पर्णांग: एक उपेक्षित पादप समूह (Fern : A neglected plant group)


सारांश:


पर्णांग अर्थात टेरिडोफाइट्स प्रत्येक दृष्टिकोण से चाहे वो आर्थिक महत्व हो या पर्यावरण से संबंधित कोई पहलू, उच्च पादप समुदाय की तुलना में सदैव कम आंका गया है। यही कारण है कि यह विशिष्ट पादप समुदाय सर्वगुणों से भरपूर होते हुये भी आज एक उपेक्षित पादप समूह के रूप में जाना जाता है। परंतु यदि इसके गुणों पर प्रकाश डाला जाये तो यह समुदाय पुष्पीय समुदाय से कम उपयोगी नहीं है। कई शोध कार्यों में इसके चिकित्सीय एवं औषधीय गुण प्रमाणित हो चुके हैं। उदाहरण के तौर पर, एडियन्टम, एस्प्लेनियम, एजोला, ब्लेकनम, बोट्रिकियम, किलेन्थस, डाइप्लेजियम, इक्यूसिटम, हेल्मिन्थोस्टेकिस, हुपेरजिया, ओनिकियम, टेरीडियम, सिलेजिनेला आदि में औषधीय एवं भोज्य पदार्थों वाले उपयोगी रासायनिक तत्व जैसे एल्केलॉयड्स, फिनोल्स, ग्लाइकोसाइड्स, टर्पिनोइड्स इत्यादि पाये जाते हैं। पर्णांगों के इन गुणों से आम जनमानस को अवगत कराना तथा वैज्ञानिकों का इस बहुमूल्य पादप समुदाय की ओर ध्यान आकर्षित करना आवश्यक है, ताकि इस बहुमूल्य जैव-संपदा का अत्याधुनिक वैज्ञानिक ढंग से दोहन किया जा सके। प्रस्तुत लेख में इस पादप समुदाय में छिपी अपार आर्थिक संभावनाओं, पर्यावरणीय महत्व एवं औषधीय महत्व पर प्रकाश डाला गया है ताकि यह पादप समुदाय एक बहुमूल्य जैव-संपदा के रूप में उभर कर आ सके। इसके साथ-साथ उन पहलुओं पर भी चर्चा की गई है जिनकी वजह से यह पादप समूह पुष्पीय पादप समुदाय की तुलना में उपेक्षित रहा।

Abstract


Ferns or Pteridophytes in every way, whether it may be economic importance or any aspect related to the environment has always been underestimated as compared to flowering plants. This is the reason that today, this specific plant group has been recognized as a neglected plant group in spite of its valuable properties but if we look inside its properties then it is equally economically significant. Several research papers have also scientifically proved its medicinal properties. For example Adinatum, Asplenium, Azolla, Blechnum, Botrychium, Cheilanthes, Dipazium, Equisetum, Helminthostachys, Huperzia, Onychium, Pteridium, Selaginella and other species contain various chemical compounds like alkaloids, phenols, glycosides, terpenoides etc. it is important to create awareness among general masses and to draw attention of scientists towards this neglected plant group in light of modern scientific tools. The article highlights unlimited qualities and opportunities hidden in this plant group so that it could come out as a valuable bioresource. Beside these, some important points are also discussed due to which this plant group is neglected in comparison to angiosperms and gymnosperms.

प्रस्तावना


पर्णांग मुख्यतः टेरीडोफाइट्स अथवा फर्न के नाम से प्रचलित हैं जो अपुष्पीय किंतु, संवहन तन्त्रयुक्त तथा बीजाणुयुक्त पादप समुदाय है। इस पादप समुदाय का उल्लेख आज से करीब चालीस करोड़ वर्ष पहले जीवाश्म के रूप में मिलता है। लगभग ढाई सौ लाख वर्ष पहले यह समुदाय पृथ्वी की वनस्पति संपदा का सबसे प्रमुख एवं प्रभावशाली भाग था। परंतु वर्तमान वनस्पति समुदाय में इनका स्थान पुष्पीय समुदाय ने ले लिया है। ऐसा माना जाता है कि जुरासिक काल में पृथ्वी पर जीव जंतुओं में सरिसृपों का प्रमुख स्थान था एवं पादपों में पर्णांगों का सबसे प्रमुख तथा प्रभावशाली स्थान था इसीलिये पर्णांगों को ‘पौधसमुदाय के सर्प’ नाम से भी अंलकृत किया जाता है। पर्णांग प्रायः नम, उष्णकटिबंधीय तथा शीतोष्ण वनों में पाए जाते हैं। विश्व में ज्ञातव्य 12,000 प्रजातियों में से लगभग 1000 प्रजातियाँ भारत में पाई जाती हैं। भारत में पर्णांग मुख्यतः हिमालय के शीतोष्ण तथा देश के दक्षिण एवं पश्चिम के मध्यम तापमान वाले नम तथा छायादार स्थानों में प्रचुर संख्या में पाये जाते हैं। भारत के विभिन्न भागों में पर्णांग को स्थानीय लोग अलग-अलग नाम से जानते हैं। असम में मुख्यतः खाने योग्य पर्णांगों को ‘ढेकिया’ नाम से जाना जाता है। पश्चिम मेघालय में इन्हें ‘पेलोई’ कहा जाता है। हिमाचल प्रदेश में खाने योग्य पर्णांग के लिये ‘लुंगरू’ व उत्तराखंड में ‘लिंगरा’ शब्द का प्रयोग भी किया जाता है। पर्णांग समूह एक बहुपयोगी पादप संपदा है, जिसका अपना एक विशेष आर्थिक महत्व है यह बात अलग है कि पुष्पीय पौधों की तुलना में यह पादप समूह उपेक्षित रहा है, परंतु आज भी इस पादप समुदाय के आर्थिक दोहन की अपार संभावनाएं छिपी हैं। पर्णांग विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों में आसानी से विकसित हो जाते हैं।

