पर्यावरण जीवन शैली नहीं, बल्कि जीवनयापन का मुद्दा : जयराम रमेश

Jairam Ramesh
Jairam Ramesh

विकास का मतलब है वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ भावी पीढ़ी की आवश्यकताओं की पूर्ति भी सुनिश्चित हो तथा प्राकृतिक संसाधनों का सीमित उपयोग हो। साथ ही उसके संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाय जिससे आने वाली पीढ़ियाँ भी लाभान्वित हो सकें। पर्यावरण भी अव्यवस्थित न हो और उसके संरक्षण को बढ़ावा मिले। विकास का मतलब अंधी गली नहीं होनी चाहिए। इसी परिपेक्ष्य में पटना के तारामण्डल के सभागार में जीवक हर्ट हॉस्पिटल, प्रधान ज्वाला प्रसाद ट्रस्ट और फिलहाल ट्रस्ट की ओर से चतुर्थ प्रधान ज्वाला प्रसाद स्मृति व्याख्यानमाला के तहत 'पर्यावरण से जुड़े मुद्दों की कीमत पर विकास' पर व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस व्याख्यानमाला को सम्बोधित किया पूर्व केन्द्रीय मन्त्री जयराम रमेश ने।

उन्होंने विकास के मौजूदा मॉडल पर सवाल खड़े किए। अपने सम्बोधन में उन्होंने कहा कि भारत का विकास न तो अमेरिकी मॉडल के अनुरूप हो सकता है, न चीनी मॉडल के तर्ज पर। भारत को बीच का रास्ता तलाशना होगा, तभी वह अपने प्राकृतिक संसाधनो की रक्षा कर पाएगा। देश में तेजी से पर्यावरण को नुकसान पहुँचाया जा रहा है, विकास की अन्धी दौड़ ने हमें पर्यावरण संरक्षण के महत्त्व को भुला दिया है। अगर यही हाल रहा तो भूकम्प और बाढ़ जैसे आपदाओं के रूप में हमें विनाश देखने को मिलेगा।

उन्होंने कहा कि देश कि आबादी 125 करोड़ से ज्यादा हो चुकी है। 2050 तक इसकी आबादी में 40 करोड़ का इजाफा होगा और यह दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देश में शुमार होगा। एक ओर जहाँ जापान, रूस, जर्मनी, चीन की आबादी घट रही है, वहीं भारत की आबादी बढ़ रही है। देश में लोगों की औसत आयु 26 वर्ष है, जबकि दूसरे देशों में बूढ़ों की संख्या बढ़ रही है। ऐसे में अधिक युवा आबादी और बढ़ती आबादी के कारण प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग और बढ़ेगा। लोगों को सोचना होगा कि विकास का मतलब प्राकृतिक संसाधनों का खुद ही उपयोग करना नहीं है, बल्कि अगली पीढ़ी के लिए उसे संरक्षित करना भी है।

भारत में विकास संकट के दौर से गुजर रहा है। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जब चीन के दौरे पर गए तो हर लोग भारत की तुलना चीन से करने लगा और अनेक लोगों की यह आकांक्षा है भारत अगले कुछ वर्षों में चीन की तरह विकास करे। भारत के विकास का मॉडल चार बातों को ध्यान में रखकर बनाया जाना चाहिए। इन बातों में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या, जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य पर पर्यावरण का असर और आश्रित समुदाय की आजीविका।

पर्यावरण में असन्तुलन के कारण आज देश भर में करोड़ों लोग विभिन्न बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। कहीं हृदय रोग बढ़ रहा है तो कहीं कैंसर भयावह रूप लेता जा रहा है। हमारी हवा, पानी सब प्रदूषित हो चुकी है। बीमारियों के कारण स्वास्थ्य पर लोगों का खर्च भी बढ़ रहा है जो कि उन्हें गरीबी की ओर ढकेल रहा है। देश में करोड़ों लोगों को हर वर्ष नौकरी चाहिए लेकिन इन पर्यावरण और विकास के बीच सन्तुलन बनाने की जरूरत है। असन्तुलन को रोकने के लिए नियम कानून बनाने होंगे। न्यायपालिका सिविल सोसाइटी को भी आगे आना होगा।

उन्होंने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में न्यायपालिका की भूमिका की सराहना की। यदि न्यायपालिका सजग और सक्रिय नहीं रहती तो देश को और प्राकृतिक आपदाओं का सामाना करना पड़ता। मैं न्यापालिका के पर्यावरण हितैषी रूख का समर्थक रहा हूँ। पर्यावरण के हित में कई कानून बने, वह न्यायपालिका की सक्रियता और सजगता से ही मुमकिन हो सका। जब वे मई 2009 और जुलाई 2011 के बीच वन और पर्यावरण मन्त्री थे तो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का गठन पर्यावरण हित के संरक्षण के लिए किया गया। इसने कई ऐतिहासिक निर्णय दिए। आज नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के फैसले हवा में उड़ाए जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि भारत अजीब देश है जहाँ प्रकृति, नदी,पेड़ और पहाड़ देवी या देवता की तरह आदर के साथ पूजे भी जाते हैं, लेकिन हम इसकी उपेक्षा भी करते हैं। एक ही समय में हम भगवान की पूजा करते हैं और नजरअंदाज भी करते हैं । हम माँ या देवी की तरह नदियों की पूजा करते हैं, लेकिन उन्हें साफ रखने के प्रति हम सजग नहीं हैं। हमें इस विरोधाभास को समाप्त करना होगा। गंगा समेत देश भर की नदियाँ आज गन्दा नाला बनकर रह गई हैं। उन्होंने कहा कि अगर लोकतान्त्रिक तरीके से भूमि अधिग्रहण हो तो सिंगूर और नंदीग्राम जैसी घटना नहीं होंगी।

उन्होंने कहा कि देश में पर्यावरण जीवन शैली नहीं, बल्कि जीवनयापन का मुद्दा है। वन, नदी जैसी प्राकृतिक सम्पदा लोगों के जीवन-यापन से जुड़ी है। यही कारण है कि चिपको आन्दोलन, नर्मदा बचाओ आन्दोलन जैसे आन्दोलन देश में हो चुके हैं।इस अवसर पर प्रो. डेजी नारायण ने मुजफ्फरपुर में एसवेस्टस के कारखाना के विरूद्ध छात्रों की सजगता और अवामी गोलबन्दी के बाद उद्योग न लगने देने की और जनप्रयासों की सराहना की।

जीवक हार्ट हॉस्पिटल के मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ अजीत कुमार प्रधान ने स्वागत भाषण दिया। अरूण कुमार श्रीवास्तव ने प्रधान ज्वाला प्रसाद के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। समारोह में बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अशोक चौधरी, रामचंद्र खान, आईपीएस अधिकारी जे.एस.गंगवार और अमृता प्रधान के साथ—साथ अनेक प्रशासनिक पदाधिकारी, चिकित्सक और गणमान्य लोगों ने हिस्सा लिया।
 

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