दूर देशों में बढ़ रही ठंड व बर्फबारी के कारण चंबल सेंचुरी में प्रवासी पक्षियों की आमद में वृद्धि बरकरार है। चंबल की सुंदर वादियों में पहुंच रहे प्रवासी पक्षियों की अठखेलियां व लगातार उड़ान भरते रहने के मनोहारी दृश्यों से वादियों की सुंदरता और बढ़ गई है। इस वजह से चंबल सेंचुरी का आकर्षण भी बढ़ गया है। चंबल सेंचुरी में विश्व के ठण्डे देशों स्विटज़रलैंड, साइबेरिया, जापान, रूस, आदि दर्जनों देशों में बर्फबारी के कारण हजारों मील की दूरी तय कर यहां भारी संख्या में प्रवासी पक्षी करीब चार माह तक प्रवास करते हैं तथा मौसम अनुकूल होने पर वापस लौट जाते हैं। दुनिया में दो घाटियाँ हैं,एक कश्मीर घाटी तो दूसरी है,चम्बल घाटी, आतंकवाद से जूझ रही कश्मीर घाटी की तरह है चम्बल घाटी, जिसमें डाकू पनपते हैं लेकिन आज इस घाटी में पनाह पा रहे हैं प्रवासी पक्षी। चंबल सेंचुरी में ख़ासी तादाद में आ चुके प्रवासी पक्षियों को देखने की गरज से विश्व प्रसिद्ध आगरा से भी बड़ी संख्या में पर्यटकों का आना जाना शुरू है साथ ही इटावा में भी अपने-अपने रिश्तेदारों के यहां पर आ रहे लोग चंबल जाना नहीं भूल रहे हैं। कुख्यात डाकुओं की शरण स्थली के रूप में विख्यात चंबल घाटी सर्दी का मौसम शुरू होते ही प्रवासी पक्षियों से गुलजार होना शुरू हो गया है। चंबल की कई खासियतें हैं चंबल को डाकूओं की शरणस्थली के तौर पर जाना और पहचाना जाता है लेकिन चंबल में दूरस्त से आने वाले हजारों प्रवासी पक्षियों ने चंबल की छवि को बदल दिया है। चंबल सेंचुरी का महत्व सर्दी के मौसम में अपने आप ही बढ़ जाता है क्योंकि चंबल सेंचुरी में कई लाख प्रवासी पक्षी सर्दी के मौसम में सालों दर साल से आ रहे है।
दुर्लभ जलचरों के सबसे बड़े संरक्षण स्थल के रूप में अपनी अलग पहचान बनाये चंबल सेंचुरी को इटावा आने वाले पर्यटक देख पाने में कामयाब होगे। चंबल सेंचुरी से जुड़े बड़े अफ़सर ऐसा मान करके चल रहे हैं 3 राज्यों में फैली चंबल सेंचुरी का महत्व इतना है कि चंबल सेंचुरी में डॉल्फिन, घड़ियाल, मगर और कई प्रजाति के कछुए तो हमेशा रहते ही साथ ही कई ‘माईग्रेटी बर्ड’ भी साल भर रह करके चंबल की खूबसूरती को चार चाँद लगाती रहती है। चंबल सेंचुरी में करीब 300 से अधिक प्रजाति के दुर्लभ प्रवासी पक्षी आते हैं जो चंबल नदी को बेहद खूबसूरत बनाने में सहायक होते हैं।
चंबल सेंचुरी में मुख्य आकर्षण विदेशों से आने वाले कोमन्टिल, कोटनटिल, स्पोटविल्डक, पिन्टैल, गैलियार्ड, कांट जैसे प्रवासी पक्षी है। ऐसा माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में दुधवा सेंचुरी को छोड़ करके कोई दूसरी सेंचुरी चंबल के बराबर वजूद वाली नहीं लग रही है। तीन राज्यों में पसरी चंबल सेंचुरी का महत्व लगातार इसलिये बढ़ता चला जा रहा है क्योकि चंबल सेंचुरी न केवल संरक्षण की दिशा में आगे बढ़ रही है बल्कि सरकारें इस बात पर चिंतन करने में जुट गई हैं कि चंबल सेंचुरी के दायरे को और सरंक्षित किया जाये।