यहाँ तक की मैदानी भागों में ये खेतों के छायादार और नम भागों में भी उग जाते हैं परंतु इनकी विशेषताओं से अनभिज्ञ लोग इन्हें खरपतवार समझ नष्ट कर देते हैं। लेकिन आज भी पहाड़ी क्षेत्रों के ग्रामीण तथा आदिवासी लोग पर्णांगों का उपयोग अपने दैनिक जीवन में भोजन, औषधि एवं अन्य वस्तुओं के रूप में करते हैं। देश के विभिन्न आदिवासी क्षेत्रों में लोग पर्णांगों का उपयोग कई प्रकार के रोगों जैसे मुधमेह, बुखार, खांसी, चर्म रोग, हड्डियों को जोड़ने आदि के उपचार में करते हैं। पर्णांगों का उपयोग मात्र ग्रामीण तथा आदिवासी समुदाय तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसकी बहुत सी ऐसी प्रजातियाँ हैं जिनका विभिन्न पारम्परिक चिकित्सा प्रणालियाँ विशेषकर होम्योपैथी, आयुर्वेद एवं यूनानी चिकित्सा पद्धतियों में भरपूर प्रयोग होता है। इन सब के बावजूद भी, इसकी पहचान मात्र एक सजावटी पौधे तक ही सीमित रही है। भविष्य में इस पादप समुदाय की उत्पाद गुणवत्ता बढ़ाने तथा इसका वैज्ञानिक तरीके से दोहन किस प्रकार किया जाये इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। अतः प्रस्तुत लेख में पर्णांगों की विभिन्न प्रजातियों के धार्मिक, परम्परागत, सौंदर्यात्मक, औषधीय एवं भोज्य पदार्थ के रूप में चर्चा की गई है। इसके अतिरिक्त जितनी भी प्रजातियों का इस लेख में उल्लेख हुआ है उन्हें एक सारणी के रूप में दर्शाया गया है।

धार्मिक-तांत्रिक कार्यों में पर्णांगों का महत्व


भारत में पाए जाने वाले बहुत से ग्रामीण एवं आदिवासी लोग पर्णांगों का प्रयोग धार्मिक एवं तांत्रिक कार्यों के लिये करते हैं। उदाहरण के तौर पर:

हुपर्जिया फलेग्मेरिया: इस पर्णांग का प्रयोेग मेघालय में विभिन्न जनजातियों के लोग एक धार्मिक पौधे के रूप में करते है। तथा उनका मानना है कि इस पर्णांग को पूजाघर में रखने से उनका शरीर रोगमुक्त हो जाएगा।

सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिसः मध्य प्रदेश के विन्ध्यान क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी तथा ग्रामीण लोग सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस का प्रयोग पूजा तथा अन्य धार्मिक कार्यों के लिये करते हैं।

ऐडियेन्टम कैपिलस-वेनेरीसः भरारा, कुमाऊँ क्षेत्र की थारू जनजाति के स्थानीय वैद्य, ऐडियेन्टम कैपिलस-वेनेरीस को जादू टोने संबंधित कर्मकाण्ड के लिये प्रयोग में लाते हैं।

किलैन्थस फेरिनोसा: पर्णांग के चूर्ण को गाय के घी के साथ मिश्रित कर उसकी धूपबत्ती बनाई जाती है जिसका प्रयोग बच्चों के अंदर व्याप्त किसी भी प्रकार के डर को दूर भगाने के लिये किया जाता है।

किलैन्थस टेन्यूईफोलिया: बिहार की सांथल जनजाति के लोग इस पर्णांग का प्रयोग धार्मिक-तांत्रिक कार्यों के लिये करते हैं। इसकी जड़ों के अर्क का प्रयोग जादू टोने या बुरे प्रभाव को खत्म करने के लिये करते हैं।

हाइपोडीमैशियम क्रीनेट्म: यह ‘जड़ी-बूटी’ या ‘भूत-केसरी’ के नाम से जानी जाती है तथा इस पर्णांग की जड़ों का प्रयोग मध्य भारत में रहने वाली जनजातियों के लोग जादू-टोेने तथा बुरे प्रभाव को खत्म करने के लिये करते हैं।

साइक्लोसोरस पैरासीटिकस: भारत के पश्चिम घाट की आदिवासी जातियों में साइक्लोसोरस पैरासीटिकस के प्रकन्द का लेप बनाकर उसको माथे पर लगाया जाता है। ऐसा करने से बुरी आत्माओं का प्रभाव नष्ट हो जाता है।

थैलिप्टैरिस प्रोसेरा: असम में थैलिप्टैरिस प्रजातियों (मुख्यतः थैलिप्टैरिस प्रोसेरा) का प्रयोग तांत्रिक लोग झाड़ू के रूप में बुरी आत्माओं को भगाने के लिये करते हैं।

साैंदर्य प्रसाधन के रूप में


बहुत-सी पर्णांग प्रजातियों का प्रयोग सौंदर्य प्रसाधन के रूप में भी किया जाता है जिनमें से कुछ चुनिंदा प्रजातियाँ निम्न प्रकार से है:

