पर्यावरण को 'नारायण' मानें

भारत में शीतल पेयजल के नाम पर कीटनाशकों से भरपूर काला पानी बेचने वाली संस्थाओं को जब सुनीता जी ने उनकी करतूतों का चिट्ठा पेश किया तो सारे देश का सिर गर्व से ऊंचा हो गया।

पिछले वर्ष जब देश की एक संस्था ने सुन्दर बोतलों में ‘काले पानी' के साथ-साथ कीटनाशक पिलाने वाली कम्पनियों को जब उनकी करतूतों का आईना दिखाया था, तो पूरा देश स्तब्ध तो हुआ ही था। साथ ही, गौरवान्वित भी हुआ था। पूरा देश अपनी संस्था के पीछे खड़ा दिखा था। उस संस्था का नाम है सी.एस.ई यानी ‘सेन्टर फॉर साइंस एण्ड एन्वायरनमेंट’। इस संस्था को श्री अनिल अग्रवाल ने 1980 में स्थापित किया था। उस समय पर्यावरण जन-मन से जुड़ा विषय नहीं था। लेकिन आई.आई.टी से निकले कुशाग्र बुद्धि स्व. श्री अग्रवाल ने यह महसूस किया था कि आने वाली भारतीय पीढ़ी के ज्यादातर दुख पर्यावरण के बिगड़ने से ही शुरू होंगे, इसलिये उन्होंने इन सम्भावित दुखों के प्रति देश भर के लोगों को खबरदार करने के लिये इस संस्था की स्थापना की थी।

अच्छे पर्यावरण का ध्येय पीने का पानी, स्वच्छ हवा, सेनिटेशन, अच्छा स्वास्थ्य, प्राकृतिक सम्पदाओं के संरक्षण के लिये ही सी.एस.ई पग-पग डग-डग आगे बढ़ती जा रही है। कुछ वर्ष तक यह संस्था नेपथ्य में अपने शोध एवं अनुसंधानों में तल्लीन रही। इसका सुन्दर उदाहरण है ‘हमारा पर्यावरण' नामक वह रिपोर्ट, जिसे संस्था ने ‘अनुपम मिश्र’ के साथ मिलकर संकलित किया था और जो आज भी अपनी मिसाल आप है। स्वयंसेवी संस्थाओं का देश में आजादी के बाद से ही अकाल नहीं रहा है जिनमें से कुछेक की निष्पक्षता और उपलब्धता को उंगलियों पर गिना भी जा सकता है। इसी कड़ी में जनमानस से जुड़े अनेकानेक मुद्दों को दृढ़ संकल्प के साथ उठाते हुए आज यह संस्था विश्वपटल पर अपनी बात विनम्र सत्य एवं दृढ़ता के ज्वलंत शब्दों में कहती है। जिसका उदाहरण हाल ही में सुनीता जी को मिला स्टॉकहोम का वह सम्मान है जिसकी राशि लगभग 75 लाख रुपये है। जो उनको रेनवॉटर हार्वेस्टिंग पर उनकी उपलब्धियों के कारण मिला है।

दिल्ली में सीएनजी की लड़ाई से लेकर वॉटर हार्वेस्टिंग, प्रदूषित होती जैव विविधता, कमतर होते प्राकृतिक संसाधनों के प्रति उठ खड़े होने का एक नवीन चैतन्य दिया है। संस्था की यही कार्य प्रणाली सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर में सी.एस.ई को आकर्षक प्रतिष्ठा प्रदान करती है।

