अन्तरिक्ष में जहाँ गुरुत्वाकर्षण नगण्य होता है वहाँ यदि दूध छलकता है तो वो गोलाकार आकृति धारण कर लेता है ताकि उसका क्षेत्रफल कम-से-कम हो सके। इसके कारण वह वहीं घूमता रहता है और नीचे भी नहीं आ पाता है। एक छोटा कीट गुरुत्व से भयमुक्त होकर हवा में छलांग लगा सकता है और बिना किसी परेशानी के छत पर भी चढ़ सकता है। अलबत्ता एक बल ऐसा है जो कीट के लिये उतना ही खतरनाक होता है जितना कि गुरुत्वाकर्षण बड़े प्राणियों के लिये होता है। यूँ तो विभिन्न आकार के प्राणियों की शारीरिक बनावट में कई अन्तर दिखते हैं परन्तु यदि कोई प्रत्यक्ष अन्तर दिखता है तो वह है उनके आकार में। फिर भी जाने क्यों प्राणिशास्त्री इस बात पर कम ही ध्यान देते हैं। प्राणिशास्त्र की कई किताबों में इस बात का कोई जिक्र नहीं मिलता कि क्यों चील पक्षी गोरैया चिड़िया से बड़ा होता है, या दरियाई घोड़ा किसी खरगोश से विशाल क्यों होता है? हालांकि कहीं-कहीं पर कुछ अस्पष्ट-सी तुलना चूहे और विशाल ह्वेल के आकार के बारे में की जाती है। परन्तु आपको यह जानकर शायद आश्चर्य होगा कि विज्ञान के सरल नियमों से यह दिखाना बहुत आसान है कि क्यों समुद्र में पाई जाने वाली हिलसा मछली एक दरियाई घोड़े के जितनी बड़ी नहीं हो सकती या एक ह्वेल, हिलसा मछली के जितनी छोटी नहीं हो सकती (हाथी एक ह्वेल के बराबर विशाल नहीं हो सकता या एक चींटी हाथी के आकार की नहीं हो सकती)। जानवर की हरेक बनावट के लिये एक सर्वाधिक स्थायी और सुविधाजनक आकार होता है। दूसरे शब्दों में, आकार में बड़ा अन्तर लाने के लिये बनावट में भी परिवर्तन लाना जरूरी हो जाता है। सामान्यतः बड़ी वस्तुएँ छोटी वस्तुओं से मेल नहीं खातीं। परन्तु ऐसा क्यों?
इस लेख में हम प्रकृति की अपार विविधताओं को विज्ञान के सरल नियमों से समझने की कोशिश करेंगे।
एक सरल मापांक जिसे हम अपने दैनिक जीवन में उपयोगी पाते हैं, वह है- BMI अर्थात Body Mass Index (शरीर द्रव्यमान सूचकांक)। BMI शरीर में द्रव्यमान और ऊँचाई के सन्तुलन को इंगित करता है। गणितीय रूप मे: BMI = द्रव्यमान (किग्रा)/लम्बाई2 (मीटर2)। एक स्वस्थ व्यक्ति का BMI 20-24 के मध्य होना चाहिए। उदाहरण के तौर पर यदि आपका वजन 70 किलोग्राम तथा लम्बाई 1.8 मीटर है तो आपका BMI लगभग 23 होगा जो कि स्वस्थ होने को इंगित करता है। 25 से अधिक BMI वालों को अपना वजन कम करने की आवश्यकता है तथा 20 से कम BMI वालों को अपने शरीर का वजन बढ़ाने की आवश्यकता है। हालांकि आज-कल कम BMI का प्रचलन बढ़ गया है। फैशन एवं फिल्म उद्योग में एक बहुत प्रचलित शब्द है- साइज जीरो। 18 BMI से कम वाले व्यक्ति को साइज जीरो शरीर वाला मानते हैं। चिकित्सीय रूप से तो वह व्यक्ति स्वस्थ नहीं माना जाएगा, पर ग्लैमर की दुनिया में वह खूबसूरती का एक पैमाना जरूर बन गया है। वर्तमान में भी इसके कई उदाहरण मौजूद हैं जैसे फिल्मी दुनिया को ही देख लीजिए। आपको कई अभिनेत्रियाँ साइज जीरो की दिख जाएँगी।
एक और सरल नियम जिससे प्रकृति की बहुत सारी विविधताओं को समझा जा सकता है वह है क्षेत्रफल-आयतन नियम। इसे संक्षेप में s/v (surface area/volume) भी कहते हैं। किसी आकार को छोटा या बड़ा करने पर उसके आयतन व क्षेत्रफल एक अनुपात में परिवर्तित नहीं होते। उदाहरणस्वरूप एक घनाकार वस्तु को लेते हैं जिसकी प्रत्येक भुजा की लम्बाई ‘a’ है। इसका क्षेत्रफल 6a2 तथा आयतन a3 हुआ। अब यदि घन की लम्बाई हर दिशा में दोगुनी कर दी जाये तो उसका क्षेत्रफल 24a2 तथा आयतन 8a3 हो जाएगा। हम देख सकते हैं कि आयतन में तो आठ गुना वृद्धि हुई जबकि क्षेत्रफल में केवल चार गुना। बड़े घन के लिये क्षेत्रफल-आयतन अनुपात छोटे घन की तुलना में आधा है। अतः जैसे-जैसे हम किसी वस्तु को छोटा करते जाएँगे उसके s/v अनुपात में वृद्धि होती जाएगी। सरल भाषा में कहें तो छोटी वस्तु का पृष्ठीय क्षेत्रफल उसी आकार की बड़ी वस्तु से तुलनात्मक रूप से अधिक होता है।