ब्लैक्नम ओरियन्टेल: मध्य प्रदेश के जंगलों में रहने वाली जनजातियों की स्त्रियां सौदर्य प्रसाधन के रूप में इसका प्रयोग करती हैं चेहरे से दाग-धब्बे हटाने के लिये इसकी पत्तियों का प्रयोग वे चेहरे पर ‘फेस मास्क’ के रूप में करती है।

ऐडियेन्टम फिलिपिन्सः को पीसकर उसके पाउडर को सुखाकर उसका प्रयोग केशमार्जक (शैम्पू) के रूप में किया जाता है। यह हेयर टॉनिक के रूप में भी कार्य करता है तथा बालों को झड़ने, सफेद होने एवं रूसी से बचाता है। चेहरे पर कील मुहांसे होने पर ऐडियेन्टम फिलिपिन्स को प्रयोग में लाना लाभदायक माना जाता है। इसके अतिरिक्त कई वैज्ञानिक शोधों से यह सिद्ध हुआ है कि इस पर्णांग का अर्क त्वचा में मौजूद डी.एन.ए. की क्षति होने से रोकता है जिससे सूर्य की हानिकारक किरणों से त्वचा पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव जैसे झाइयां, काले धब्बे इत्यादि से बचा जा सकता है।

ड्रायोप्टेरिस क्रिस्टेटा पर्णांग त्वचा के लिये बहुत लाभकारी है। इसका प्रयोग एक सुगंधित साबुन बनाने में किया जाता है तथा ऐसा माना जाता है कि यह त्वचा को जलन तथा रूखी सूखी होने से बचाता है।

कीलैन्थस टेन्यूईफोलिया का प्रयोग केशमार्जक के रूप में किया जाता है तथा ये बालों के विकास के लिये बहुत लाभदायक है।

औनिकियम जैपोनिकम औ. सिलिकुलोसम तथा ओफिओगलोसम पेडुला पर्णांग बालों को झड़ने से रोकते हैं।

ओफिओगलोसम पिटियोलेट्म: राजस्थान में पाई जाने वाली आदिवासी जनजातियों के लोग (स्थानीय नाम-शांबली) के प्रकंद का प्रयोग बालों को झड़ने से रोकने के लिये करते हैं।

ओलियेन्ड्रा वालीची: प्रकन्द त्वचा को लंबे समय तक जवां रखने में लाभदायक होता है।

उत्तर पश्चिम भारत के कुछ भागों में औरतें सिलेजिनैला प्रजाति के बीजाणुओं के चूर्ण का प्रयोग सिंदूर पाउडर के रूप में करती हैं।

कीलैन्थस फेरिनोसा पर्णांग के चिकने डंठल का प्रयोग कुमाऊँ क्षेत्र में पाई जाने वाली स्त्रियां कान तथा नाक में श्रृंगार के रूप में करती हैं। मंनोरजन के लिये बच्चे इनके प्ररोह को हाथ में रखकर दबाते हैं जिनसे उनके हाथों मे प्ररोह की बहुत सुदंर छाप उभर आती है।

शोभाकारी एवं सजावटी पर्णांग


विभिन्न रूपों में पाये जाने वाले पर्णांग अपने अद्भुत और आकर्षक पर्णविन्यास के कारण पुष्पीय पादपों से ज्यादा आकर्षक एवं शोभाकारी होते हैं। शोभाकारी पादपों की श्रेणी में पर्णांगों का एक विशेष स्थान है। इनका उत्कृष्ट आकर्षक एवं जटिल पर्ण विन्यास अनायास ही लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करता है तथा यह प्राचीन कला एवं संस्कृति से जोड़ता है। वर्तमान समय में पर्णांग की कई प्रजातियाँ घरों, कार्यालयों, पार्क, विद्यालय तथा औद्योगिक संगठनों की शोभा बढ़ाती हुई दिखती हैं। खासकर, शादी ब्याह जैसे विशेष आयोजनो में घरों तथा स्टेज की शोभा बढाने में पर्णांगों का विशेष महत्व होता है।

1. ऐडियेन्टम, नेफ्रोलेपिस तथा पोलिस्टिकम पर्णांग की प्रजातियों का प्रयोग उनके अद्भुत एवं आकर्षक पर्णविन्यास के कारण उत्कृष्ट पुष्पविन्यास (बुके) बनाने में किया जाता है।

2. ओनिकियम जेपोनिकम का प्रकन्द तथा पत्तियाँ अपने अद्भुत सौंदर्य के कारण घर की अंदरूनी सजावट में प्रयुक्त होती है।

3. साइथिया नीलगिरेसींस जिसे पर्णांग वृक्ष भी कहा जाता है, लॉन तथा बाग-बगीचों के मध्य लगा हुआ अति सुंदर लगता है तथा उस जगह की शोभा बढ़ाता है।

4. ओडोन्टोसोरिया चाइनेन्सिंस एक अत्यंत सुंदर पर्णांग है जो अपनी महीन पत्तियों के कारण बहुत आकर्षक लगता है तथा घरों के आस-पास लगाया हुआ यह पर्णांग बहुत शोभनीय लगता है।

