पर्यावरण प्रदूषण : नियंत्रण एवं उपाय

नदियों, तालाबों के जल एवं भूमिगत जल को तो मनुष्यों ने प्रदूषित किया ही है। प्रदूषित करने में इसने सागर के जल को भी नहीं छोड़ा। सागर किनारे कई स्थलों पर पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है, जिससे सागर किनारे कई छोटी-बड़ी बस्तियां बस गई हैं। वहां के लोगों का जीवनयापन पर्यटकों को विभिन्न प्रकार की सामग्रियां बेचकर होता है। उन बस्तियों में किसी प्रकार के शौचालय की व्यवस्था नहीं है, अगर है भी तो वे सुचारू रूप से कार्यरत नहीं है, जिसके कारण बस्ती के लोग सागर के पानी में ही शौच करते हैं तथा घर के कुड़े-कचरे को भी सागर के जल में बहा देते हैं, जिससे सागर का जल प्रदूषित होता है।

बढ़ता प्रदूषण वर्तमान समय की एक सबसे बड़ी समस्या है, जो आधुनिक और तकनीकी रूप से उन्नत समाज में तेजी से बढ़ रहा है। इस समस्या से समस्त विश्व अवगत तथा चिंतित है। प्रदूषण के कारण मनुष्य जिस वातावरण या पर्यावरण में रहा है, वह दिन-ब-दिन खराब होता जा रहा है।

कहीं अत्यधिक गर्मी सहन करनी पड़ रही है तो कहीं अत्यधिक ठंड। इतना ही नहीं, समस्त जीवधारियों को विभिन्न प्रकार की बीमारियों का भी सामना करना पड़ रहा है। प्रकृति और उसका पर्यावरण अपने स्वभाव से शुद्ध, निर्मल और समस्त जीवधारियों के लिए स्वास्थ्य-वर्द्धक होता है, परंतु किसी कारणवश यदि वह प्रदूषित हो जाता है तो पर्यावरण में मौजूद समस्त जीवधारियों के लिए वह विभिन्न प्रकार की समस्याएं उत्पन्न करता है।

ज्यों-ज्यों मानव सभ्यता का विकास हो रहा है, त्यों-त्यों पर्यावरण में प्रदूषण की मात्रा बढ़ती ही जा रही है। इसे बढ़ाने में मनुष्य के क्रियाकलाप और उनकी जीवनशैली काफी हद तक जिम्मेवार है। सभ्यता के विकास के साथ-साथ मनुष्य ने कई नए आविष्कार किए हैं जिससे औद्योगीकरण एवं नगरीकरण की प्रवृत्ति बढ़ी है।

जनसंख्या वृद्धि के कारण मनुष्य दिन-प्रतिदिन वनों की कटाई करते हुए खेती और घर के लिए जमीन पर कब्जा कर रहा है। खाद्य पदार्थों की आपूर्ति के लिए रासायनिक खादों का प्रयोग किया जा रहा है, जिससे न केवल भूमि बल्कि, जल भी प्रदूषित हो रहा है। यातायात के विभिन्न नवीन साधनों के प्रयोग के कारण ध्वनि एवं वायु प्रदूषित हो रहे हैं।

गौर किया जाए तो प्रदूषण वृद्धि का मुख्य कारण मानव की अवांछित गतिविधियां हैं, जो प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन करते हुए इस पृथ्वी को कूड़े-कचरे का ढेर बना रही है। कूड़ा-कचरा इधर-उधर फेंकने से जल, वायु और भूमि प्रदूषित हो रहे, जो संपूर्ण प्राणी-जगत के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।

पर्यावरण प्रदूषण चार प्रकार का होता है-


जल प्रदूषण
वायु प्रदूषण,
भूमि प्रदूषण और
ध्वनि प्रदूषण।

जल प्रदूषण


जल समस्त प्राणियों के जीवन का आधार है। आधुनिक मानव सभ्यता के विकास के साथ जल प्रदूषण की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है। औद्योगीकरण के कारण शहरीकरण की प्रवृत्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। जो पहले गांव हुआ हुआ करते थे, वे अब विभिन्न उद्योगों की स्थापना के बाद शहरों में तब्दील हो रहे हैं।

