परमाणु कबाड़ आयात के खतरे

भोपाल (हेडलाईन) जापान के फुकुशिमा में आये भयंकर भूकम्प के कारण वहां स्थित परमाणु बिजली संयंत्रों से हुए आणविक रिसाब की त्रासदी से पूरी दुनिया दहल गई और परमाणु ऊर्जा और परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्रों में आपदाओं को निमंत्रण देने वाली परमाणु परियोजनाओं के बारे में पुर्नविचार की प्रक्रिया तेजी से शुरू हुई। इससे पहले भी रूस में हुए परमाणु संयंत्रों में रिसाब की घटना के बाद रूस ने परमाणु ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने पर रोक लगाकर दुनिया को यह संदेश देने की कोशिश की थी कि विकास के लिए विनाशकारी उपायों से बचा जाना चाहिए।

विकास के लिए ऊर्जा की अनिवार्य आवश्यकता का व्यवसायिक लाभ संपन्न देशों की चन्द बड़ी कम्पनियों ने उठाया और अमेरिका, रूस, जापान, फ्रांस, जर्मनी जैसे देशों में परमाणु ऊर्जा के उत्पादन और उपयोग को बढ़ावा दिया। लेकिन अब दुनिया में परमाणु ऊर्जा के खतरे से आम इंसान भी सजग हो गया है। जापान में भूकम्प के कारण फुकुशिमा में हुए परमाणु रिसाब के खतरे और दुष्प्रभाव अभी जारी है और कब तक जारी रहेंगे, इस बारे में विशेषज्ञ भी कुछ बता पाने में असमर्थ है। जापान की घटना के बाद अमेरिका, रूस आदि परमाणु शक्ति संपन्न देशों ने परमाणु ऊर्जा के उपयोग में कमी लाने पर गंभीरता से विचार मंथन शुरू कर दिया है। इन देशों ने पुराने परमाणु संयंत्र बंद करने और नये संयंत्र नहीं लगाने का फैसला ले लिया है। पुराने परमाणु संयंत्रों को बंद करने और चालू संयंत्रों के रख रखाब को निर्दोष बनाने की योजना पर अमेरिका रूस, जापान, फ्रांस, जर्मनी जैसे देशों में गंभीरता से काम शुरू हो गया है। लेकिन दूसरी ओर भारत जैसे विकासशील देश में बिजली संकट को दूर करने के लिए परमाणु ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने की नई प्रक्रिया पूरे उत्साह के साथ शुरू की जा रही है।

हाल ही प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने सोबियत संघ के विखण्डन के बाद अलग हुए राष्ट्र कजाकस्थान से भारी मात्रा में यूरेनियम आयात करने और परमाणु संयंत्रों के लिए उपकरण आयात करने का समझौता किया है। समझौते के बाद हम भारतवासियों को यह बताया जा रहा हैं कि यह समझौता राष्ट्रीय विकास को गति देने वाला और राष्ट्रहित में जरूरी था। जबकि हकीकत यह है कि कजाकस्थान अब परमाणु ऊर्जा के उपयोग को कम करना चाहता हैं और उसके यहां बेकार पड़े यूरेनियम भण्डार को ठिकाने लगाना चाहता है। भारत उसके लिए एक अच्छा बाजार साबित हुआ है।

हमारे देश में बिजली, विकास से कहीं ज्यादा राजनीति का मुद्‌दा है। मध्यप्रदेश जैसे कई राज्यों में बिजली संकट ने सरकारें बदल दी, लेकिन बिजली संकट दूर नहीं हुआ है। आज पूरे भारत में 15 से 20 हजार मेगावाट तक की बिजली की कमी है और राजधानी दिल्ली, राजधानी परियोजना क्षेत्र, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई जैसे महानगर भी बिजली संकट से जूझ रहे है। गांव में तो हालत इतनी बूरी हैं कि बिजली आने जाने का कोई समय ही नहीं है। बिजली संकट से कृषि और औ़द्योगिक उत्पादन पर बुरा असर पड़ रहा है, तो शहरों में सुविधाभोगी नागरिकों का दैनिक जीवन भी कष्टकर हो रहा है। ऐसे में बिजली संकट दूर करने के लिए परमाणु बिजली घर लगाने की नई योजना पर हमारी सरकार ने अमल करना शुरू किया है। भाजपा शासित मध्यप्रदेश राज्य में मण्डला और शिवपुरी जैसे दो पिछड़े जिलों में भारत सरकार ने परमाणु बिजली घर लगाने की पेशकश , तो मध्यप्रदेश सरकार ने ख़ुशी-ख़ुशी इसे मंजूर कर लिया। इसी तरह महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा जैसे राज्यों में भी परमाणु बिजली घर लगाने का विचार चल रहा है।

जानकारों का मानना हैं कि हमारे देश में प्राकृतिक संसाधनों से बिजली की कमी दूर करने की अपार संभावनाएं है। सौर ऊर्जा, वायु ऊर्जा, मरूभूमि और समुद्री लहरों से प्राप्त होने वाली ऊर्जा तथा बारहमासी नदियों से बनने वाली जल विद्युत उत्पादन की अपार संभावनाएं है। लेकिन सरकार बिजली बनाने का आसान और महंगा तरीका पसंद करती है। इसीलिए सरकार ने आसान और सस्ते देशी संसाधनों को छोड़, परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा देने की योजना बनाई हैं, लेकिन परमाणु ऊर्जा कल्पनातीत आपदाओं को आमंत्रण देने वाली एक मुसीबत हैं तथा प्रबंधन की दृष्टि से त्याज्य है। इस पर गंभीरता से और ईमानदारी से विचार करने की आवश्यकता है।
 

Path Alias

/articles/paramaanau-kabaada-ayaata-kae-khatarae

Post By: Hindi
×