पर्यावरण के युवा प्रहरी

स्वीडन की ग्रेटा थनबर्ग।
स्वीडन की ग्रेटा थनबर्ग।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के अनुसार दुनियाभर में 15 वर्ष के 93 प्रतिशत बच्चे ऐसी प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं, जो न सिर्फ सेहत को नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि उनके विकास को भी प्रभावित कर रही है। संगठन की 2016 की एक अन्य रिपोर्ट बताती है कि प्रदूषित हवा से होने वाली सांस संबंधी बीमारियों के कारण लगभग छह लाख बच्चों की मौत हो चुकी है। स्वीडन की क्लाइमेट एक्टिविस्ट 16 वर्षीय ग्रेटा थनबर्ग को ये आंकड़े विचलित कर रहे थे और उन्होंने वैश्विक जलवायु परिवर्तन से हो रहे दुष्प्रभावों के खिलाफ खुद आवाज उठाने का निर्णय लिया।

वह 2018  की घटना है। वे हर शुक्रवार को स्वीडन की संसद के बाहर धरने पर बैठती और नेताओं से पर्यावरणीय समस्याओं के खिलाफ ठोस कर्रावाई करने की अपील करती। देखते ही देखते उनका यह आंदोलन इतना बड़ा बड़ा हो गया कि दुनिया के 123 देशों में युवा और स्कूली बच्चेे सड़कों पर आ गए। भारत के युवाओं पर भी इसका गहरा असर हुआ। उन्होंने इस वैश्विक ‘स्कूल स्ट्राइक फाॅर क्लाइमेट’ यानी ‘फाइडेज फाॅर फ्यूचर मूवमेंट’ में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। दिल्ली-एनसीआर के अलावा देश के 30 अन्य शहरों में भी छोटे-बड़े विराधी मार्च देखने को मिले। 

पुराने पहियों की रिसाइक्लिंग

ग्रेटा ने कदम बढ़ाया और उनके पीछे दुनिया चल पड़ी। उन्होंने एक इंटरव्यू में भारत के प्रधानमंत्री से भी जलवायु परिवर्तन की दिशा में निर्णायक पहले करने का आग्रह किया है, क्योंकि कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जन में भारत का विश्व में चौथा स्थान है। वैसे, भारत के युवा इस हकीकत से बखूबी परिचित हैं, इसीलिए अपने स्तर पर कई तरह से प्रयास कर रहे हैं। इसका उदाहरण गुरुग्राम के अनुभव वाधवा हैं, जिन्होंने कुछ वर्ष पहले लोगों को वाहनों के टायर जलाते हुए देखा और सोच में पड़ गए कि आखिर इसका पर्यावरण पर कैसा प्रभाव होता होगा?

टायर जलने से निकलने वाली तमाम हानिकारक गैसों के बारे में जानकार अनुभव इतने उद्वेलित हो गए कि उन्होंने ‘टायरलेसली’ नाम से आनलाइन प्लेटफाॅर्म  बनाया, जहां कोई भी पुराने टायरों की सूचना दे सकता है। वे बताते हैं, ‘हम टायर्स को अलग अलग स्थानों से इकट्ठा कर उन्हें रिसाइक्लिंग प्लांट में भेजते हैं। वहां पायरोलिसिस तकनीक से इन पुराने पहियों को ईंधन तेल, स्टील आदि प्रयोग करने योग्य उप-उत्पादनों में बदला जाता है। ये सेवाएं पूरी तरह मुफ्त उपलब्घ हैं।’ अनुभव आने वाले समय में ज्यादा माइक्रो रिसाइक्लिंग प्लांट्स खोलने के अलावा छात्र समुदाय के साथ मिलकर इस बाबत जागरुकता फैलाना चाहते हैं। अनुभव कहते हैं कि शुरुआत में मैंने अपने घर से कंपनी चलाई थी। अब दिल्ली, एनसीआर से काम करता हूं। आगे देश के अन्य प्रमुख शहरों में अपनी सेवाओं को विस्तार करने का लक्ष्य है। 