इसके अलावा नेफ्रोलेपिस बाइसिराटा, नेफ्रोलेपिस कार्डिफोलिया, टैरिस क्रेटिका, टैरिस वीटाटा, ऐक्टिनोप्टैरिस रैडियाटा, ब्लैकनम ओरियन्टेल, पोलिस्टिकम स्क्यूरोसम, पोलिस्टिकम लेंटम तथा ओफियोओग्लोसम रैटीकुलेट्म भी शोभाकारी पर्णांगों की श्रेणी में आते हैं।

पर्णांग का भोजन एवं चारे के रूप में उपयोग


पर्णांग की कई प्रजातियों का उपयोग भोजन खासकर साग तथा हरी सब्जियों के रूप में किया जाता है।

1. एथीरियम सिम्पेराई प्रजाति गढ़वाल तथा कुमाऊँ क्षेत्रों में कुथुरा सब्जी के रूप में खाई जाती है।

2. बोट्रिकियम डोसोफोलियम तथा बो. लेनुजीनोसम की हरी और नवजात पत्तियाँ साग के रूप में खाई जाती हैं।

3. डिप्लैजियम एसकुलेंटम तथा डाइप्लेजियम मैक्सिमम का प्ररोह (फ्रोण्ड) उत्तर भारत में हरी सब्जी के रूप में खाया जाता है। इसका कोरोजियर (युवा प्ररोह) सलाद के रूप में भी प्रयुक्त होता है।

4. एंजियोप्टैरिस इवैक्टा के डंठल का प्रयोग असम में पाई जाने वाली जनजातियों के लोग सब्जी के रूप में करते हैं।

5. सिरेटोप्टैरिस थेलिक्ट्रोइडस की नवजात पत्तियाँ भी सब्जी के रूप में खाई जाती है।

6. कुमाऊँ प्रांत की थारू तथा बोक्सा जनजाति के लोग इक्यूसिटम आरवेंस के प्रकन्द को सब्जी के रूप में प्रयोग में लाते हैं।

7. ओफिओग्लोसम रैटीकुलेट्म को छत्तीसगढ़ में ‘वन झुनकी’ के नाम से जाना जाता है तथा विशिष्ट प्रयोजनों में इस पर्णांग की करी व साग प्रयोग में लाई जाती है। इसे मुख्यतः औरत को जनन के पश्चात दिया जाता है। पारंपरिक चिकित्सकों के अनुसार जनन के बाद इसका प्रयोग करने से शरीर का संक्रमण से बचाव होता है और ये शक्तिवर्धक भी होता है।

8. साइक्लोसोरस डेंटेटस के ताजा प्ररोह (फ्रोण्ड) को माउंट आबू राजस्थान के भील आदिवासी लोग भोजन के रूप में प्रयोग में लाते हैं।

9. मार्सिलिया माइन्यूटा की पत्तियों का भील एवं गारसिया आदिवासी लोग सब्जी के रूप में प्रयोग करते हैं। पर्णांगों के रासायनिक घटकों के अध्ययन से पता चलता है कि इनमें प्रोटीन और वसा की अधिकता होती है तथा इनमें फिनोलिक अवयव भी मौजूद होते हैं।

10. हिमालय की पहाड़ी जनजातियां, पर्णांगों के प्ररोह को अचार बनाने के काम में उपयोग करती हैं। इसमें खासकर डाइप्लेजियम एसकुलेंटम तथा इाइप्लेजियम मैक्सिमम प्रजातियों का उपयोग मुख्य रूप से किया जाता है।

11. ऐम्पिलोप्टैरिस प्रोलीफेरा का उपयोग मेघालय और असम की जनजातियाँ साग एवं पकौड़ें के रूप में करती हैं।

पर्णांग की कुछ प्रजातियों का प्रयोग भोजन का स्वाद बढाने तथा भोजन में सुगंध पैदा करने के लिये भी किया जाता है। इनमें मुख्यतः एंजियोप्टेरिस इवेक्टा, पोलिपोडियम फाइमेटोड्स, पो. वल्गेर, एडियेन्टम कैपिलस-वैनेरीस तथा ड्राइयोप्टेरिस क्रिस्टेटा शामिल हैं। वैज्ञानिक मेय (1921) के अनुसार एडियेन्टम कैपिलस-वेनेरीस प्रजाति के पौधों में गैलिक अम्ल, टैनिक अम्ल तथा तात्विक तेल के अंश मौजूद होते हैं जो भोजन में रुचिर स्वाद उत्पन्न करते हैं तथा भोजन को और स्वादिष्ट बना देते हैं।

इसके अलावा पर्णांग की कई प्रजातियों का प्रयोग मवेशियों के चारे के रूप में भी किया जाता है। थेलिप्टेरियोरायड पर्णांग की कई प्रजातियाँ पहाड़ी भागों में मवेशियों के चारे के रूप में प्रयुक्त होती हैं। साईथिया स्पाइनुलोसा की पत्तियों का प्रयोग भी चारे के रूप में किया जाता है। मार्सिलिया माइन्यूटा भी मवेशियों के चारे के रूप में उपयोग में लाये जाते हैं। एजोला पिन्नेटा तथा कीलैन्थस टेन्यूईफोलिया पोल्ट्री फार्म में चारे के रूप में प्रयुक्त होते हैं।

पेय पदार्थ के रूप में


पर्णांग के ताजे एवं सूखे फ्रोंड्स चाय की तरह प्रयुक्त होते हैं। पेय पदार्थ के रूप में पर्णांग की पत्तियाँ एक बेहतर विकल्प के रूप में देखी जा सकती हैं।