शहरों में अत्यधिक आबादी होने के कारण फ्लैट निर्माण की प्रवृत्ति बढ़ रही है, ताकि एक फ्लैट में तीन से छह परिवार आसानी से रह सकें। इन फ्लैटों में कम स्थान पर पानी की आवश्यकता अधिक होती है और वहां के भूमिगत जल भंडार पर दवाब बढ़ रहा है। डीप बोरिंग निर्माण करते हुए वहां के भूमिगत जल का दोहन किया जा रहा है।

विषय सामग्री (इन्हें भी पढ़ें)

1

पर्यावरण प्रदूषण (Environmental pollution)

2

पर्यावरण प्रदूषण (Environment Pollution)

3

पर्यावरण प्रदूषण : नियंत्रण एवं उपाय

4

पर्यावरण प्रदूषण : प्रकार, नियंत्रण एवं उपाय

5

पर्यावरण, प्रदूषण एवं आकस्मिक संकट

6

पर्यावरण प्रदूषण : कानून और क्रियान्वयन

7

पर्यावरण प्रदूषण एवं उद्योग

8

पर्यावरण-प्रदूषण और हमारा दायित्व

 

उद्योगों के अत्यधिक निर्माण से उनसे निकलने वाले दूषित जल, बचे हुए, रसायन कचरा आदि को नालियों के रास्ते नदी में बहा दिया जाता है। फ्लैट में रहने वाले लोगों के दैनिक क्रियाकलापों से उत्पन्न कचरे को नदी किनारे फेंका जाता है, जिससे नदियों का जल प्रदूषित होता है।

शहर के समीप रहने वाली बस्तियों में उचित शौचालय की व्यवस्था नहीं होती, या होती भी है तो यह सुचारू रूप से कार्य नहीं कर पाती है, जिससे वहां लोग प्रायः नदी या तालाब किनारे की जमीन या नालियों का प्रयोग शौच के लिए करते हैं। बारिश में यह सारी गंदगी नदियों या तालाबों में जा मिलती है।

बस्तियों में कचरे की निकासी की उचित व्यवस्था न होने पर प्रायः लोग कचरे को तालाब या नदी के पानी में डाल देते हैं। तालाबों एवं नदियों के पानी का इस्तेमाल नहाने एवं कपड़े धोने के अलावा पशुओं को नहलाने के लिए भी किया जाता है, जिससे उनके शरीर की गंदगी पानी में घुल जाती है। कपड़े धोए जाते हैं, कचरा, मल-मूत्र डाला जाता है, पुराने कपड़े शवों की राख, सड़े-गले पदार्थ डाले जाते हैं, इतना ही नहीं कभी-कभी शवों को नदियों में बहा दिया जाता है।

नदियों, तालाबों के जल एवं भूमिगत जल को तो मनुष्यों ने प्रदूषित किया ही है। प्रदूषित करने में इसने सागर के जल को भी नहीं छोड़ा। सागर किनारे कई स्थलों पर पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है, जिससे सागर किनारे कई छोटी-बड़ी बस्तियां बस गई हैं। वहां के लोगों का जीवनयापन पर्यटकों को विभिन्न प्रकार की सामग्रियां बेचकर होता है।

उन बस्तियों में किसी प्रकार के शौचालय की व्यवस्था नहीं है, अगर है भी तो वे सुचारू रूप से कार्यरत नहीं है, जिसके कारण बस्ती के लोग सागर के पानी में ही शौच करते हैं तथा घर के कुड़े-कचरे को भी सागर के जल में बहा देते हैं, जिससे सागर का जल प्रदूषित होता है। विभिन्न तकनीकों के विकास के कारण सागर के जल में बड़े-बड़े जहाज चलते हैं, जो यात्रियों के आवागमन एवं सामग्रियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने का काम करते हैं।

जहाज अपनी साफ-सफाई के पश्चात् गंदगी को प्रायःसमुद्र के पानी में डाल देते हैं। कभी-कभी किसी दुर्घटनावश जहाज डूब जाता है तो उसमें मौजूद रासायनिक पदार्थ, तेल आदि समुद्र के पानी में मिल जाते हैं और लंबे समय तक उसमें रहने वाले जीव-जंतुओं के स्वास्थ्य पर प्रभाव डालते रहते हैं।

जल दूषित हो जाने के कारण कुछ जीव तत्काल मर जाते हैं और जल को और अधिक प्रदूषित कर देते हैं। दूषित जल में रहने वाले जलीय जीवों का सेवन करने से मनुष्य भी बीमार पड़ते हैं। विकसित देश प्रायः अपने देश की गंदगी व ई-कचरा को समुद्र में डाल देते हैं, जिससे जल बुरी तरह से दूषित होता है।

