1 नवंबर, 2001 को राज्य की स्थापना के 45 वर्ष पूरे हो चुके हैं। इस दौरान देश ने जहाँ विकास के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक उपलब्धियाँ हासिल कीं, वहीं यह भी कहा जा सकता है कि प्रदेश की उपलब्धियाँ उसकी क्षमताओं से कम रहीं किंतु विगत एक दशक में यह कमी काफी हद तक पूरी हुई है और मध्य प्रदेश बीमारू राज्य की सीमा से धीरे-धीरे बाहर निकल रहा है।स्वतंत्रता के 54 वर्ष बीत जाने के बाद भी भारत में ग्रामीण विकास की तस्वीर धुंधली ही नजर आती है इसका प्रमुख कारण यह है कि विकास के प्रतिमानों का निर्धारण उच्च स्तर पर किया जाता है। विगत कुछ वर्षों से इस बात को स्वीकार किया जाने लगा है कि ग्रामीणों का विकास उनकी सहभागिता पर ही निर्भर है। अतः ग्रामीण विकास की योजनाओं के निर्धारण का कार्य हो या उनके क्रियान्वयन का, वह ग्रामिणों के द्वारा ही तय किया जाए तो सफलता निश्चित ही मिलेगी अर्थात ग्रामीणों को ‘स्वयं के साधनों से स्वयं का विकास’ करने के अवसर प्रदान किए जाएँ। ग्रामीण क्षेत्र में प्रजातांत्रिक विकेंद्रीकरण के मार्ग को तेजी से अपनाया जाए। प्रजातांत्रिक विकेंद्रीकरण के मार्ग को अपनाने तथा विकास में ग्रामीणों की भागीदारी तय करने में भारत का ‘हृदय प्रदेश’ कहलाने वाला ‘मध्य प्रदेश’ राज्य अग्रणी रहा है। 1 नवंबर, 2001 को राज्य की स्थापना के 45 वर्ष पूरे हो चुके हैं। इस दौरान देश ने जहाँ विकास के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक उपलब्धियाँ हासिल कीं, वहीं यह भी कहा जा सकता है कि प्रदेश की उपलब्धियाँ उसकी क्षमताओं से कम रहीं किंतु विगत एक दशक में यह कमी काफी हद तक पूरी हुई है और मध्य प्रदेश बीमारू राज्य की सीमा से धीरे-धीरे बाहर निकल रहा है। प्रस्तुत लेख में मध्य प्रदेश में प्रजातांत्रिक व्यवस्था और संस्थाओं को कितना मजबूत किया गया है तथा ‘तंत्र’ की बजाय ‘लोक’ को कितना महत्त्व और अधिकार दिए गए हैं इस बात का खुलासा किया गया है।
मध्य प्रदेश में समुदाय की भागीदारी और प्रत्यक्ष प्रजातंत्र से जहाँ विकास को मजबूती मिली है वहीं इससे शासन व्यवस्था का नया स्वरूप उभकर सामने आया है। शासन व्यवस्था के इस नए स्वरूप ने लोगों को रोजमर्रा की जिंदगी में प्रजातांत्रिक अधिकारों का अहसास कराया है तथा राज्य का शासकीय अमला लोगों के प्रति अधिक जबावदेह बन गया है।
मध्य प्रदेश में प्रत्येक गाँव को एक स्वतंत्र इकाई के रूप में विकसित करने के प्रयास किए गए हैं। त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत 24 जनवरी, 1994 को पंचायती राज की शूरुआत हुई और लगभग 5 लाख पंच, सरपंचों ने गाँव की सत्ता में भागीदारी निभाई। वर्तमान में स्थानीय स्वशासन, जिला सरकार, ग्राम स्वराज और विभिन्न समितियों के माध्यम से लगभग 1 करोड़ से भी अधिक लोग अपने शहर, गाँव, देहात के विकास में सरकार की भूमिका निभा रहे हैं। मध्य प्रदेश में ग्रामवासियों को ‘स्वयं के साधनों से स्वयं का विकास’ करने का अवसर दिया गया है। सरकार सहयोगी की भूमिका का निर्वाह कर रही है तथा 10वें वित्त आयोग की सिफारिशों को ध्यान में रखकर पंचायतों को पर्याप्त धनराशि उपलब्ध कराई गई है। अपने क्षेत्र में निर्माण, विकास तथा विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन तथा पर्यवेक्षण आदि के व्यापक अधिकार उन्हें सौंपे गए हैं। असली सत्ता ग्रामवासियों के हाथेां में सौंपने का यह सिलसिला जारी है। मध्य प्रदेश सरकार की कई योजनाओं यथा—शिक्षा गांरटी योजना, ज्ञानदूत योजना आदि को अन्य राज्यों ने अपनाया है तथा उन्हें अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया है। समुदाय की भागीदारी से विकास का जो ‘मध्य प्रदेश मॉडल’ विकसित हुआ है उसे न केवल देश में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहना एवं मान्यता मिली है।
भारत में आजादी के बाद से ही ‘जन’ पर ‘तंत्र’ हावी रहा है। दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी, लाल फीताशाही एवं नौकरशाही के चलते ‘जन’ का विकास नहीं हो पाया है किंतु मध्य प्रदेश में ‘तंत्र’ को ‘जन’ की सहायता करने के लिए प्रोत्साहित, प्रेरित एवं निर्देशित किया गया है और राजनीति से लोकनीति का नया मार्ग प्रशस्त हुआ है। यों तो प्रदेश में प्रजातांत्रिक विकेंद्रीकरण की दिशा में कई कदम उठाए गए हैं किंतु ग्रामीण विकास की दिशा में मुख्य उपलब्धियाँ इस प्रकार रही हैं :
