पर्यावरण के सौदागर

ग्लिक का अनुमान सही साबित हो रहा है। लीक दस्तावेजों से पर्यावरण विरोधी लॉबी के षड़यंत्रों और गुप्त एजेंडे का पर्दाफाश हो गया है। दस्तावेजों में इस बात के प्रमाण मिले हैं कि हार्टलैंड इंस्टिट्यूट कार्बन डाइआक्साइड गैसों की बड़ी उत्सर्जक कंपनियों से भारी धन लेता रहा है। हार्टलैंड को धन देने वाली कंपनियों में बिल गेट्स की विश्व प्रसिद्ध कंपनी माइक्रोसॉफ्ट भी शामिल है, जो दुनिया भर के मंचों पर खुद को पर्यावरण-प्रिय ऊर्जा नीति का समर्थक बताती है। गोपनीय दस्तावेजों के मुताबिक, प्रसिद्ध अमेरिकी कार कंपनी जनरल मोटर्स भी इस संस्थान को भारी राशि मुहैया कराती रही है।

हाल के कुछ वर्षों में ऐसा एक भी दिन नहीं बीता जब मुझ पर हमला न हुआ हो। कभी निजी तौर पर तो कभी सार्वजनिक रूप से मेरी आलोचना की जाती है। मुझे घृणा भरे मेल भेजे जाते हैं। दरअसल, हमें वे (कार्बन डाइआक्साइड गैस के बड़े उत्सर्जक) अपने लिए खतरा मानते हैं, क्योंकि हम तापमान वृद्धि की हकीकत उजागर करने में लगे हैं।' यह बयान समकालीन दुनिया के प्रसिद्ध और विवादित पर्यावरण वैज्ञानिक माइकल मान का है। इसे संयोग ही कहेंगे कि जब 14 फरवरी को मान पीड़ित मनोदशा में पत्रकारों को पर्यावरण विरोधी लॉबी के षड़यंत्र के बारे में बता रहे थे, ठीक उसी समय इस लॉबी की शिकागो (अमेरिका) स्थित सबसे बड़ी पिछलग्गू संस्था-'हार्टलैंड इंस्टिट्यूट- सेंटर ऑफ क्लाइमेट ऐंड एनवायरमेंट पॉलिसी' का काला चिट्ठा सार्वजनिक हो रहा था। प्रसिद्ध पर्यावरण वैज्ञानिक पीटर ग्लिक ने इसके गोपनीय दस्तावेज हैक करा लिये और इसे सैकड़ों लोगों को मेल कर दिया।

पीटर ग्लिक और उनके सहयोगियों द्वारा संचालित 'डिस्मॉगब्लागडॉटकाम'पर दस्तावेज के प्रकाशित होते ही दुनिया भर के पर्यावरण हलके में तूफान आ गया है, जो थमने का नाम नहीं ले रहा। हालांकि बाद में पीटर ग्लिक ने अपनी कार्रवाई पर खेद जताया, साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि पर्यावरण वैज्ञानिकों के अध्ययनों को झूठा साबित करने के लिए जो साजिशें रची जा रही हैं, उन्हें बेनकाब करने के लिए यह जरूरी था। ग्लिक का अनुमान सही साबित हो रहा है। लीक दस्तावेजों से पर्यावरण विरोधी लॉबी के षड़यंत्रों और गुप्त एजेंडे का पर्दाफाश हो गया है। दस्तावेजों में इस बात के प्रमाण मिले हैं कि हार्टलैंड इंस्टिट्यूट कार्बन डाइआक्साइड गैसों की बड़ी उत्सर्जक कंपनियों से भारी धन लेता रहा है। हार्टलैंड को धन देने वाली कंपनियों में बिल गेट्स की विश्व प्रसिद्ध कंपनी माइक्रोसॉफ्ट भी शामिल है, जो दुनिया भर के मंचों पर खुद को पर्यावरण-प्रिय ऊर्जा नीति का समर्थक बताती है। गोपनीय दस्तावेजों के मुताबिक, प्रसिद्ध अमेरिकी कार कंपनी जनरल मोटर्स भी इस संस्थान को भारी राशि मुहैया कराती रही है।

अन्य दाताओं में रीनॉल्ड अमेरिका, मादक दवा कंपनी जीएसके, फाइजर, ईली लिले जैसी बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां शामिल हैं। अमेरिका के दूसरे सबसे बड़े उद्योगपति चार्ल्स कॉक का नाम भी हार्टलैंड के बड़े दाताओं के रूप में सामने आया है। गौरतलब है कि कॉक कोई दो दर्जन बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मालिक हैं। इसके अलावा हार्टलैंड को बड़ी मात्रा में बेनामी अनुदान भी प्राप्त होते हैं। दस्तावेजों के लीक हो जाने से हार्टलैंड की आगामी कार्य-योजनाओं का भी पर्दाफाश हो गया है। इसमें पर्यावरण वैज्ञानिकों के अध्ययनों को झुठलाने और आम लोगों का ध्यान पर्यावरण संकट से हटाने के लिए व्यापक रणनीति बनाने की बात की गयी है। इसके लिए और धन जुटाने की जरूरत बताते हुए कहा गया है कि 'हमारा काम उनके लिए (कार्बन उत्सर्जक कंपनियां) आकर्षक है। अगर हम उनके हित को ध्यान मंम रखकर काम करते रहें, तो 2012 में हमें उनका और समर्थन मिलेगा।

