दिनोंदिन बढ़ता प्रदूषण लोगों को अपना शिकार बना रहा है। 5 साल से लेकर 50 साल की उम्र तक के लोग इससे जूझ रहे हैं। प्रदूषण के कारण दिल्ली हर दिन सुर्खियों में रहती है लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि 90 प्रतिशत शहर जहरीली हवा की समस्या का सामना कर रहे हैं। देश के अधिकांश बड़े शहर प्रदूषण के मानक स्तर को बरकरार रखने में सक्षम नहीं हैं और इस वजह से लोग हर दिन बीमार पड़ रहे हैं।
वायु प्रदूषण की वजह से होने वाली बीमारियों में निमोनिया, फेफड़ों की समस्या, दमा और कई सारी बीमारियाँ शामिल हैं। वायु प्रदूषण के अलावा, जल प्रदूषण भी इसमें शामिल है और इसकी वजह से पीलिया होता है।
ग्रीनपीस इंडिया ने 2015 में 168 शहरों पर कराये गये सर्वेक्षण के अनुसार, 154 शहर वायु प्रदूषण के स्तर को पार कर चुके थे। डब्ल्यूएचओ (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन) के अनुसार, ये सभी 154 शहर हवा की निर्धारित गुणवत्ता पर खरे नहीं उतर पाये। अध्ययनों में कहा गया है कि ज्यादातर बुजुर्ग और प्रौढ़ लोग इससे सबसे पहले प्रभावित हो रहे हैं। ये खतरनाक प्रदूषण उनकी सामान्य जिन्दगी पर बोझ डाल रहा है। इन बीमारियों के अलावा इस प्रदूषण की वजह से माइग्रेन, गले और सीने में दर्द और यहाँ तक कि थायराइड भी हो सकता है। प्रदूषण की समस्या की वजह से किसी को भी रोजमर्रा में निमोनिया की समस्या हो सकती है। आज के समय में यह बहुत ही आम बीमारी हो गई है, इसे कम्युनिटी एसोसिएट निमोनिया भी कहते हैं। यह आमतौर पर साँस लेने के दौरान कीटाणुओं के अन्दर जाने से होता है। यह बीमारी व्यक्ति को बहुत ही कमजोर कर देती है, जिसकी वजह से उनके फेफड़े कीटाणुओं से लड़ नहीं पाते हैं। इसका मतलब है कि निमोनिया की वजह से इम्युनिटी सम्बन्धी समस्याएँ भी होती हैं। इसी तरह, दमा भी फेफड़ों को प्रभावित करने वाली बीमारी है।
यह बीमारी मुख्य रूप से फेफड़ों में सूजन के कारण होती है। सूजन के कारण वायुमार्ग से हवा बाहर नहीं जा पाती। वायु प्रदूषण के अलावा, जल प्रदूषण के कारण पीलिया जैसी बीमारी हो जाती है। पीलिया मुख्य रूप से खून में बिलरुबीन की मात्रा बढ़ जाने के कारण होता है। बिलरुबीन हमारे शरीर में पीले रंग का एक अवांछित पदार्थ होता है, जो कि खून से आयरन के निकल जाने के बाद भी रक्त धाराओं में बना रहता है। पीलिया से पीड़ित मरीज की पहचान त्वचा के बेरंग होने और आँखों के सफेद भाग के पीले होने से की जाती है। आजकल इस तरह की बीमारियाँ रोजमर्रा की परेशानी बन गई हैं। लेकिन अगर आप कुछ घरेलू उपाय अपनाते हैं तो यह काफी फायदेमन्द हो सकता है।
हर्बल थेरेपी है कारगर 1. यदि आप दिन में दो से तीन बार गुनगुना पानी लेते हैं तो आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली सही तरीके से काम करेगी। गुनगुना पानी हमें बीमारियों से बचाने में मदद करता है। इसे अपनी आदत में शामिल करें और हर दिन ऐसा करें। 2. योग से भी इस तरह की बीमारियों को दूर रखा जा सकता है। यदि आप रोजाना अनुलोम-विलोम और जलनेती करते हैं, तो इससे आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली बेहतर होगी। 3. भारत में जड़ी बूटियों से किया जाने वाला उपचार प्रचलित है। लोग कहते हैं कि जो चीज दवाइयाँ नहीं कर सकतीं वो ये जड़ी बूटियाँ दिखा सकती हैं। हर्बल थेरेपी उन लोगों के लिये बहुत कारगर है, जो इस तरह की बीमारियों से ग्रसित हैं। इसके लिये पुदीने और तुलसी की पत्तियाँ लेकर उन्हें पानी में उबालें। दिन में दो बार इस गर्म पानी की भाप लें। यदि आपके पास तुलसी का तेल है तो उसकी एक बूँद गर्म पानी में डालें और उसकी भाप लें। इससे आपकी श्वसन प्रणाली को सामान्य रूप में काम करने में मदद मिलेगी। एक और महत्त्वपूर्ण चीज है जो हर दिन की जा सकती है, वो है गर्म पानी में चुटकीभर नमक डालकर उससे गरारे करें। 4. हमें सही तरीके से भोजन करना चाहिये। हमारा मुख्य भोजन कीटाणुओं और बीमारियों से बचाव करने की मुख्य जिम्मेदारी उठाता है। इन मुख्य आहारों के अलावा, आप कुछ घरेलू चीजें अपने भोजन में शामिल कर सकते हैं, जैसे हल्दी दूध, हमारे शरीर के लिये बहुत ही प्रभावी पेय होता है। इसके कई फायदे हैं। एक चम्मच हल्दी को एक गिलास दूध में घोलकर उसे पी जायें। 5. दूध कैल्शियम का बहुत बड़ा स्रोत होता है और वहीं दूसरी तरफ हल्दी एक प्राकृतिक एंटीबायोटिक है। रोजमर्रा के भोजन में इन दो प्राकृतिक उत्पादों को शामिल करने से आपको बीमारियों को रोकने में मदद मिल सकती है। दूध हल्दी, श्वसन सम्बन्धी परेशानी (निमोनिया, दमा) के लिये बहुत ही उपयोगी उपचार है। अपने माइक्रोबायल तत्वों के कारण यह श्वसन तंत्र के लिये प्रभावी होता है। यह मसाला (हल्दी) आपकी शरीर को गर्माहट देता है और यह गर्मी फेफड़ों के अवरोधों को कम कर देता है। 6. इसके अलावा, दो बूँद अरोमा ऑयल को 250 मिली पानी में डालकर उसे स्प्रे बॉटल में रख सकते हैं। इस मिश्रण का छिड़काव घर में हर जगह करें, खासतौर से अपने बेडरूम में। ये स्प्रे बहुत प्रभावी होता है, इससे तनाव को कम करने और जीवनशैली सम्बन्धी बीमारियों से बचाव करने में काफी मदद मिल सकती है। - डॉ. नरेश अरोड़ा से बातचीत पर आधारित |
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