प्रधानमन्त्री श्री नरेंद्र मोदी की ओर से गोद लिए गए गाँव जयापुरा में खेती-किसानी के क्षेत्र में भी नई क्रान्ति की शुरुआत हुई है। यहाँ के किसान श्रीप्रकाश ने अपने बीजों पर शोध करते हुए कृषि क्षेत्र में नई इबारत लिखी है। उनके द्वारा तैयार किए गए बीज बनारस ही नहीं आस-पास के जिलों में पहुँच रहे हैं और उत्पादन बढ़ा रहे हैं। श्रीप्रकाश का सपना है कि जयापुरा से तैयार होने वाला बीज देश के कोने-कोने में पहुँचे। वह चाहते हैं कि किसानों के इस देश में किसान बीज के लिए मशक्कत करता न दिखाई पड़े।
प्रधानमन्त्री श्री नरेंद्र मोदी की ओर से गोद लिए गए वाराणसी जिले के जयापुरा गाँव में विकास के साथ ही एक नई क्रान्ति की शुरुआत हो रही है। एक ऐसी क्रान्ति, जिसकी वजह से समूचे देश में चर्चाओं का बाजार शुरू हो गया है। इस क्रान्ति की शुरुआत की है किसान श्रीप्रकाश सिंह रघुवंशी ने। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं, उस क्रान्ति की, जिसके बिना देश की तरक्की की कल्पना नहीं की जा सकती है। यह क्रान्ति है खेत और खलिहान की। यहाँ खेती के न तरीके ईजाद करने के साथ ही बीजों के शोध पर बेहतरीन काम हो रहा है। अनाज ही नहीं बल्कि सब्जियों के बीजों पर भी तमाम शोध किया जा रहा है। इनके शोध का कृषि वैज्ञानिक भी लोहा मानते हैं।
श्रीप्रकाश सिंह बताते हैं कि उनके परिवार के लोग पुश्तैनी खेतिहर हैं। इनके पिता अध्यापक होते हुए भी खेती से बड़ी तल्लीनता से जुटे रहे। बचपन में अपने अध्यापक पिता से पढ़ाई के साथ ही खेती के भी गुण सीखे। पिताजी घर में बीज बैंक तैयार करते थे। इस वजह से हर किस्म के बीज उनके घर में मौजूद रहे। गेहूँ हो या धान, सभी की अलग-अलग किस्में खेत में बोई जाती थीं। वह बताते हैं कि उनकी तीन बेटियाँ और तीन बेटे खेती के जरिए ही उच्च शिक्षा हासिल कर सके हैं। सभी ने परास्नातक की डिग्री हासिल कर ली है। बच्चे पढ़ाई के साथ ही खेती में भी हाथ बँटाते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि श्रीप्रकाश एक ऐसे किसान हैं, जो खुद के साथ ही अन्य गरीब किसानों की दशा सुधारने की दिशा में भी अग्रसर हैं। उन्होंने तमाम ऐसे बीजों की प्रजाति विकसित की हैं जो किसानों को कम लागत में अधिक मुनाफा दे रही हैं।
उन्नत किस्म के बीजों को विकसित करने के लिए उन्हें राष्ट्रीय इनोवेशन अवार्ड भी दिया जा चुका है। इस कार्य के लिए पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटील एवं पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने भी उन्हें सम्मानित किया है। इसके अलावा जिला एवं प्रदेश-स्तर पर तमाम अवार्ड हासिल कर चुके हैं। वह बताते हैं कि किसानों से सम्बन्धित कोई भी आयोजन हो, वह उनसे अछूता नहीं रह पाता है। बस जैसे ही उन्हें इसकी सूचना मिलती है वह आयोजन में शामिल हो जाते हैं। इसके पीछे भी वाजिब कारण हैं। श्रीप्रकाश का मानना है कि आज वह जो भी इनोवेशन कर रहे हैं वह कृषि मेलों एवं कृषि सम्बन्धी आयोजनाओं में हिस्सा लेने की वजह से ही। क्योंकि इन आयोजनों में वह शामिल हुए, जिसकी वजह से उनका हौसला बढ़ा और वह लगातार एक के बाद एक नई खोज में लगे हुए हैं।
श्रीप्रकाश बताते हैं कि जब कोई भी किसान उनसे खेती के बारे में पूछता है तो उनका सीना चौड़ा हो जाता है। वह पढ़-लिख कर भले कृषि वैज्ञानिक नहीं बन सके हैं, लेकिन जब वह किसानों को खेती सम्बन्धी सलाह देते हैं तो कृषि वैज्ञानिक जैसा ही सम्मान मिलता है। इस पर उन्हें बड़ी प्रसन्नता मिलती है। सबसे ज्यादा प्रसन्नता तब मिलती है, जब कोई किसान आकर यह कहता है कि उनके द्वारा बताए गए तरीके के जरिए वह खेती में कम लागत लगाकर अधिक मुनाफा कमाने में कामयाब हो गया। खेती के प्रति बढ़ती ललक की वजह से ही वह लगातार अपने अभियान में जुटे हुए हैं। एक ऐसा अभियान जो लगातार खेती को बढ़ावा दे रहा है और किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत बना रहा है।
