• प्राकृतिक कारक
• मानवीय कारक
• भू-तलीय-किसी भी क्षेत्र में होने वाली वर्षा के सतही बहाव व उसके द्वारा नदी में पहुँचने वाले सेडीमेन्ट्स के लिए भूगर्भीय कारक महत्वपूर्ण हैं।
• जल ग्रहण की आकृति।
• जल ग्रहण का आकार।
• मृदा के आकार एवं प्रकारः रेतीली व भूरभूरी मिट्टी से जल का भूमि में रिसाव ज्यादा होता है जबकि दोमट एवं चिकनी मिट्टी में यह काफी कम होता है। ज्यादा रिसाव से भूमि के अन्दर का धारा प्रवाह बढेगा तथा अंततः आंतरिक बहाव तेज होगा।
• प्राकृतिक आपदायेः दावानल (जंगल की आग), बाढ़ आदि से भी पानी की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
• भूमि का प्रयोग
• आवास
भूमि में आवश्यक तत्वों की हानी निम्नलिखित कारकों से होती हैः
• आंतरिक बहाव अपने साथ घुलनशील आवश्यक तत्वों को रिसकर अपने साथ ले जाता है।
• सतही मिट्टी का क्षरण एवं छोटे-छोटे कणों का बहना।
इस शताब्दी में रसायनिक खादों के अंधाधुंध प्रयोग से भूमि में नाइट्रोजन एवं फास्फोरस आदि की मात्रा बढ़ गई है। नाइट्रोजन के कण अलग प्रकार का आचरण करते हैं ये मिट्टी में काफी गतिशील होते हैं वनिस्पत फास्फोरस के कण इतने गतिशील नहीं होते हैं। इन दोनों की अधिक मात्रा से पानी में शैवाल की मात्रा बढ़ जाती है इसलिए रसायनिक खादों का समय काफी महत्वपूर्ण होता है। वसंत के मौसम में जबकि जलीय वनस्पति के बढ़ने का समय होता है उस समय घुलनशील फास्फोरस काफी नुकसान पहुँचाता है।
रसायनिक खादों से पानी के स्रोतों पर होने वाले दुष्प्रभावः
• पानी में रहने वाले प्राणियों एवं वनस्पति की प्रजातियों में कमी
• जैव भार बढ़ना
• गंदलापन बढ़ना
• अवसाद में बढ़ोतरी
• पानी में आक्सीजन की कमी होना
• इन सबसे पीने के पानी का स्वाद एवं गंध बदल जाता है
• पानी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है
• पानी में बढ़ने वाले वनस्पति पानी के बहाव एंव गहराई को प्रभावित कर सकती है
• व्यवसायिक रूप से महत्वपूर्ण मछली की प्रजातियां लुप्त हो सकती है
पशुओं के द्वारा उत्सर्जित अवशिष्ट में फास्फोरस की मात्रा द्वारा उत्सर्जित अवशिष्टों से चार गुना ज्यादा होती है जो पानी के घटक संतुलन पर प्रतिकूल असर डालती है।
जंगल पानी की अम्लीयता को बढ़ावा देते हैं। वनस्पति धुंध एवं कोहरे में उपस्थित प्रदूषक को शोषित करती है जो उसके उपर एक शुष्क आवरण बना देती है। वर्षा का पानी उस पर गिर कर उसकी अम्लीयता ग्रहण कर लेता है। ‘कॉनीफर’ इस मामले में सबसे उपयुक्त होते हैं। अम्लीयता के अलावा वनों का ‘सल्फेट कणों’ को अवमुक्त करने की बड़ी भूमिका है। गलत व्यवस्था जैसे ‘युट्रोफिकेशन’ को अंजाम देती है।
बंजर एवं परती भूमिः खाद एवं उर्वरक उपयोग नहीं होने के कारण तथा मृदा क्षरण कम होने के कारण बंजर एवं परती भूमि की गुणवत्ता पर अधिक प्रभाव नहीं डालती है।
बस्तीः जिस जलग्रहण क्षेत्र में मानव बस्ती होती है वहाँ पानी में ‘फीकल कोलीफार्म’ एवं क्लोराइड की मात्रा अधिक होती है। प्राकृतिक एवं मानवीय कारणों से बस्ती का विघटन पानी की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाला महत्वपूर्ण कारक है इस सन्दर्भ में हम मानवीय कारकों पर ज्यादा ध्यानाकर्षण करेंगे।
