परिंदों पर आफत

वन विभाग को विलुप्त हो रहे पक्षियों के संरक्षण का उपाय खोजना होगा। यह प्रसन्नता व संतोष की बात है कि उत्तराखंड के पूर्वी तराई में वन विभाग ने कृत्रिम घोंसले बनाने का फैसला किया है। वन विभाग वृक्षारोपण के साथ-साथ कृत्रिम घोंसलों का निर्माण कराएगा। जिससे आशियानों की तलाश में उड़ रहे पक्षियों को ठिकाना मिलेगा। इससे विलुप्त हो रहे पक्षियों की सुरक्षा होगी। शहरीकरण ने पक्षियों के वजूद का खतरा पैदा कर दिया है। इस दशा में कृत्रिम घोंसले बनाने की वन विभाग की कवायद पक्षियों को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है।

जलवायु परिवर्तन की वजह से पर्यावरण पर खतरा मंडरा रहा है। मौसम चक्र में परिवर्तन हो रहा है और जंगलों की कटाई से पर्यावरण का प्रदूषण बढ़ रहा है। जहां कभी वन थे वहां कंक्रीट के जंगल खड़े हो गए हैं। बढ़ती जनसंख्या की वजह से लोगों को सर छुपाने के लिए आशियाना चाहिए। शहर और गावों में जमीन कम पड़ती जा रही है और विकास कार्यों और परियोजनाओं के लिए वन भूमि स्थानांतरित की जा रही है। वनों के कटान से सर्दी, गर्मी, हिमपात और बारिश का चक्र बिगड़ गया है। नदियां सूख रही हैं। ग्लेशियर पिघल रहे हैं। इन सबका असर वन्य जंतुओं और नदियों पर भी पड़ रहा है। वन्य जीव जंतु, पशु पक्षी खत्म हो रहे हैं। पक्षियों के आशियाने भी पेड़ों के कटने से नष्ट हो गए। विश्व का तापमान इस तरह से बढ़ता रहा तो 2060 तक आधे से ज्यादा पक्षी समाप्त हो जाएंगे।

हमने जिन परिंदों को कभी खेत-खलिहानों-जंगलों में चहचहाते सुना था, आज उनकी चहचहाट सुनने को कान तरस जाते हैं। कई पक्षियों का अस्तित्व समाप्त हो गया है। इन पक्षियों को कुछ कटते वनों ने मारा तो कुछ को खेतों में इस्तेमाल होने वाले कीटनाशकों ने। अब घोंसले नहीं रहे। क्योंकि घर, फ्लैटों में बदल गए हैं। कीटनाशकों के इस्तेमाल से खाद्य पदार्थ भी जहरीले हो गए। इन जहरीले खाद्य पदार्थों ने पक्षियों का खात्मा कर दिया कई कीटनाशक पक्षियों के लिए जहरीले हैं। रसायनों के इस्तेमाल से पक्षियों की प्रजनन क्षमता पर भी असर पड़ा है।

गौरैया की चहचहाट के सब अभ्यस्त हैं। आज यह गौरैया दिखनी कम हो गई है। आज हमारे कान इस गौरैया की चहचहाट सुनने को तरस रहे हैं। गौरैया को विभिन्न प्रांतों में विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। गौरैया भारत में ही नहीं विश्व में इतिहास बनती जा रही है। एक सर्वे में बताया गया है कि गौरैया की संख्या लगातार घट रही है। 2005 तक गौरैया नब्बे फीसद तक घट चुकी है। तिनके-तिनके बीन कर चिड़ियां घोंसला बनाती है। गौरैया और दूसरे पक्षियों के संरक्षण के लिए भारत सरकार ने 2006 में एक योजना तैयार की थी। इसमें हानिकारक कीटनाशकों की रोक के साथ-साथ पक्षियों के संरक्षण और प्रजनन केंद्रों की स्थापना की योजना थी। लेकिन इस पर अमल ही नहीं हो पाया।

पक्षियों की तादाद में कमी चिंता का विषय है। इसका साफ मतलब है कि हमारा पर्यावरण बिगड़ गया है। वन्य जंतु संरक्षण कानून के प्रभावी क्रियान्वयन न होने से जानवरों और पक्षियों का शिकार बदस्तूर जारी है। कई निरीह पक्षियों को निशाना बनाया जाता है। गौरैया को गली कूचों के निशानेबाजों ने दुर्लभ पक्षी बना दिया है।

हर साल प्रवासी पक्षी दूसरे देशों से भारत आते हैं। लेकिन कई दुर्लभ पक्षियों की संख्या निरंतर घट रही है। पिछले दशक में जितने प्रवासी पक्षी भारत आते थे, अब उतने नहीं आते। इक्कीस किस्म के पक्षी अब नजर नहीं आते। विकास ने पक्षियों के ठिकानों को उजाड़ डाला है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण कई पक्षी अपनी जगहों से दूसरी जगह पलायन कर गए तो कई खत्म हो गए। ग्लोबल वार्मिंग पर काबू नहीं पाया गया तो कई पक्षियों का वजूद ही खत्म हो जाएगा। पक्षी हमारे वायुमंडल के रक्षक हैं। कूड़ा करकट बीन कर सफाई करते हैं और बेकार पड़े अन्न से पेट भरते हैं। जरूरत इस बात की है कि इन पक्षियों को समाप्त होने से बचाया जाए। पक्षी प्रेमियों ने इस दिशा में जरूरी कदम उठाने की मांग की है। वन विभाग को विलुप्त हो रहे पक्षियों के संरक्षण का उपाय खोजना होगा। यह प्रसन्नता व संतोष की बात है कि उत्तराखंड के पूर्वी तराई में वन विभाग ने कृत्रिम घोंसले बनाने का फैसला किया है। वन विभाग वृक्षारोपण के साथ-साथ कृत्रिम घोंसलों का निर्माण कराएगा। जिससे आशियानों की तलाश में उड़ रहे पक्षियों को ठिकाना मिलेगा। इससे विलुप्त हो रहे पक्षियों की सुरक्षा होगी। शहरीकरण ने पक्षियों के वजूद का खतरा पैदा कर दिया है। इस दशा में कृत्रिम घोंसले बनाने की वन विभाग की कवायद पक्षियों को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है।

Path Alias

/articles/paraindaon-para-aphata

Post By: Hindi
Topic
Regions
×