पर्यावरण भी रहे स्मार्ट

शहर तो स्मार्ट बन जाएँगे मगर वहाँ रहने वाले लोगों को कैसे स्मार्ट और स्किल्ड बनाया जाएगा क्योंकि कोई भी शहर स्मार्ट तो वहाँ रहने वाले नागरिकों से ही बनता है। क्या स्मार्ट शहरों की तकनीकी पर्यावरण की रक्षा करने में पूरी तरह से सक्षम होगी यह एक बड़ा सवाल है और इसका सीधा सा जवाब यह है कि तकनीकी कितनी भी सक्षम हो मगर लोगों को पर्यावरण को लेकर जागरुक रहना होगा तभी शहर असली मायनों में स्मार्ट होगा।

शहर शब्द सुनते ही हमारे मन में एक ऐसी सपनों भरी दुनिया के ख्याल तैरने लगते हैं जहाँ ऊँचे-ऊँचे महल हैं, बड़े-बड़े फ्लाईओवर्स हैं, जहाँ तेज गति से भागती गाड़ियाँ हैं, जहाँ घर से थोड़ी दूर पर स्कूल और अस्पताल है, जहाँ हमारे एक फोन काल से सेकंडों में पुलिस के लोग हमारी सहायता को उपलब्ध होते हैं और इन सब के बीच हौसलों के पंख लगाए जिन्दगी उड़ रही होती है। एक ऐसी दुनिया में जहाँ दिन और रात के फासले खत्म हो जाते हैं। ऐसे में अगर बात स्मार्ट शहर की हो तो कहना ही क्या। जो कि सूचना और संचार तकनीकी पर आधारित होगा और डिजिटल इंडिया के सपने को भी साकार करेगा। आम जनमानस शहर को सुविधाओं का संसार ही मानता है हालत भले ही इससे उलट हों। क्या आप यकीन कर पाएँगे कि शहर की हवाओं में खुशबू की बजाए जहर घुलता जा रहा है। शहर का बिना फिल्टर किया सामान्य जल पीने से हम तमाम बीमारियों के शिकार हो सकते हैं। हर दिन शहर पर जनसंख्या का दबाव बढ़ता जा रहा है मगर संसाधन सीमित ही हैं।

एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2050 तक दुनिया की 75 प्रतिशत आबादी शहरों में निवास करेगी जिससे यातायात व्यवस्था, आपातकालीन सेवाओं और अन्य व्यवस्थाओं पर जबर्दस्त दबाव होगा। किसी भी शहर की रूपरेखा में आठ महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ होती हैं। पहला है सरकारी प्रशासन, दूसरा ऊर्जा-पानी, बिल्डिंग, पर्यटन, यातायात, स्वास्थ्य, शिक्षा-सुरक्षा और अन्तिम सर्वाधिक महत्वूर्ण बिन्दु है पर्यावरण। ये ऐसे बिन्दु हैं जो एक शहर में होने चाहिए ऐसे में बिना किसी समुचित योजना के इन सुविधाओं की कल्पना भी शहरों में नहीं की जा सकती।

स्मार्ट शहर एक ऐसी ही कल्पना का हिस्सा है जो तकनीक के माध्यम से शहर को तमाम सुविधाओं से लैस बनाएँगे और शहरों की जिन्दगी को आसान करेंगे। भविष्य के स्मार्ट शहर में बिजली के ग्रिड से लेकर सीवर पाइप, सड़कें, कारें और इमारतें हर चीज एक-एक नेटवर्क से जुड़ी होगी। इमारत अपने आप बिजली बंद करेगी, स्वचालित कारें खुद अपने लिए पार्किंग ढूँढेंगी और यहाँ तक कि कूड़ादान भी स्मार्ट होगा। पिछले साल बार्सिलोना शहर के एक प्रमुख अधिकारी ने तो यहाँ तक कहा कि आने वाले स्मार्ट शहर भविष्य में कई देशों से ज्यादा ताकतवर हो जाएँगे। भारत में स्मार्ट सिटी बनाने की बात प्रधानमन्त्री चुनाव प्रचारों के वक्त से ही करते आए हैं। सरकार ने बजट में इसके लिए 7,060 करोड़ रुपये का प्रावधान भी किया है। 40 लाख तक की आबादी वाले शहर स्मार्ट सिटी के लिए पहली पसंद हैं, जबकि इससे बड़े शहरों के साथ सैटेलाइट शहरों को स्मार्ट बनाने की योजना है।