पहाड़ी क्षेत्रों में व्यवस्थित ‘सीवेज’ प्रबन्धन एवं ‘व्यवस्थित कूड़ा प्रबन्धन’ कमी के कारण पानी दूषित होता है। क्षेत्र की जलवायु जैसे कम तापमान भी प्रदूषण को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण कारक है क्योंकि तापमान कम होने से विघटन में परेशानी होती है तथा अंत में कूड़ा पानी में बहकर उसकी गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
• समस्याः कूड़ा-करकट निस्तारण हेतु जगह की कमी तथा सीवेज निस्तारण की उचित व्यवस्था नहीं।
• वर्तमान स्थितिः कूड़ा-करकट पहाड़ी ढलानों पर डालने से अंततः वह नदी/नालों में गिर जाता है।
• चुनौतीः कूड़ा-करकट एवं सीवेज निस्तारण हेतु विकेन्द्रीकरण तकनीकों की शुरुआत करना।
• क्षेत्र का सर्वे करना – यह कार्यक्रम का ऐसा मानक है जो किसी विशेष क्षेत्र में विचलन तथा कारकों की व्याख्या करता है।
• निगरानी एवं शोध – यह हमें समस्या को नीति निर्धारण करने से पहले समझने का मौका देता है। मानकों का बार-बार परीक्षण कर एक प्रवृति का पता लगाना ‘निगरानी’ है। प्रदूषण की प्रक्रिया के विस्तृत रूप से जांच करना ही शोध है।
• अनुमापन – पानी की गुणवत्ता के मानकों का मानक सीमा के सापेक्ष आंकलन ही अनुमापन है। अनुमापन कार्यक्रम कुछ ऐसे उपयोगी शोध आंकड़ों को एकत्रित कर किसी नीति को परिभाषित करने में सहायक हो सकते हैं तथा जिसके लिए अनुमापन नीति में कुछ परिवर्तन की आवश्यकता हो सकती है।
• मानवीय कारक
प्राकृतिक कारक
• भू-तलीय-किसी भी क्षेत्र में होने वाली वर्षा के सतही बहाव व उसके द्वारा नदी में पहुँचने वाले सेडीमेन्ट्स के लिए भूगर्भीय कारक महत्वपूर्ण हैं।
• जल ग्रहण की आकृति।
• जल ग्रहण का आकार।
• मृदा के आकार एवं प्रकारः रेतीली व भूरभूरी मिट्टी से जल का भूमि में रिसाव ज्यादा होता है जबकि दोमट एवं चिकनी मिट्टी में यह काफी कम होता है। ज्यादा रिसाव से भूमि के अन्दर का धारा प्रवाह बढेगा तथा अंततः आंतरिक बहाव तेज होगा।
• प्राकृतिक आपदायेः दावानल (जंगल की आग), बाढ़ आदि से भी पानी की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
मानवीय कारक
• भूमि का प्रयोग
• आवास
कृषि प्रयोग
भूमि में आवश्यक तत्वों की हानी निम्नलिखित कारकों से होती हैः
• आंतरिक बहाव अपने साथ घुलनशील आवश्यक तत्वों को रिसकर अपने साथ ले जाता है।
• सतही मिट्टी का क्षरण एवं छोटे-छोटे कणों का बहना।
इस शताब्दी में रसायनिक खादों के अंधाधुंध प्रयोग से भूमि में नाइट्रोजन एवं फास्फोरस आदि की मात्रा बढ़ गई है। नाइट्रोजन के कण अलग प्रकार का आचरण करते हैं ये मिट्टी में काफी गतिशील होते हैं वनिस्पत फास्फोरस के कण इतने गतिशील नहीं होते हैं। इन दोनों की अधिक मात्रा से पानी में शैवाल की मात्रा बढ़ जाती है इसलिए रसायनिक खादों का समय काफी महत्वपूर्ण होता है। वसंत के मौसम में जबकि जलीय वनस्पति के बढ़ने का समय होता है उस समय घुलनशील फास्फोरस काफी नुकसान पहुँचाता है।
रसायनिक खादों से पानी के स्रोतों पर होने वाले दुष्प्रभावः
• पानी में रहने वाले प्राणियों एवं वनस्पति की प्रजातियों में कमी
• जैव भार बढ़ना
• गंदलापन बढ़ना
• अवसाद में बढ़ोतरी
• पानी में आक्सीजन की कमी होना
समस्यायें