इस बार इन पक्षियों की तादाद 15 लाख के पार जाने की उम्मीद जताई जा रही है। यह पक्षी हर साल सर्दियों में भोजन की तलाश में अपनी जगह से पलायन करते हैं। कश्मीर में ये पक्षी ज्यादातर चीन, यूरोप और सेंट्रल एशिया से आते हैं। पक्षियों का कलरव रोमांचित करने के साथ उर्जा देने वाला होता है और यदि यह कलरव चंबल सेंचुरी के अलावा आसपास के इलाकों में भी प्रवासी पक्षियों की अठखेलियां मन को खूब भा रही है। यहां प्रवासी पक्षी बरबस पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खींच लेते हैं। इन स्थलों पर प्रवासी पक्षियों का डेरा सुंदरता व दृश्य को और भी मनोरम बना देता है।
दूर देशों में बढ़ रही ठंड व बर्फबारी के कारण चंबल सेंचुरी में प्रवासी पक्षियों की आमद में वृद्धि बरकरार है। चंबल की सुंदर वादियों में पहुंच रहे प्रवासी पक्षियों की अठखेलियां व लगातार उड़ान भरते रहने के मनोहारी दृश्यों से वादियों की सुंदरता और बढ़ गई है। इस वजह से चंबल सेंचुरी का आकर्षण भी बढ़ गया है। चंबल सेंचुरी में विश्व के ठण्डे देशों स्विटज़रलैंड, साइबेरिया, जापान, रूस, आदि दर्जनों देशों में बर्फबारी के कारण हजारों मील की दूरी तय कर यहां भारी संख्या में प्रवासी पक्षी करीब चार माह तक प्रवास करते हैं तथा मौसम अनुकूल होने पर वापस लौट जाते हैं। पर्यावरण व पक्षियों की सुरक्षा के लिए कार्य कर रही संस्थाओं के प्रतिनिधियों के अनुसार इन प्रवासी पक्षी रूडीशेल्डक, कूटस, वीजन, गैडवाल, क्रेसटिड ग्रेव काफी संख्या में पहुंच चुके हैं। सोसायटी फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर के सचिव पर्यावरण प्रेमी डॉ. राजीव चौहान ने आशा जताई कि इस बार चंबल में प्रवासी पक्षियों की संख्या में काफी वृद्धि होने की संभावना है। उन्होंने बताया कि इस बार अब तक प्रवासी पक्षियों में कॉमनटील, नार्दन शिवेलर, ग्रेट कारमोरेंट, टफटिड डक, पोचहर्ड आदि दर्जनों प्रजातियों के सुंदर संवेदनशील पक्षी यहां पहुंच चुके हैं। इसके अलावा इटावा के छोटे-छोटे वेटलैंडों के अलावा खेत खलिहानों व यमुना क्वारी, सिंधु जैसी नदियों में भी प्रवासी पक्षियों के झुंड आकर्षण बने हुए हैं।
“पंछी, नदियां, पवन के झोंके, कोई सरहद न इन्हें रोके।” हिंदी फिल्म रिफ्यूजी का यह गीत इन दिनों चंबल नदी पर रंग-बिरंगे प्रवासी पक्षियों को देखकर अनायास होठों पर आ जाता है। चंबल सहसों सेतु, डिभौली सेतु, पचनदा, बाबा सिद्धनाथ मंदिर आदि घाटों पर इन प्रवासी मेहमानों ने डेरा जमा रखा है। सर्दी के मौसम में जिन देशों में बर्फ से सब कुछ ढक जाता है। वहां के पक्षी दाना पानी की तलाश में दूर देशों को प्रस्थान कर जाते हैं। प्रतिवर्ष अक्टूबर के माह में इन पक्षियों का आना प्रारंभ हो जाता है और मार्च आते-आते यह पक्षी अपने देशों को वापस लौट जाते हैं। प्रवासी पक्षी हजारों की संख्या में काफिले के रूप में उड़ते हैं। शिकारियों से इनकी दूरी बनी रहती है। ये इतने चालाक होते हैं कि जरा खतरा भांप कर आकाश या सुरक्षित तट पर बसेरा कर लेते हैं। सेंचुरी कर्मियों का कहना है कि प्रवासी पक्षियों की पूर्ण देखरेख की जाती है। यह जंगलों में ऐसी जगह पहुंचते हैं जहां इनकी आवश्यकताओं की पूर्ति सहजता से होती रहे। प्रायः यह पानी में रहते हैं। तीन दर्जन से अधिक देश ऐसे हैं जहां बर्फबारी बहुत अधिक होती है। इनमें रूस, साइबेरिया आदि देशों के पक्षी शामिल हैं। इन पक्षियों की प्रजातियों में टर्न, बार हैडिड गोड, पिनटेल, पावलर, मलार्ड, गागरे, गोनी आदि प्रमुख हैं। चंबल में सर्दियों के मौसम में 280 प्रजातियों के प्रवासी पक्षी भ्रमण करने आते हैं।