1. एंजियोप्टेरिस इवेक्टा के तनों में पाये जाने वाले वसा को किण्वन द्वारा सूजसी नामक मादक पेय बनाया जाता है।

2. ऐडियेन्टम कैपिलस-वेनेरीस के सूखे फ्रोण्ड्स का प्रयोग चाय के रूप में किया जाता है।

3. हिमालय के कई क्षेत्रों में स्फिनोमेरिस चाइनेन्सिस की सूखी पत्तियों को चाय के रूप में प्रयोग में लाया जाता है।

4. ड्राइयोप्टेरिस फ्रेगरेन्स तथा एक्टिनोप्टेरिस रेडिएटा प्रजाति के फ्रोण्ड्स पेय पदार्थ (चाय) के रूप में प्रयुक्त होते हैं।

5. ब्रेकेन फर्न टेरीडियम एक्विलिनम के प्रकन्द के अर्क का प्रयोग एक हर्बल चाय के रूप में किया जाता है जो सेहत के लिये स्वास्थ्यकर होती हैं।

6. लाइगोडियम प्रजाति के सूखे फ्रोण्ड्स पेय पदार्थ के रूप में प्रयोग में लाए जाते हैं।

रंजक एवं रेशे के रूप में पर्णांग का प्रयोग


पर्णांग की कई प्रजातियों का प्रयोग रंग या डाई प्राप्त करने के लिये भी किया जाता है।

1. ओडोंटोसोरिया चाइनेन्सिस से लाल रंग की डाई प्राप्त की जाती है।

2. टेरीडियम एक्विलिनम से गहरा पीला रंग तथा ऐस्प्लेनियम इनसीफोरमी से लाल रंग प्राप्त किया जाता है।

3. ऐडियेन्टम कैपिलस-वेनेरीस की पत्तियों को फ्रांसीसी, आस्ट्रियन, स्पेनिश, रूसी तथा स्विस औषध कोष में आधिकारिक रंजक के रूप में स्थान दिया गया है।

4. ऐडियेन्टम कैपिलस-वेनेरीस के पूरे पादप का प्रयोग रेशे के रूप में किया जाता है।

5. ड्राइक्रेनोप्टेरिस लिनिएरिस का प्रयोग रेशे के रूप में किया जाता है तथा इसके रेशे से टोपियां तथा रस्सियां बनाई जाती हैं।

इसके अलावा टेरीडियम एक्विलिनम, ओसमुंडा क्लेटोनियाना और ओसमुंडा रेगलिस का प्रयोग भी रंजक तथा रेशे के रूप में किया जाता है।

पर्णांग का चिकित्सीय एवं औषधीय महत्व


भारत में परम्परागत रूप से पर्णांग का प्रयोग लोगों द्वारा विभिन्न बीमारियों के उपचार के लिये किया जाता है। इनमें मुख्यतः गाँवों में रहने वाले स्थानीय लोग तथा आदिवासी जनजातियों के लोग शामिल हैं। पर्णांग की विभिन्न प्रजातियों को उनके औषधीय महत्व के कारण जाना जाता है तथा इनमें से कई प्रजातियाँ तो प्राचीन काल से उपयोग में लायी जा रही हैं। पर्णांगों का विशुद्ध औषधीय महत्व है, जिसमें प्रतिजैविक के रूप में अधिकांश प्रजातियाँ उपयुक्त होती हैं। इसके अलावा, घावों को भरने, खांसी-जुकाम, उदर रोग तथा अन्य टॉनिक के रूप में पर्णांगों का उपयोग किया जाता है। पर्णांगों का उपयोग कीटनाशक, एंटी-कैंसर, सांप काटने में, उच्च रक्तचाप तथा हेयर टॉनिक के रूप में भी होता है।

खांसी, बुखार,, घाव, चोट तथा सर्पदंश में लाभदायक पर्णांग


1. हैल्मिन्थोस्टैकिस जिलैनिका के प्रकन्द को चबाने से काली-खांसी से राहत मिलती है।

2. एडियेन्टम लुनुलेट्म दमे के रोग में लाभदायक है। इसकी पेस्ट का काली मिर्च के साथ मिश्रण बनाकर एक माह तक दिन में दो बार प्रयोग करने पर दमा तथा श्वास रोग में राहत मिलती है।

3. एक्टिनोटेरिस रेडिएटा का प्रयोग बुखार में करना लाभदायक होता है।

4. ऐडियेन्टम कैपिलस-वेनेरीस, ऐडियेन्टम कौडेटम, एडियेन्टम फिलिपींस, सिलेजिनेला डेलीकटुला, थेलिप्टेरिस अरिडा, माइक्रोसोरियम पंकटेट्म, ओफिओग्लोसम रेटीकुलेट्स, तथा टेरिस क्रिटिका की पेस्ट शरीर के किसी भी हिस्से में घाव होने पर प्रयोग में लाने से आराम मिलता है।

5. ऐडियेन्टम कैपिलस-वेनेरीस और मालसलिया माइन्यूटा की पत्तियाँ औषधीय काढ़े के रूप में प्रयुक्त होती हैं, जो बुखार और ब्रोन्काइटिस में लाभदायक होती हैं।

6. एडियेन्टम वेनुस्टम, ए. इन्सीसम, ए.एपोईरेटी, नैफ़रोलेपिस कोर्डिफोलिया की पत्तियों का प्रयोग करने से बुखार और खांसी से राहत मिलती है।