कचरामुक्त हो पहाड़

जलवायु परिवर्तन के अंतर्राष्ट्रीय पैनल के अनुसार, विश्व के औसत तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी न होने के कारण कई परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। मई में देहरादून का तापमान 39 डिग्री सेल्सियस के आसपास पहुंच गया, जो आगामी दिनों में 40 डिग्री सेल्सियस तक जा सकता है। उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में हर साल गर्मी के महीनों में बढ़ते तापमान के प्रभाव से पहाड़ और हिमालयी हिमनद प्रभावित हो रहे हैं। ‘हीलिंग हिमालयाज फांउडेशन’ के संस्थापक प्रदीप सांगवान कहते हैं, कि जलवायु परिवर्तन के कारण ही पहाड़ों में गर्म हवाओं की प्रचंडता दिनोदिन बढ़ रही है।

इसका असर कृषि पर भी पड़ रहा है। किसान सेब की खेती छोड अनार और सब्जियां उगाने को विवश हैं। बीते वर्षों में ट्रैवल कंपनियों के कारण ट्रेकिंग एक व्यावसायिक  गतिविधि बन गई है। स्थानीय लोग भी रोजगार के लालच में पर्यटकों की मदद करते हैं। इससे पहाड़ों में कचरे का ढेर लगा रहा है। इसे नीचे लाने के परिवहन पर काफी खर्च आता है। बावजूद इसके, युवाओं का उत्साह कम नहीं हुआ है। सोशल मीडिया की मदद से हजारों लोग मदद के लिए आगे आ रहे हैं। हम पहाड़ों से दो प्रकार का कचारा इकट्ठा करते हैं-सिंगल यूज एंव नाॅन-डिग्रेडेबल प्लास्टिक। सिंगल यूज प्लास्टिक को वेस्ट एनर्जी मैनेजमेंट यूनिट्स में भेज दिया जाता है, जबकि शेष कचरे को नगर निगम की मदद से निष्पादित किया जाता है।

पर्यावरण को प्राथमिकता

2009 में हरियाणा से हिमाचल प्रदेश को अपना बसेरा बनाने वाले प्रदीप सांगवान ने 2016 में ‘हीलिंग हिमालयाज फाउंडेशन’  की स्थापना के बाद अकेले कचरा उठाना शुरू किया। धीरे-धीरे कुछ दोस्त  व वाॅलेंटियर्स जुड़े। आज ये शिमला-मनाली के ट्रेकिंग और तीर्थयात्रियों के रूट्स (खीरगंगा, श्रीखंड बहादुर) पर सक्रिय हैं। वे अब तक चार लाख किलोग्राम से अधिक कचरा साफ कर चुके हैं। प्रदीप मानते हैं कि जब आप किसी काम का आनंद लेते हैं तो कुछ भी नामुमकिन नहीं लगता, बल्कि अच्छा करने के लिए प्रेरित करता है।

हीलिंग हिमालयाज फाउंडेशन के संस्थापक प्रदीप सांगवान।।हीलिंग हिमालयाज फाउंडेशन के संस्थापक प्रदीप सांगवान।

दिल्ली की इंडियन सोसायटी आफ इंटरनेशनल लाॅ से इंटरनेशनल एनवाॅयर्नमेंट लाॅ में मास्टर्स कर रहे प्रीतम कश्यप कहते हैं कि ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के मामले में भारत आज विश्व में तीसरे पायदान पर है। देश के अधिकांश शहरों मे वायु प्रदूषण की समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी है। दिल्ली की एयर क्वालिटी तो वर्षों  से चिंता का विषय बनी हुई है। सुधार न के बराबर हो रहा है। फिर भी राजनेताओं ने कभी पर्यावरण संबंधी मसलों पर ध्यान नहीं दिया। ऐसे में जो चाहते हैं कि युवाओं व आने वाली पीढ़ी का भविष्य बेहतर हो, उन्हें इन मुद्दों को प्राथमिकता देनी होगी और अपनी तरफ से कोशिश शुरू करनी होगी। 