संवधिान के 73वें एवं 74वें संशोधन के बाद त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को देश में सबसे पहले लागू करने का गौरव मध्य प्रदेश को मिला है। इस व्यवस्था के अंतर्गत ग्रामवासियों के विकास के लिए व्यापक स्तर पर अधिकारों का हस्तांतरण किया गया है। पंचायती राज को मजबूत बनाने के लिए महात्मा गाँधी के आदर्शों एवं सिद्धांतो के अनुरूप ग्रामसभा को प्रजातंत्र की इकाई के रूप में विकसित करने के उद्देश्य से 26 जनवरी, 2001 से ग्राम स्वराज रूपी एक अभिनव प्रयोग का प्रारंभ किया गया है। इस परिकल्पना का उद्देश्य ग्रामसभा के माध्यम से लोगों को शक्ति-संपन्न बनाकर स्थानीय संसाधनों के बेहतर उपयोग से विकास को नई दिशा देना है। ग्राम स्वराज के अंतर्गत प्रत्येक गाँव में ग्रामसभा का गठन किया गया है। ग्रामसभा का काम ग्रामीण विकास की नीतियाँ बनाना एवं उन्हें क्रियान्वित करना है। इस व्यवस्था के अंतर्गत आठ समितियाँ— ग्राम विकास, सार्वजनिक संपदा, कृषि, स्वास्थ्य, ग्रामीण सुरक्षा, अधो-संरचना, शिक्षा और सामाजिक न्याय के नाम से गठित की गई है। ग्राम कोष के नाम से एक निधि प्रत्येक गाँव में बनाई जाएगी। सरपंच, उप सरपंच एवं पंच को ग्रामसभा की विभिन्न समितियों में शामिल किया गया है। चैक पर हस्ताक्षर करने का अधिकार सरपंच एवं कोषाध्यक्ष को दिया गया है। इस प्रकार ग्राम स्वराज व्यवस्था के अंतर्गत 50 लाख से भी अधिक लोग सीधे गाँव के विकास में सरकार की भूमिका निभा रहे हैं।
प्रशासन के लोगों को करीब लाने के लिए ग्राम संपर्क अभियान के रूप में अभिनव पहल की गई है। इससे प्रशासन में बैठे लोगों को ग्रामीणों की समस्याओं को समझने तथा उन्हें हल करने के लिए उपाय करने का अवसर मिलता है तथा इस कदम से प्रशासन और ग्रामीणों के बीच की खाई कम हुई है। प्रदेश में ग्राम संपर्क अभियान के माध्यम से योजनाओं के क्रियान्वयन की संबधित गाँव में ही जाकर समीक्षा की जाती है तथा देखा जाता है कि योजनाएँ कार्य रूप में परिणत हो रही हैं या केवल कागजों पर चल रही हैं। ग्रामीणों की छोटी-छोटी समस्याओं का निदान स्थल पर ही कर दिया जाता है तथा बड़ी समस्याओं के संबंध में प्रतिवेदन तैयार कर जिला प्रशासन को सौंपा जाता है। ग्राम संपर्क अभियान का उद्देश्य ग्रामीणों की समस्याओं का निदान कर उन्हें शून्य स्तर पर पहुँचाना होता है। इस अभियान के चलने से ग्रामीण क्षेत्र में तैनात शासकीय अमला (तंत्र) भी सजग होकर कार्य करता है। प्रदेश सरकार का यह एक अभिनव कदम है जिसे ग्रामीणों के हित में निरंतर जारी रखा जाना चाहिए।
प्रदेश में हर व्यक्ति शिक्षित और साक्षर बने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह योजना संचालित की जा रही है। इसे एक मिशन का रूप दिया गया है और गाँव-गाँव में सुनिश्चित शिक्षा की व्यवस्था की गई है। इस योजना के तहत हर एक किलोमीटर पर प्राथमिक स्कूल खोलने के बाद अब माध्यमिक शिक्ष का लोकव्यापीकरण किया जा रहा है। राजीव गाँधी शिक्षा मिशन द्वारा वर्ष 1994 में प्रारंभ की गई इस योजना के अंतर्गत अब तक कुल 32 हजार प्राथमिक स्कूल खोले जा चुके हैं। जिसमें 26 हजार स्कूल दूर बसाहटों में समुदाय के सहयोग से स्थापित किए गए हैं। आज शिक्षा गारंटी योजना को राष्ट्रीय मॉडल के रूप में स्वीकार किया गया है। वर्ष 2001 के जनगणना आँकड़ों के अनुसार प्रदेश में साक्षरता का स्तर राष्ट्रीय साक्षरता सतर के समकक्ष है जबकि पुरुष साक्षरता के मामले में राष्ट्रीय साक्षरता स्तर से अधिक है। विभाजित मध्य प्रदेश में साक्षरता का स्तर 64.11 प्रतिशत है जिसमें पुरुष साक्षरता 50.80 प्रतिशत है। मध्य प्रदेश में महिला साक्षरता का स्तर (1991 से 2001 के बीच) 20.93 प्रतिशत बढ़ा। इस प्रकार 22 लाख महिलाएँ निरक्षरता की गुलामी से आजाद हुई हैं। महिला सशक्तिकरण वर्ष में महिला साक्षरता में वृद्धि के लिए राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ के साथ-साथ मध्य प्रदेश को ‘महिला साक्षरता दशकीय उपलब्धि का राष्ट्रीय पुरस्कार’ अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस के अवसर पर प्रदान किया गया। वर्ष 1991 में पुरुष साक्षरता 58.54 एवं महिला साक्षरता 29.35 थी।
स्वस्थ एवं निरोग रहने से समाज में सुख और समृद्धी बढ़ती है। प्रदेश में सबको स्वास्थ्य सुविधा उलब्ध कराने के लिए हाल ही में ‘स्वस्थ जीवन सेवा गारंटी योजना’ प्रारंभ की गई है। इस योजना के तहत प्रत्येक गाँव में एक प्रशिक्षित कर उन्हें आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं। दिसंबर 2002 तक प्रत्येक गाँव में इनकी नियुक्ति की योजना है। इसके अलावा गाँवों में स्वच्छता और शुद्ध पेयजल की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए समयबद्ध लक्ष्य भी निर्धारित किए गए हैं।
