पर्यावरण का होता कचरा

एक आविष्कार को उसकी लोकप्रियता ही कैसी ग्रस लेती है, प्लास्टिक के इस्तेमाल और ख़तरों को लेकर यह बात बखूबी समझी जा सकती है। खासतौर पर शहरों में प्लास्टिक ने जीवन को जितना आसान नहीं बनाया है, उससे ज्यादा दुश्वारियां पैदा कर दी हैं। प्लास्टिक कचरे के बढ़ते खतरे को सुप्रीम कोर्ट ने भी गंभीरता से लिया है। इसी पर पुनीत तिवारी और राजीव सिन्हा का फोकस

हम बारूद के ढेर पर बैठे हैं। सुनने में भले ही यह अटपटा लगता हो लेकिन यह हकीकत है। यह वह बारूद है जो देश लगभग हर इनसान तैयार कर रहा है। हां, यह जरूर है कि किसी को इस बात का अहसास है और किसी को नहीं अपनी सुविधाओं और सहूलियत के लिए हम खुद को ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी खतरे में डाल रहे हैं। दरअसल, हम बात कर रहे हैं प्लास्टिक कचरे की।

प्लास्टिक हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन गया है। चाहे वह दूध की थैली हो, गुटखा हो या पान मसाला, हम अपनी ज़रूरतों के लिए किसी न किसी रूप में प्लास्टिक का इस्तेमाल कर रहे हैं। हमारी इसी आदत का नतीजा है कि हम सभी ने खुद ही बम तैयार कर लिया है। तैयार ही नहीं कर लिया है बल्कि हम अपने द्वारा बनाए बम पर ही बैठे हैं। यही दुस्साहस हमें विनाश की ओर ले जा रहा है।

इस खतरे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हर वर्ष 2.2 करोड़ टन कचरा निकलता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा हाल ही साठ बड़े शहरों में कराए गए सर्वेक्षण के मुताबिक 15,342.46 टन प्लास्टिक कचरा रोज निकलता है इनमें से 9205 टन प्लास्टिक कचरे का फिर से इस्तेमाल हो जाता है और शेष 6,137 टन इधर-उधर बिखरा पड़ा रहता है।

प्लास्टिक कचरा फैलाने में चार महानगर सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। देश की राजधानी प्लास्टिक कचरा निकालने में अव्वल है। दिल्ली से रोज़ाना 689.5 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। इसके बाद चेन्नई का नंबर आता है। यहां से रोज़ाना 429.4 टन कचरा निकलता है। इसके बाद कोलकाता और मुंबई का नंबर आता है। यहां से रोज़ाना क्रमशः 425.7 टन और 408.3 टन कचरा निकलता है। आगरा, जयपुर, फरीदाबाद और बेंगलुरु भी प्लास्टिक कचरा फैलाने में पीछे नहीं हैं।

40 फीसद प्लास्टिक कचरा रिसाइकिल नहीं हो पाता। दिल्ली में 275.6 टन प्लास्टिक कचरा रिसाइकल नहीं हो पाता यानी ये कचरा जहां-तहां फैला रहता है। वहीं चेन्नई में 171.6 टन, कोलकाता से 170 टन और मुंबई में 163.3 टन प्लास्टिक कचरा इधर-उधर फैला रहता है। यह प्लास्टिक कचरा पर्यावरण के लिए बेहद नुकसानदायक है।

इस आंकड़े को देखकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह स्थिति भयभीत करने वाली है। इस मामले में उचित कदम उठाने की आवश्यकता है क्योंकि प्लास्टिक कचरा वर्तमान पीढ़ी को ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों पर भी असर डालेगा। हम प्लास्टिक कचरा रूपी टाइम बम बना रहे हैं और इसके फटने का इंतजार कर रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दिक्कत कानून में नहीं है बल्कि इसके क्रियान्वयन को लेकर है। प्लास्टिक कचरा फैलाने में गुटखा और पान मसालों की अहम भूमिका है। गुटखा और पान मसालों की बिक्री पर प्रतिबंध सही तरीके से लागू नहीं होने पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया था। अदालत ने कहा कि रेलवे लाइन के पास फैला कचरा यह दर्शाता है कि सरकारी एजेंसियाँ इसे लेकर कितनी लापरवाह है। हाल ही में एक संस्था ने 36 गायों पर परीक्षण किया। इस परीक्षण में हर गाय की पेट में 32 से 50 किलो प्लास्टिक की थैली पाई गई।

एक खतरनाक तथ्य


प्लास्टिक कचरा

उत्पादन

6.7 किलो/प्रति व्यक्ति, 9-11 फीसद ग्रोथ रेट

प्रयोग

15-20 फीसद

रिसाइकलिंग

60 फीसद

डिस्पोजल

कोई ठोस डाटा नहीं

 



रिसाइकेबल

पॉलीफिंस (हाई डेंसिटी

प्लास्टिक के झोले

पॉलीथीन, लो डेंसिटी

कंटेनर्स, खिलौने

पॉलीथिन फिल्म

पैकेज पाइप

पीवीसी

फुटवियर, वायर, कैब फ्लोरिंग, पाइप

पेंट

बोतलें, डिब्बे

 



नॉन रिसाइकेबल
प्लास्टिक कचरे के कई प्रकार ऐसे भी होते हैं जिन्हें रिसाइकल नहीं किया जा सकता। इनको लैंडफिल साइट्स में जमा किया जाता है या फिर जला कर नष्ट करने का उपाय किया जाता है। न सड़ने और न गलने की वजह से ड्रेनेज सिस्टम को भी इससे नुकसान पहुँचता है।

1. 689.5 टन प्लास्टिक कचरा दिल्ली से रोज़ाना निकलता है।
2. 429.4 टन प्लास्टिक कचरा चेन्नई से रोज़ाना निकलता है।
3. 425.7 टन प्लास्टिक कचरा मुंबई से रोज़ाना निकलता है।
4. 408.3 टन प्लास्टिक कचरा कोलकाता से रोज़ाना निकलता है।
5. 40 फीसद प्लास्टिक कचरा को रिसाइकिल नहीं हो पाता।
6. 275.6 टन प्लास्टिक कचरा दिल्ली में रिसाइकल नहीं हो पाता।
7. 171.6 टन प्लास्टिक कचरा चेन्नई में रिसाइकल नहीं हो पाता
8. 163.3 टन प्लास्टिक कचरा मुंबई में इधर-उधर फैला रहता है।

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