पर्वतांचल एवं मात्स्यिकी (Mountains and Fisheries)


भारतवर्ष एक कृषि प्रधान देश जहाँ पर नित छ: ऋतुओं की छटा प्रदर्शित होती रहती है। यहाँ की कण-कण में समाहित है कृषकों के पसीने की बूँदे जो आभास कराती है यहाँ के जनमानस की श्रद्धा व भावना। विश्व की अन्नय प्रसिद्ध क्रांतियों में भारत का एक अभूतपूर्व योगदान रहा है। फिर चाहे वे श्वेत क्रांति हो या हरित क्रांति इसी क्रांति की श्रृंखला में अग्रसर है नीली क्रांति। नीली क्रांति के पथ पर अग्रसरित भारतवर्ष मत्स्य उत्पादन की श्रेणी में अपना शीर्ष स्थान बनाये हुए हैं। फिर यहाँ समुद्री मात्स्यिकी हो अथवा अन्तरस्थलीय जल संपदा का प्रबंध।

मैदानी भू-भाग के विभिन्न क्षेत्रों के साथ भारत का पर्वतीय क्षेत्र भी कदम से कदम मिलाते हुए अग्रसरित है किन्तु अभी भी आवश्यकता है कुछ महत्त्वपूर्ण नीति निर्धारणों की जो समयानुकूल अति आवश्यक होती जा रही है। पर्वतीय क्षेत्रों को प्रमुख रूप से मत्स्य पालन के आधार पर तीन क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है।

1. ऊपरी क्षेत्र या उच्च हिमालयी श्रेणी
2. मध्य क्षेत्र या मध्यम हिमालयी श्रेणी
3. निचला क्षेत्र या शिवालिक अथवा निम्न हिमालयी श्रेणी

उच्च हिमालयी श्रेणी - इन क्षेत्रों का तापमान 100C से कम होता है एवं शीत ऋतु में यहाँ जल की ऊपरी सतह जम जाती है, उदाहरणार्थ - लद्दाख (जम्मू-कश्मीर), केदारनाथ, बद्रीनाथ, (उत्तराखंड) तथा कुछ हिमाचल प्रदेशीय क्षेत्र।

यहाँ पर पाई जाने वाली मत्स्य प्रजाति निम्नवत हैं :

सालमॉन - सालमो क्लार्की (कटथ्रोट ट्राउट)
सालमो सलार (अटलान्टिक सालमॉन)
ऑन्कोरिन्कस श्वेश्चा (चिनहुक सालमॉन)
ऑन्कोरिन्कस नर्का (शॉकआई सालमॉन)
ऑन्कोरिन्कस केटा (चम सालमॉन)

ट्राउट - रेनबो ट्राउट - आन्कोरिन्कस माइकिस
ब्रुक ट्राउट - साल्वेलिनस फॉन्टिनेलिस
ब्राउन ट्राउट - सॉलमो ट्रूटा फेरिओ

मध्य हिमालयी श्रेणी - इस क्षेत्र में तापमान प्राय: 10 से 180C रहता है। यह मुख्य रूप से पर्वतीय घाटी पर फैले भू-भाग होते हैं। उदाहरणार्थ - चम्पावत, पिथौरागढ़ यहाँ पर मुख्यत: उच्च एवं निम्न क्षेत्र की मत्स्य प्रजातियाँ मिलती हैं।

सालमॉन - पिंक सालमॉन - ऑन्कोरिन्कस गौरबुश्चा
कोहो सालमॉन - आन्कोरिन्कस किशुच
चेरी सालमॉन - आन्कोरिन्कस मासु

ट्राउट - जलाशय ट्राउट - सालमा निमायचलस
रेनबो ट्राउट - आन्कोरिन्कस माइकिस

मिन्मॉस - पाइनीफेल्स प्रोमेलास
महाशीर प्रजाति - टॉर प्यूटिटोरा

टॉर खुदरी

कार्प -कॉमन कार्प, लेबियो प्रजाति

निम्न हिमालयी श्रेणी - इस क्षेत्र का तापमान साधारणत: 180 से 240C रहता है एवं यह मुख्यत: पठारी क्षेत्र के अंतर्गत आता है।

यहाँ पर पायी जाने वाली मत्स्य प्रजातियों में मुख्यत:-

महाशीर - टॉर टॉर, टॉर प्यूटिटोरा, टॉर खुदरी, टॉर मुसला।

मिन्नॉस - पाइनिफेल्स प्रोमेलास
गारा गोटाइला एवं लेबियो प्रजातियाँ।

संरक्षण - यह अति आवश्यक है कि आज के वैज्ञानिक एवं आधुनिक युग में अपने उपलब्ध संसाधनों का पूर्ण रूपेण समन्वित ढंग से संदोहन किया जाए। विगत कुछ वर्षों से सरकार व प्रशासन ने मत्स्य क्षेत्र के विकास हेतु सराहनीय कदम उठाये हैं जिनके अत्यन्त सुखद परिणाम भी प्राप्त हुए हैं। किन्तु वैज्ञानिकों द्वारा किये गये शोध कार्यों एवं प्रशासनिक अनुसरण में एकरसता व समानता की अभी भी आवश्यकता है।

विगत कुछ वर्षों के परिणाम हमारे लिये सुखद रहे हैं जिनमें महाशीर को भीमताल झील में पुनर्स्थापित करना एक सराहनीय प्रयास है।

प्रबन्धन


मात्स्यिकी प्रबन्धन सुनने में अच्छा लगता है, परन्तु प्रायोगिक रूप से बहुत कठिन है, कुछ कारण निम्न हैं-

- नदियों का प्रबन्धन सरल नहीं है।
- नदियों में प्रायोगिक संरक्षण भी कठिन है।
- प्रबन्धन के लिये झीलें उपयुक्त हैं किन्तु पर्यटन, सिंचाई और नगर विकास निगम के अन्तर्गत उन पर राजकीय मात्स्यिकी विभाग का एकाधिकार नहीं है।

उपाय


- विलुप्तप्राय प्रजातियों का प्रायोगिक संरक्षण।
- विलुप्तप्राय प्रजातियों का व्यवसायिक बीज उत्पादन।
- लोगों को विलुप्तप्राय प्रजातियों के बारे में जागृत करना।
- प्राकृतिक जल स्रोत में संरक्षण के बाद उनका संवर्धन करना।
- प्राकृतिक स्रोतों में शिकारमाही को पूर्ण रूप से अवैध बनाना एवं इसके लिये कठोर दण्ड की व्यवस्था करना।
- विलुप्त प्रजातियों के संरक्षण तक शिकारमाही अवैध।
- प्राकृतिक जल संसाधन में मृदा अपरदन की समस्या को रोकना और दूर करना जिससे मत्स्य प्रजातियाँ प्राकृतिक प्रजनन कर सकें।

लेखक परिचय
राजेश एवं योगेश कुमार चौहान

मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय गो.व. पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पन्तनगर

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