कहर ढाती गर्मी के कारण उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में विख्यात सरसईनावर स्थित वेटलैंड के सूखने से राज्य पक्षी सारस के सामने पानी का बडा संकट खडा हो गया है। वन विभाग कर्मियों की लापरवाही और शिकारियों हस्तक्षेप के कारण संरक्षित क्षेत्र वेटलैंड सूखा पड़ा है । क्षेत्र में संरक्षित सारस और अन्य पक्षी पलायन कर गए हैं। पानी के अभाव में क्षेत्र के पेड़-पौधे भी सूखने लगे हैं।
भारतीय वन्य जीव संस्थान, देहरादून में नमामि गंगे परियोजना के संरक्षण अधिकारी डा. राजीव चौहान बताते हैं कि जब उत्तराखंड नहीं बना था तो उत्तर प्रदेश की सबसे अधिक जैव विविधता उत्तराखंड इलाके में थी। लेकिन बंटवारे के बाद उत्तर प्रदेश की 45 फीसदी जैव विविधता यहां बिखरे पड़े वेटलैंड में समाहित है। ये वेटलैंड वातावरण से कार्बनडाई ऑक्साइड का अवशोषण कर ग्लोबल वाॅर्मिंग को कम करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं।
वेटलैंड क्षेत्र के एक हिस्से में जो थोड़ा बहुत पानी बचा हुआ है। उस पर अराजक तत्वों ने अधिकार जमा रखा है वह प्रतिबंधित क्षेत्र होने के बाद भी यहां मछलियों का शिकार करते रहते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि उनके इस काम में वन विभाग के कर्मचारी और अधिकारीयों की संलिप्तता रहती है। मछलियों के अवैध शिकार का एक हिस्सा उनको भी दिया जाता है स्थानीय लोग इन अराजक तत्वों से भय के कारण इनका विरोध नहीं कर पाते हैं।
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य संरक्षक (वन्य जीव) रूपक डे ने बताया कि विश्व में एक लाख से ज्यादा वेटलैंड क्षेत्र हैं। दुनिया भर में 30 से 35 हजार सारस पाये जाते हैं जिनमें 20 से 25 हजार भारत में हैं, इनमें से 14 हजार उत्तर प्रदेश में हैं। राज्य में विश्व के 40 फीसद सारस रहते हैं। वैज्ञानिकों ने बताया कि क्रेन विलुप्तप्राय पक्षियों में एक है। इनकी विश्व में पाई जाने वाली 15 में से 11 प्रजातियों के पक्षियों की संख्या निरंतर घट रही है। भारत में इसकी छह प्रजातियां हैं, जिसमें सारस सर्वाधिक लोकप्रिय है। इटावा और आसपास का क्षेत्र सारस की स्वभाविक राजधानी हैं लेकिन अब यहां के वेटलैंड अतिक्रमण की वजह से कम हो गया है। उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश में वेटलैंड (दलदली) क्षेत्र में काफी तेजी से गिरावट आई है और यहां पर दो-तिहाई वेटलैंड क्षेत्र घट गया है।
सरसईनावर के वेटलैंड क्षेत्र राजकीय पक्षी सारस के लिए संरक्षित है। सारस समेत कई प्रजाति के पक्षियों के संरक्षण के लिए कई योजनाओं पर काम किया जा रहा है। वेटलैंड क्षेत्र में पानी के लिए कोई साधन नहीं है। रजबहा का पानी भी सरसईनावर तक नहीं पहुंचता है। दरअसल, रजबहे से वेटलैंड तक पानी पहुंचाने वाली नालियों पर अतिक्रमण है। पानी न होने से क्षेत्र से सारस और अन्य पक्षी मैनपुरी जनपद के वेटलैंड को पलायन कर गए हैं। पानी के अभाव में पौधे भी सूखने लगे हैं। परिसर के पास पानी की टंकी भी बनी है, उससे भी पानी झील क्षेत्र में नहीं लाया जा रहा है।
वेटलैंड के कुछ हिस्से में थोड़ा पानी है। इसमें कुछ मछली का शिकार करने वाले कब्जा जमाए हैं, ये क्षेत्र मछली के शिकार के लिए प्रतिबंधित है। वनकर्मियों के संरक्षण में यहां शिकार किया जा रहा है। मछलियों के शिकार में वनकर्मियों की भी हिस्सेदारी रहती है। वेटलैंड क्षेत्र में वर्ष भर पानी मिल सके इसके लिए शासन ने सारस पर्यटन स्थल में सोलर पम्प लगाया हुआ है लेकिन इसका लाभ पक्षियों को न मिलकर स्थानीय किसान अपने खेतों को भरकर उठा रहे हैं। इसमें वन विभाग के कर्मचारी ही शामिल हैं जो किसानों से जमकर वसूली करते हैं। लाखों रुपये की लागत से लगाए गए सोलर पम्प का उद्देश्य वेटलैंड में पक्षियों को पानी मिलता रहे उसके लिए लगाया गया है। लेकिन इसकी एक भी बूंद वेटलैंड क्षेत्र में नहीं पहुंच पाई है जबकि आसपास के खेत भर चुके हैं। यदि यह पानी वेटलैंड क्षेत्र को मिलता तो सारसों का पलायन रूक सकता था साथ ही हजारों अन्य पक्षियों को भी पानी मिल सकता था।
हजारी महादेव मंदिर से जुड़े शांतिदास और सरसईनावर के राहुल ने बताया कि पर्यटन स्थल में सोलर पंप लगा है लेकिन इससे आसपास के किसान खेतों की सिंचाई करते हैं। ये सब वनविभाग कर्मियों की मिलीभगत से होता है। वनविभाग कर्मी खेतों में सिंचाई के एवज में किसानों ने रुपये वसूलते हैं। वेटलैंड क्षेत्र के एक हिस्से में जो थोड़ा बहुत पानी बचा हुआ है। उस पर अराजक तत्वों ने अधिकार जमा रखा है वह प्रतिबंधित क्षेत्र होने के बाद भी यहां मछलियों का शिकार करते रहते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि उनके इस काम में वन विभाग के कर्मचारी और अधिकारीयों की संलिप्तता रहती है। मछलियों के अवैध शिकार का एक हिस्सा उनको भी दिया जाता है स्थानीय लोग इन अराजक तत्वों से भय के कारण इनका विरोध नहीं कर पाते हैं। एसडीएम सत्यप्रकाश ने कहा कि वेटलैंड क्षेत्र जाकर खुद स्थिति देखेंगे। वहां सारस के लिए पानी की व्यवस्था कराई जाएगी।
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