स्मार्ट सिटी कैसी हो, इसका मसौदा केन्द्रीय शहरी विकास मन्त्रालय ने सार्वजनिक किया है। इस सम्बन्ध में जो सबसे बड़ी चिन्ता है वह है पर्यावरण की। स्मार्ट शहर पर्यावरण की दृष्टि से कितने अनुकूल होंगे? उनमें स्वच्छ हवा और स्वच्छ जल की क्या व्यवस्था होगी, इन शहरों का कचरा निस्तारण सिस्टम कैसा होगा, हर दिन बेतहाशा गति से बढ़ते प्रदूषण पर कैसे नियन्त्रण स्थापित किया जाएगा, इन शहरों के भवन निर्माण की संरचना क्या होगी? जिन बातों का जिक्र शहरी विकास मन्त्री ने स्मार्ट शहरों की रूपरेखा के अन्तर्गत किया है अगर वास्तविक रूप में उन्हें लागू किया जाता है तो शहर निश्चित रूप से पर्यावरण के अनुकूल होगा ऐसी अपेक्षा है। शहरों में जल की बर्बादी को कैसे रोका जाए, जल निकासी की ऐसी व्यवस्था हो जिससे प्रदूषण न के बराबर हो, वाहनों द्वारा होने वाले प्रदूषण को न्यूनतम किया जाए, ऊर्जा चुनौती भारत में लगातार बढ़ती जा रही है परिणामस्वरूप ऊर्जा संकट गहराता जा रहा है इसके लिए सौर ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाए तो ऐसा शहर निश्चित रूप से आदर्श शहर होगा। हमें वैश्विक स्तर पर ऐसे स्मार्ट शहरों से सीख लेने की आवश्यकता है जो पर्यावरणीय मानकों की दृष्टि से एक आदर्श स्थापित करते हैं। इसलिए एक नजर इस पर भी डालना जरूरी है कि वैश्विक स्तर स्मार्ट शहरों की क्या स्थिति है और वहाँ इन शहरों में क्या सुविधाएँ हैं और इनका निर्माण कैसे किया जा रहा है।

पर्यावरण अनुकूल स्मार्ट शहरों में प्रमुख शहर है संयुक्त अरब अमीरात का मास्दार शहर। ये शहर अबू धाबी के रेगिस्तान के बीचों-बीच बसाया जा रहा है। इसे धरती पर सबसे ज्यादा संवहनीय या सस्टेनेबल और दीर्घकालिक शहर के रूप में बसाया जा रहा है। शहर में सौर ऊर्जा और वायु ऊर्जा के संयन्त्र लगे हैं जिससे प्रदूषण कम से कम हो। शहर को गाड़ियों से मुक्त रखा गया है। यहाँ कोई कार नजर नहीं आएगी बल्कि आवाजाही के लिए बिजली से चलने वाली बिना ड्राइवर की गाड़ियाँ बनाई जा रही हैं। बस के रूटों को, कचरा उठाने की प्रक्रिया को सेंसर की मदद से और सक्षम किया जा रहा है। इसके अलावा परिवहन के लिए बिना सीधा सम्पर्क के पेमेंट व्यवस्था तैयार की जा रही है।

ऐसे शहर निश्चित रूप से पर्यावरण अनुकूल हैं और सतत व संपोषणीय विकास को प्रोत्साहित करते हैं। हमारी स्मार्टनेस इसी में है कि हम किस तरह से जीवन और रहन सहन के ऐसे तरीके इजाद कर लेते हैं जो प्रकृति के अनुकूल है, भारत में स्मार्ट शहरों के निर्माण में सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि कैसे बसे बसाए शहरों को स्मार्ट बनाया जाए? इसकी अपेक्षा उन शहरों को पर्यावरण के अनुकूल अधिक आसानी से बनाया जा सकता है जो पूर्णतयाः नए बसाए जाएँगे। पहले से बसे बसाए शहर जिन्हें स्मार्ट शहरों की सूची में जगह मिली है वहाँ किसी भी तरह के नए सिस्टम को स्थापित करना किसी चुनौती से कम नहीं होगा।

कैसे होें हमारे घर


शहरों में अवैज्ञानिक तरीके से घरों का निर्माण प्रदूषण का प्रमुख कारण हैं ऐसे स्मार्ट शहरों से यह उम्मीद किया जाना लाजिमी है की यहाँ घर पर्यावरणीय मानकों के अनुकूल होंगे। अब हरित पर्यावरण की रक्षा के लिए हरित अर्थव्यवस्था, हरित न्यायालय, हरित राजनीति जैसे मुद्दों के साथ ही एक ऐसी जीवन शैली को बढ़ावा दिए जाने की बात की जा रही है जो पर्यावरण अनुकूल हो। स्मार्ट शहरों के भवन निर्माण के साथ जो प्रमुख बात जुड़ी हुई है वह है इनका पर्यावरण अनुकूल होना। ऐसा घर जिसके उपकरण सौर और वायु ऊर्जा से चलें। जहाँ रेन वाटर हार्वेस्टिंग और कम्पोस्टिंग सिस्टम हो।