प्रारंभ में जब तकनीक का विकास नहीं हुआ था, तब लोग प्रकृति व पर्यावरण से सामंजस्य बैठकर जीवनयापन करते थे, परंतु तकनीकी विकास एवं औद्योगीकरण के कारण आधुनिक मनुष्य में आगे बढ़ने की होड़ उत्पन्न हो गई। इस होड़ में मनुष्य को केवल अपना स्वार्थ दिखाई पड़ रहा है।

वह यह भूल गया है कि इस पृथ्वी पर उसका वजूद प्रकृति एवं पर्यावरण के कारण ही है। यह भी पर्यावरण प्रदूषण का एक मुख्य कारण है। प्राकृतिक रूप से जल में जीवों के मरने व जीव-जंतुओं के नहाने से ही जल प्रदूषित हो सकता है, परंतु मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए न केवल जल का प्रयोग नहाने व पीने के लिए करता है, बल्कि उसमें घर का कचरा, उद्योगों का कचरा भी डालता है।

किसान खेतों में विभिन्न प्रकार के रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करते हैं, ताकि उनकी फसल अच्छी हो, फसल में कीड़े न लगें, इसलिए कीटनाशकों का भी छिड़काव किया जाता है। वर्षा के पानी के साथ ये सभी रासायनिक तत्व तालाब और नदी-नालों में चले जाते हैं और वहां के जल को प्रदूषित करते हैं।

उद्योग अपनी गंदगी को सीधे तौर पर नदियों-नालों में डालते ही हैं, साथ ही उनके धुएं की निकासी सही तरीके से नहीं की जाती है, जिससे धुएं का तैलीय अंश आस-पास के संचित जल भंडार के ऊपर एक काली परत के रूप में जमा रहता है और जल को प्रदूषित करता है।

वायु प्रदूषण


मनुष्य ने न केवल जल को प्रदूषित किया है, बल्कि अपने विभिन्न क्रियाकलापों एवं तकनीकी वस्तुओं के प्रयोग द्वारा वायु को भी प्रदूषित किया है। वायुमंडल में सभी प्रकार की गैसों की मात्रा निश्चित है। प्रकृति में संतुलन रहने पर इन गैसों की मात्रा में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आता, परंतु किसी कारणवश यदि गैसों की मात्रा में परिवर्तन हो जाता है तो वायु प्रदूषण होता है।

अन्य प्रदूषणों की तुलना में वायु प्रदूषण का प्रभाव तत्काल दिखाई पड़ता है। वायु में यदि जहरीली गैस घुली हो तो वह तुरंत ही अपना प्रभाव दिखाती है और आस-पास के जीव-जंतुओं एवं मनुष्यों की जान ले लेती है। भोपाल गैस कांड इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। विभिन्न तकनीकों के विकास से यातायात के विभिन्न साधनों का भी विकास हुआ है।

एक ओर जहां यातायात के नवीन साधन आवागमन को सरल एवं सुगम बनाते हैं, वहीं दूसरी ओर ये पर्यावरण को प्रदूषित करने में अहम् भूमिका निभाते हैं। नगरों में प्रयोग किए जाने वाले यातायात के साधनों में पेट्रोल और डीजल ईंधन के रूप में प्रयोग किए जाते हैं। पेट्रोल और डीजल के जलने से उत्पन्न धुआं वातावरण को प्रदूषित करता है।

औद्योगिकरण के युग में उद्योगों की भरमार है। विभिन्न छोटे-बड़े उद्योगों की चिमनियों से निकलने वाले धुएं के कारण वायुमंडल में सल्फर डाइऑक्साइड और हाइड्रोजन सल्फाइड गैस मिल जाते हैं। ये गैस वर्षा के जल के साथ पृथ्वी पर पहुंचते हैं और गंधक का अम्ल बनाते हैं, जो पर्यावरण व उसके जीवधारियों के लिए हानिकारक होता है।

चमड़ा और साबुन बनाने वाले उद्योगों से निकलने वाली दुर्गंध-युक्त गैस पर्यावरण को प्रदूषित करती हैं। सीमेंट, चूना, खनिज आदि उद्योगों में अत्यधिक मात्रा में धूल उड़ती है और वायु में मिल जाती है, जिससे वायु प्रदूषित होती है। धूल मिश्रित वायु में सांस लेने से प्रायः वहां काम करने एवं रहने वालों को रक्तचाप हृदय रोग, श्वास रोग, आंखों के रोग और टी.बी. जैसे रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।

जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि होने से मनुष्य के रहने का स्थान दिन-ब-दिन छोटा पड़ता जा रहा है, इसलिए मनुष्य वनों की कटाई का अपने रहने के लिए आवास का निर्माण कर रहा है। शहरों में एलपीजी तथा किरोसीन का प्रयोग खाना बनाने के लिए किया जाता है, जो एक प्रकार की दुर्गंध वायु में फैलाते हैं।

कुछ लोग जलावन के लिए लकड़ी या कोयले का इस्तेमाल करते हैं, जिससे अत्यधिक धुआं निकलता है और वायु में मिल जाता है। स्थान एवं जलावन के लिए मनुष्य वनों की कटाई करते हैं। वनों की कटाई से वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा घट रही है और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है और वायु प्रदूषित हो रही है। मनुष्य द्वारा विभिन्न प्रकार के तकनीकी उपकरणों का सहारा लेकर विस्फोट, गोलाबारी, युद्ध आदि किए जाते हैं।

विस्फोट होने से अत्यधिक मात्रा में धूलकण वायुमंडल में मिल जाते हैं और वायु को प्रदूषित करते हैं। बंदूक का प्रयोग एवं अत्यधिक गोलीबारी से बारूद की दुर्गंध वायुमंडल में फैलती है। संप्रति मनुष्य अपने आराम के लिए प्लास्टिक की वस्तुओं का इस्तेमाल करते हैं और टूटने या फटने की स्थिति में उन्हें इधर-उधर फेंक देता है। सफाई कर्मचारी प्रायः सभी प्रकार के कचरे के साथ प्लास्टिक को भी जला देते हैं, जिससे वायुमंडल में दुर्गंध फैलती है।

तकनीक संबंधी नवीन प्रयोग करने के क्रम में कई प्रकार के विस्फोट किए जाते हैं तथा गैसों का परीक्षण किया जाता है। इस दरम्यान कई प्रकार की गैस वायुमंडल में घुलकर उसे प्रदूषित करती है। हानिकारक गैसों के अत्यधिक उत्सर्जन के कारण ‘एसिड रेन’ होती है, जो मानव के साथ-साथ अन्य जीवित प्राणियों तथा कृषि-संबंधी कार्यों के लिए घातक होती है।

दफ्तर एवं घरेलू उपयोग में लाए जाने वाले फ्रिज और एयरकंडीशनरों के कारण क्लोरो-फ्लोरो कार्बन का निर्माण होता है, जो सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों से हमारी त्वचा की रक्षा करने वाली ओजोन परत को क्षति पहुंचाती है। विभिन्न उत्सवों के अवसर पर अत्यधिक पटाखेबाजी से भी वायु प्रदूषित होती है। वायु प्रदूषण से पर्यावरण अत्यधिक प्रभावित होता है।

भूमि प्रदूषण


भूमि समस्त जीवों को रहने का आधार प्रदान करती है। यह भी प्रदूषण से अछूती नही है। जनसंख्या वृद्धि के कारण मनुष्य के रहने का स्थान कम पड़ता जा रहा है, जिससे वह वनों की कटाई करते हुए अपनी जरूरत को पूरा कर रहा है। वनों की निरंतर कटाई से न केवल वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है और ऑक्सीजन की मात्रा घट रही है, बल्कि जमीन में रहने वाले जीव-जंतुओं का भी संतुलन बिगड़ रहा है।

पेड़, भूमि की ऊपरी परत को तेज वायु से उड़ने तथा पानी में बहने से बचाते हैं और भूमि उर्वर बनी रहती है। पेड़ों की निरंतर कटाई से भूमि के बंजर बनने एवं रेगिस्तान बनने की संभावनाएं बढ़ रही हैं। इस प्रकार वनों की कटाई से प्रकृति का संतुलन बिगड़ता है। प्रकृति के संतुलन में परिवर्तन, पर्यावरण प्रदूषण का प्रमुख कारण है। जनसंख्या वृद्धि से अनाज की मांग भी बढ़ गई है।