7. ऐडियेन्टम फिलिपींस, अलसोफिला ग्लेबरा तथा ओलियेंड्रा म्यूसीफोलिया के प्रकन्द सर्पदंश के इलाज में प्रयुक्त होते हैं।

8. लाइकोपोडियम एक प्रचलित होम्योपैथिक दवा है, जो इस समुदाय की प्रजाति लाइकोपोडियम क्लैवेट्म से प्राप्त की जाती है। इसका सम्पूर्ण पौधा बुखार, दर्द, फेफड़ा, रोग तथा गुप्त रोगों के उपचार में भी काम आता है।

9. फ्लीबोडियम ऑरियम के प्रकन्द का प्रयोग खांसी-जुकाम में करना लाभकारी होता है तथा इसे स्वेदकारी औषधि के रूप में भी प्रयोग में लाया जाता है।

10. ट्रिगनोस्पोरा कोड़ीपिन्ना के प्रकन्द का रस बुखार में लेना लाभकारी होता है।

मनोविकार में उपयोगी पर्णांग


ड्रायोप्टेरिस कोकलियेटा पर्णांग का प्रकन्द मिर्गी रोग तथा मानसिक विकारों में लाभकारी होता है। इसके अलावा भारत में कीलैन्थस फेरिनोसा तथा ओफिओग्लोसम रेटीकुलेट्म की पत्तियों का प्रयोग भी मानसिक विकारों के इलाज के लिये किया जाता है।

पेट तथा हड्डियों संबंधी दर्द में उपयोगी पर्णांग


1. एंजियोप्टेरिस इवेक्टा की पत्तियों से बनाए काढ़े का नींबू रस के साथ उपयोग करने से आंत में उत्पन्न अल्सर तथा पेट दर्द से राहत मिलती है।

2. कब्ज़ संबंधी परेशानी होने पर टैक्टेरिया मैक्रोडेन्टा के प्रकन्द के अर्क का प्रयोग करना लाभदायक होता है।

3. भारत के पूर्वी पहाड़ी मैदानों में पेट दर्द तथा अतिसार होने पर लाइकोपोडियम लोंगिफोलियम की ताजा पत्तियों का प्रयोग किया जाता इसके अलावा भारत के कई हिस्सों में मुख्यतः पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाने वाली जनजातियाँ एडियेन्टम फिलिपींस की जड़ तथा प्रकन्द का काढ़ा बनाकर उसका प्रयोग पेचिश की समस्या होने पर करते हैं।

4. इक्वीसीटम ओर्वेंस तथा इ. डिबाईल बोन टॉनिक और आथ्राईटिस में फायदेमंद हैं तथा पहाड़ों में इसे हडजोड़ के नाम से जानते हैं।

5. बोट्रिकियम लेनुजिनोसम और ड्राइनेरिया क्यूलसफोलिया बदन दर्द में लाभदायक है।

6. महाराष्ट्र में स्थानीय लोग ओसमुंडा रिगैलिस के पूर्ण पादप का प्रयोग गठिया रोग तथा आंत्र संबंधी परेशानियों से निजात पाने के लिये करते हैं।

7. अंडमान द्वीप में रहने वाले आदिवासी लोग विटेरिया एलोंगाटा की पत्तियों का प्रयोग गठिया रोग में करते हैं।

स्त्री रोगों तथा विकारों में लाभकारी पर्णांग


1. हेल्मिन्थोस्टेकिस जिलैनिका के प्रकन्द का प्रयोग पहाड़ी मैदानों में पाई जाने वाली विभिन्न आदिवासी जनजातियाँ बांझपन के इलाज में करती हैं।

2. ऐडियेन्टम कैपिलस-वेनेरीस, ऐडियेन्टम फिलिपींस, ओसमुंडा रिगैलिस का प्रयोग गर्भनिरोधक के रूप में किया जाता है।

3. पंचमढी में रहने वाली आदिवासी जनजायितों की स्त्रियां प्रसूति के समय डीप्लैजियम एसकुलेंटम की पत्तियों का प्रयोग करती हैं। उनका मानना है इससे प्रसव आसानी से हो जाता है।

4. नेफ्रोलेपिस एक्सेल्टा के प्रकन्द का प्रयोग प्रसव के समय करना लाभकारी होता है।

5. ऐडियेन्टम कैपिलस-वेनेरीस, ऐडियेन्टम फिलिपींस, कीलैन्थस फेरिनोसा तथा ओफिओग्लोसम रैटीकुलेट्म के प्ररोह (फ्रोण्ड) का प्रयोग अनियमित माहवारी में करना लाभदायक होता है।

पर्णांग के अन्य उपयोग


पर्णांगों का उपयोग जैविक खाद के रूप में, पर्यावरणीय सूचक के रूप में तथा टोकरी और झाड़ू बनाने में भी किया जाता है।

ऐज़ोला पिन्नेटा हरित खाद के रूप में धान के खेतों में प्रयुक्त होता है।

1. सिरेटोप्टेरिस थैलिक्टोरॉइडिस का प्रयोग भी हरित खाद के रूप में किया जाता है।

2. पीलिया कैलोमेलानोस तथा कैलेन्थस हिर्टा नामक प्रजाति धातु अवशोषक के रूप में निकिल तांबे के खनिज के ऊपर उगती हुई पाई गई है। उसी प्रकार एसप्लेनियम प्रजाति भी लेड तथा तांबे के ऊपर पाई गई है। टेरिस वाइटेटा भी आर्सेनिक धातु का सूचक साबित हुआ है। इक्वीसीटम प्रजाति भी पारा धातु की अवशोषक सिद्ध हुई।