तटों की सफाई

मुंबई के बीच क्लीन अभियान के सदस्य मल्हार कांबले कहते हैं, मुंबई के दादर और अन्य किनारों पर हजारों मूर्तियों का विसर्जन होता है। उसके बाद हजारों ओर होता है कचरे का अंबार। इसे देखते हुए सितंबर 2017 में मैंने स्कूल के दोस्तों के साथ मिलकर ‘बीच क्लीन’ अभियान की शुरुआत की। सभी युवा अपपनी पाॅकेट मनी से दस्ताने व अन्य छोटे टूल्स खरीदते है और वीकेंड्स पर किनारों की सफाई करते हैं। हमारे लिए हैरानी की बात यह रही कि 90 प्रतिशत से अधिक गंदगी के लिए समीप की मीठी नदी जिम्मेदार है। इस नदी के जरिए बहकर आने वाला कचरा पहले समंदर में जाता है और फिर लहरो के साथ किनारों पर लौट आता है। हालाकि, बीएमसी इस कचरे को लैंडफिल्स में भेजती ह। मगर पर्याप्त संसाधन न होने के कारण कचरे का सेग्रीगेशन सहीं से नहीं हो पाता है। फिलहाल, हम शिवाजी पार्क बीच को स्वच्छ बनाने में जुटे हैं। 

तालाबों को पुनर्जीवन 

पर्यावरणविद रामवीर तंवर बताते हैं, गौतमबुद्ध जिले में कभी (700 नोएडा में 200 एवं ग्रेटर नोएडा में 500) से अधिक तालाब थे। आज दोनों ही क्षेत्र तालाबों से महरूम हो चुके हैं। ग्रेटर नोएडा में 150 से 200 ही तालाब बचे हैं, जिनमे अधिकतर डंपिंग ग्राउंड या अतिक्रमण के शिकार हैं। इससे इलाके का भूजल स्तर सालाना औसतन डेढ़ मीटर नीचे जा रहा है। 2013 में जब मुझे इस स्थिति की भनक लगी तो विद्यार्थियों, ग्रामीणों और दोस्तों के साथ मिलकर तालाबों को पुनर्जीवित करने की मुहिम शुरू की। कई तालाब दलदल बन चुके थे। उनके लिए विशेषज्ञों की मदद ली। आज दस तालाबों को नया जीवनदान मिल चुका है। एमएनसी कंपनियों, प्रोफेशनल्स एवं अन्य लोगों ने स्वेच्छा से इसमें श्रमदान और आर्थिक मदद की। जो कचरा निकलता है, उसे दो तरह से विभाजित किया जाता है। प्लास्टिक कचरा कूडा बीनने वाले ले जाते हैं, जबकि बाॅयोवेस्ट को खेतों में डाल दिया जाता है। अगले पांच सालों में करीब 100 तालाबों को पुनर्जीवित करने का इरादा है।

आंकड़ों में 

  • 62 मिलियन टन कचरा निकलता है देश में सालाना। इसमें 5.6 मिलयिन टन प्लास्टिक कचरा, 15 लाख टन ई-वेस्ट होता है। इसमें सिर्फ 22 से 28 प्रतिशत कचरा ही प्रोसेस या ट्रीट हो पाता है। उपभोग की मात्रा घटाकर इस कचरे का कम किया जात सकता है। 
  • 17 पेड़ों की जरूरत पड़ती है एक मीट्रिक टन पेपर के उत्पादन के लिए जबकि व्हाइट आफिस पेपर के लिए 24 पेड़ों की एंव न्यूज प्रिंट के लिए 12 पेड़ों की जरूरत होती है। पेपर का कम इस्तेमाल करने से पेड़ों को बचाया जा सकता है। 
  • 200 लीटर पानी टाॅयलेट फ्लश में हर दिन बहा देते है एक औसत शहरी परिवार, जबकि करीब सात करोड़ लोगों को शुद्ध पेयजल नहीं मिल पाता है। 40 प्रतिशत पानी को बचाया जा सकता है, अगर फ्लश की टंकी छोटी रखें। 
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