• इन सबसे पीने के पानी का स्वाद एवं गंध बदल जाता है
• पानी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है
• पानी में बढ़ने वाले वनस्पति पानी के बहाव एंव गहराई को प्रभावित कर सकती है
• व्यवसायिक रूप से महत्वपूर्ण मछली की प्रजातियां लुप्त हो सकती है
पशुओं के द्वारा उत्सर्जित अवशिष्ट में फास्फोरस की मात्रा द्वारा उत्सर्जित अवशिष्टों से चार गुना ज्यादा होती है जो पानी के घटक संतुलन पर प्रतिकूल असर डालती है।
वन
जंगल पानी की अम्लीयता को बढ़ावा देते हैं। वनस्पति धुंध एवं कोहरे में उपस्थित प्रदूषक को शोषित करती है जो उसके उपर एक शुष्क आवरण बना देती है। वर्षा का पानी उस पर गिर कर उसकी अम्लीयता ग्रहण कर लेता है। ‘कॉनीफर’ इस मामले में सबसे उपयुक्त होते हैं। अम्लीयता के अलावा वनों का ‘सल्फेट कणों’ को अवमुक्त करने की बड़ी भूमिका है। गलत व्यवस्था जैसे ‘युट्रोफिकेशन’ को अंजाम देती है।
चारागाह, बंजर भूमि और परती भूमि
चारागाहः ग्रामीण परिवेश का चारागाह एक अभिन्न अंग है। पानी की गुणवत्ता पर चारागाह, कृषि भूमि से कम नुकसान पहुँचाते हैं।बंजर एवं परती भूमिः खाद एवं उर्वरक उपयोग नहीं होने के कारण तथा मृदा क्षरण कम होने के कारण बंजर एवं परती भूमि की गुणवत्ता पर अधिक प्रभाव नहीं डालती है।
बस्तीः जिस जलग्रहण क्षेत्र में मानव बस्ती होती है वहाँ पानी में ‘फीकल कोलीफार्म’ एवं क्लोराइड की मात्रा अधिक होती है। प्राकृतिक एवं मानवीय कारणों से बस्ती का विघटन पानी की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाला महत्वपूर्ण कारक है इस सन्दर्भ में हम मानवीय कारकों पर ज्यादा ध्यानाकर्षण करेंगे।
पहाड़ी क्षेत्रों में व्यवस्थित ‘सीवेज’ प्रबन्धन एवं ‘व्यवस्थित कूड़ा प्रबन्धन’ कमी के कारण पानी दूषित होता है। क्षेत्र की जलवायु जैसे कम तापमान भी प्रदूषण को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण कारक है क्योंकि तापमान कम होने से विघटन में परेशानी होती है तथा अंत में कूड़ा पानी में बहकर उसकी गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
• समस्याः कूड़ा-करकट निस्तारण हेतु जगह की कमी तथा सीवेज निस्तारण की उचित व्यवस्था नहीं।
• वर्तमान स्थितिः कूड़ा-करकट पहाड़ी ढलानों पर डालने से अंततः वह नदी/नालों में गिर जाता है।
• चुनौतीः कूड़ा-करकट एवं सीवेज निस्तारण हेतु विकेन्द्रीकरण तकनीकों की शुरुआत करना।
पानी की गुणवत्ता एवं प्रबंधन के विभिन्न चरण
• क्षेत्र का सर्वे करना – यह कार्यक्रम का ऐसा मानक है जो किसी विशेष क्षेत्र में विचलन तथा कारकों की व्याख्या करता है।
• निगरानी एवं शोध – यह हमें समस्या को नीति निर्धारण करने से पहले समझने का मौका देता है। मानकों का बार-बार परीक्षण कर एक प्रवृति का पता लगाना ‘निगरानी’ है। प्रदूषण की प्रक्रिया के विस्तृत रूप से जांच करना ही शोध है।
• अनुमापन – पानी की गुणवत्ता के मानकों का मानक सीमा के सापेक्ष आंकलन ही अनुमापन है। अनुमापन कार्यक्रम कुछ ऐसे उपयोगी शोध आंकड़ों को एकत्रित कर किसी नीति को परिभाषित करने में सहायक हो सकते हैं तथा जिसके लिए अनुमापन नीति में कुछ परिवर्तन की आवश्यकता हो सकती है।
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