3. स्थलीय पर्णांगों के अलावा जलीय पर्णांग जैसे साल्वीनिया मोलेस्टा, एज़ोला पिन्नेटा तथा मार्सिलिया माइन्यूटा भी अपने प्ररोह कैडमियम तथा क्रोमियम का अवशोषण करते हैं तथा ये जलीय प्रर्णांग कैडमियम तथा क्रोमियम के सूचक सिद्ध हुए हैं। इसके अलावा एडियन्टम पिडेटम पर्णांगों का प्रयोग टोकरी तथा झाड़ू इत्यादि बनाने में भी किया जाता है।

4. डिकरेनोप्टेरिस लिनिएरिस के फ्रोण्ड्स सख्त और मोटे होते हैं तथा इनका प्रयोग रस्सी, टोपी, टोकरी तथा बेल्ट बनाने में किया जाता है।

5. सालवीनिया मोलेस्टा नामक प्रजाति बायोगैस तथा उर्वरक बनाने के अलावा कागज उद्योगों में भी प्रयुक्त होती है।

6. टेरीडियम एक्विलिनम प्रजाति फाइटो इक्डिसोन रसायन की उपस्थिति के कारण एक प्रभावशाली कीटनाशक के रूप में काम आती है।

7. स्टेनोक्लाइना पेलुस्ट्रिस के प्रकंद तथा डंठल का प्रयोग टोकरी बनाने में किया जाता है।

निष्कर्ष


वर्तमान अध्ययन में ऐसे कई तथ्य सामने आए हैं, जिनके कारण यह विशिष्ट पादप समुदाय उपेक्षित रहा है। जैसे इसका मुख्य कारण है इस पादप समुदाय की सीमित संख्या में पाया जाना। इसके अलावा मैदानी क्षेत्रों में इसकी अल्प उपलब्धता एवं लोगों में इसकी जानकारी का अभाव, साथ में ऋतु विशेष में ही इसकी उपलब्धता होना। यह पादप समूह मुख्यतः वर्षा ऋतु में ही अधिकतम फलीभूत होता है तथा इसके लघु जीवन-चक्र का होना भी इनमें से एक कारण है। फिर भी पर्णांगों का पादप समूह में अपना एक विशिष्ट स्थान है। भारत के सुदूर क्षेत्रों में पाई जाने वाली अनेक ग्रामीण एवं जनजातियाँ अपने दैनिक कार्यों में पर्णांगों की विभिन्न प्रजातियों का प्रयोग करती हैं। भोज्य पदार्थ से लेकर औषधि के रूप में, धार्मिक कर्मकांडों में, सौंदर्य प्रसाधन के रूप में ,रेशे रंजक के रूप में पर्णांग अनेक प्रकार से प्रयोग में लाये जाते हैं। उपर्युक्त लेख में पर्णांग समुदाय के विभिन्न उपयोगों पर प्रकाश डाला गया है ताकि आम जनसमूह पर्णांग की विभिन्न प्रजातियों की विशेषताओं से अवगत हो सके। वर्तमान में कई पर्णांग प्रजातियों की औषधीय गुणवत्ता की पुष्टि आधुनिक शोधों के आधार पर भी की जा चुकी है। लेकिन अभी भी बहुत-सी प्रजातियों पर शोध होना बाकी है कौन जानता है कि अगली संजीवनी बूटी इसी पादप समुदाय से उभर कर आये जिसे अब तक हम मात्र सजावटी पादप समुदाय मानते आए हैं। आवश्यकता इस बात की है कि आम जनमानस तथा वैज्ञानिक जगत का ध्यान इस बहुउपयोगी पादप समुदाय की तरफ आकर्षित किया जाए ताकि आने वाले समय में यह पादप समूह अपनी विशेषताओं के आधार पर एक बेहतर विकल्प के रूप में उभर आए ।

 

सारणी 1 - वर्णित पर्णांग प्रजातियाँ

वानस्पतिक नाम

वानस्पतिक नाम

एक्टिनिओप्टेरिस रेडियाटा

कैलान्थस टेन्यूफोलिया

(Actiniopteris radiata L.)

Cheilanthes tenuifolia (Burn f.) Sw.)

एडियन्टम कैपिलस- वेनेरीस

साइक्लोसोरस पेरासीटिकस

(Adiantum capillus-veneris L.)

(Cyclosorus parasiticus (L.) Farw )

एडियन्टम कोडेट्म

साइथिया नीलगिरेनसिस

(Adiantum caudatum L.)

(Cyathea nilgiriensis Holttum)

एडियन्टम इन्सीसम

डिकरेनोप्टेरिस लिनिएरिस

(Adantum incisum Forssk.)

(Dicranopteris linearis Burm f.)

एडियन्टम पिडेटम

डाइप्लेजियम एसकुलेंटम

(Adiantum pedatum L.)

(Diplazium esculentum Retz. Sw.)

एडियन्टम फिलिपिन्स

डाइप्लेजियम मैक्सिमम

(Adantum philippense L.)

(Diplazium maximum (D.Don) C.Chr).

एडियन्टम पोईरेटी

ड्रायोप्टेरिस क्रिस्टेटा

(Adiantum poiretii Wikstr.)

(Dryopteris cristeda L.)

