज को बाहरी ग्रहों के अध्ययन के क्षेत्र में एक बड़ा मील का पत्थर बताया जा रहा है। यह ग्रह केप्लर-186 नामक तारे का चक्कर काट रहा है। यह अपने तारे के ग्रहमंडल का पांचवा और सबसे बाहरी सदस्य है। वैज्ञानिकों को पूरा यकीन है कि यह एक चट्टानी ग्रह है। यह खोज इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है कि किसी तारे के आवासीय क्षेत्र में पहली बार पृथ्वी के आकार के ग्रह का पता चला है। तारों के आवासीय क्षेत्रों को खगोल-वैज्ञानिक गोल्डीलॉक्स जोन भी कहते हैं।

इस जोन में तापमान तरल पानी के लिए अनुकूल होता है। हमारी पृथ्वी सूरज आवास क्षेत्र के बीचों-बीच स्थित है। सौरमंडल से बाहर तारों के आवासीय क्षेत्र मे कई ग्रहों का पता चल चुका है लेकिन इनमें से कोई भी ग्रह पृथ्वी के आकार का नहीं था। वैज्ञानिकों का कहना है कि केप्लर 186एफ हमें सौरमंडल से बाहर पारलौकिक जीवन खोजने का पहला अवसर प्रदान कर सकता है। यह ग्रह जिस तारे का चक्कर काट रहा है वह एक बौना तारा है जिसे वैज्ञानिक ‘रेड ड्वार्फ़’ भी कहते हैं। यह एम श्रेणी का तारा है।

हमारी आकाशगंगा में करीब 70 प्रतिशत तारे एम श्रेणी के हैं। इस तारे की चमक हमारे सूरज से कम है। केप्लर 186एफ की कक्षा भी हमारी पृथ्वी से थोड़ी अलग है। यह अपने तारे के आवासीय क्षेत्र के बाहरी छोर पर स्थित है। इसे तारे की परिक्रमा पूरी करने में 130 दिन लगते हैं। तारे के ग्रहमंडल के चार अन्य सदस्य महज तीन से 21 दिन के अंदर तारे की परिक्रमा पूरी कर लेते हैं। तारे के बहुत ज्यादा नज़दीक होने के कारण इन ग्रहों की परिस्थितियां जीवन के लिए प्रतिकूल हैं।

नासा ने सौरमंडल से बाहर दूसरे तारों के आगे से गुजरने वाले ग्रहों की तलाश के लिए 2009 में केप्लर दूरबीन भेजी थी। जब कोई ग्रह किसी तारे के आगे से गुजरता है तो वह तारे की चमक को कुछ कम करता है। केप्लर दूरबीन के डिटेक्टर तारे की रोशनी में आने वाली गिरावट का पता लगाते हैं। वैज्ञानिक इस रोशनी में गिरावट और उसके समय की नापजोख करके तारे के आगे से गुजरने वाले ग्रह के आकार और उसकी कक्षा की गति का अनुमान लगा सकते हैं लेकिन वे ग्रह के वायुमंडल और उसकी संरचना के बारे में कुछ नहीं बता सकते।

केप्लर दूरबीन ने अभी तक 3800 से अधिक ग्रहों का पता लगाया है जो करीब 3000 तारों की परिक्रमा कर रहे हैं। यह दूरबीन मुख्य रूप से साइग्नस और लीरा नक्षत्र मंडल के बीच आकाश के एक त्रिकोण जैसे हिस्से का अध्ययन कर रही है जहां वह करीब डेढ लाख तारों को देख सकती है। केप्लर मिशन का मुख्य उद्देश्य आवास योग्य ग्रहों का पता लगाना है।

मिशन द्वारा खोजे गए 3800 ग्रहों में कम से कम 85 प्रतिशत ग्रह हमारे नेप्च्यून से छोटे हैं। पृथ्वी से बड़े ग्रहों को अनुपयुक्त माना जाता है क्योंकि उनमें चट्टानी सतह का अभाव होगा और वे हाइड्रोजन और हीलियम में लिपटे होंगे। इसी तरह पृथ्वी से छोटे ग्रहों पर भी विचार नहीं किया जा सकता क्योंकि वहां वायुमंडल का अभाव होगा। इन 3800 ग्रहों में 25 से 30 ग्रहों के आवास योग्य होने की संभावना है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
 

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