चंबल सेंचुरी के डीएफओ सुजाय बनर्जी का कहना है कि चंबल सेंचुरी में सर्दी के मौसम में करीब 300 से अधिक प्रजाति के प्रवासी पक्षियों का बसेरा होता है जो चंबल की खूबसूरत को और बढ़ाने के लिये काफी बेहतर माना जा सकता है। इसके अलावा पीले फूलों के लिए विख्यात रही यह वादी उत्तराखंड की पर्वतीय वादियों से कहीं कमतर नहीं है। अंतर सिर्फ इतना है कि वहां पत्थरों के पहाड़ हैं, तो यहां मिट्टी के पहाड़ हैं। बीहड़ की ऐसी बलखाती वादियां समूची पृथ्वी पर अन्यत्र कहीं नहीं देखी जा सकती हैं।
दुर्लभ जलचरों के सबसे बड़े संरक्षण स्थल के रूप में अपनी अलग पहचान बनाये चंबल सेंचुरी को इटावा आने वाले पर्यटक देख पाने में कामयाब होगे। चंबल सेंचुरी से जुड़े बड़े अफ़सर ऐसा मान करके चल रहे हैं 3 राज्यों में फैली चंबल सेंचुरी का महत्व इतना है कि चंबल सेंचुरी में डॉल्फिन, घड़ियाल, मगर और कई प्रजाति के कछुए तो हमेशा रहते ही साथ ही कई ‘माईग्रेटी बर्ड’ भी साल भर रह करके चंबल की खूबसूरती को चार चाँद लगाती रहती है। चंबल सेंचुरी में करीब 300 से अधिक प्रजाति के दुर्लभ प्रवासी पक्षी आते हैं जो चंबल नदी को बेहद खूबसूरत बनाने में सहायक होते हैं।
चंबल सेंचुरी में मुख्य आकर्षण विदेशों से आने वाले कोमन्टिल, कोटनटिल, स्पोटविल्डक, पिन्टैल, गैलियार्ड, कांट जैसे प्रवासी पक्षी है। ऐसा माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में दुधवा सेंचुरी को छोड़ करके कोई दूसरी सेंचुरी चंबल के बराबर वजूद वाली नहीं लग रही है। तीन राज्यों में पसरी चंबल सेंचुरी का महत्व लगातार इसलिये बढ़ता चला जा रहा है क्योकि चंबल सेंचुरी न केवल संरक्षण की दिशा में आगे बढ़ रही है बल्कि सरकारें इस बात पर चिंतन करने में जुट गई हैं कि चंबल सेंचुरी के दायरे को और सरंक्षित किया जाये।
इस बार इन पक्षियों की तादाद 15 लाख के पार जाने की उम्मीद जताई जा रही है। यह पक्षी हर साल सर्दियों में भोजन की तलाश में अपनी जगह से पलायन करते हैं। कश्मीर में ये पक्षी ज्यादातर चीन, यूरोप और सेंट्रल एशिया से आते हैं। पक्षियों का कलरव रोमांचित करने के साथ उर्जा देने वाला होता है और यदि यह कलरव चंबल सेंचुरी के अलावा आसपास के इलाकों में भी प्रवासी पक्षियों की अठखेलियां मन को खूब भा रही है। यहां प्रवासी पक्षी बरबस पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खींच लेते हैं। इन स्थलों पर प्रवासी पक्षियों का डेरा सुंदरता व दृश्य को और भी मनोरम बना देता है।