एडियन्टम वेन्स्तम

ड्रायोप्टेरिस कोकलिएटा

(Adiantum venustum D.Don)

(Dryopteris cochleata (D.Don) C.Chr

अलसोफिला ग्लेबरा

इक्यूसिटम ओर्वेस

(Alsophila glabra Sensu Bedd.)

(Equisetum arvense. L.)

एम्पिलोप्टेरिस प्रोलीफेरा

इक्यूसिटम डेबाईल

(Ampelopteris prolifera (Retz.) Copel.

(Equisetum debile Roxb.ex Vaucher)

एस्प्लेनियम इनसीफोरमी

हेल्मिन्थोस्टेकिस जाईलेंका

(Asplenium ensiforme Walll. ex Hook and Grev)

(Helminthostachys zeylanica (L.) Hook.)

एस्प्लेनियम प्रजाति

हुपेरजि़या फलेग्मेरिया

(Asplenium sp.)

(Huperzia phlegmaria (L.) Rothm.)

एथीरियम सिम्पेराई

हाईपोडीमेटीयम क्रीनेट्म

(Athyrium schimperii Moug. ex Fee)

(Hypodematium crenatum Forssk.)

एजोला पिन्नेटा

लाइकोपोडियम क्लेवेट्म

(Azolla pinnata R. Br.)

(Lycopodium clavatum L.)

ब्लेकनम ओरियन्टेल

मार्सिलिया माइन्यूटा

(Blechnum orientale L.)

(Marsilea minuta L.)

बोट्रिकियम डोसोफोलियम

माइक्रोसोरियम पंकटेट्म

(Botrychium daucifolium Wall. Ex Hook & Grev.)

(Microsorium punctatum L. Copel.)

बोट्रिकियम लेनुजीनोसम

नेफ़रोलेपिस कोर्डिफोलिया

(Botrychium lanuginosum Wall. Ex Hook & Grev.)

Nephrolepis cordifolia (L.) Presl.)

 

 

वानस्पतिक नाम

वानस्पतिक नाम

सिरेटोप्टेरिस थेलिक्ट्रोइडस

नेफ्रोलेपिस एक्सेलटा

(Ceratopteris thalictroides (L) Brongn)

(Nephrolepis exaltata (L.) Schott.)

कैलान्थस फेरिनोसा

ओड़ोन्टोसोरिया काईनेनसिस

(Cheilanthes farinosa (Forssk) Kaulf)

(Odontosoria chinensis (L.) J.Smith)

कैलान्थस हिरटा

ओलिएंड्रा म्यूसीफोलिया

(Cheilanthes hirta Sw.)

(Oleandra musifolia (BI.) C.Presl.)

ओलिएंड्रा वालीची

टेरिस क्रेटीका

(Oleandra wallichii (Hook) C.Presl.)

(Pteris cretica L.)

ओनिचियम जेपोनिकम

टेरिस वीटाटा

(Onychium japonicum (Thunb.) Kunze)

(Pteris vittata L.)

ओनिचियम सिलिकुलोसम

साल्वीनिया मोलेस्टा

(Onychium siliculosum (Desv.) C.Chr)

(Salvinia molesta Mitch)

ओफिओडेर्मा पेंडुला

सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस

(Ophioderma pendula (L.) C. Presl.)

(Selaginella bryopeteris (L.) Baker)

ओफिओगलोसम पिटियोलेट्म

सिलेजिनेला डेलीकटुला

(Ophioglossum petiolatum Hook.)

(Selaginella delicatula (Desv.exPoir.) Alston)

ओफिओगलोस्म रेटीकुलेट्म

सिलेजिनैला इनवोलवेंस

(Ophioglossum reticulatum L.)

(Selaginella involvens Sw. Spring

ओसमुंडा क्लेटोनियाना

स्फिनोमेरिस काईनेनसिस

(Osmunda claytoniana L.)

(Sphenomeris chinensis (L.) Maxon)

ओसमुंडा रेगलिस

स्टेनोक्लाइना पेलुस्ट्रिस

(Osmunda regalis L.)

(Stenochlaena palustris (Burm. f.) Bedd.)

पाइलिया कैलोमेलानोस

टेक्टेरिया मेकरोडेन्टा

(Pellaea calomelanos (Sw.) Link)

(Tectaria macrodenta (Fee) C.Chr.)

फ़्लीबोडियम ऑरियम

थेलिप्टेरिस अरिडा

(Phelbodium aureum (L.) J.Sm.)

(Thelypteris arida (D.Don)C.V.Morton)

पोलिस्टिचम लेंट्म

थेलिप्टेरिस प्रोकेरा

(Polystichum lentum (D.Don) T.Moore))

(Thelypteris procera (D.Don) Fras-Jenk.)

पोलिस्टिचम स्क्यूरोसम

ट्रिगनोस्पोरा कोड़ीपिन्ना

(Polystichum squirrosum (D.Don) Fee)

(Trignospora caudipinna (ching) Sledge)

टेरीडियम एक्विलिनियम

विटेरिया एलोंगाटा

(Pteridium aquilimum (L.) Kuhn)

(Vittaria elongate Sw.)

 

संदर्भ


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सम्पर्क


प्रियंका शर्मा, अलका कुमारी एवं बृजलाल, Priyanka Sharma, Alka Kumari & Brijlal
उच्च तुंगता जीव विज्ञान एवं पादप संरक्षण विभाग, सीएसआईआर-हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर 176061 (हि.प्र.), Department of High Altitude Biology and Plant ConservationCSIR-Institute of Himalayan Bioresource Technology, Palampur 176061 (H.P.)


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