पिछले दो ढाई दशकों से इंडस्ट्रियल ग्रोथ के नाम पर जो विकास हो रहा है, उसकी बड़ी कीमत हमारी धरती को अपने ही अस्तित्व के एक हिस्से को मिटाकर चुकानी पड़ रही है। इस दौरान हम पृथ्वीवासियों ने खुद अपने जीवन को खतरे में डाल दिया है। सड़कें चौड़ी करने के नाम पर जंगलों का सफाया किया गया, घर-घर लगे एसी, रेफ्रीजरेटर्स, बोझ बनते ट्रैफिक ने शहरों की आबोहवा में ही जहर भर दिया। यही नहीं इस बीच वन्य जीवन की स्थिति भी बद से बदतर होती गई। घटते वन, अंधाधुंध शिकार, जागरूकता की कमी आदि के चलते, वन्यजीवन की स्थित और दयनीय हुई है। परिणामस्वरूप वे पशु जिनकी असल जगह वनों में हुआ करती थी, जानवर-इंसान की नियमित मुठभेड़ों के किरदार बनते गए। आज ऐसी बहुत सी परेशानियां धरती के जीवन और मृत्यु के बीच यक्ष प्रश्न का रूप ले चुकी हैं। यही कारण है कि कार्बन उत्सर्जन कटौती को लेकर दुनिया भर के तमाम देश नए समझौते को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। स्थिति की भयावहता को देखते हुए हर देश की सरकार और निजी क्षेत्र, पर्यावरण संरक्षण से संबंधित जॉब बढ़ा रहे हैं और संबंधित प्रोफेशनल्स को वरीयता दे रहे हैं। इससे न सिर्फ रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं, बल्कि इस क्षेत्र को भविष्य का सबसे पसंदीदा सेक्टर माना जा रहा है।
क्यों हैं महत्वपूर्ण
इन दिनों ग्लोबल वार्मिंग, ओजोन परत का घटना, ग्रीन हाउस इफेक्ट जैसे विषय चर्चा में हैं। धरती के पर्यावरण को अस्थिर करने वाले ये कारक लोगों की चिंता का कारण बन रहे हैं। बढ़ते औद्योगिकीकरण, समाप्त होते वन, पिघलते ग्लेशियर के चलते साल दर साल धरती के जीवन में फर्क आता चला जा रहा है। यही कारण है कि आए दिन दुनिया में कहीं सुनामी तो कहीं अन्य विपदाएं आती रहती हैं और यदि समय रहते हम न चेते, तो धरती नष्ट होने की बातें भी कही जा रही है। ऐसे में सरकारों की माथे पर सिलवटें पड़ना लाजिमी ही है। राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई बड़े सम्मेलनों, चर्चाओं के बावजूद इस वैश्विक समस्या पर काबू नहीं पाया जा सका है। इस माहौल में विश्व भर में ऐसे लोगों की मांग बढ़ रही है, जो पर्यावरण के क्षेत्र में अपने प्रयासों से बदलाव की पहल कर सकते हों। इस क्षेत्र में अधिक से अधिक लोगों को जागरूक करने के लिए हर वर्ष पांच जून को अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इतना ही नहीं सीबीएसई ने प्रारंभिक स्तर पर ही इसे एक अलग सब्जेक्ट के रूप में मान्यता प्रदान कर दी है और प्राय: सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में इससे संबंधित सिलेबस अवश्य रहता है। सरकारों के साथ-साथ कई गैर सरकारी ऑर्गेनाइजेशन भी इस क्षेत्र में प्रयासरत हैं। एसीसी सीमेंट, इकोस्मार्ट, एसजीएस इंडिया, टीसीएस, रिलायंस एनर्जी और एमएंडएम इंटर्नशिप ऑफर कर रही हैं। साथ ही यही कंपनियां ऊंचे दाम पर इन प्रोफेशनल्स को जॉब भी ऑफर करा रही हैं।
इन्वायरनमेंट इंजीनियरिंग
इन्वायरनमेंट इंजीनियरिंग में आपको पर्यावरण की जानकारी के साथ इन्वायरनमेंट टेक्नोलॉजी के बारे में भी क्वालीफाइड नॉलेज से लैस होना जरूरी है। इस क्षेत्र में आपको इन्वायरनमेंट डिजाइन, स्ट्रक्चर व कंट्रोल, इन्वायरनमेंट प्रौद्योगिकी आदि के बारे मे नॉलेज दी जाती है।
इन्वायरनमेंटल साइंस
