पर्यावरण संरक्षण में पंचायती राज का हो सकता है अहम योगदान

भारतीय संविधान के 73वें संशोधन के उपरांत ग्यारहवीं अनुसूची के अंतर्गत पंचायती राज सहकारिता विषय निम्न प्रकार है :
कल्याणकारी (प्राकृतिक) खाद द्वारा कृषि विकास
जल संग्रहण विकास
सामाजिक वानिकी
लघु वन उत्पाद
जल निकायों का निकर्षण एवं साफ–सफाई
व्यर्थ जल संग्रहण एवं निष्कासन
सामुदायिक बायोगैस प्लांटों की स्थापना
र्इंधन व चारा विकास
गैर परंपरागत ऊर्जा संसाधनों के स्रोतों का विकास
तकनीकी वृद्धि एवं पंचायत विकास
वन विकास कार्यक्रम
वनरोपण एवं पारिस्थितिकी विकास

कल्याणकारी खाद द्वारा कृषि विकास


कृषि विकास और ग्रामीण विकास दोनों ही एक-दूसरे के प्रशंसनीय पूरक हैं। इसलिए पंचायत विकास और ग्रामीण विकास के लिए कृषि क्षेत्र का विकास अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध शोषण करने में जिस तकनीकी ज्ञान का उपयोग हो रहा है, उससे उत्पादन तो बढ़ रहा है, लेकिन मिट्टी का ह्रास हो रहा है। कीटनाशकों का प्रयोग मानव स्वास्थ्य पर प्रत्यक्ष रूप से अपना दुष्प्रभाव छोड़ता है।

कृषि विकास और ग्रामीण विकास गांवों में क्रांति लाने वाले कदम हैं। कृषि विकास में रासायनिक खादों के प्रयोग से कृषि के क्षेत्र में उत्पादन वृद्धि की दृष्टि से क्रांति तो आयी, किंतु पर्यावरण के संदर्भ में दृष्टि डालने पर पता चलता है कि इस क्रांति ने मिट्टी के कटाव और मृदा प्रदूषण के खतरे को बढ़ाया है। रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों तथा अन्य रासायनिक और यांत्रिक साधनों के अधिक प्रयोग से जमीन में क्षारीय तथा अम्लीय तत्वों की मात्रा बढ़ रही है, जिसके कारण जमीन की उपज शक्ति नष्ट हो रही है। कभी-कभी ज्यादा रासायनिक खादों के प्रयोग से भूमि में हानिकारक रासायनिक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है, जो कि कभी-कभी जमीन से रिस कर भूमि जल में मिल जाता है तथा मिट्टी एवं जल दोनों को प्रदूषित कर देता है। इस समस्या के समाधान के लिए पंचायतों ने कार्बनिक खेती के परंपरागत विचार को प्रोत्साहन दिया है, क्योंकि इस तकनीक से मृदा की अपनी उपज शक्ति बढ़ाने में सहायता मिलती है। जैव खाद विकास एक ऐसा कार्यक्रम है, जिसमें कृषि अपशिष्ट (कार्बनिक) को खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस कार्य के लिए पंचायतें मुख्य भूमिका अदा करती हैं। वे जागरूकता निर्माण कर सकती हैं तथा जैव खाद उत्पादन तकनीक को गांवों में अमल में ला सकती हैं। वे स्थानीय किसानों को इस तकनीक के संबंध में जागरूक कर सकती हैं तथा उन्हें जैव खाद के उत्पादन से होने वाले लाभों के संबंध में बता सकती हैं। पंचायत उन किसानों को अनुदान सुविधा भी उपलब्ध करा सकती है, जो इस तकनीक को अपनाने की इच्छा रखते हैं। इस तकनीक के इस्तेमाल से खाद की कीमत चुकाने से बचा जा सकता है और खेती की लागत तथा जोखिम को कम किया जा सकता है। इस तकनीक के प्रयोग से कृषि सुधार और इसके समुचित प्रबंधन के लिए किसी जटिल प्रक्रिया के ज्ञान की जरूरत नहीं होती और न ही किसी खर्चीली आधारभूत संरचना की अनिवार्यता होती है। इससे पंचायतों को कार्बनिक अपशिष्ट के उपचार के खर्च करने में मदद मिल सकती है। इस बचत राशि का अपने क्षेत्र के विकास कार्यों में भी उपयोग हो सकता है। जैविक खाद का उत्पादन ग्राम केंद्रित व्यवस्था के आधार पर पंचायतों के द्वारा हो सकता है। इससे पंचायतों को राजस्व कमाने में भी कुछ मदद मिल सकती है और गांवों के विकास में रोजगार सृजन भी हो सकता है।

जल संग्रहण विकास


जलसंग्रहण क्षेत्र, जल ग्रहण क्षेत्र अथवा नदी के संग्रहण क्षेत्र तीनों समानार्थक हैं। इसमें नदी रूपी प्राकृतिक संसाधनों में जल, मृदा एवं वनस्पति जैसे कारक सम्मिलित हैं। विस्तार से देखें तो जल संग्रहण क्षेत्र का विकास उसके सभी प्राकृतिक संसाधनों के उत्पादक के रूप में उपयोग के लिए किया जाता है। उसकी सुरक्षा से संबंधित उपायों के लिए ही जल संग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम का संचालन हो रहा है। इस कार्य में हम भूमि सुधार पुनर्विकास तथा अन्य तकनीकी कार्यों को भी शामिल करते हैं। इसके विचारविमर्श में जन सहभागिता भी बढ़ती है। जल संरक्षण एवं प्रबंधन के कार्य में पंचायत की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। पंचायत स्थानीय लोगों का समूह बनाती हैं, जो जल संग्रहण विकास की योजना बनाने तथा इसका क्रियान्वयन करने में अपना योगदान करते हैं।

पंचायत अपने अंतर्गत ग्रामों की भौगोलिक स्थिति की जानकारी प्राप्त करके परती और बंजर पड़ी हुई जमीन का विवरण तैयार करती है, ताकि वहां पौधरोपण करके मृदा क्षरण को रोका जा सके।

स्थानीय जन समुदाय अपनी खेतीबाड़ी की गतिविधियों के साथ-साथ वर्षाजल संग्रहण करने के लिए बांध निर्माण एवं विकास के लिए नालियों का प्रबंधन भी कर सकता है। ताकि भविष्य में उस एकत्रित जल का उपयोग किया जा सके। पंचायत स्थानीय लोगों में जागृति लाती है तथा उन्हें इस प्रकार के कार्यों में सहभागी होने की प्रेरणा भी देती है। यहां पंचायत एक कार्यकारी संस्था की भूमिका में इस कार्य को बढ़ावा भी देती है। पंचायत का कर्तव्य है कि वह अपनी समस्याओं को उन संस्थाओं के समक्ष रखे जो इस क्षेत्र में साधन की भूमिका में कार्यरत हैं। पंचायतें स्थानीय जन समुदाय की आवश्यकता के अनुरूप योजनाबद्ध रूप में जल संग्रहण प्रबंधन के विषय पर जवाबदेह और जागरूक होने के लिए भी ऐसी संस्थाओं का उपयोग कर सकती है।

पंचायत ग्रामीण जन समुदाय तथा संसाधनों के प्रबंधन एवं विकास में भी सहायक होती है।

(लेखक सेवानिवृत्त वन अधिकारी हैं। वे पर्यावरण संरक्षण के साथ ग्राम विकास विषय के जानकार भी हैं और अलग-अलग समूहों को इस कार्य के लिए प्रेरित करते हैं।)

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