देश में सर्वाधिक वनों के विकास और सुरक्षा की जिम्मेदारी आम लोगों को सौंपी गई है। वन विभाग के सहकारी अमले को ग्रामवन समितियों के सहयोगी के रूप में कार्य करेन की व्यवस्था की गई है। प्रदेश में लगभग 10 हजार 500 ग्रामवन समिति, वन सुरक्षा समिति और ईको विकास समितियों का गठन किया है। इनमें 10 लाख से अधिक सदस्य हैं। ये समितियाँ 39 हजार वर्ग किलोमीटर वनक्षेत्र की सुरक्षा और वनों के विकास का कार्य कर रही हैं। यह कुल वनक्षेत्र का 41 प्रतिशत है। वर्ष 1997 से 1999 के बीच मध्य प्रदेश के वन आवरण में 376 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोत्तरी हुई है। लघु वनोपज समितियों के सदस्य के रूप में 18 लाख संग्राहकों को लाभ मिल रहा है।
मध्य प्रदेश में शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और रोजगार जैसे कार्यक्रमों को मिशन के रूप में प्रारंभ किया गया है। इस मिशन के अंतर्गत 15 जिलों के 2650 ग्रामों में अन्न बैंक स्थापित किए गए हैं। इनके मार्फत लगभग 1 लाख 83 हजार गरीब परिवारों को खाद्यान्न सुरक्षा मिली है। प्रत्येक अन्न बैंक में 20 से 30 क्विंटल अनाज उपलब्ध कराया गया है, जिससे प्रत्येक सदस्य परिवार को जरूरत के वक्त 50 किलोग्राम तक अनाज उपलब्ध हो सकता है। फसल आने के बाद ये परिवार उनके द्वारा लिए गए अनाज को अन्न बैंक में वापस लौटाते हैं और इस प्रकार अन्न का यह कोष अन्न बैंक में हमेशा बना रहता है।
जलग्रहण प्रबंधन मिशन द्वारा पर्यावरण पुनर्जीवित करने और गरीबी उन्मूलन के उद्देश्य से प्रारंभ किया गया था। इसके तहत सूखा उन्मुख क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को आजीविका की सुरक्षा देना, कृषि उत्पादकता और गरीबों के संसाधनों में वृद्धि करना, पारिस्थितिकीय और खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित करने के लक्ष्य निर्धारित किए गए थे। मिशन ने समुदाय आधारित जलग्रहण प्रबंधन की रणनीति को अपनाया तथा स्थानीय लोगों को जलग्रहण समितियों के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी दी गई है।
जलग्रहण क्षेत्र मिशन ने पानी रोको अभियान के जरिये समुदाय आधारित विकास की अवधारणा की असीम संभावनाओं को प्रकट किया है। मिशन ने पानी के संरक्षण और संवर्धन के आसान तरीकों को विकसित किया। लोगों में पानी संरक्षण के प्रति एक नई जागरुकता उत्पन्न हुई। अभियान के दौरान 1290 लाख घनमीटर मिट्टी खोदी गई जिससे 9480 लाख घनमीटर जल संरक्षण की क्षमता निर्मित की गई।मिशन का विस्तार प्रदेश के 45 जिलों में सभी विकास खंडों में हैं। जलग्रहण क्षेत्र विकास का कार्य 5047 वाटरशेड्स, जो 7343 गाँवों में फैले हैं में किया जा रहा है। मिशन की गतिविधियों के फलस्वरूप 43 हजार उपयोगकर्ता समूह 14 हजार स्व-सहायता समूह और 7500 महिला बचत और साख समूह संगठित हुए हैं। जलग्रहण क्षेत्र विकास की गतिविधियों से गाँवों में खरीफ और रबी क्षेत्रो में क्रमशः 21 प्रतिशत और 16 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। और भी महत्त्वपूर्ण इन गाँवों के सिंचित रकबे में 59 फीसदी वृद्धि है। मिशन कार्य क्षेत्र में गाँवों में बंजर भूमि में 34 प्रतिशत की कमी हुई है। इसके अलावा 3294 गाँवों में भू-जल स्तर भी बढ़ा है। मिशन में शामिल अधिकांश गाँवों में सूखे की स्थिति का सामना करने की क्षमता का भी विकास हुआ है। मध्य प्रदेश के जलग्रहण विकास के मिशन मॉडल को आंध्र प्रदेश ने वर्ष 1999 में, उड़ीसा ने वर्ष 2000 में और राजस्थान ने वर्ष 2001 में अपनाया है।
जलग्रहण क्षेत्र मिशन ने पानी रोको अभियान के जरिये समुदाय आधारित विकास की अवधारणा की असीम संभावनाओं को प्रकट किया है। मिशन ने पानी के संरक्षण और संवर्धन के आसान तरीकों को विकसित किया। राज्य सरकार ने अभूतपूर्व सूखे के मद्देनजर विभिन्न स्रोतों से वित्तीय संसाधन जुटाकर पूरे राज्य में जल संरक्षण संरचनाओं के निर्माण के लिए पानी रोको अभियान प्रारंभ किया। इतने बड़े पैमाने पर जल संरक्षण के कार्य कभी नहीं किए गए थे। इसके परिणाम उम्मीद से कहीं अधिक आए। लोगों में पानी संरक्षण के प्रति एक नई जागरुकता उत्पन्न हुई। पाँच माह की अवधि में प्रदेश ने 415 करोड़ रुपए के निवेश से सात लाख से अधिक जल संरक्षण संरचनाएँ निर्मित हुईं। जनसमुदाय द्वारा सौ करोड़ रुपए का योगदान किया गया। अभियान के दौरान 1290 लाख घनमीटर मिट्टी खोदी गई जिससे 9480 लाख घनमीटर जल संरक्षण की क्षमता निर्मित की गई।