प्रकृति भी इस बात को बखूबी जानती है कि क्षेत्रफल अधिक या कम होने से क्या-क्या लाभ या हानि हो सकते हैं। पेड़ों को ही देख लीजिए। उनमें पत्तियाँ अधिक होती हैं जिससे उनका पृष्ठीय क्षेत्रफल बढ़ जाये और वह ज्यादा-से-ज्यादा प्रकाश संश्लेषण कर सकें। वहीं दूसरी ओर मरुस्थलीय क्षेत्रों में उगने वाले पौधे जैसे की कैक्टस इत्यादि अपने क्षेत्रफल को कम रखने का प्रयास करते हैं क्योंकि अधिक क्षेत्रफल होने से वाष्पीकरण भी अधिक होता है। उनके तने ही प्रकाश संश्लेषण का कार्य करते हैं। हमारे शरीर में फेफड़े इसका ही एक और उदाहरण है। फेफड़ों में त्वचा एक गुच्छे के रूप में रहती है जिससे उसका वास्तविक क्षेत्रफल सैकड़ों वर्गमीटर तक बढ़ जाता है। यदि एक वयस्क शरीर के फेफड़ों को किसी समतल पर फैलाया जाये तो वह एक टेनिस कोर्ट के बराबर होगा। जितना अधिक क्षेत्रफल उतना ही अधिक ऑक्सीजन के अवशोषण की क्षमता। इसी तरह आँत एक कुंडली के समान रहती है और उसके अन्दर की तरफ बहुत सी छोटी-छोटी नालियों के समान संरचनाएँ निकली रहती हैं, जिन्हें रसान्गुल कहते हैं। जिससे आँतों का पृष्ठीय क्षेत्रफल कई गुना तक बढ़ जाता है। इस तरह से हमारे शरीर में भोजन से पोषक तत्वों को अवशोषित करने की क्षमता बढ़ जाती है जैसे कि रेशेदार तौलिए के रोएँ हमारे शरीर से पानी सोखते हैं। एक मनुष्य की आँतों की लम्बाई उनकी शरीर की लम्बाई से 10 गुना अधिक होती है। दैनिक जीवन में भी इसका कम महत्त्व नहीं है। एक बाटी या लिट्टी को पकाने में जितना समय लगता है उससे कहीं बहुत कम समय उसी द्रव्यमान की चपाती को पकाने में लगता है। चपाती के चपटे गोल आकार के कारण इसकी ऊष्मा अवशोषण करने की क्षमता बढ़ जाती है और वह पूर्णतः जल्दी पक जाती है। गोबर से कंडे बनाते हुए उसका पृष्ठीय क्षेत्रफल बढ़ाने के लिये चपटा किया जाता है जिससे उसको धूप में जल्दी से सुखाया जा सके। सतह क्षेत्रफल ज्यादा होने से वस्तु ज्यादा अभिक्रियाशील भी हो जाती है क्योंकि अब क्रिया करने के लिये अधिक क्षेत्रफल उपलब्ध रहता है। इसीलिये आयुर्वेदिक दवाइयों को महीन पीसकर खिलाया जाता है। लकड़ी का एक बड़ा लट्ठा जहाँ रात भर जलता रहता है, वहीं दूसरी ओर यदि उसके खपच्चियाँ बनाकर जलाया जाये तो वे शीघ्र ही जल जाएँगी। ठंड में जानवर अपने आप को गोलाकार बनाकर झुण्ड में सोते हैं जिससे उनका क्षेत्रफल कम हो और ऊष्मा का क्षय भी कम हो। ये सभी क्षेत्रफल-आयतन अनुपात के उदाहरण हैं।
![छोटी आँत एवं फेफड़ा](https://farm5.staticflickr.com/4313/35670220690_9d27df6594_z.jpg)
![विशालकाय राक्षस की तस्वीर](https://farm5.staticflickr.com/4322/36018349856_9f54ca168d_z.jpg)