विज्ञान के इस क्षेत्र के तहत पर्यावरण की भौतिकी, रासायनिक और जैविक प्रक्रियाओं के साथ-साथ मानवीय जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में विस्तृत जानकारी दी जाती है। साथ ही इसमें हमारे इकोसिस्टम को बेहतर बनाए रखने के तरीकों के बारे में विस्तार से पढ़ाया जाता है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन, जल गुणवत्ता, कचरा प्रबंधन, वायु और ध्वनि प्रदूषण और आपदा प्रबंधन के बारे में जानकारी दी जाती है। देश के विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में बीएससी व एमएससी इन इन्वायरनमेंट साइंस की पढ़ाई होती है।
इन्वायरनमेंट जर्नलिज्म
इस क्षेत्र में पर्यावरण पर सरकारी और औद्योगिक क्षेत्र की पर्यावरण नीतियों व उनके पड़ने वाले आर्थिक प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। इन्वायरनमेंट के बारे में लोगों की बढ़ा जागरूकता के चलते आज इन्वायरनमेंट जर्नलिस्ट वक्त की जरुरत बनकर उभरे हैं। इन लोगों का मुख्य काम वन्यजीवन, पारिस्थतिकी तंत्र में आ रहे बदलावों व उसके प्रभावों से दुनिया को रूबरू कराना होता है। ये लोग आधुनिक संचार के साधनों, प्रिंट, ब्रॉडकास्ट, ऑनलाइन के जरिए इस बारे में लोगों को जागृत कर सकते हैं। इस क्षेत्र में पी. साईनाथ, सुनीता नारायण, के. कृष्णास्वामी कुछ ऐसे ही जाने पहचाने नाम हैं। इस क्षेत्र में जरूरी नहीं कि आप किसी डिग्री या डिप्लोमा से ही लैस हो, हां आपमें पर्यावरण के प्रति गहरी जिम्मेदारी का अहसास जरूर इस काम की पहली और अहम शर्त है, जो इस फील्ड में आपकी कामयाबी की अहम गांरटी भी है।
इन्वायरनमेंट लॉ
देश में पर्यावरण के गिरते स्तर और उपजी परेशानियों के चलते सरकार ने पर्यावरण संबधित कुछ चीजों को कानून का दर्जा दिया है। ये कानून इन्वायरनमेंट लॉ के अंर्तगत आते हैं। यहां लॉ स्टूडेंट्स के लिए काम के अच्छे मौके हैं। आज देश के ज्यादातर लॉ कॉलेज इनवायरनमेंट लॉ में एलएलबी के कोर्स ऑफर करते हैं। इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को इन्वायरनमेंट व वाइल्ड लाइफ से संबंधित नए-नए कानूनों की अपडेटेड जानकारी रखनी होती है। ये लोग पर्यावरणीय मसलों पर अपनी सलाह देने, कानून सम्मत राय लागू कराने, पर्यावरण मसलों में विवादों का निस्तारण जैसे मसलों पर काम करते हैं। यही नहीं जल, वायु, ध्वनि प्रदूषण, कचरा निस्तारण, समेत कई पर्यावरणीय मुद्दों पर बनाए गए कानून को लागू करवाने की जिम्मेदारी भी इन्हीं पर होती है।
इन्वायरनमेंट मैनेजमेंट
इन्वायरनमेंट मैनेजमेंट की पॉपुलैरिटी सबसे ज्यादा है। इन दिनों देश में ऐसे संस्थानों की कमी नहीं हैं जो इस क्षेत्र में कोर्स ऑफर कर रहे हैं। इन्वायरनमेंट मैनजमेंट में डिग्री होल्डर्स इन्वायरनमेंट एक्सपर्ट, इन्वायरनमेंटल एंड़ क्वालिटी मैनेजर, वाटर एंड इन्वायरमेंटल सेनिटेशन ऑफिसर के तौर पर काम के बेशुमार मौके हैं।
क्या हैं कोर्सेज
इस समय दिल्ली विश्वविद्यालय, पुणे विश्वविद्यालय, जेएनयू, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर, आईआईटी जैसे संस्थानों में बैचलर, मास्टर्स, एमटेक, एमई और पीएचडी में ग्रीन कोर्स को शामिल किया गया है। आईआईएम, अहमदाबाद और लखनऊ में कार्बन फाइनेंस कोर्स पढ़ाया जाता है। पर्यावरण संरक्षण के बारे में बढ़ती जागरूकता के चलते उन युवाओं की संख्या बढ़ी है, जो पेशेवर तौर पर इस क्षेत्र में उतर रहे हैं। ऐसे में देश के कई महत्वपूर्ण संस्थान इस क्षेत्र में कई तरह की डिग्री व डिप्लोमा कोर्स ऑफर कर रहे हैं। यहां पर ऐसे कई कोर्स हैं, जो पर्यावरण से संबंधित अलग-अलग समस्याओं को अलग- अलग