राजीव गाँधी शिक्षा मिशन ने साक्षरता को बढ़ाने के उद्देश्य से एक राज्य विशिष्ट कार्यक्रम पढ़ना-बढ़ना आंदोलन प्रारंभ किया। राष्ट्रीय स्तर पर अपनाए गए साक्षरता के कार्यक्रम से यह कई मामलों में भिन्न है। ‘पढ़ना-बढ़ना आंदोलन’ में निरक्षर व्यक्तियों ने स्वयं की समितियों का गठन किया और किसी भी स्थानीय पढ़े-लिखे व्यक्ति को अपना गुरुजी चुना। समिति में शामिल नामों की जाँच के बाद गुरुजी प्रशिक्षण और शिक्षण सामग्री की व्यवस्था मिशन द्वारा की गई। साक्षरता के इस आंदोलन में 50 लाख से अधिक निरक्षर लोग अपनी दो लाख 17 हजार समितियों के माध्यम से शामिल हुए। तीन साक्षरता की प्रायमर और एक अधिकारों पर आधारित प्रायमर द्वारा शिक्षण दिया गया। एक वर्ष बाद 7-9 दिसंबर, 2000 के दौरान सभी शिक्षार्थियों का मूल्यांकन किया गया। प्रत्येक सफल शिक्षार्थी की तरफ से सौ रुपए की गुरुदक्षिणा गुरुजी को दी गई। अब पढ़ना-बढ़ना समितियों को आर्थिक बेहतरी की ओर ले जाने के उद्देश्य से उन्हें स्व-सहायता समूहों में परिवर्तित किया जा चुका है। पढ़ना-बढ़ना आंदोलन ने एक वर्ष में 30 लाख लोगों को साक्षर किया। जनगणना के नतीजों ने मध्य प्रदेश में रणनीति में किए गए इन परिवर्तनो को पूरी तरह से सही सिद्ध कर दिया है।
अधोसंरचनात्मक विकास के अंतर्गत प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के अंतर्गत गाँवों को पक्की सड़कों से जोड़े जाने के प्रयास तेजी से जारी हैं तथा निःशुल्क बिजली की आपूर्ति गरीबी रेखा के नीचे अनुसूचित जाति एवं जनजाति के परिवारों को दी जा रही है। इसके अलावा स्वास्थ्य, शिक्षा आदि बुनियादी सुविधाओं के विकास पर भी बल दिया जा रहा है।
आम आदमी की भलाई और प्रदेश के युवकों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के दृष्टिकोण से सूचना प्रौद्योगिकी नीति बनाई गई है। तहसील मुख्यालयों को इंटरनेट से जोड़ा जा रहा है। धार जिले में लागू स्टाक होम पुरस्कार पा चुकी ‘ज्ञानदूत परियोजना’ का पूरे देश में विस्तार किया जा रहा है। स्कूल शिक्षा, उच्च शिक्षा एवं तकनीकी शिक्षा से जुड़े पाठ्यक्रमों में आई.टी. आधारित शिक्षा का समावेश किया जा रहा है।
वर्ष 2001 पूरे विश्व में महिला सशक्तिकरण वर्ष के रूप में मनाया गया। प्रदेश में एक सुविचारित महिला नीति बनाकर उसे पूरी तरह प्रयोग में लाने के बाद अब नए संदर्भों में समायोजित किया जा रहा है। पंचायत, नगरीय निकाय और सहकारी संस्थाओं में महिलाओं को 30 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया है और वे बखूबी अपनी भूमिका का निर्वहन कर रही है। इसी प्रकार शासकीय नौकरियों में भी 33 प्रतिशत स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित किए गए हैं।
चुने गए जनप्रतिनिधयों द्वारा मनमानी करने की दशा में मतदाताओं को उन्हें वापस बुलाने का अधिकार दिया गया है जो कि प्रजातंत्र की मजबूती की दिशा में अद्वितीय कदम है। पंचायती राज अधिनियम में संशोधन कर चुने गए पंचायतों के पदाधिकारियों को वापस बुलाने का अधिकार ग्रामवासियों को दिया गया है और इसका प्रयोग मध्य प्रदेश में कई स्थानों पर किया भी जा चुका है। इससे चुने गए पदाधिकारियों में जिम्मेदारियों की भावना बलवती हुई है।
मध्य प्रदेश में प्रजातांत्रिक विकेंद्रीकरण के चलते ग्रामीण विकास की एक नई तस्वीर देखने को मिलती है। प्रदेश में सत्ता संचालन की प्रक्रिया में जनता को हिस्सेदार बनाया गया है। जो वास्तव में जनता का, जनता के लिए, जनता का शासन देखने को मिलता है। समुदाय की भागीदारी और प्रत्यक्ष प्रजातंत्र से प्रदेश में विकास के नए आयाम स्थापित हुए हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और रोजगार जैसे सामाजिक कार्यक्रमों में मिशन पद्धति का प्रयोग एवं अभिनव कदम रहा है। मध्य प्रदेश में हुए नवाचार से प्रजातंत्र तो मजबूत हुआ ही है लोगों ने विकास के हाथ बांटने की भारतीय परंपरा को फिर से अपनाया है। सहकारिता की इस भावना से निश्चित ही विकास का मार्ग प्रशस्त होगा तथा सरकार के सहयोग एवं प्रेरणा से सामाजिक जन जागरण का यह नया अध्याय मध्य प्रदेश को विकास के रास्ते पर तेजी से ले जाएगा किंतु सरकार को समय-समय पर इन नए-नए प्रयोगों का मूल्यांकन भी करना चाहिए ताकि यह पता चल सके कि वास्तव में इन नए प्रयोगों का लाभ वांछित व्यक्तियों को मिल रहा है या नहीं।
[व्याख्याता (एम.ओ.एम.) सहोद्राराय शासकीय महिला पॉलिटेकनिक, सागर, म.प्र.]