गुरुत्वाकर्षण विशालकाय प्राणियों जैसे की दैत्यों, हाथियों या डायनासोर के लिये तो एक समस्या है परन्तु चूहे या मक्खी जैसे छोटे कीट के लिये यह कोई समस्या नहीं खड़ी करती। खदानों में एक छोटी चुहिया 50 मीटर यानी कि 10 मंजिल से भी ज्यादा ऊँची इमारत से गिरने पर भी जिन्दा बच जाती है। थोड़े बड़े आकार का कोई प्राणी गिरने पर जरूर मर जाएगा और मनुष्यों के तो अस्थि पंजर ही अलग-अलग हो जाएँगे। एक घोड़े का हाल तो उससे भी बुरा हो सकता है। कहने का अर्थ यह है कि आकार जितना बढ़ता जाएगा, उसके बचने की सम्भावना उतनी कम होती जाएगी। जब कोई वस्तु नीचे गिरती है तो उस पर हवा का प्रतिरोधक बल तथा पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल कार्य करता है। प्रतिरोधक बल वस्तु के क्षेत्रफल के समानुपाती (L2) तथा गुरुत्वाकर्षण बल वस्तु के वजन (L3) के समानुपाती होता है। अब यदि वस्तु का आकार दस गुना कम कर दें तो उसका वजन तो हजार गुना कम हो जाएगा परन्तु प्रतिरोधक बल केवल सौ गुना। यह नीचे गिराने में सहायक बल से अपेक्षाकृत दस गुना ज्यादा है। अतः प्राणी जितना छोटा होगा उसके नीचे गिरने पर बचने की सम्भावना उतनी ही ज्यादा होगी।
![एक चुहिया ऊँची इमारत से गिरने पर भी बच जाती है, लेकिन क्या मनुष्य बच सकेगा](https://farm5.staticflickr.com/4292/35670220280_84551e6932_z.jpg)
माखी गुड़ में गड़ी रहे पंख रहे लपटाए, हाथ मले और सिर धुने लालच बुरी बलाए।।
एक कीट को पानी के पास जाने में वैसा ही खतरा है जैसा कि हमारे किसी ऊँचे पहाड़ पर चढ़ने से- एक पैर फिसला और बचने की सम्भावना बहुत कम। इसलिये एक कीट का पानी से दूर रहना ही बेहतर है। पानी पर चलने वाले कीट अपने आपको पानी से गीला नहीं होने देते और अपने लम्बे पैरों की सहायता से पानी की सतह के ऊपर से ही चलते हैं।
![द्रव्य पदार्थों से कीड़े हमेशा डरते हैं](https://farm5.staticflickr.com/4325/36018349486_15cb200b18_z.jpg)
अब आपको बड़े आकार के लाभ के बारे में भी बता देते हैं। सबसे स्पष्ट यदि कोई लाभ है तो वह है अपने शरीर को गर्म रखने की क्षमता। हाथी, घोड़े, मनुष्य इत्यादि स्तनपायी जानवर गर्म खून (warm blooded animals) वाले प्राणी हैं। दूसरे शब्दों में, हम सभी उपापचय के दौरान गर्मी पैदा करते हैं। उपापचय हमारे भोजन की मात्रा पर निर्भर करता है। जैसा कि बताया गया है कि वस्तु से ऊष्मा का क्षय उसके पृष्ठ क्षेत्रफल के समानुपाती होता है। चाहे एक छोटा चूहा हो या मनुष्य, सभी के प्रति इकाई क्षेत्रफल से एक समान ऊष्मा का क्षय होता है, जिसके कारण सभी को गर्म रहने के लिये भोजन की मात्रा उनके शरीर के क्षेत्रफल के समानुपाती होनी चाहिए ना कि वजन के। एक चूहा अपने वजन का लगभग एक चौथाई खाना प्रतिदिन खा जाता है जो कि मुख्यतः उसके शरीर को गर्म रखने में प्रयुक्त होता है। वहीं मनुष्य आहार में रोज औसतन अपने वजन का 50वाँ हिस्सा लेता है। जैसे-जैसे गर्म खून वाले प्राणी का आकार छोटा होता जाता है, उनका पृष्ठीय क्षेत्रफल आनुपातिक रूप में बढ़ता जाता है और इसीलिये उनके खाने की मात्रा भी। उदाहरण के लिये सबसे छोटे पक्षी शकरखोरा (Humming bird) को अपने शरीर को गर्म रखने के लिये हर 4 घंटे में कुछ खाना पड़ता है। उसका भोजन भी पराग कण होता है जो कि बहुत समृद्ध आहार है। ठंडे प्रदेशों में न तो सरीसृप प्राणी (जिनमें अपने शरीर को गर्म रखने की क्षमता नहीं होती) पाये जाते हैं, न ही बहुत छोटे आकार के स्तनपायी। सबसे छोटा स्तनपायी जानवर जो कि आर्कटिक पर पाया जाता है वह है ध्रुवीय लोमड़ी। बहुत छोटे जानवर अपने शरीर को गर्म रखने के लिये पर्याप्त मात्रा में खा भी नहीं पाएँगे।
![प्रत्येक जानवर एवं पक्षी को अपने भार एवं लम्बाई के अनुसार खाना पड़ता है](https://farm5.staticflickr.com/4295/35670219980_fd34fcfb81_z.jpg)
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