प्रकृति की अनोखी प्रयोगशाला

हमारे आस-पास मौजूद हर वस्तु पर्यावरण का हिस्सा है और इस पर्यावरण को बनाने में प्रकृति की अहम भूमिका रही है। विज्ञान प्रसार द्वारा प्रकाशित पुस्तक प्रकृति की प्रयोगशाला नामक प्रकृति की इसी अहम भूमिका को समझाने का प्रयास करती है। इस पुस्तक के अनुसार प्रकृति मानव को सीखने हेतु परिवेश प्रदान करती है। प्रकृति मानव की सभी सृजनात्मक अनुभूतियों के लिए मंच प्रदान करती है। गहन विचारों को छोड़ दें तो बच्चों के लिए प्रकृति एक आनंद का स्रोत बन जाती है। यह उन्हें एक जाना-पहचाना परिवेश प्रदान करती है जिसके साथ वे सरलता से एक रूप हो जाते हैं। वे प्रकृति के अवयवों से विभिन्न प्रकार के संबंध स्थापित कर लेते हैं तथा इसी प्रक्रिया में वे प्रकृति का एक अभिन्न अंग बन जाते हैं। इस पुस्तक में बच्चों के लिए कुछ चुनी हुई प्रायोगिक गतिविधियों को रोचक तरीके से प्रस्तुत किया गया है। इन गतिविधियों को स्वतंत्र रूप से किसी भी क्रम के बिना, अपेक्षाकृत कम समय में संपन्न किया जा सकता है।

इस पुस्तक में बताया गया है कि प्रकृति ने पूरे ग्रह को जैव विविधता से भर दिया, जिससे अलग-अलग जलवायु में भी जीवन चलता रहे और सब जीवों को खाद्य सुरक्षा भी मिले। परन्तु आज प्रकृति से हमारी दूरी बढ़ती जा रही है। इसी दूरी को कम करने के लिए और प्रकृति के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए विज्ञान प्रसार ने हमारे आस-पास की कुछ साधारण गतिविधियों को शृंखलाबद्ध तरीके से आम पाठकों के लिए कागज पर उतार कर उन्हें इस पुस्तक का रूप दिया है। इस पुस्तक को ‘‘खुद करके देखो और सीखो’’ जैसे विचार के आधार पर तैयार किया गया था। पुस्तक में दी गई अधिकतर गतिविधियां पेड़-पौधों, छोटे प्राणियों, कीटों व मिट्टी आदि से संबंधित है। पुस्तक में बच्चों से पक्षियों, उनके अण्डों व घोसलों व उनके क्रियाकलापों के निहारने एवं उनका सूक्ष्म अवलोकन करने की बात की गई है। विभिन्न पेड़ों और उन पर रहने वाले जीवों का अवलोकन का संदेश देती यह पुस्तक पेड़-पौधों व विभिन्न जीवों के प्रति स्नेहमयी संबंध स्थापित करने की प्रेरणा देती है। प्रकृति भ्रमण के महत्व को दर्शाती यह पुस्तक प्रकृति के विभिन्न रंगों की ओर ध्यान आकर्षित कराती है। बच्चे इस पुस्तक का सीधे उपयोग कर सकते हैं। इस पुस्तक के माध्यम से लेखकद्वय श्री निखिल मोहन पटनाइक एवं सुश्री पुष्पाश्री पटनाइक, ने अपने जीवन के प्रकृति से जुड़े अनुभवों को सरल एवं निष्पक्ष रूप से कलमबद्ध किया है। लेखन के अनुसार इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य प्रकृति के प्रति जनसाधारण को अपना उत्तरदायित्व निभाने के लिए प्रेरित करना है। वास्तव में रोचक एवं सरल भाषा में लिखी गई यह पुस्तक अपने इस उद्देश्य में जरूर कामयाब होगी।

लेखकः श्री निखिल मोहन पटनाइक एवं सुश्री पुष्पाश्री पटनाइक
हिन्दी अनुवाद एव संपादनः श्री बी.के.त्यागी, डा. अनुराग शर्मा एवं नवनीत कुमार गुप्ता
प्रकाशकः विज्ञान प्रसार, ए-50, संस्थानिक क्षेत्र, सेक्टर-62, नोयडा, उत्तर प्रदेश, मूल्यः 85 रुपए

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