राजस्थान में वॉटर हार्वेस्टिंग की परियोजना में सक्रिय भागीदारी निभाते हुए स्व. अनिल अग्रवाल ने देश भर में पानी बचाने की भव्य परम्परा को पुन: निखारने के लिये 'बूंदों की संस्कृति’ नामक एक सजल-सजीली और सुरुचिपूर्ण पुस्तक संजोयी। उनका यह प्रयास बेहद लोकप्रिय हुआ था। यह पुस्तक आज बीस वर्ष बाद भी लोकप्रिय है। दिल्ली में सीएनजी अपनाने का अभियान भी सीएसई ने ही छेड़ा था। जिसे दिल्ली सरकार ने अपने प्रदूषित चेहरे से काली-काली बत्तियां उतारते हुए अपनाया था, आज दिल्ली में सीएनजी के बाद लोगों केचेहरे और रूमाल दोनों साफ रहने लगे है। सुप्रीम कोर्ट के बड़े जजों के सफेद रूमाल भी साफ हैं जिन्होंने धुआं उगलते ऑटोज को दिल्ली छोड़कर कहीं भी धुआं छोड़ने की अलिखित धमकी दी थी। सीएनजी अभियान की सफलता इसी बात से आंकी जा सकती है कि आज राजधानी की सीएनजी बस सेवा विश्व की सबसे बड़ी सेवा है। इस धरती को सुंदर बनाने के संघर्ष में श्री अनिल अग्रवाल जुटे थे।

उनके जाने के बाद सुनीता नारायण ने सीएसई का कार्यभार संभाला। भारत में शीतल पेयजल के नाम पर कीटनाशकों से भरपूर काला पानी बेचने वाली संस्थाओं को जब सुनीता जी ने उनकी करतूतों का चिट्ठा पेश किया तो सारे देश का सिर गर्व से ऊंचा हो गया। हालाँकि स्वदेशी विचारों को मात्र कर्मकाण्ड मान चुकी उस समय की सरकार की एक प्रवक्ता ने देश की संस्था की पीठ थपथपाने की बजाय मात्र 24 घण्टों में ही विदेशी कम्पनी के पक्ष में बयान जारी करके अपने लिये मखौल का सामान जुटा लिया था।

2004 में लताड़ी गयी शीतल पेय के नाम पर लगभग नाली का पानी परोसने वाली कम्पनियाँ आज एक वर्ष बाद भी लड़खड़ा रही हैं। भगवान करे आगे ये कम्पनियाँ ढह ही जाय। सीएसई के इसी सद्चित प्रयास को योगीराज स्वामी रामदेव जी ने इन शीतल पेयों को देश के कई रेफ्रिजरेटरों से निकलवा कर घरों के टॉयलेट तक पहुँचाया है।

पानी की गुणवत्ता को लेकर उठे इस बवाल ने महाराष्ट्र में भी लगभग 13 कम्पनियों को सील करवा दिया। तब केन्द्र सरकार को भी अपने माथे पर हाथ रख कर याद आया था कि देश में कोई गुणवत्ता के मानक निर्धारित करने वाला मंत्रालय भी है। तब इस मंत्रालय ने भी आनन-फानन में अपने कमरों में लगे निकम्मेपन के जाले झाड़े थे। इसका श्रेय भी सीएसई को ही जाता है। घर की छतों पर बरस कर व्यर्थ जाने वाला पानी सीधे धरती में कैसे उतारा जा सकता है, इसकी बेहद सुंदर रूप-रेखा भी सीएसई ने तैयार की है, काफी लोग उसे अपनाने भी लगे हैं। सीएसई का यह प्रयोग बेहद सफल रहा है।

अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में सुनीता नारायण जी ने धरती के बढ़ते बुखार पर विश्व भर के विशेषज्ञों को अपने तर्क से भारतीय पर्यावरण दर्शन मनवाया था।

सीएसई के कई सारे प्रकाशन हैं। 'डाउन टु अर्थ' सबसे ज्यादा संजीदगी से पढ़ी जाने वाली अंग्रेजी पत्रिका है। इसके अलावा 'जलबिरादरी' है 'गोबर टाइम्स' संस्था के लोकप्रिय प्रकाशनों में है। इसी वर्ष रेनवॉटर हार्वेस्टिंग पर बनाई सीएसई की फिल्म को ग्रीन ऑस्कर अवार्ड से सम्मानित किया गया है। संस्था की ओजस्वी डायरेक्टर सुनीता नारायण जी को इस वर्ष पद्मश्री सम्मान से भी सम्मानित किया गया है। देश भर के अभयारण्यों में मारे जाने वाले बाघों को बचाने के लिये भारत सरकार द्वारा बनाई गयी टॉस्क फोर्स की डायरेक्टर भी सुनीता जी को ही बनाया गया है। देश भर के पर्यावरण के प्रति चिन्ता रखने वालों के लिये यह सुखद आश्चर्य की तरह है।

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