कोर्सों की मदद से डील करते हैं। यहां मौजूदा कोर्सों में पॉल्यूशन कंट्रोल, इन्वायरनमेंट बायोलॉजी, इन्वॉयरनमेंट टैक्सिकोलॉजी, इन्वायरनमेंट सांइस, इकोलॉजी, इन्वायरनमेंट मैनजमेंट, इंडस्ट्रियल पॉल्यूशन, ह्यूमन इकोलॉजी में बैचलर और मास्टर जैसी डिग्रियों के साथ बीई या डिप्लोमा लेवल के कोर्स खास हैं। यदि आप अपनी क्वालीफिकेशन अपग्रेड करना चाह रहे हैं, तो इन्वॉयरनमेंट सांइस में पीएचडी या एमफिल जैसे विकल्प आपके पास हैं। इन्वायरनमेंट सांइस के कोर्स अपने आप में व्यापक होते हैं और साथ ही इसमें कई स्ट्रीम का समावेश भी होता है। ऐसे में इस क्षेत्र को कैरियर बनाने के लिए इस क्षेत्र में रुचि होना अनिवार्य है। इसके साथ ही इन्वायरनमेंट से संबंधित ज्ञान अतिरिक्त योग्यता होती है। इन्वायरनमेंट में बैचलर कोर्सों में दाखिले के लिए बारहवीं साइंस स्ट्रीम से होना आवश्यक है।
फ्यूचर प्रॉस्पेक्ट्स
युनाइटेड नेशंस एन्वायरनमेंट प्रोग्राम (यूएनईपी) रिपोर्ट, 2008 के मुताबिक साल 2025 तक भारत में बायोगैस के क्षेत्र में ही सिर्फ 9 लाख नई नौकरियां होंगी। अनुमान के मुताबिक एन्वायरनमेंटल प्रोडक्ट्स और सविर्सेज का वैश्विक बाजार करीब 2.74 लाख करोड़ डॉलर का होगा। हेडहंटर्स के आकलन के मुताबिक, अगले दो साल में भारत में करीब 10 लाख ग्रीन जॉब पैदा होंगे। विशेषज्ञों के अनुसार, पहले मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में हेल्थ, सेफ्टी और एन्वायरनमेंट अधिकारियों की नियुक्ति सुरक्षा कारणों से की जाती थी। अब इस तरह के पद लगभग हर सेक्टर में हैं। कुछ कंपनियां तो चीफ सस्टेनेबिलिटी ऑफिसर जैसे पद भी सृजित कर रही हैं। भविष्य में रियल एस्टेट में ग्रीन बिल्डिंग कारोबार रफ्तार पकड़ेगा। विप्रो, माइक्रोसॉफ्ट, कॉग्निजेंट, टीसीएस, इंफोसिस और ऑरेकल जैसी कंपनियां अपने ऑफिस को ग्रीन ऑफिस बनाने में लगी हैं। आने वाले समय में ऐसे लोगों की अच्छी मांग रहेगी, जो ग्रीन बिल्डिंग को सर्टिफाई कर सकें। साथ ही वैसे आर्किटेक्ट और प्रोजेक्ट प्लानरों की जरूरत होगी, जो ग्रीन बिल्डिंग नियमों के मुताबिक बिल्डिंग या प्रोजेक्ट बना सकें। पिछले वर्ष यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया (सैन डिएगो एक्सटेंशन) और द जनरल ऑफ रिकॉर्ड्स की ओर से किए गए एक सर्वे में पाया गया है कि ईकोसिस्टम की सस्टेनेबिलिटी से जुड़े प्रोफेशनल्स साल में 75,000 डॉलर से ज्यादा कमाते हैं। नौकरी करनेवाले 62 प्रतिशत प्रोफेशनल्स ने माना कि उन्हें समय पर उचित प्रमोशन मिलते हैं और युवा पीढ़ी के लिए यह सर्वश्रेष्ठ सेक्टर है। सर्वे में 366 सस्टेनेबिलिटी प्रोफेशनल्स को शामिल किया गया था और सभी कॉर्पोरेशन, नॉनप्रॉफिट और गवर्नमेंट ऑर्गेनाइजेशंस में कार्यरत थे।
जॉब की संभावनाएं
इस क्षेत्र में काम का दायरा बहुत बढ़ चुका है। पर्यावरण सुरक्षा तो इसका एक हिस्सा भर है। बढ़ते प्रदूषण और इसके साथ पृथ्वी पर दूषित होती जीवन की दशाओं के चलते स्थानीय सरकारों के साथ उद्योग जगत ने भी इसके खिलाफ कमर कस ली है। इन्हीं के चलते प्रदूषण नियंत्रण, वैकल्पिक ऊर्जा पद्धति, इन्वायरनमेंट सेफ्टी मेजर्स आदि चीजों में रुझान में बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। इंडिया इंक यानि भारतीय उद्योग संघ इस दिनों पर्यावरण के संबध में संवेदनशील रवैया अपना रही है। यही कारण है कि देशी कंपनियों ने भी इन्वायरनमेंट सेफ्टी मेजर्स बड़े पैमाने पर अपनाना शुरू कर दिए हैं। बायो