कृषक अत्यधिक फसल उत्पादन के लिए रासायनिक खादों का इस्तेमाल करते हैं एवं फसल को कीड़ों से बचाने के लिए कीटनाशकों का भी छिड़काव करते हैं, जिससे भूमि प्रदूषित होती है। भूमिगत जल का अत्यधिक दोहन किया जा रहा है तथा कचरे का ढेर यहां-वहां बिखेरा जा रहा है। भूमिगत जल के अलावा भूमि में मौजूद खनिज पदार्थों का अत्यधिक दोहन करने से भूस्खलन की समस्या उत्पन्न होती है।

कचरे के रूप में प्लास्टिक का क्षय नहीं होता। वह जिस स्थान पर अत्यधिक मात्रा में होता है, वहां के पेड़-पौधों में उचित वृद्धि नहीं हो पाती, जिससे भूमि दूषित होती है। तकनीकी युग में आधुनिक मानव ने कई नए हथियारों का आविष्कार कर लिया है, ताकि सरलतापूर्वक शत्रु का नाश किया जा सके। युद्ध में इन हथियारों का प्रयोग किए जाने से युद्धभूमि में तो अत्यधिक लोग मारे ही जाते हैं, साथ ही आस-पास के इलाकों में भी जीव-जंतु मारे जाते हैं, जिससे भूमि प्रदूषित होती है।

ध्वनि प्रदूषण


मानव सभ्यता के विकास के प्रारंभिक चरण में ध्वनि प्रदूषण गंभीर समस्या नहीं थी, परंतु मानव सभ्यता ज्यो-ज्यों विकसित होती गई और आधुनिक उपकरणों से लैस होती गई, त्यों-त्यों ध्वनि प्रदूषण की समस्या विकराल व गंभीर हो गई है। संप्रति यह प्रदूषण मानव जीवन को तनावपूर्ण बनाने में अहम् भूमिका निभाता है। तेज आवाज न केवल हमारी श्रवण शक्ति को प्रभावित करती है, बल्कि यह रक्तचाप, हृदय रोग, सिर दर्द, अनिद्रा एवं मानसिक रोगों का भी कारण है।

औद्योगिक विकास की प्रक्रिया में देश के कोने-कोने में विविध प्रकार के उद्योगों की स्थापना हुई है। इन उद्योगों में चलने वाले विविध उपकरणों से उत्पन्न आवाज से ध्वनि प्रदूषित होती है। विभिन्न मार्गों चाहे वह जलमार्ग हो, वायु मार्ग हो या फिर भू-मार्ग, सभी तेज ध्वनि उत्पन्न करते हैं। वायुमार्ग में चलने वाले हवाई जहाज, रॉकेट एवं हेलीकॉप्टर की भीषण गर्जन ध्वनि प्रदूषण बढ़ाने में सहायक होती है।

जलमार्ग में चलने वाले जहाजों का शोर एवं भू-मार्ग में चलने वाले वाहनों के इंजन की आवाज के साथ उनके हॉर्न ध्वनि-प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं। मनोरंजन एवं जन-संचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा तेज आवाज में ध्वनि प्रेषित की जाती है। लाउडस्पीकरों द्वारा सभा एवं जलसों में बोलकर सभा को संबोधित किया जाता है एवं सूचना प्रेषित की जाती है। विभिन्न उत्सवों के अवसर पर जोर-जोर से गाने बजाए जाते हैं।

जन-संपर्क अभियान चलाने के लिए भी लाउडस्पीकर का प्रयोग किया जाता है और जनता तक सूचना प्रेषिक की जाती है। विज्ञापन दाता भी कभी-कभी अपने उत्पादों का प्रचार तेज आवाज में करते हैं। डीप बोरिंग करवाने के क्रम में, क्रशर मशीन चलाने, डोजर से खुदाई करवाने के क्रम में अत्यधिक शोर होता है। शादी, विवाह या धार्मिक अनुष्ठान के अवसर पर वाद्य यंत्रों का अत्यधिक शोर ध्वनि को प्रदूषित करता है। इसके अलावा यह अनावश्यक असुविधाजनक और अनुपयोगी ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न करते हैं।

पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण


पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण पाने के लिए सर्वप्रथम जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगानी होगी, ताकि आवास के लिए वनों की कटाई न हो। खाद्य पदार्थों के उत्पादन में वृद्धि हो, इसके लिए रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के स्थान पर जैविक खाद का इस्तेमाल करना होगा। कूड़े-कचरे को पुनः प्रयोग करना होगा, जिससे यह पृथ्वी कूड़े-कचरे का ढेर बनने से बच जाएगी।