दूर देशों में बढ़ रही ठंड व बर्फबारी के कारण चंबल सेंचुरी में प्रवासी पक्षियों की आमद में वृद्धि बरकरार है। चंबल की सुंदर वादियों में पहुंच रहे प्रवासी पक्षियों की अठखेलियां व लगातार उड़ान भरते रहने के मनोहारी दृश्यों से वादियों की सुंदरता और बढ़ गई है। इस वजह से चंबल सेंचुरी का आकर्षण भी बढ़ गया है। चंबल सेंचुरी में विश्व के ठण्डे देशों स्विटज़रलैंड, साइबेरिया, जापान, रूस, आदि दर्जनों देशों में बर्फबारी के कारण हजारों मील की दूरी तय कर यहां भारी संख्या में प्रवासी पक्षी करीब चार माह तक प्रवास करते हैं तथा मौसम अनुकूल होने पर वापस लौट जाते हैं। पर्यावरण व पक्षियों की सुरक्षा के लिए कार्य कर रही संस्थाओं के प्रतिनिधियों के अनुसार इन प्रवासी पक्षी रूडीशेल्डक, कूटस, वीजन, गैडवाल, क्रेसटिड ग्रेव काफी संख्या में पहुंच चुके हैं। सोसायटी फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर के सचिव पर्यावरण प्रेमी डॉ. राजीव चौहान ने आशा जताई कि इस बार चंबल में प्रवासी पक्षियों की संख्या में काफी वृद्धि होने की संभावना है। उन्होंने बताया कि इस बार अब तक प्रवासी पक्षियों में कॉमनटील, नार्दन शिवेलर, ग्रेट कारमोरेंट, टफटिड डक, पोचहर्ड आदि दर्जनों प्रजातियों के सुंदर संवेदनशील पक्षी यहां पहुंच चुके हैं। इसके अलावा इटावा के छोटे-छोटे वेटलैंडों के अलावा खेत खलिहानों व यमुना क्वारी, सिंधु जैसी नदियों में भी प्रवासी पक्षियों के झुंड आकर्षण बने हुए हैं।
“पंछी, नदियां, पवन के झोंके, कोई सरहद न इन्हें रोके।” हिंदी फिल्म रिफ्यूजी का यह गीत इन दिनों चंबल नदी पर रंग-बिरंगे प्रवासी पक्षियों को देखकर अनायास होठों पर आ जाता है। चंबल सहसों सेतु, डिभौली सेतु, पचनदा, बाबा सिद्धनाथ मंदिर आदि घाटों पर इन प्रवासी मेहमानों ने डेरा जमा रखा है। सर्दी के मौसम में जिन देशों में बर्फ से सब कुछ ढक जाता है। वहां के पक्षी दाना पानी की तलाश में दूर देशों को प्रस्थान कर जाते हैं। प्रतिवर्ष अक्टूबर के माह में इन पक्षियों का आना प्रारंभ हो जाता है और मार्च आते-आते यह पक्षी अपने देशों को वापस लौट जाते हैं। प्रवासी पक्षी हजारों की संख्या में काफिले के रूप में उड़ते हैं। शिकारियों से इनकी दूरी बनी रहती है। ये इतने चालाक होते हैं कि जरा खतरा भांप कर आकाश या सुरक्षित तट पर बसेरा कर लेते हैं। सेंचुरी कर्मियों का कहना है कि प्रवासी पक्षियों की पूर्ण देखरेख की जाती है। यह जंगलों में ऐसी जगह पहुंचते हैं जहां इनकी आवश्यकताओं की पूर्ति सहजता से होती रहे। प्रायः यह पानी में रहते हैं। तीन दर्जन से अधिक देश ऐसे हैं जहां बर्फबारी बहुत अधिक होती है। इनमें रूस, साइबेरिया आदि देशों के पक्षी शामिल हैं। इन पक्षियों की प्रजातियों में टर्न, बार हैडिड गोड, पिनटेल, पावलर, मलार्ड, गागरे, गोनी आदि प्रमुख हैं। चंबल में सर्दियों के मौसम में 280 प्रजातियों के प्रवासी पक्षी भ्रमण करने आते हैं।
चंबल सेंचुरी के डीएफओ सुजाय बनर्जी का कहना है कि चंबल सेंचुरी में सर्दी के मौसम में करीब 300 से अधिक प्रजाति के प्रवासी पक्षियों का बसेरा होता है जो चंबल की खूबसूरत को और बढ़ाने के लिये काफी बेहतर माना जा सकता है। इसके अलावा पीले फूलों के लिए विख्यात रही यह वादी उत्तराखंड की पर्वतीय वादियों से कहीं कमतर नहीं है। अंतर सिर्फ इतना है कि वहां पत्थरों के पहाड़ हैं, तो यहां मिट्टी के पहाड़ हैं। बीहड़ की ऐसी बलखाती वादियां समूची पृथ्वी पर अन्यत्र कहीं नहीं देखी जा सकती हैं।
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