मध्य प्रदेश में समुदाय की भागीदारी और प्रत्यक्ष प्रजातंत्र से जहाँ विकास को मजबूती मिली है वहीं इससे शासन व्यवस्था का नया स्वरूप उभकर सामने आया है। शासन व्यवस्था के इस नए स्वरूप ने लोगों को रोजमर्रा की जिंदगी में प्रजातांत्रिक अधिकारों का अहसास कराया है तथा राज्य का शासकीय अमला लोगों के प्रति अधिक जबावदेह बन गया है।
मध्य प्रदेश में प्रत्येक गाँव को एक स्वतंत्र इकाई के रूप में विकसित करने के प्रयास किए गए हैं। त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत 24 जनवरी, 1994 को पंचायती राज की शूरुआत हुई और लगभग 5 लाख पंच, सरपंचों ने गाँव की सत्ता में भागीदारी निभाई। वर्तमान में स्थानीय स्वशासन, जिला सरकार, ग्राम स्वराज और विभिन्न समितियों के माध्यम से लगभग 1 करोड़ से भी अधिक लोग अपने शहर, गाँव, देहात के विकास में सरकार की भूमिका निभा रहे हैं। मध्य प्रदेश में ग्रामवासियों को ‘स्वयं के साधनों से स्वयं का विकास’ करने का अवसर दिया गया है। सरकार सहयोगी की भूमिका का निर्वाह कर रही है तथा 10वें वित्त आयोग की सिफारिशों को ध्यान में रखकर पंचायतों को पर्याप्त धनराशि उपलब्ध कराई गई है। अपने क्षेत्र में निर्माण, विकास तथा विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन तथा पर्यवेक्षण आदि के व्यापक अधिकार उन्हें सौंपे गए हैं। असली सत्ता ग्रामवासियों के हाथेां में सौंपने का यह सिलसिला जारी है। मध्य प्रदेश सरकार की कई योजनाओं यथा—शिक्षा गांरटी योजना, ज्ञानदूत योजना आदि को अन्य राज्यों ने अपनाया है तथा उन्हें अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया है। समुदाय की भागीदारी से विकास का जो ‘मध्य प्रदेश मॉडल’ विकसित हुआ है उसे न केवल देश में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहना एवं मान्यता मिली है।
भारत में आजादी के बाद से ही ‘जन’ पर ‘तंत्र’ हावी रहा है। दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी, लाल फीताशाही एवं नौकरशाही के चलते ‘जन’ का विकास नहीं हो पाया है किंतु मध्य प्रदेश में ‘तंत्र’ को ‘जन’ की सहायता करने के लिए प्रोत्साहित, प्रेरित एवं निर्देशित किया गया है और राजनीति से लोकनीति का नया मार्ग प्रशस्त हुआ है। यों तो प्रदेश में प्रजातांत्रिक विकेंद्रीकरण की दिशा में कई कदम उठाए गए हैं किंतु ग्रामीण विकास की दिशा में मुख्य उपलब्धियाँ इस प्रकार रही हैं :
ग्राम स्वराज
संवधिान के 73वें एवं 74वें संशोधन के बाद त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को देश में सबसे पहले लागू करने का गौरव मध्य प्रदेश को मिला है। इस व्यवस्था के अंतर्गत ग्रामवासियों के विकास के लिए व्यापक स्तर पर अधिकारों का हस्तांतरण किया गया है। पंचायती राज को मजबूत बनाने के लिए महात्मा गाँधी के आदर्शों एवं सिद्धांतो के अनुरूप ग्रामसभा को प्रजातंत्र की इकाई के रूप में विकसित करने के उद्देश्य से 26 जनवरी, 2001 से ग्राम स्वराज रूपी एक अभिनव प्रयोग का प्रारंभ किया गया है। इस परिकल्पना का उद्देश्य ग्रामसभा के माध्यम से लोगों को शक्ति-संपन्न बनाकर स्थानीय संसाधनों के बेहतर उपयोग से विकास को नई दिशा देना है। ग्राम स्वराज के अंतर्गत प्रत्येक गाँव में ग्रामसभा का गठन किया गया है। ग्रामसभा का काम ग्रामीण विकास की नीतियाँ बनाना एवं उन्हें क्रियान्वित करना है। इस व्यवस्था के अंतर्गत आठ समितियाँ— ग्राम विकास, सार्वजनिक संपदा, कृषि, स्वास्थ्य, ग्रामीण सुरक्षा, अधो-संरचना, शिक्षा और सामाजिक न्याय के नाम से गठित की गई है। ग्राम कोष के नाम से एक निधि प्रत्येक गाँव में बनाई जाएगी। सरपंच, उप सरपंच एवं पंच को ग्रामसभा की विभिन्न समितियों में शामिल किया गया है। चैक पर हस्ताक्षर करने का अधिकार सरपंच एवं कोषाध्यक्ष को दिया गया है। इस प्रकार ग्राम स्वराज व्यवस्था के अंतर्गत 50 लाख से भी अधिक लोग सीधे गाँव के विकास में सरकार की भूमिका निभा रहे हैं।
ग्राम संपर्क अभियान
