पर्यावरण संरक्षण के माध्यम से मिली आजीविका

प्रमोद महतो रांची के ओरमांझी के कुल्ही गांव में निजी विद्यालय चलाने और खेतीबाड़ी का काम करते हैं। गांव में चलाये जा रहे समेकित जलछाजन प्रबंधन कार्यक्रम के सचिव के रूप में कार्य करते हुए वे वर्षा जल संरक्षण के साथ सामुदायिक सब्जी पौधशाला चलाने का काम करते हैं। ये अपने गांव के किसानों को उन्नत किस्म के पौधे उचित दाम पर उपलब्ध कराते हैं। भारतीय बागवानी अनुसंधान परिषद, पलांडू द्वारा विकसित बैगन की स्वर्ण श्यामली और स्वर्ण नवीन किस्मों की खेती करके उन्होंने गांव में प्रगतिशील किसान की पहचान बनायी है। इसके अलावा टमाटर की स्वर्ण श्यामली और स्वर्ण प्रतिभा किस्म की खेती करके अपने लिए 500 ग्राम बीज भी उत्पादन किया है।

प्रमोद ने महाराष्ट्र के हिंद स्वराज ट्रस्ट से जल संरक्षण का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद अपने गांव में जल संरक्षण का कार्य करना शुरू किया। अपनी पांच एकड़ जमीन पर कृषि कार्य शुरू किया और गांव में सामाजिक कार्यों के जरिये जन जागरूकता लाने में लग गये। जलछाजन को बढ़ावा देने के लिए चलायी जा रही परियोजना की शुरुआत जब इनके गांव में हुई तो इसका सचिव इन्हें बनाया गया। आज कुल्ही जलछाजन में अपनी पहचान रखता है। केजीवीके के सहयोग से यहां जलछाजन में किये जा रहे कार्यों को देखने के लिए भारत सरकार के प्रतिनिधि, विभिन्न प्रबंधन संस्थानों के छात्र और सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधि आ चुके हैं।

जल संरक्षण के महत्व को समझने के बाद इन्होंने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के द्वारा चलाये जा रहे जलछाजन पाठ्यक्रम में अपना नामांकन कराया है। इस विषय में वे और जानकारी प्राप्त कर रहे हैं। प्रमोद का कहना है ‘ केजीवीके के संपर्क में आकर काफी कुछ सिखने को मिला। यहां चलाये जाने वाले नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रमों के साथ जुड़ कर मेरे साथ मेरे गांव वाले भी लाभ उठा रहे हैं.’ अपने गांव में प्रगतिशील किसान के तौर पर जाने जाने वाले प्रमोद ने श्रीविधि धान की सफलतापूर्वक खेती करते हुए किसानों को इसके प्रशिक्षण और जनजागरूकता दिलाने के कार्य में अपना योगदान दिया है ।

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