स्मार्ट होम्स यानी ऐसे घर जहाँ अधिकांश चीजें तकनीक चालित होती हैं। इसमें वातानुकूलन, प्रकाश व्यवस्था, निगरानी, सुरक्षा, दरवाजों व खिड़कियों आदि पर आवागमन आदि तमाम चीजें तकनीकी संचालित होती हैं। एक अच्छी गृह स्वचालन प्रणाली में कई तरह की सुविधाओं का मिश्रण होता है जैसे बगीचे में आवश्यकता अनुसार पानी पहुँचाना या पानी गर्म करने के साधन का काम पूरा होते ही स्वतः बंद (स्विच आॅफ) हो जाना या फिर कमरे का तापमान परिवार के सदस्यों की आवश्यकता अनुसार स्थिर रखना आते हैं। होम आॅटोमेशन सिस्टम के द्वारा पूरे घर की विद्युत व्यवस्था पर भी नियन्त्रण किया जाता है। इनमें टच स्क्रीन एलसीडी माॅनीटर लगे होते हैं जिन पर पूरी इमारत तक को देखा जा सकता है और एक स्थान से ही विद्युत उपकरणों पर नियन्त्रण रख सकते हैं। गति को पहचानने वाले मोशन सेंसर के माध्यम से कमरे में किसी की उपस्थिति होने या न होने पर प्रकाश स्वयमेव खुल या बंद हो जाएगा। भवन निर्माण इंडस्ट्री से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि इस वर्ष के आखिर तक दुनिया के 11 फीसदी घर स्मार्ट की श्रेणी में शामिल हो सकते हैं। हालाँकि, अमेरिका में अब ही करीब 17 फीसदी घर स्मार्ट होम की श्रेणी में आते हैं लेकिन वैश्विक तौर पर इसका औसत पाँच फीसदी के आस-पास ही है। कुल मिलाकर स्मार्ट होम्स एक ऐसी संकल्पना है जो ग्रीन होम की ही संकल्पना को साकार करेंगे।

स्मार्ट शहरों के निर्माण के समय इस बात का विशेष ध्यान दिया जाना जरूरी है कि स्मार्ट होम्स के तमाम मानकों का पालन किया जाए तभी शहर असली मायनों में स्मार्ट होंगे। सामान्य घरों में ऊर्जा दुरुपयोग से हम सब वाकिफ हैं। स्मार्ट घरों ने ऊर्जा बचत की परिकल्पना को साकार किया है। ऐसे घर जहाँ ऊर्जा बचत के लिए अक्षय ऊर्जा और स्मार्ट होम एनर्जी मैनेजमेंट सिस्टम हो, जल का बेहतर इस्तेमाल किए जाने की तकनीकें हों निश्चित रूप से किसी वरदान से कम नहीं होंगे। कुछ स्मार्ट प्रोड्क्ट्स का भी उल्लेख जरूरी है जो इन घरों को स्मार्ट बनाएँगे। इनमें प्रमुख हैं- आइग्रिल, स्मार्ट बेबी माॅनीटर, थर्मोस्टेट, स्काइबेल, प्लग मोशन सेंसिंग तकनीक, स्मार्ट सिक्योरिटी सिस्टम्स।