हम अन्य दाताओं से भी अपील कर सकते हैं, खासकर उन कॉरपोरेट समूहों से जिन्हें पर्यावरण संकट के मुद्दे के कारण नुकसान उठाना पड़ रहा है।' हार्टलैंड ने पर्यावरण पत्रकारिता और स्कूली पाठ्यक्रम को भी निशाने पर रखा है। दस्तावेजों में एक जगह इस बात की चर्चा है कि पर्यावरण संकट से संबंधित अध्ययनों की काट के लिए प्रतिकूल रिपोर्टों-अध्ययन आदि का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाये। एंथनी वाट नाम के पर्यावरण विरोधी एक ब्लॉगर को हार्टलैंड ने 44 हजार अमेरिकी डॉलर की राशि दी। कई अन्य ब्लॉगर, वेबसाइट मालिकों को भी अपनी रिपोर्ट प्रकाशित करने के लिए धन मुहैया कराया गया। यहां तक कि समर्थक वैज्ञानिकों को भी इसके लिए धन दिया गया। हालांकि हार्टलैंड ने लीक हुए दस्तावेजों में उल्लिखित तथ्यों को गलत ठहराने की पूरी कोशिश की, लेकिन उन्हें इसमें अब तक कामयाबी नहीं मिली है। माइक्रोसॉफ्ट, जनरल मोटर्स आदि कंपनियों द्वारा अनुदान की बात स्वीकार करने के कारण उनके तर्कों पर लोगों को विश्वास नहीं हो रहा।

यह सच है कि हार्टलैंड प्रकरण के बाद पर्यावरण विरोधी लॉबी के चेहरे बेनकाब हो गये हैं, लेकिन यह अप्रत्याशित नहीं है। दुनिया के कई पर्यावरणविद् लंबे समय से इसकी आशंका जाहिर करते रहे हैं। बहुचर्चित 'हॉकी स्टिक ग्राफ' प्रकरण इसका ज्वलंत प्रमाण है। गौरतलब है कि 'हॉकी स्टिक ग्राफ' सिद्धांत के मुताबिक, धरती का तापमान हॉकी की स्टिक की तरह अब अनियंत्रित रफ्तार से बढ़ रहा है। सन् 1998 में मान ने इसका प्रकाशन किया था, जिसे इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने भी सही ठहराया। लेकिन इस सिद्धांत के सार्वजनिक होने के बाद मान और आईपीसीसी पर्यावरण विरोधी लॉबी के निशाने पर आ गये। आईपीसीसी और मान को गलत साबित करने के लिए तरह-तरह की रिपोर्ट प्रकाशित की गयी। जनवरी 2010 में हिमालय के पिघलते ग्लेशियर पर जारी रिपोर्ट के बाद आईपीसीसी की प्रासंगिकता और विश्वसनीयता को कठघरे में खड़ा कर दिया गया था।

गौरतलब है कि आईपीसीसी की इस रिपोर्ट में एक तकनीकी भूल थी, लेकिन पर्यावरण विरोधी लॉबी ने इसके आधार पर आईपीसीसी की सारी रिपोर्टों को ही गलत ठहराने की कोशिश की। हार्टलैंड प्रकरण से इस बात का खुलासा हुआ है कि आईपीसीसी विरोधी अभियान वास्तव में एक सुनियोजित साजिश था। इतना ही नहीं, मान के खिलाफ लगातार निजी और सार्वजनिक तौर पर अभियान चलाया गया। यह बात और है कि माइकल मान इससे विचलित नहीं हुए हैं और उन्होंने इसे 'पर्यावरण युद्ध' की संज्ञा दी है। पर्यावरण विरोधी लॉबी की साजिश और पर्यावरण संकट की हकीकत पर उन्होंने 'हॉकी स्टिक ऐंड क्लाइमेट वार' नाम से एक किताब लिख डाली है, जो मार्च में प्रकाशित होने को है। कोई संदेह नहीं कि हार्टलैंड प्रकरण के गंभीर मायने हैं। इसके बावजूद अमेरिकी सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है। संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण शाखा ने भी चुप्पी साध रखी है, जबकि इस प्रकरण के बाद स्पष्ट हो गया है कि एक बड़ी लॉबी नहीं चाहती कि पर्यावरण पर कोई बाध्यकारी वैश्विक संधि हो। उनके लिए पर्यावरण संकट को बेतुका साबित करना जरूरी है। हार्टलैंड जैसी अनेक संस्थाएं धन के लोभ में यह काम कर रही हैं।

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