पृथ्वी पर संतुलन स्थापित करने के लिए जीव-जंतु, पेड़-पौधें, जल और इंसानों आदि का एक संतुलित संख्या में होना बेहद जरूरी है। इन सभी के संतुलन से ही पृथ्वी पर जीवनचक्र बना रहता है, लेकिन इस जीवनचक्र को बनाए रखने का जिम्मा इसानों के कंधे पर ही है, परंतु मानव ने जिम्मेदारी को कभी नहीं समझा और पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधनों का केवल अति-दोहन किया। समय के साथ जीवन को सरल बनाने के लिए वैज्ञानिक आविष्कार किए गए, लेकिन इनका अतिउपयोग पृथ्वी के लिए ही घातक साबित होने लगा। जीवन को सुगम बनाने के लिए इन आविष्कारों को जनता तक पहुंचाना बेहद जरूरी था, जिसके लिए बड़े पैमाने पर उद्योग लगाए गए और इन उद्योगों का लगाना आज भी जारी है। नतीजन जल और वायु प्रदूषण तीव्र गति से बढ़ा। ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलवायु परिवर्तन होने लगा। बड़े पैमाने पर लोग विभिन्न बीमारियों की चपेट में आकर मौत के मुंह में समाने लगे। अकेले वायु प्रदूषण से भारत में हर साल करीब 15 लाख लोगों की मौत होती है। पर्यावरण असंतुलन की इस भयावहता को देखकर विश्व भर में इसके संरक्षण की आवाज उठने लगी और आज विश्व के सभी देशों में पर्यावरण का मुद्दा सर्खियों में है, लेकिन इस पूरे मुद्दे में अधिकांश लोगों को केवल अपनी जान की परवाह है। बेजुबान जीव-जुंतओं की जान की किसी को फिक्र नहीं है। इसी नजरअंदाजगी के कारण पक्षियों की मृत्यु दर में 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) के वैज्ञानिक ने पक्षियों ही हालत पर एक शोध किया। शोध के अंतर्गत देश के विभिन्न शहरों में जाकर प्रदूषण की जानकारी भी जुटाई। शोध की रिपोर्ट में ये बात सामने आई कि प्रदूषण के कारण पक्षियों की मृत्यु दर में 40 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। पक्षी विशेष और आइवीआरआई के पूर्व संयुक्त निदेशक डाॅ. रिशेंद्र वर्मा बताते हैं कि जिस प्रकार पक्षियों का आकार इंसानों से काफी छोटा होता है, पक्षियों के अंग इसानों की तुलना में काफी छोटे होते हैं, जिस कारण पक्षियों में एक सेकेंड में श्वसन प्रक्रिया चार गुना ज्यादा होती है। ऐसे में पक्षियों के शरीर में प्रदूषण के अधिक कण पहुंचते हैं। इससे पक्षियों में कैंसर सहित अन्य तरह की बीमारियां जन्म ले रही हैं। साथ ही गंभीर बीमारियों का खतरा 90 प्रतिशत तक बढ़ गया है।
इसके अलाव पक्षी भोजन के तौर पर कीड़े, मकोड़े और कैटरपिलर आदि खाते हैं। इनसे भोजन पकड़कर ये पक्षी अपने बच्चों को भी खिलाते हैं। इसी से इन्हें पर्याप्त पौष्टिक आहार मिलता है, लेकिन प्रदूषण के कारण कीड़े-मकौड़ों की भी मौत हो रही है। नतीजन पक्षियों को पर्याप्त पौष्टिक आहार नहीं मिलने से भी मृत्यु दर बढ़ रही है। यदि देश की राजधानी दिल्ली की बात करें तो दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारण गौरेया, हंस, चील, किंगफिशर सहित पक्षियों की कई प्रजातियां कम हो गई हैं। जबकि कई पक्षी तो विलुप्त ही हो चुके हैं। ये हाल यूं तो दिल्ली का है, लेकिन देश में अन्य शहरों में भी पक्षी अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे है।
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