हमारे घर बनाने का तरीका और निश्चित रूप से इसका पर्यावरण से सीधा सम्बन्ध है। उस समय से जबकि मानव गुफाओं में रहता था और अब जबकि आलीशान कंकरीट के बड़े-बड़े महलों में पहुँच गया। इस क्रम में उसने भले ही कितना भी भौतिक और औद्योगिक विकास किया हो परन्तु इन बड़े-बड़े भवनों के निर्माण से अगर सबसे ज्यादा किसी चीज की क्षति हुई है तो वह है हमारा पर्यावरण। क्या स्मार्ट शहर यह क्षतिपूर्ति कर पाएँगे? कुछ दिनों पहले आई एक रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है की भारत में ग्रीन रेटेड बिल्डिंग्स, ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (बीईई) द्वारा जारी अपने सरकारी रेटिंग प्रणाली के न्यूनतम मानक स्तर को भी पूरा नहीं कर पा रही है। भारत ने 2007 में भवनों के लिए राष्ट्रीय रेटिंग प्रणाली के रूप में ग्रीन मूल्याँकन इंटीग्रेटेड हैबिटेट एसेसमेंट (गृहा) को अपनाया। भारत ने भवनों के लिए ग्रीन रेटिंग की यह प्रणाली संयुक्त राज्य अमेरिका की एक निजी संस्था यूएसजेबीसी द्वारा भारत में भवनों की ग्रीन रेटिंग के लिए शुरू की गई एक निजी पहल का परिणाम थी। भारत में कुल ग्रीन रेटेड भवन निर्मित क्षेत्र भारत के कुल भवन निर्मित क्षेत्रों का महज 3 प्रतिशत ही है। रिपोर्ट के अनुसार इन इमारतों के निर्माण तथा उनके संचालन में 30-50 फीसदी ऊर्जा और 20-30 फीसदी पानी बचाने का पैमाना तो महज एक स्वप्न बनकर रह गया है और मूल्यांकन व्यवस्था में तय किए गए विभिन्न सिल्वर गोल्ड तथा डायमंड स्टार के पैमानों में ज्यादातर भवन न्यूनतम सिल्वर स्टार के लायक भी नहीं हैं।

अगर हम हड़प्पा मोहनजोदड़ो के समय की ऐतिहासिक भवन संरचना को देखें तो यह प्रकृति के बिल्कुल करीब है जबकि उस समय तकनीक इतनी उन्नत नहीं थी। हमारे शहरों में आए दिन भवन गिरने से होने वाली मौतों, भवनों का भूक्मपरोधी ना होना, तथा ज्यादातर भवन ऐसे ही हैं जहाँ पर दिन और रात का पता ही नहीं चलता है। बहुत ही कम घरों में खिड़कियाँ देखने को मिलती हैं। हम नदियों और पहाड़ों की छाती चीरकर अगर ऐसे ही बड़े-बड़े भवन बनाते रहे तो एक दिन सब कुछ नष्ट हो जाएगा। अतः आवश्यकता इस बात की है कि अब हरित भवनों के निर्माण को अधिक-से-अधिक प्रोत्साहित किया जाए तथा बेतहाशा भवन के ऊपर भवन बनाने की प्रवृत्ति को कम किया जाए। स्मार्ट शहरों की जो वर्तमान रूपरेखा है और जो वैश्विक आँकड़े हैं वे इस बात का संतोष देते हैं कि इन शहरों का निर्माण पर्यावरण को हानि नहीं पहुँचाएगा बल्कि कई रूपों में समृद्ध करेगा।

स्मार्ट शहर बनाम स्मार्ट गाँव


गाँवों में ऐसे घरों की संख्या करीब 11 करोड़ 50 लाख है, जहाँ शौचालय नहीं हैं। लोग खुले में शौच को जाने के लिए मजबूर हैं। इन घरों में शौचालय की सुविधा देने का खर्च अनुमानतः 22 खरब से 26 खरब रुपये है। ऐसे में यह सवाल बरबस उठ जाता है कि जब हमारे गाँवों की स्थिति इतनी दयनीय है तो भला स्मार्ट शहरों की कल्पना कैसे की जा सकती है। क्या यह बेहतर नहीं होगा कि स्मार्ट शहरों की बजाए स्मार्ट गाँवों की भी बात की जाए। इस दिशा में सरकार को गम्भीरतापूर्वक सोचना जरूरी है। सोचना इस दिशा में भी है कि शहर तो स्मार्ट बन जाएँगे मगर वहाँ रहने वाले लोगों को कैसे स्मार्ट और स्किल्ड बनाया जाएगा क्योंकि कोई भी शहर स्मार्ट तो वहाँ रहने वाले नागरिकों से ही बनता है। क्या स्मार्ट शहरों की तकनीकी पर्यावरण की रक्षा करने में पूरी तरह से सक्षम होगी यह एक बड़ा सवाल है और इसका सीधा सा जवाब यह है कि तकनीकी कितनी भी सक्षम हो मगर लोगों को पर्यावरण को लेकर जागरुक रहना होगा तभी शहर असली मायनों में स्मार्ट होगा।

लेखक युवा पत्रकार हैं। पर्यावरण सम्बन्धी विषयों पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लगातार लिखते रहते हैं। ईमेल: prabhansukmc@gmail.com

Path Alias

/articles/parayaavarana-bhai-rahae-samaarata

Post By: Hindi
×