फ्यूल का उपयोग, वाहनों के लिए यूरो मापदंड का इस्तेमाल, तकनीक में समय-समय पर किए जाने वाले बदलाव, कंपनियों का अपनी टेक्नोलॉजी में एनर्जी एफिसिएंट तरीकों का इस्तेमाल आदि इन्हीं उपायों में आते हैं। बड़े पैमाने पर कारों में इस्तेमाल होने वाले कैंसर पैदा करने वाली धातुओं मरकरी, क्रोमियम, लेड, जैसी धातुओं के इस्तेमाल पर लगी रोक, उनके अल्टरनेटिव्स का बढ़ता इस्तेमाल, इको फ्रैंडली टेक्नोलॉजी के विकास पर बढ़े सरकारी इन्वेस्टमेंट आदि ने इस क्षेत्र को युवाओं के लिए फायदेमंद बना दिया है। पिछले एक डेढ़ दशक से जलवायु परिवर्तन व उनसे होने वाले नुकसानों के प्रति आम लोगों में बढ़ी जागरूकता के बीच जॉब की संभावनाओं में भी गुणात्मक वृद्घि हुई है। ऐसे में आज इस क्षेत्र में कैरियर की अच्छी गुंजाइश है। भारत सरकार के वन्य व पर्यावरण, पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड, वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन, अरबन प्लानिंग, इंडस्ट्री, वाटर रिसोर्स व एग्रीकल्चर, जैसे कई विभाग हैं, जो योग्य व काम के प्रति समर्पित युवाओं को काम का अवसर देते हैं। इस क्षेत्र में काम कर रहे एनजीओ भी इस क्षेत्र में नए अवसर उत्पन्न करने में सहायता कर रहे हैं।
कैरियर को नई उड़ान
धरती पर गहराते पर्यावरणीय संकट के चलते क्लीन टेक्नोलॉजी देश में एक बड़ी जरूरत बन गई है। देश में टाटा और विप्रो जैसी कंपनियां इस क्षेत्र में भारी निवेश कर रही हैं। पिछले कई सालों में टाटा समूह की क्लीन डेवलपमेंट इंडस्ट्री की आसमान छूती ग्रोथ इस क्षेत्र में बढ़ते अवसर को दर्शाती है, जिसमें पिछले दो दशकों में समूह का सौर ऊर्जा बिजनेस करीब 1100 करोड़ रुपए का हो चुका है व टाटा की बीपी सोलर कंपनी दुनिया की सबसे बड़ी सौर ऊर्जा कंपनी बन चुकी है। इसमें सफलता उन्हीं प्रोफेशनल्स को मिलती है, जो कोर्स करने के अलावा मार्केट की मांग के अनुरूप खुद को ढालने में सफल होते हैं।
अलका तोमर
डायरेक्टर, सीएमएस
इन्वायरनमेंट, दिल्ली
भविष्य का कैरियर
इन्वायरनमेंट साइंस को भविष्य का कैरियर कहा जा सकता है, क्योंकि आने वाले समय में सभी देशों की सरकारें विभिन्न प्रकार की कंपनियों में इको फ्रेंडली टेक्नोलॉजी को अनिवार्य करने की योजना बना रही हैं। समय की जरूरत को पहचानते हुए भारत की अनेक कंपनियां इस तरह के रिसर्च पर जोर दे रही हैं और काफी संख्या में संबंधित प्रोफेशनल्स को वरीयता दे रही हैं। प्राइवेट सेक्टर में नॉनप्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशंस में एक तिहाई जॉब इसी प्रकार के नॉन प्रॉफिट जॉब के अंतर्गत आते हैं। रिसर्च, रिसाइकिलिंग, लॉ, जर्नलिज्म, प्रोडक्शन, सेफ्टी कंट्रोल जैसे अनेक क्षेत्रों से आने वाले के लिए यहां मौके ही मौके हैं।
नीरज कुमार
प्रबंधक, इन्वायरनमेंट
आईसीटी, दिल्ली
प्रमुख संस्थान
दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज, बेंगलुरु
टेरी यूनिवसिटी, दिल्ली
नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी, भोपाल
सिम्बॉयसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, पुणे
गुरु जंभेश्वर यूनिवर्सिटी, हरियाणा
मद्रास स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, चेन्नई
इंदिरा गांधी सेंटर फॉर इन्वायरनमेंट, ह्यूमन इकोलॉजी एंड पॉल्यूशन, जयपुर
जीबी पंत यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलाजी, पंतनगर
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