प्रश्न -रोजगार गारंटी ‘योजना’ की जगह, रोजगार गारंटी ‘कानून’ का होना ही क्यों जरूरी है?

उत्तर -
एक अधिनियम रोजगार की कानूनी गारंटी देता है। इससे राज्य पर अदालत द्वारा लागू किए जा सकने वाला दायित्व डाला गया है और मजदूरों को मोलतोल कर पाने की ताकत भी मिली है। दरअसल एक कानून राज्य को जवाबदेह बनाता है। इसके विपरीत योजना में कोई कानूनी हकदारी नहीं मिलती और मजदूर सरकारी अफसरों की दया पर निर्भर रह जाते हैं। इसके पूर्व भी रोजगार संबंधी तमाम योजनाएं बनी थीं- आश्वासित रोजगार योजना (इएएस), राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (एनआरईपी), जवाहर रोजगार योजना (जेआरवाय) संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (एसजीआरवाय), ऐसी ही योजनाओं में से कुछ है। ये सभी योजनाएं लोगों के जीवन में सुरक्षा की भावना पैदा करने में असफल रही। अक्सर लोगों को इन योजनाओं की कोई जानकारी तक नहीं होती है। एक योजना और एक कानून में एक और महत्वपूर्ण अंतर भी होता है। योजनाएं तो आती-जाती रहती हैं, पर कानून ज्यादा टिकाऊ होते हैं। अफसर योजनाओं में काट-छांट कर सकते हैं, चाहें तो उसे निरस्त भी कर सकते हैं, पर कानून बदलना हो तो संसद में संशोधन प्रस्ताव लाना पड़ता है। अत: जाहिर है कि रोजगार गारंटी कानून से मजदूरों को एक टिकाऊ कानूनी हकदारी मिलेगी। संभव है कि समय के साथ वे अपने अधिकारों के प्रति भी जागरूक होंगे और अपना हक पाने के लिए दावा करना भी सीखेंगे।

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