परमाणु कचरे को ठिकाने लगाने की चुनौती

अभी दुनिया भर के बहुत से देशों में परमाणु कचरा संयंत्रों के पास ही गहराई में पानी के पूल में जमा किया जाता है। इसके बाद भी कचरे से भरे कंटेनर्स की सुरक्षा बड़ी चुनौती होती है। परमाणु कचरे से उत्पन्न विकिरण हजारों वर्ष तक समाप्त नहीं होता। विकिरण से मनुष्य की सेहत और पर्यावरण पर पड़ने वाले घातक परिणाम भी सामने आ रहे हैं। परमाणु उर्जा का लंबा इतिहास रखने वाले कई विकसित देशों में भी इस कचरे को स्थायी रूप से ठिकाने लगाने की तैयारियाँ चल रही हैं, प्रयोग चल रहे हैं। बीच में एक विचार यह भी आया था कि इस कचरे को अंतरिक्ष में रखा जाए लेकिन मामला बेहद ख़र्चीला व जोखिम भरा होने के कारण वह विचार त्याग दिया गया।। परमाणु ऊर्जा के पक्ष-विपक्ष में तमाम तरह की चर्चाओं के बीच ब्रिटेन से खबर आई है जो भारतीय संदर्भ में निश्चय ही अत्यंत प्रासंगिक है। खबर के मुताबिक ब्रिटेन में परमाणु कचरे को साफ करने में 100 बिलियन, पौंड जैसी भारी-भरकम राशि खर्च होगी। इससे भी बड़ी बात यह कि इस काम को अंजाम तक पहुंचाने में 120 साल लगेंगे। वहां के विशेषज्ञों ने परमाणु कचरे को ठिकाने लगाने और इसकी सुरक्षा को लेकर भी चिंता व्यक्त की है।

ब्रिटेन में वर्ष 2005 में जब नेशनल डिकमिशनिंग अथॉरिटी (एनडीए) ने परमाणु कचरे के निस्तारण के तौर-तरीकों पर काम करना शुरू किया था तब अनुमान लगाया जा रहा था कि इस काम पर 56 बिलियन पौंड का ख़र्चा आएगा लेकिन अब एनडीए के मुख्य कार्यकारी जॉन क्लार्क का यह कहना कि इस काम में बड़ी राशि और लंबा समय लगेगा, परमाणु कचरे से निपटने में आ रही चुनौतियों को तो बयान करता ही है साथ ही यह भी स्पष्ट करता है कि ऊर्जा के इस विकल्प को लेकर देश-दुनिया में जिस तरह की उत्साहजनक बातें की जा रही हैं या जो तस्वीर दिखाई जा रही है वह उतनी सहज, आकर्षक और जोखिम से जुदा नहीं है। यहां एक सवाल स्वाभाविक रूप से उठता है कि जब ब्रिटेन जैसे विकसित मुल्क को परमाणु कचरे को ‘दफ्न’ करने में इतना समय और पैसा लगेगा तो हमारी स्थिति क्या है, हम इस मामले में कितने दक्ष हैं और परमाणु कचरे के निस्तारण से जुड़े स्वास्थ्य और पर्यावरणीय ख़तरों से निपटने को लेकर हमारी क्या तैयारी है? यह सवाल इसलिए भी मौजू है क्योंकि अभी अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देशों में भी परमाणु कचरे को निपटाने की जोखिम रहित स्थायी व्यवस्था पर खोजबीन ही चल रही है और वर्तमान में ऐसे तरीके ही अपनाए जा रहे हैं जो न केवल अस्थाई हैं बल्कि विकिरण के दुष्प्रभावों से मुक्त भी नहीं हैं। इस मामले में भारत भी अपवाद नहीं है।

जहां तक अपने देश का सवाल है एक सुसंगत विकल्प के रूप में परमाणु ऊर्जा की बातें हमारे यहां भी लंबे समय से की जाती रही हैं। भारत का अच्छा खासा, विस्तार पाता और बड़े पैमाने पर स्वायत्त परमाणु कार्यक्रम भी है। थर्मल, हाईड्रो और अक्षय ऊर्जा के बाद परमाणु ऊर्जा ही बिजली का चौथा बड़ा स्रोत है। वर्तमान में देश में 19 परमाणु ऊर्जा संयंत्र कार्यरत हैं जिनसे 4,560 मेगावाट ऊर्जा का उत्पादन होता है। चार और परमाणु संयंत्र पाइपलाइन में हैं। उम्मीद की जा रही है कि इनसे भविष्य में 2,720 मेगावाट बिजली का उत्पादन संभव हो पाएगा। चूंकि देश में बिजली की मांग लगातार बढ़ रही है और परमाणु ऊर्जा को एक किफायती विकल्प बताया जा रहा है इसलिए इस दिशा में तेजी से काम भी चल रहा है। भारत परमाणु तकनीक के मामले में विश्व का अग्रणी देश बनने का इरादा रखता है क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि हमें फास्ट रिएक्टर और थोरियम ईंधन साइकिल में विशेषज्ञता हासिल है।

