दुनिया भर में सभी सभ्यताएँ नदी के किनारे ही विकसित हुई हैं। इसी कारण भारत में नदी के किनारे स्थित मैदानी क्षेत्रों में आबादी का घनत्व सबसे अधिक है। टिहरी बाँध परियोजना मानसून के दौरान जल की अतिरिक्त मात्रा को अपने जलाशय में जमाकर मैदानी क्षेत्रों को बाढ़ से बचाती है। इस बचे हुए जल से मैदानी क्षेत्र में पेयजल एवं सिंचाई की जरूरत पूरी करने के साथ बिजली पैदा की जाती है।
सभी नदियाँ भारत के बहुत बड़े भू-भाग में रहने वाले मानवीय आबादी और पशुओं का पोषण करती हैं। नदियाँ मुख्य रूप से मनुष्य को कृषि और पीने के लिये पानी मुहैया कराती हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन नदियों का पानी लगातार समुद्र में जा रहा है और उसे एकत्रित कर उपयोग का कोई उपाय नहीं है। जबकि भारत के कई हिस्सों में लोग अब भी अपनी प्यास बुझाने और भूख मिटाने के लिये पानी के उपयोग की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
टिहरी बाँध के निर्माण के साथ, गैर मानसूनी महीनों यानी नवम्बर से जून के दौरान गंगा में पानी की उपलब्धता में काफी वृद्धि हुई है जिससे इन महीनों में जलाशय से अतिरिक्त पानी की निकासी से गंगा में होने वाला जल प्रवाह का औसत 100 क्यूसेक से बढ़कर 200 क्यूसेक हो गया है। बड़े बाँधों के कारण जलाशय के आस-पास के क्षेत्रों और निचले क्षेत्रों में पानी की अधिकाधिक उपलब्धता होती। इससे पर्यावरण को मजबूती मिली है।
रुड़की विश्वविद्यालय के पृथ्वी विज्ञान विभाग का एक अध्ययन बताता है कि बाँध निर्माण की वजह नदियों के पानी को एकत्रित करने में मदद मिलती है। साथ ही जलाशयों के चलते वनस्पतियाँ समृद्ध हुई हैं। रुड़की विश्वविद्यालय का यह शोध अन्तरराष्ट्रीय पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है। जलाशयों के साथ-साथ सिंचाई के लिये नहरों का निर्माण भी होना चाहिए। इससे खेती-बाड़ी के लिये सीधे पानी की आपूर्ति सुनिश्चित हो पाती है। साथ ही नहर अप्रत्यक्ष रूप से भूजल व्यवस्था को रिचार्ज करती है। नहरों का एक फायदा यह भी है कि इससे आस-पास की वनस्पतियाँ विकसित होती हैं। इसके अलावा, वर्ल्ड वाइड फंड ने भारत में नदियों की खराब स्थिति पर मार्च 2007 में ‘जोखिम में विश्व की शीर्ष 10 नदियाँ’ शीर्षक से एक अध्ययन किया है।
अध्ययन में गंगा नदी को 10 सबसे प्रदूषित नदियों में दर्शाया गया है। इसका कारण बड़े बाँधों का निर्माण नहीं बल्कि लोगों की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के लिये मैदानी क्षेत्रों में गंगा से पानी की अधिक निकासी, घरेलू और औद्योगिक कचरे का नदियों में प्रवाह बताया गया है। इस अध्ययन में यह भी बताया गया है कि गंगा नदी में पीने और कृषि के लिये पानी की अधिकाधिक निकासी के कारण सतही जल संसाधनों में कमी आई है। इससे भूजल पर निर्भरता, जल आधारित आजीविका में कमी और अन्य जलीय व उभयचर जीव-जन्तुओं की संख्या में कमी हुई है।
गिरते हुए जलस्तर के कारण अप्रत्यक्ष रूप से मृदा कार्बनिक सामग्री और कृषि उत्पादकता में भी कमी आई है। अध्ययन से पता चलता है कि भूजल के अति दोहन ने पानी की गुणवत्ता को गम्भीर रूप से प्रभावित किया है। इसी अध्ययन में गंगा नदी पर बने टिहरी बाँध के योगदान के बारे में बहुत सकारात्मक उल्लेख किया गया है। इसमें कहा गया है कि टिहरी बाँध जो 2006 में चालू हुआ था, दुनिया में पाँचवाँ सबसे बड़ा बाँध है।