प्रशासन के लोगों को करीब लाने के लिए ग्राम संपर्क अभियान के रूप में अभिनव पहल की गई है। इससे प्रशासन में बैठे लोगों को ग्रामीणों की समस्याओं को समझने तथा उन्हें हल करने के लिए उपाय करने का अवसर मिलता है तथा इस कदम से प्रशासन और ग्रामीणों के बीच की खाई कम हुई है। प्रदेश में ग्राम संपर्क अभियान के माध्यम से योजनाओं के क्रियान्वयन की संबधित गाँव में ही जाकर समीक्षा की जाती है तथा देखा जाता है कि योजनाएँ कार्य रूप में परिणत हो रही हैं या केवल कागजों पर चल रही हैं। ग्रामीणों की छोटी-छोटी समस्याओं का निदान स्थल पर ही कर दिया जाता है तथा बड़ी समस्याओं के संबंध में प्रतिवेदन तैयार कर जिला प्रशासन को सौंपा जाता है। ग्राम संपर्क अभियान का उद्देश्य ग्रामीणों की समस्याओं का निदान कर उन्हें शून्य स्तर पर पहुँचाना होता है। इस अभियान के चलने से ग्रामीण क्षेत्र में तैनात शासकीय अमला (तंत्र) भी सजग होकर कार्य करता है। प्रदेश सरकार का यह एक अभिनव कदम है जिसे ग्रामीणों के हित में निरंतर जारी रखा जाना चाहिए।
शिक्षा गांरटी योजना
प्रदेश में हर व्यक्ति शिक्षित और साक्षर बने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह योजना संचालित की जा रही है। इसे एक मिशन का रूप दिया गया है और गाँव-गाँव में सुनिश्चित शिक्षा की व्यवस्था की गई है। इस योजना के तहत हर एक किलोमीटर पर प्राथमिक स्कूल खोलने के बाद अब माध्यमिक शिक्ष का लोकव्यापीकरण किया जा रहा है। राजीव गाँधी शिक्षा मिशन द्वारा वर्ष 1994 में प्रारंभ की गई इस योजना के अंतर्गत अब तक कुल 32 हजार प्राथमिक स्कूल खोले जा चुके हैं। जिसमें 26 हजार स्कूल दूर बसाहटों में समुदाय के सहयोग से स्थापित किए गए हैं। आज शिक्षा गारंटी योजना को राष्ट्रीय मॉडल के रूप में स्वीकार किया गया है। वर्ष 2001 के जनगणना आँकड़ों के अनुसार प्रदेश में साक्षरता का स्तर राष्ट्रीय साक्षरता सतर के समकक्ष है जबकि पुरुष साक्षरता के मामले में राष्ट्रीय साक्षरता स्तर से अधिक है। विभाजित मध्य प्रदेश में साक्षरता का स्तर 64.11 प्रतिशत है जिसमें पुरुष साक्षरता 50.80 प्रतिशत है। मध्य प्रदेश में महिला साक्षरता का स्तर (1991 से 2001 के बीच) 20.93 प्रतिशत बढ़ा। इस प्रकार 22 लाख महिलाएँ निरक्षरता की गुलामी से आजाद हुई हैं। महिला सशक्तिकरण वर्ष में महिला साक्षरता में वृद्धि के लिए राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ के साथ-साथ मध्य प्रदेश को ‘महिला साक्षरता दशकीय उपलब्धि का राष्ट्रीय पुरस्कार’ अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस के अवसर पर प्रदान किया गया। वर्ष 1991 में पुरुष साक्षरता 58.54 एवं महिला साक्षरता 29.35 थी।
स्वस्थ जीवन सेवा गारंटी योजना
स्वस्थ एवं निरोग रहने से समाज में सुख और समृद्धी बढ़ती है। प्रदेश में सबको स्वास्थ्य सुविधा उलब्ध कराने के लिए हाल ही में ‘स्वस्थ जीवन सेवा गारंटी योजना’ प्रारंभ की गई है। इस योजना के तहत प्रत्येक गाँव में एक प्रशिक्षित कर उन्हें आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं। दिसंबर 2002 तक प्रत्येक गाँव में इनकी नियुक्ति की योजना है। इसके अलावा गाँवों में स्वच्छता और शुद्ध पेयजल की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए समयबद्ध लक्ष्य भी निर्धारित किए गए हैं।
संयुक्त वन-प्रबंधन
देश में सर्वाधिक वनों के विकास और सुरक्षा की जिम्मेदारी आम लोगों को सौंपी गई है। वन विभाग के सहकारी अमले को ग्रामवन समितियों के सहयोगी के रूप में कार्य करेन की व्यवस्था की गई है। प्रदेश में लगभग 10 हजार 500 ग्रामवन समिति, वन सुरक्षा समिति और ईको विकास समितियों का गठन किया है। इनमें 10 लाख से अधिक सदस्य हैं। ये समितियाँ 39 हजार वर्ग किलोमीटर वनक्षेत्र की सुरक्षा और वनों के विकास का कार्य कर रही हैं। यह कुल वनक्षेत्र का 41 प्रतिशत है। वर्ष 1997 से 1999 के बीच मध्य प्रदेश के वन आवरण में 376 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोत्तरी हुई है। लघु वनोपज समितियों के सदस्य के रूप में 18 लाख संग्राहकों को लाभ मिल रहा है।
राजीव गाँधी खाद्यान्न सुरक्षा मिशन