परमाणु कचरे को निपटाने की चुनौतीपरमाणु कचरे को निपटाने की चुनौतीबहरहाल, इन वैज्ञानिक और तकनीकी गहराइयों को अगर एक तरफ रख दें और देश-दुनिया के वर्तमान परिदृश्य और अनुभवों को ध्यान में रखते हुए विचार करें तो हम पाते हैं कि कुछ ऊर्जा विशेषज्ञ या पर्यावरण पंडित परमाणु कचरे को ठिकाने लगाने में आ रही जिन चुनौतियों और ख़तरों के प्रति आगाह कर रहे हैं, वे निराधार नहीं हैं। पहली बात तो यही है कि अब तक हर जगह परमाणु कचरे को अस्थाई रूप से ही डंप किया जा रहा है। जानकारों का तर्क है कि जब यह बात साफ है कि परमाणु कचरा जन और जीवों के जीवन के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी एक बड़ा खतरा है तो फिर इस दिशा में आगे बढ़ा ही क्यों जा रहा है। दूसरे, जब तक इस कचरे के निस्तारण की स्थाई व्यवस्था नहीं हो जाती तो इस विकल्प को अपनाने का औचित्य ही क्या है। इस कचरे को ठिकाने लगाने का सौदा इससे मिलने वाली ऊर्जा से कहीं ज्यादा महंगा और जोखिम भरा है और सबसे बड़ी बात कि अब तक इस समस्या का कोई स्थाई हल किसी के पास नहीं है। देश के कई विशेषज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद् ऐसी ही कई और वजहों से परमाणु ऊर्जा को व्यवहार्य विकल्प मानने को तैयार नहीं हैं। जहां तक अपने देश का प्रश्न है हमारे यहां परमाणु ऊर्जा की व्यावहारिकता पर बड़े पैमाने पर चर्चा नहीं हुई है। उसकी एक वजह यह है कि नागरिक जीवन में परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल का हमारे यहां लंबा इतिहास नहीं है। शासकीय गोपनीयता अधिनियम के चलते इस बारे में बहुतायत में जानकारी का भी अभाव है। संभवतः इसीलिए विशेषज्ञों की यह दलील दमदार लगती है कि इस पूरे प्रकरण में पारदर्शिता का अभाव है और परमाणु ऊर्जा के बहुत से आयामों पर स्थिति स्पष्ट नहीं है। जैसे उसका उत्पादन, भंडारण, परमाणु कचरे की सुरक्षा, डंपिंग की व्यवस्था और इसकी लागत इत्यादि।

अभी दुनिया भर के बहुत से देशों में यह कचरा संयंत्र के पास ही गहराई में पानी के पूल में जमा किया जाता है। इसके बाद भी कचरे से भरे कंटेनर्स की सुरक्षा बड़ी चुनौती होती है। परमाणु कचरे से उत्पन्न विकिरण हजारों वर्ष तक समाप्त नहीं होता। विकिरण से सेहत और पर्यावरण पर पड़ने वाले घातक परिणाम भी सामने आ रहे हैं। परमाणु ऊर्जा का लंबा इतिहास रखने वाले कई विकसित देशों में भी इस कचरे को स्थाई रूप से ठिकाने लगाने की तैयारियाँ चल रही हैं, प्रयोग चल रहे हैं।

बीच में यह विचार भी आया कि इस कचरे को अंतरिक्ष में रखा जाए लेकिन मामला बेहद ख़र्चीला व जोखिम भरा होने के कारण वह विचार त्याग दिया गया। अमेरिका में यह परमाणु कचरा बहुत समय तक यका पर्वत की गहराइयों में दबाया जाता रहा है लेकिन 16 अरब डॉलर खर्च करने के बाद भी यह परियोजना फेल हो गई लिहाजा अब दूसरी जगहें तलाशी जा रही है। ब्रिटेन में परमाणु कचरे को पुनः संसाधित किया जाता रहा है लेकिन अब वहां भी इस कचरे को ठिकाने लगाने के लिए जमीन के नीचे ही स्थाई रास्ते खोजे जा रहे हैं। फ्रांस में स्थाई भंडारण के लिए कई जगहों पर तलाश की गई है। जर्मनी में एक लंबे समय तक परमाणु कचरे को रीप्रोसेस किया जाता रहा। फिर इस कचरे को छिपाने के लिए नमक के गुम्बदों का सहारा भी लिया गया लेकिन अब अंततः ज़मीन के नीचे स्थाई गोदाम बनाने पर काम चल रहा है। माना जा रहा है कि इस भूगर्भीय कोष में सन् 2025 से काम शुरू हो जाएगा। इसी तरह स्पेन, कनाडा, स्वीडन, फिनलैंड और दक्षिण कोरिया में भी परमाणु कचरे को सीधे ज़मीन के नीचे दफ्न करने की तैयारियाँ जोरों पर चल रही हैं।

परमाणु कचरा पर्यावरण और मानव जीवन के लिए खतरा हैपरमाणु कचरा पर्यावरण और मानव जीवन के लिए खतरा हैभारत में भी अपने महत्वाकांक्षी परमाणु कार्यक्रम के मद्देनजर ज़मीन की सतह से 1 किलोमीटर नीचे अपना पहला भूमिगत कोष बनाने की दिशा में बढ़ रहा है। इसकी ख़ातिर आवश्यक तकनीक विकसित करने के लिए एक प्रयोगशाला स्थापित करने की भी तैयारी है। भारत का यह लक्ष्य कि सन् 2050 तक परमाणु ऊर्जा से 25 प्रतिशत बिजली की आपूर्ति की जाए अपने जगह है लेकिन उससे पहले उन तमाम चुनौतियों और समस्याओं का निदान करने की आवश्यकता है जिसके बारे में आगाह किया जा रहा है।

बेहतर तो यही होगा कि परमाणु ऊर्जा से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर देशव्यापी स्तर पर चर्चा हो। इसके साथ ही इस पूरे मामले को पारदर्शी बनाने की भी दरकार है भले ही इसके लिए जानकारी से जुड़े विधानों में संशोधन करना पड़े। हम परमाणु ऊर्जा के मामले में कहां तक दक्ष हैं और कितने क्षमतावान हैं यह बात तो साबित होती रहेगी लेकिन अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए न तो किसी जोखिम भरे रास्ते पर चला जा सकता और न ही स्वास्थ्य और पर्यावरण की उपेक्षा की जा सकती।

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