वह बताते हैं कि उनके द्वारा तैयार की गई धान की प्रमुख प्रजातियों में कुदरत एक का उत्पादन 25 से 30 कुंतल प्रति एकड़ है। यह 130 से 135 दिन लेता है। इसी तरह कुदरत दो का उत्पादन 20 से 22 कुंतल व समय 115 से 120 दिन है। जबकि लाल बसंती का उत्पादन 15 से 17 कुंतल प्रति एकड़ व समय 97 से सौ दिन का है। इसी तरह अरहर की प्रमुख प्रजातियों में कुदरत तीन, चमत्कार और कृष्णा हैं। इसमें कुदरत तीन का उत्पादन 12 से 15 कुंतल प्रति एकड़, चमत्कार का उत्पादन 10 से 12 एवं कृष्णा का 10-13 कुंतल प्रति एकड़ है। इसी तरह सरसों की प्रमुख प्रजातियों में कुदरत वंदना, कुदरत गीता, कुदरत सोनी हैं। वह बताते हैं कि अपने द्वारा तैयार की गई इन प्रजातियों को सरसों अनुसंधान केन्द्र, भरतपुर से प्रमाणित कराया है। जबकि धान, गेहूँ की प्रजाति को बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय, आचार्य नरेंद्रदेव कृषि विद्यालयों के कृषि विशेषज्ञों प्रमाणित किया है। वह बताते हैं कि खुद के द्वारा किए गए शोध से तैयार होने वाली नई प्रजाति के बारे में कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों से मिलते हैं। उन्हें खुद द्वारा तैयार किया गया बीज देते हैं और कृषि विश्वविद्यालय की ओर से प्रमाणिकता मिलने के बाद उस बीज को आम किसानों के बीच पहुँचाते हैं।
सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि श्रीप्रकाश खुद के द्वारा तैयार की जाने वाली नई प्रजाति का बीज किसानों को मुफ्त में उपलब्ध कराते हैं। वह किसानों को साथ में एक पर्चा भी भेजते हैं, जिसके जरिए उसे खेती कैसे करें, इसका सुझाव भी देते हैं। बताते हैं कि उनके द्वारा भेजे जाने वाले चंद बीज के जरिए पहले बीज तैयार करो और फिर उसकी पर्याप्त खेत में बुवाई करो। वह बताते हैं कि जब उनके गाँव को प्रधानमन्त्री द्वारा गोद लिया गया तो उन्हें लगा कि अब उनके द्वारा किए जा रहे सभी प्रयासों को संबल मिलेगा। वक्त के साथ उनके शोध की चर्चा भी होने लगी है। वैसे जयापुर में लगातार नई-नई बातें सामने आ रही हैं। एक तरफ वह बीज की नई किस्में तैयार कर रहे हैं तो दूसरी तरफ गाँव के करीब 300 वर्ष पुराने महुआ के पेड़ को संरक्षित करने की कवायद के साथ अब कन्या के पैदा होने पर जश्न मनाने का भी संकल्प लिया जा रहा है। कन्या की शादी के लिए धन की व्यवस्था करने का रास्ता गाँव वालों ने निकाल लिया है। अभिभावक अब अपने खेतों की मेड़ व बाग की खाली जमीनों पर कन्या जन्म के साथ ही अच्छी आमदनी देने वाले पौधे लगाएँगे। कन्या धन के साथ ही पर्यावरण संरक्षण के लिए उठाए गए इस कदम से अचानक ही आस-पास के गाँवों में भी मानो चेतना-सी आ गई है। एक तरफ पर्यावरण संरक्षण तो दूसरी तरफ बीज पर नए-नए शोध। ये सारी चीजें गाँव में तरक्की की नई इबारत लिखने लगी हैं।
सात फीट की लौकी ने मन मोहा
श्रीप्रकाश सिंह रघुवंशी बताते हैं कि उन्होंने लौकी के बीज पर शोध किया। एक के बाद एक शोध के बाद चार से सात फीट लम्बी लौकी की प्रजाति विकसित कर दी। अहमदाबाद में नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन आफ इंडिया की ओर से आयोजित अन्तरराष्ट्रीय कृषि कांफ्रेंस में जयापुर में पैदा हो रही चार से सात फीट लम्बी लौकी एशिया और यूरोप के देशों के कृषि प्रतिनिधियों के आकर्षण का केन्द्र बनी। काफ्रेंस में मौजूद रहे पूर्व राष्ट्रपति डाॅ. एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्नतशील बीजों के विकास की इस प्रक्रिया की जानकारी लेने के साथ ही देश की कृषि के सुखद भविष्य के लिए इसे और आगे बढ़ाने की सलाह अनुसंधानकर्ताओं को दी।
गेहूँ की नई प्रजाति से देशभर में नाम