कारखानों से निकलने वाले गंदे पानी को सीधे नदी-नाले में न डालकर, उनकी सफाई करते हुए नदियों में बहाना होगा। यातायात के विभिन्न साधनों का प्रयोग जागरुकता के साथ करना होगा। अनावश्यक रूप से हॉर्न का प्रयोग नहीं करना चाहिए, जब जरूरत न हो तब इंजन को बंद करना एवं नियमित रूप से गाड़ी के साइलेंसर की जांच करवानी होगी, ताकि धुएं के अत्यधिक प्रसार को नियंत्रित किया जा सके।

उद्योगपतियों को अपने स्वार्थ को छोड़ उद्योगों की चिमनियों को ऊंचा करना होगा तथा उद्योगों को प्रदूषण नियंत्रण के नियमों का पालन करना होगा। हिंसक क्रियाकलापों पर रोक लगानी होगी। सबसे जरूरी बात यह कि लोगों को पर्यावरण संबंधी संपूर्ण जानकारी प्रदान करते हुए जागरुक बनाना होगा, तभी प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सकता है।

आम लोगों को जागरुक बनाने के लिए उन्हें पर्यावरण के लाभ और उसके प्रदूषित होने पर उससे होने वाली समस्याओं की विस्तृत जानकारी देनी होगी। लोगों को जागरुक करने के लिए उनके मनोरंजन के माध्यमों द्वारा उन्हें आकर्षक रूप में जागरुक करना होगा। यह काम समस्त पृथ्वीवासियों को मिलकर करना होगा, ताकि हम अपने उस पर्यावरण को और प्रदूषित होने से बचा सके, जो हमें जीने का आधार प्रदान करता है। अत्यधिक शोर उत्पन्न करने वाले वाहनों पर रोक लगानी होगी।

प्रदूषण चाहे किसी भी प्रकार का क्यों न हो, हर हाल में मानव एवं समस्त जीवधारियों के अलावा जड़-पदार्थों को भी नुकसान पहुंचाती है।

पर्यावरण प्रदूषण रोकने के उपाय


पर्यावरण की सुरक्षा से ही प्रदूषण की समस्या को सुलझाया जा सकता है। पर्यावरण शब्द दो शब्दों के मेल से बना है-परि और आवरण । ‘परि’ शब्द का अर्थ है बाहरी तथा आवरण का अर्थ है कवच अर्थात पर्यावरण का शाब्दिक अर्थ है बाहरी कवच, जो नुकसानदायक तत्वों से वातावरण की रक्षा करता है। यदि हम अपने पर्यावरण को ही असुरक्षित कर दें तो हमारी रक्षा कौन करेगा?

इस समस्या पर यदि हम आज मंथन नहीं करेंगे तो प्रकृति संतुलन स्थापित करने के लिए स्वयं कोई भयंकर कदम उठाएगी और हम मनुष्यों को प्रदूषण का भयंकर परिणाम भुगतना होगा। प्रदूषण से बचने के लिए हमें अत्यधिक पेड़ लगाने होंगे। प्रकृति में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन करने से बचना होगा। हमें प्लास्टिक की चीजों के इस्तेमाल से परहेज करना होगा। कूड़े-कचरे को इधर-उधर नहीं फेंकना होगा।

वर्षा के जल का संचय करते हुए भूमिगत जल को संरक्षित करने का प्रयास करना होगा। पेट्रोल, डीजल, बिजली के अलावा हमें ऊर्जा के अन्य स्रोतों से भी ऊर्जा के विकल्प ढूंढने होंगे। सौर ऊर्जा व पवन ऊर्जा के प्रयोग पर बल देना होगा। अनावश्यक एवं अनुपयोगी ध्वनियों पर रोक लगानी होगी। तकनीक के क्षेत्र में नित्य नए-नए प्रयोग व परीक्षण हो रहे हैं।

हमें ऐसी तकनीक का विकास करना होगा, जिससे यातायात के साधनों द्वारा प्रदूषण न फैले। सबसे अहम बात यह है कि हम मनुष्यों को अपनी पृथ्वी को बचाने के लिए सकारात्मक सोच रखनी होगी तथा निःस्वार्थ होकर पर्यावरण प्रदूषण से बचने के लिए कार्य करना होगा। हमें मन में यह ध्येय रखकर कार्य करना होगा कि हम स्वयं अपने आपको, अपने परिवार, को देश को और इस पृथ्वी को सुरक्षित कर रहे हैं।

जमशेदपुर, झारखंड

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