प्रख्यात पर्यावरणविद अनुपम मिश्र का कहना है कि अगर पर्यावरण में हो रहे वर्तमान बदलाव को रोकना है तो हमें वर्तमान विज्ञान के विस्तार को रोकना होगा. अनुपम मिश्र कहते हैं कि पर्यावरण में हो रहे बदलाव के लिए दादा देश जिम्मेदार हैं और पर्यावरण में बदलाव को रोकने के लिए उन्हें सबसे पहले कोशिश करनी होगी.
नई दिल्ली में डी-सेक्टर द्वारा आयोजित क्लाइमेट चेंज पर आयोजित एक बहस में बोलते हुए अनुपम मिश्र ने कहा कि 'मौसम बदलता था तो हमारे दादा दादी हमको कहते थे मौसम बदल रहा है थोड़ी सावधानी रखो, लेकिन आज जब धरती का मौसम बदल रहा है तो ऐसे दादा दादी बचे नहीं जो हमें बता सके कि मौसम बदल रहा है इसके लिए थोड़ी सावधानी रखो. उल्टे दुनिया के दादा लोग ही मौसम में हो रहे इस बदलाव के लिए कारण हैं.'
कोपेनहेगन से पहले आयोजित इस चर्चा में उन मुख्य विन्दुओं पर चर्चा की गयी जो वर्तमान पर्यावरण के संदर्भ में जरूरी हैं. अनुपम मिश्र ने कहा कि 'धरती का बुखार न बढ़े इसके लिए तैयार रहने की जरूरत है. लेकिन जिस तरह की तैयारी दादा देश कर रहे हैं वह पर्यावरण को होनेवाली क्षति को कम नहीं करेगा बल्कि उनको उपभोग का एक नया मौका प्रदान कर देगा.' जेबकतरों और डाकुओं के उदाहरण से समझाते हुए अनुपम मिश्र ने कहा कि पर्यावरण पर दादा देश छोटे देशों को ऐसे ही समझा रहे हैं जैसे डाकुओं का कोई बड़ा दल किसी जेबकतरे से कहे कि तुम्हें लोगों की जेब नहीं काटनी चाहिए. अगर बड़े देश चाहते हैं कि पूरी धरती का बुखार न बढ़े तो बड़ी पहल उन्हें ही करनी होगी.
उन्होंने कहा कि मीडिया को भी बार बार विदेश की ओर देखने की बजाय अपने आस पास देखना चाहिए. उन्होंने कहा कि जैसलमेर में इस साल 10 सेन्टीमीटर के औसत से भी कम 6 सेन्टीमीटर वर्षा हुई है लेकिन वे कभी शिकायत नहीं करते. क्या उनके जीवन को देखकर हम किसी जीरो एनर्जी जीवन की कल्पना नहीं कर सकते? वे तो कभी पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते, तो क्या हमें उनके जीवन को देखकर कोई सीख नहीं लेनी चाहिए. अनुपम मिश्र ने कहा कि पर्यावरण पर जारी बहस का तब कोई मतलब नहीं रह जाता जब चौबीस घण्टे बिजली फूंकने के बाद घड़ी देखकर एक घण्टे के लिए बिजली का बल्ब बंद कर दिया जाता है. ऐसे चोंचलों से पर्यावरण का बचाव नहीं किया जा सकता. अनुपम मिश्र ने कहा कि आज पूरी बहस के तीन बिन्दु हैं जिसमें विज्ञान सबसे ऊपर है. उसके बाद राजनीति और फिर दर्शन आता है. अनुपम मिश्र का कहना है कि अगर पर्यावरण पर सार्थक परिणाम चाहिए तो हमें सबसे पहले दर्शन पर बात करनी होगी, उसके बाद राजनीति और आखिर में विज्ञान पर. अनुपम मिश्र का तर्क है कि बहस के केन्द्र में विज्ञान के होने से हर समस्या का एक तकनीकि हल दे दिया जाता है जो पहले से ज्यादा विनाशकारी साबित होता है.
इस गोष्ठी में अनुपम मिश्र के अलावा डॉ सुधीरेन्द्र शर्मा, राकेश रफीक और डा सूर्य सेठी भी मौजूद थे. कार्यक्रम का संयोजन डी-सेक्टर की ओर से डॉ कुलदीप रत्नू ने किया था.
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