टिहरी बाँध प्रतिदिन 27 करोड़ गैलन पेयजल उपलब्ध कराता है, लाखों एकड़ जमीन में सिंचाई के लिये पानी उपलब्ध कराता है और 1,400 मेगावाट बिजली उत्पन्न करता है। उदाहरण के लिये टिहरी बाँध निर्माण के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फसलों के उत्पादन में वृद्धि हुई है और नदी में जल की उपलब्धता बढ़ने से पानी साफ हुआ है।
जून-2013 की बाढ़ के दौरान मैदानी क्षेत्रों में नुकसान कम करने में टिहरी बाँध की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। टिहरी बाँध ने भागीरथी नदी की बाढ़ के लगभग 7000 क्यूमेक्स पानी की भारी मात्रा को अवशोषित किया जिससे ऋषीकेश और हरिद्वार को जलमग्न होने से बचाया जा सका है। इस तथ्य को पन्द्रहवीं लोकसभा में ऊर्जा को लेकर गठित 43वीं स्थायी समिति रिपोर्ट (2013-2014) में इसे आधिकारिक रूप से मान्यता दी गई है।
भारत दुनिया का 16 फीसद आबादी और 15 प्रतिशत पशुधन वाला देश है। मगर दुनिया के जल संसाधनों का लगभग चार प्रतिशत और भूमि क्षेत्र का 2.45 प्रतिशत हिस्सा ही इसके पास उपलब्ध है। देश के विभिन्न स्थानों और समय को लेकर जल संसाधनों के वितरण में अत्यधिक असमानता है, क्योंकि भारतीय नदियों में 80-90 फीसद से अधिक पानी वर्ष के चार महीनों जून, जुलाई, अगस्त और सितम्बर में ही बह जाता है। भारत में, लगभग 68 प्रतिशत क्षेत्र अलग-अलग समय में सूखे से ग्रसित हैं।
वर्तमान में विद्युत उत्पादन करने के लिये अनेक विकल्प हैं, लेकिन जल संसाधन उत्पन्न करने के लिये केवल एक ही विकल्प है। वर्षा ऋतु में नदियों में अत्यधिक जल की उपलब्धता से मैदानों में बाढ़ का खतरा पैदा हो जाता है। अधिक जनसंख्या घनत्व और कम संसाधनों की उपलब्धता के कारण प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करने के लिये भारी प्रतिस्पर्धा है। इसलिये बड़े बाँधों के महत्त्व को केवल विद्युत उत्पादन का हवाला देते हुए कम आँकना इनके साथ अन्याय होगा जबकि इनसे मिलने वाले लाभों मसलन पेयजल एवं कृषि के लिये महत्त्वपूर्ण जल की उपलब्धता एवं बाढ़ नियंत्रण आदि को नजरअन्दाज करना भी उचित नहीं होगा।
यह भी महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि साल-दर-साल नदियों के उद्गम स्रोत ग्लेशियर पर्यावरण परिवर्तन के कारण सिकुड़ रहे हैं। बादल फटने की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। इस पहलू पर विचार करते हुए तब यह और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि सभी प्रमुख नदियों पर जल भण्डारण के लिये बड़े बाँध बनाए जाएँ। ऐसा करने से मानसून के दौरान उपलब्ध अत्यधिक पानी का भण्डारण कर कम बहाव वाली अवधि में निस्तारण कर नदियों में पानी की उपलब्धता को बढ़ाया जा सकता है। काफी पहले इलाहाबाद माघ मेले में जल की उपयुक्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अलकनंदा नदी पर बाँध बनाने का सुझाव दिया था। उपर्युक्त तथ्य बताते हैं कि बड़े बाँध क्यों जरूरी हैं।
(लेखक टीएचडीसी इण्डिया लिमिटेड में अधिशासी निदेशक हैं)
Path Alias
/articles/parataimata-baandha-sae-badhaegaa-paanai-kaa-upayaoga
Post By: Editorial Team