अब उन्होंने स्वपरागण विधि से गेहूँ की नई प्रजाति कुदरत-100 विकसित की है जिससे उपज दोगुनी बढ़ जाएगी। इसके दाने सामान्य गेहूँ से दुगने लम्बे और मोटे होंगे। इस प्रजाति की फसल के लिए काली मिट्टी अधिक उपयोगी होगी। बुवाई के बाद खेत में अधिकतम पाँच बार पानी देना होगा। 150 दिन में तैयार होने वाली नई प्रजाति कुदरत-100 के एक पौधे में 30-35 गांछें निकल रही हैं। 15 इंच लम्बी बालियों में 130 तक दाने मिले हैं। प्रजाति प्रयोग के तौर पर पहली बार महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के एक-एक गाँव में बोई है। 14-15 इंच लम्बी बालियों वाली गेहूँ की इस नई प्रजाति की खेती पहली बार जयापुरा के किसान मुसई पटेल के खेत में कराई गई है। इससे बीज तैयार कर देश भर के किसानों तक पहुँचाया जाएगा। वह बताते हैं कि इस नई प्रजाति को तैयार करने में काफी समय से प्रयोग कर रहे थे। गेहूँ की प्रजाति कल्याण सोना, आरआर-21, एचडी-2285 और यूपी-262 के पौधों के समूहों के बीच कई बार उगाकर नव परिवर्तन प्रक्रिया के तहत गेहूँ की नई प्रजाति कुदरत-100 तैयार की गई है। रघुवंशी ने बताया कि नई प्रजाति का बीज तैयार होने के बाद इसे गेहूँ अनुसंधान निदेशालय करनाल (हरियाणा) को परीक्षण के लिए भेजा जाएगा। निदेशालय की ओर से पुष्टि होने के बाद इसे आम किसानों को मुहैया कराया जाएगा। इससे पहले श्रीप्रकाश ने 9-10 इंच लम्बी बालियों वाली गेहूँ की उन्नतशील प्रजाति कुदरत-9 इसी विधि से तैयार की थी जिसे 2013 में पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण दिल्ली से पेटेंट कराया था।
अपनी खेती, अपना खाद
प्रगतिशील किसान श्रीप्रकाश रघुवंशी ने खेती में अपना सूत्र भी पिरोया है। वह किसानों के बीच अपनी खेती, अपना खाद, अपना बीज, अपना स्वाद का सूत्र पहुँचाते हैं। वह कहते हैं कि इस सूत्र के जरिए ही उन्होंने खुद कामयाबी पायी है और जिस भी किसान ने इस सूत्र को अपनाया, उसे कभी भी खेती में घाटा नहीं हुआ। वह कहते हैं कि इस सूत्र के अपने निहितार्थ हैं। क्योंकि तमाम कम्पनियाँ हमारा ही बीज खरीदती हैं और उन पर अपना टैग लगाकर मूल दाम से कई गुना अधिक दाम वसूलती हैं। जो गेहूँ बाजार में 15 सौ से 18 सौ रुपये में बिकता है, उसे कम्पनी अपना टैग लगाने के बाद बीज के नाम पर चार से पाँच हजार रुपये में बेचती हैं। ऐसी स्थिति में क्यों न अपने खेत में फाउंडेशन बीज तैयार किया जाए और फिर उस बीज से पर्याप्त उपज हासिल की जाए। इसी वजह से वह किसानों को खुद के द्वारा तैयार किए गए चंद दानों को भेजते हैं और उन दानों से किसानों को अपना बीज तैयार करने और फिर उससे नई किस्म की खेती करने की सलाह देते हैं।
वह कहते हैं कि जब तक भारत के किसान समृद्ध नहीं होंगे तब तक पूर्ण रूप से खुशहाली नहीं आ सकती है। इस बात को जयापुरा में आयोजित समारोह में प्रधानमन्त्री श्री नरेंद्र मोदी भी कह चुके हैं। इससे स्पष्ट है कि जो वह सोच रहे हैं और जो उनका सूत्र है, वह प्रधानमन्त्री को भी पसंद आ रहा है। ऐसी स्थिति में उनका हौंसला लगातार बढ़ रहा है। वह एक के बाद एक नए शोध की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।
खेती के प्रति अपने आप को समर्पित करने वाले श्रीप्रकाश चाहते हैं कि पूरे देश के किसानों की आर्थिक हालत सुधरे। किसान खेती को घाटे का सौदा किसी भी कीमत पर न मानें बल्कि विभिन्न देशों की तरह ही भारत के किसान भी गर्व से यह कहें कि खेती के जरिए अपनों को धनवान और यशवान बना रहे हैं। जिस दिन यह काम हो जाएगा, उसी दिन उनका सपना पूरा हो जाएगा। क्योंकि खेती को लेकर कई भ्रांतियाँ पैदा हो गई हैं। कुछ तो संसाधनों के अभाव में हकीकत भी है। इस वजह से युवाओं का मन खेती से हट गया है। ऐसी स्थिति में युवाओं का फिर से खेती के प्रति लगाव पैदा करना होगा।
(लेखक जजीम प्रेमजी फाउंडेशन से जुड़े हैं एवं स्वतंत्र लेखन में सक्रिय हैं।), ई-मेल: navneetrnjn955@gmail.com
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