प्रकृति ही भगवान है  

कविता मिश्रा 
कविता मिश्रा 

हम भगवान को प्रकृति में,जानवरों में, पक्षियों में और पर्यावरण में देख सकते हैं। अगर आप प्रकृति में गहराई से देखना शुरू करेंगे तो आपको समझ आएगा कि सब कुछ कितना खूबसूरत है । अगर हमें पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार लाना है, तो केवल एक ही तरीका है, 'सबको शामिल करना"यर कहना है गुजरात के अंकलेश्वर की जागृति मनीषा दिवेचा का पेड़ पौधों और प्रगति के लगाव अपने पिता से मिला है । 

 

जागृति का कहना है कि पहले उनका यह शौक घर में दो-चार पौधे लगाने तक सीमित था,लेकिन उसके बाद उन्होंने  बड़े स्तर पर पेड़ लगाने का काम शुरू किये।  इन पेड़ पौधों के लिए खाद भी वे रसोई घर से निकले कचरे से बनाती है। 

 

 जागृति ने अपने घर को हरीत घर भी बना रखा है । वे कहती है कि वह मंदिर के बाद एक नारियल के छिलकों को घर ले आती हूं और  इन छिलकों  से पक्षियों के लिए घोंसला बनाती हूं। इन घोसलों में पक्षियों का पूरा परिवार रहता है। जागृति का मानना है कि पेड़ होने से प्रगति खूबसूरती आपको देखने को मिलती है।

 

 एक वक्त ऐसा था जब लोग जागृति से कहते थे कि दिन भर पेड़ों में उलझे रहने से पर्यावरण में ऐसा क्या बदलाव आ जाएगा।लेकिन आज  लोग उनकी बागवानी देखकर अपने घर में भी इसकी शुरुआत कर रहे हैं ।

 

जागृति कहती है कि " धरती हमारी मां है। यदि मां बीमार है, तो बच्चा भी बीमार होगा। इसलिए धरती का ख्याल रखना हम सबकी जिम्मेदारी है।"

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Post By: Shivendra
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