प्रतापगढ़ की ‘चमरोरा नदी’ बनी श्रीराम राज नदी

प्रतापगढ़ की ‘चमरोरा नदी’ बनी श्रीराम राज नदी,प्रतीकात्मक फोटो - jagaran
प्रतापगढ़ की ‘चमरोरा नदी’ बनी श्रीराम राज नदी,प्रतीकात्मक फोटो - jagaran

‘चमरोरा नदी’ से श्रीराम राज नदी बनना

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ शहर में सई नदी बहती है जिसकी सहायक नदी (चमरोरा) शहर से 4 किलोमीटर दूर प्रतापगढ़ से अमेठी रोड पर बहती है। इस नदी की कुल लंबाई 30 किलोमीटर है। टीकरमाफी, जनपद अमेठी से प्रतापगढ़ में बेल्हा मंदिर के पास इस नदी का सई नदी में संगम हो जाता है जिसे गुलामी कालखंड में खड़ाऊं के अपभ्रंश तौर पर (चमरोरा) कहा जाने लगा था। सनातन को अपमानित करने के लिए यह नाम रखा गया था जबकि पौराणिक मान्यता है कि श्रीभरत जी ने चित्रकूट से श्रीराम जी की खड़ाऊ लेकर अयोध्या आते समय उक्त पावन नदी में श्री राम जी के खड़ाऊ धोए थे जिससे श्रीराम जी के चरणों का रज इस नदी में प्रवाहित हुआ। इसीलिए लोक भारती द्वारा इस नदी का श्रीराम रज नदी रखा गया। रामचरित मानस में वर्णन है- ‘सई उतरि गोमती नहाए, चौथे दिवस अवधपुर आए।’ बाबा तुलसीदास जी ने लिखा है कि भरत जी खड़ाऊ लेकर अयोध्या वापस आते समय इसी स्थल पर आए थे। उन्होंने लिखा है- ‘उतरि खड़ाऊ सुरसरि धोए, राम-राम कहि सिर धरि रोए।’ 

‘चमरोरा नदी’ पर लोक भारती की कोशिश

लोक भारती द्वारा गोमती की सहायक नदियां को अविरल एवं निर्मल बनाए रखने के लिए सतत कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। गोमती की सहायक नदियों के लिए जागरूकता यात्रा के साथ स्थानीय भागीरथ साथियों द्वारा नदियों के पुनर्जीवन के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं जिसमें राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री बृजेंद्र पाल जी संगठन मंत्री श्री गोपाल उपाध्याय जी और श्रीकृष्ण चौधरी का विशेष प्रयास रहा है। इस अभियान के अभियान के अंतर्गत 1000 से अधिक गोमती मित्र मंडल भी बनाए गए हैं। लोक भारती कार्यकर्ताओं द्वारा प्रयास किया जा रहा है कि श्रीराम रज नदी से जुड़े इस पौराणिक स्थल को राम वनगमन मार्ग के अंतर्गत पर्यटन/तीर्थाटन केंद्र के रूप में विकसित किया जाए। इसके लिए अमृत महोत्सव अंतर्गत स्वच्छता अभियान में श्री रामरज तट के ग्रामीण वासियों द्वारा संकल्प लिया गया कि इस नदी तटों के किनारे पूर्ण स्वच्छ रखेंगे, प्लास्टिक का यथासंभव प्रयोग नहीं करेंगे।

नदी पुनर्जीवन अभियान के अंतर्गत हरितालिका तीज महोत्सव के अवसर पर हरिशंकरी पौधरोपण कराया गया। श्रीराम रज नदी तट के आसपास के गांव के तालाब, कुओं के पुनरुद्धार के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। इस प्रयास में राघवेंद्र प्रताप सिंह, नरेंद्र बहादुर सिंह, रामेंद्र शर्मा, प्रदीप पांडे अनेक नदी/जल प्रहरी स्वयंसेवी भाव से योगदान दे रहे हैं।

श्रीराम राज नदी और राम-यात्रा प्रसंग

श्रीराम रज नदी जागरूकता कार्यक्रम में श्रीलंका से अयोध्या जा रही 6500 किलोमीटर यात्रा का विश्राम स्थल बना जिसमें माता सीता की अशोक वाटिका पद चिन्ह लाकर रामरज तट पर स्थापित किया गया। इस यात्रा के प्रमुख बाबा सत्यनारायण मौर्य अंतर्राष्टींय गीतकार चित्रकार ने 6 अप्रैल 2022 को शिलापट का लोकार्पण किया। श्रीराम रज तट देश के 233 राम वन गमन स्थलों में से एक चिन्हित हुआ है।

भारत की आस्था का प्राण तत्व नदियां हैं। नदियों का जल ही जीवन है। जल है, तो कल है। जल है, तो रोजगार है। पर्याप्त जल है तो सिंचाई का संसाधन है, रोजगार का अवसर है। हमारे विकास व समृद्धि का वास्तविक आधार नदियों का जल ही है। नदियां हमारी सांस्कृतिक विरासत की पहचान हैं। तीर्थाटन आस्था का केंद्र भी नदियां हैं। इसीलिए इस विरासत को बचाने के भागीरथ प्रयास लोक भारती द्वारा किए जा रहे हैं।

नदियों के भौगोलिक, पौराणिक और ऐतिहासिक विषय को मुख्य मार्गो पर बने सेतु पर सूचनापट लगा कर नदियों के प्रति जागरूकता का अभिनव प्रयोग भी किया गया है। लोक भारती के जल उत्सव कार्यक्रम में नदियों को स्वच्छ रखने का संकल्प दोहराया गया। श्रीराम रज नदी की खोज के उपरांत अब इस नदी के पुनर्जीवन के लिए अग्रिम कार्यक्रमों की क्रमबद्ध योजना संचालित होगी। नदियों को अविरल एवं निर्मल बनाने का हमारा प्रयास निरंतर जारी रहेगा।

-लेखक लोक भारती जल/नदी अभियान के प्रमुख हैं।
 

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