मध्य प्रदेश में शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और रोजगार जैसे कार्यक्रमों को मिशन के रूप में प्रारंभ किया गया है। इस मिशन के अंतर्गत 15 जिलों के 2650 ग्रामों में अन्न बैंक स्थापित किए गए हैं। इनके मार्फत लगभग 1 लाख 83 हजार गरीब परिवारों को खाद्यान्न सुरक्षा मिली है। प्रत्येक अन्न बैंक में 20 से 30 क्विंटल अनाज उपलब्ध कराया गया है, जिससे प्रत्येक सदस्य परिवार को जरूरत के वक्त 50 किलोग्राम तक अनाज उपलब्ध हो सकता है। फसल आने के बाद ये परिवार उनके द्वारा लिए गए अनाज को अन्न बैंक में वापस लौटाते हैं और इस प्रकार अन्न का यह कोष अन्न बैंक में हमेशा बना रहता है।
राजीव गाँधी जलग्रहण क्षेत्र—प्रबंधन मिशन
जलग्रहण प्रबंधन मिशन द्वारा पर्यावरण पुनर्जीवित करने और गरीबी उन्मूलन के उद्देश्य से प्रारंभ किया गया था। इसके तहत सूखा उन्मुख क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को आजीविका की सुरक्षा देना, कृषि उत्पादकता और गरीबों के संसाधनों में वृद्धि करना, पारिस्थितिकीय और खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित करने के लक्ष्य निर्धारित किए गए थे। मिशन ने समुदाय आधारित जलग्रहण प्रबंधन की रणनीति को अपनाया तथा स्थानीय लोगों को जलग्रहण समितियों के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी दी गई है।
जलग्रहण क्षेत्र मिशन ने पानी रोको अभियान के जरिये समुदाय आधारित विकास की अवधारणा की असीम संभावनाओं को प्रकट किया है। मिशन ने पानी के संरक्षण और संवर्धन के आसान तरीकों को विकसित किया। लोगों में पानी संरक्षण के प्रति एक नई जागरुकता उत्पन्न हुई। अभियान के दौरान 1290 लाख घनमीटर मिट्टी खोदी गई जिससे 9480 लाख घनमीटर जल संरक्षण की क्षमता निर्मित की गई।मिशन का विस्तार प्रदेश के 45 जिलों में सभी विकास खंडों में हैं। जलग्रहण क्षेत्र विकास का कार्य 5047 वाटरशेड्स, जो 7343 गाँवों में फैले हैं में किया जा रहा है। मिशन की गतिविधियों के फलस्वरूप 43 हजार उपयोगकर्ता समूह 14 हजार स्व-सहायता समूह और 7500 महिला बचत और साख समूह संगठित हुए हैं। जलग्रहण क्षेत्र विकास की गतिविधियों से गाँवों में खरीफ और रबी क्षेत्रो में क्रमशः 21 प्रतिशत और 16 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। और भी महत्त्वपूर्ण इन गाँवों के सिंचित रकबे में 59 फीसदी वृद्धि है। मिशन कार्य क्षेत्र में गाँवों में बंजर भूमि में 34 प्रतिशत की कमी हुई है। इसके अलावा 3294 गाँवों में भू-जल स्तर भी बढ़ा है। मिशन में शामिल अधिकांश गाँवों में सूखे की स्थिति का सामना करने की क्षमता का भी विकास हुआ है। मध्य प्रदेश के जलग्रहण विकास के मिशन मॉडल को आंध्र प्रदेश ने वर्ष 1999 में, उड़ीसा ने वर्ष 2000 में और राजस्थान ने वर्ष 2001 में अपनाया है।
जलग्रहण क्षेत्र मिशन ने पानी रोको अभियान के जरिये समुदाय आधारित विकास की अवधारणा की असीम संभावनाओं को प्रकट किया है। मिशन ने पानी के संरक्षण और संवर्धन के आसान तरीकों को विकसित किया। राज्य सरकार ने अभूतपूर्व सूखे के मद्देनजर विभिन्न स्रोतों से वित्तीय संसाधन जुटाकर पूरे राज्य में जल संरक्षण संरचनाओं के निर्माण के लिए पानी रोको अभियान प्रारंभ किया। इतने बड़े पैमाने पर जल संरक्षण के कार्य कभी नहीं किए गए थे। इसके परिणाम उम्मीद से कहीं अधिक आए। लोगों में पानी संरक्षण के प्रति एक नई जागरुकता उत्पन्न हुई। पाँच माह की अवधि में प्रदेश ने 415 करोड़ रुपए के निवेश से सात लाख से अधिक जल संरक्षण संरचनाएँ निर्मित हुईं। जनसमुदाय द्वारा सौ करोड़ रुपए का योगदान किया गया। अभियान के दौरान 1290 लाख घनमीटर मिट्टी खोदी गई जिससे 9480 लाख घनमीटर जल संरक्षण की क्षमता निर्मित की गई।
पढ़ना-बढ़ना आंदोलन
राजीव गाँधी शिक्षा मिशन ने साक्षरता को बढ़ाने के उद्देश्य से एक राज्य विशिष्ट कार्यक्रम पढ़ना-बढ़ना आंदोलन प्रारंभ किया। राष्ट्रीय स्तर पर अपनाए गए साक्षरता के कार्यक्रम से यह कई मामलों में भिन्न है। ‘पढ़ना-बढ़ना आंदोलन’ में निरक्षर व्यक्तियों ने स्वयं की समितियों का गठन किया और किसी भी स्थानीय पढ़े-लिखे व्यक्ति को अपना गुरुजी चुना। समिति में शामिल नामों की जाँच के बाद गुरुजी प्रशिक्षण और शिक्षण सामग्री की व्यवस्था मिशन द्वारा की गई। साक्षरता के इस आंदोलन में 50 लाख से अधिक निरक्षर लोग अपनी दो लाख 17 हजार समितियों के माध्यम से शामिल हुए। तीन साक्षरता की प्रायमर और एक अधिकारों पर आधारित प्रायमर द्वारा शिक्षण दिया गया। एक वर्ष बाद 7-9 दिसंबर, 2000 के दौरान सभी शिक्षार्थियों का मूल्यांकन किया गया। प्रत्येक सफल शिक्षार्थी की तरफ से सौ रुपए की गुरुदक्षिणा गुरुजी को दी गई। अब पढ़ना-बढ़ना समितियों को आर्थिक बेहतरी की ओर ले जाने के उद्देश्य से उन्हें स्व-सहायता समूहों में परिवर्तित किया जा चुका है। पढ़ना-बढ़ना आंदोलन ने एक वर्ष में 30 लाख लोगों को साक्षर किया। जनगणना के नतीजों ने मध्य प्रदेश में रणनीति में किए गए इन परिवर्तनो को पूरी तरह से सही सिद्ध कर दिया है।
अधोसंरचनात्मक विकास
अधोसंरचनात्मक विकास के अंतर्गत प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के अंतर्गत गाँवों को पक्की सड़कों से जोड़े जाने के प्रयास तेजी से जारी हैं तथा निःशुल्क बिजली की आपूर्ति गरीबी रेखा के नीचे अनुसूचित जाति एवं जनजाति के परिवारों को दी जा रही है। इसके अलावा स्वास्थ्य, शिक्षा आदि बुनियादी सुविधाओं के विकास पर भी बल दिया जा रहा है।
सूचना प्रौद्योगिकी नीति
आम आदमी की भलाई और प्रदेश के युवकों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के दृष्टिकोण से सूचना प्रौद्योगिकी नीति बनाई गई है। तहसील मुख्यालयों को इंटरनेट से जोड़ा जा रहा है। धार जिले में लागू स्टाक होम पुरस्कार पा चुकी ‘ज्ञानदूत परियोजना’ का पूरे देश में विस्तार किया जा रहा है। स्कूल शिक्षा, उच्च शिक्षा एवं तकनीकी शिक्षा से जुड़े पाठ्यक्रमों में आई.टी. आधारित शिक्षा का समावेश किया जा रहा है।
महिला सशक्तिकरण
वर्ष 2001 पूरे विश्व में महिला सशक्तिकरण वर्ष के रूप में मनाया गया। प्रदेश में एक सुविचारित महिला नीति बनाकर उसे पूरी तरह प्रयोग में लाने के बाद अब नए संदर्भों में समायोजित किया जा रहा है। पंचायत, नगरीय निकाय और सहकारी संस्थाओं में महिलाओं को 30 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया है और वे बखूबी अपनी भूमिका का निर्वहन कर रही है। इसी प्रकार शासकीय नौकरियों में भी 33 प्रतिशत स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित किए गए हैं।
जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार
चुने गए जनप्रतिनिधयों द्वारा मनमानी करने की दशा में मतदाताओं को उन्हें वापस बुलाने का अधिकार दिया गया है जो कि प्रजातंत्र की मजबूती की दिशा में अद्वितीय कदम है। पंचायती राज अधिनियम में संशोधन कर चुने गए पंचायतों के पदाधिकारियों को वापस बुलाने का अधिकार ग्रामवासियों को दिया गया है और इसका प्रयोग मध्य प्रदेश में कई स्थानों पर किया भी जा चुका है। इससे चुने गए पदाधिकारियों में जिम्मेदारियों की भावना बलवती हुई है।
निष्कर्ष
मध्य प्रदेश में प्रजातांत्रिक विकेंद्रीकरण के चलते ग्रामीण विकास की एक नई तस्वीर देखने को मिलती है। प्रदेश में सत्ता संचालन की प्रक्रिया में जनता को हिस्सेदार बनाया गया है। जो वास्तव में जनता का, जनता के लिए, जनता का शासन देखने को मिलता है। समुदाय की भागीदारी और प्रत्यक्ष प्रजातंत्र से प्रदेश में विकास के नए आयाम स्थापित हुए हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और रोजगार जैसे सामाजिक कार्यक्रमों में मिशन पद्धति का प्रयोग एवं अभिनव कदम रहा है। मध्य प्रदेश में हुए नवाचार से प्रजातंत्र तो मजबूत हुआ ही है लोगों ने विकास के हाथ बांटने की भारतीय परंपरा को फिर से अपनाया है। सहकारिता की इस भावना से निश्चित ही विकास का मार्ग प्रशस्त होगा तथा सरकार के सहयोग एवं प्रेरणा से सामाजिक जन जागरण का यह नया अध्याय मध्य प्रदेश को विकास के रास्ते पर तेजी से ले जाएगा किंतु सरकार को समय-समय पर इन नए-नए प्रयोगों का मूल्यांकन भी करना चाहिए ताकि यह पता चल सके कि वास्तव में इन नए प्रयोगों का लाभ वांछित व्यक्तियों को मिल रहा है या नहीं।
[व्याख्याता (एम.ओ.एम.) सहोद्राराय शासकीय महिला पॉलिटेकनिक, सागर, म.प्र.]
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Post By: birendrakrgupta