प्रदूषण मापने का नया पैमाना


प्रदूषण सूचकांक प्रक्रिया को प्रारंभ कर सरकार ने स्वागत योग्य पहल की है। यह सूचकांक केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) व आईआईटी दिल्ली ने तैयार किया है। सीपीसीबी ने प्रदूषण पर ठोस कदम उठाने के लिए प्रदूषण की दृष्टि से समस्याग्रस्त क्षेत्रों की पहचान के लिए और राष्ट्रीय स्तर पर वायु, पानी की गुणवत्ता में सुधार एवं पारिस्थितिकीय नुकसान को दूर करने के लिए यह कार्यक्रम शुरु किया है। इससे किसी भी समुदाय को यह जानने में आसानी होगी कि वह किस स्तर के प्रदूषण में रह रहा है। हालांकि यह सूचकांक अभी सैद्धांतिक बहस के दौर में है परंतु इस दिशा में उठाया गया प्रत्येक कदम स्वागत योग्य है।

भारत में पहली बार दो साल की कवायद से तैयार किए गए व्यापक पर्यावरण प्रदूषण सूचकांक (सीईपीआई) अध्ययन को जनता के लिए जारी किया जा चुका है। गत माह जारी किए गए इस अध्ययन के अनुसार देश के 10 प्रमुख औद्योगिक केन्द्रों में हालात बहुत खतरनाक पाए गए हैं। इनमें गुजरात के वापी व अंकलेश्वर, राजस्थान का भिवाड़ी, उत्तरप्रदेश के गाजियाबाद, सिंगरौली, छत्तीसगढ़ का कोरबा, महाराष्ट्र का चंद्रपुर, पंजाब का लुधियाना, तमिलनाडु का वेल्लोर व उड़ीसा का अंगुल तलचर शामिल हैं।

केंद्रीय सरकार ने यह तय करने के लिए कि किन नए स्थानों पर नई औद्योगिक इकाई लगाने की अनुमति दी जा सकती है और किन इलाकों में तत्काल उचित सफाई की आवश्यकता है, का पता लगाने के लिए प्रदूषण सूचकांक जारी किया है। इस परिपूर्ण पर्यावरण प्रदूषण सूचकांक ने नई प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हुए भारत में प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाईयों के 88 क्षेत्रों को श्रेणीबद्ध कर इंगित किया है।

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अध्यक्ष एस.पी.गौतम का कहना है कि ‘दुनिया में यह अपने तरीके का पहला सूचकांक है। हालांकि पर्यावरणीय गुणवत्ता की निगरानी करना प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की सतत प्रक्रिया है। परंतु यह समावेशी और किसी ढांचे के अंतर्गत संगठित नहीं था जिससे कि औद्योगिक क्षेत्रों को उनके प्रदूषण स्तर के हिसाब से श्रेणीबद्ध किया जा सके।

इस सूचकांक को पिछले तीन महीनों में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं विभिन्न आईआईटी ने सम्मिलित रूप से विकसित किया है। हालांकि केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय एवं सीपीसीबी ने इसकी तारीफ की है लेकिन अभी भी इसमें और सुधार की गुंजाइश है। जैसे इसमें पहली कमी यह है कि 24 दिसम्बर को घोषित 88 सर्वाधिक प्रदूषित इकाइयों की सीमा रेखा को रेखांकित नहीं किया गया है। उदाहरण के लिए सूची में अहमदाबाद, औरंगाबाद और नवी मुम्बई को अत्यधिक प्रदूषित बताया गया है। परंतु यह स्पष्ट नहीं है कि इस शहर, जिले या जिले में स्थित औद्योगिक क्षेत्र में से कौन सा क्षेत्र सर्वाधिक प्रदूषित है। मंत्रालय द्वारा अत्यन्त प्रदूषित क्षेत्रों में औद्योगिक इकाईयों की स्थापना रोकने के लिए इलाकों को परिभाषित करना आवश्यक है।

दूसरी कमी है, कई गंभीर प्रदूषित क्षेत्र जैसे छत्तीसगढ़ में रायगढ़ एवं ओडिशा में जोडा और बारबिल इस सूची में ही नहीं है। तीसरी कमी है कि राज्य प्रदूषण बोर्ड द्वारा दिए गए अपर्याप्त समूह आंकड़ों का प्रयोग। हालांकि वायु की गुणवत्ता संबंधी आंकड़े ठीक हैं। लेकिन पानी एवं भूमि संबंधी आंकड़ों में सुधार की आवश्यकता है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अधिकारी का कहना है कि यह तो शुरुआत है। साथ ही मूल्यांकन अथवा वरीयता सूची की प्रक्रिया में भी सुधार किया जाएगा। इसी के साथ सीमांकन एवं प्रदूषण आकलन का भी विस्तृत अध्ययन किया जाएगा। औद्योगिक क्षेत्रों की पहचान एवं वरीयता का आकलन प्रत्येक दो वर्षों में किया जाएगा।

नई प्रणाली के अंतर्गत निम्न बातों का ध्यान रखते हुए औद्योगिक क्षेत्रों को श्रेणीबद्ध किया गया है। ये हैं प्रदूषण का स्त्रोत, प्रदूषण की व्यापकता और उसकी गहनता एवं वर्गीकरण, प्रदूषण प्रभावित व्यक्तियों की संख्या एवं प्रदूषण नियंत्रण के उपाय। परंतु औद्योगिक क्षेत्रों के निकट रहने वाले व्यक्तियों के स्वास्थ्य संबंधी आंकड़े तो अभी भी दुर्लभ हैं। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की इतनी भी क्षमता नहीं है कि वे प्रदूषण के स्तर की मात्र स्वास्थ्य के संदर्भ में ही निरंतर निगरानी कर सकें। इस सूचकांक की निर्माण प्रक्रिया या प्रारूप बनाने वाले आईआईटी के एक प्रोफेसर ने स्वीकार किया है कि अगर इस सूचकांक को कार्यक्षम बनाना है तो सरकार को प्रदूषण निगरानी की अपनी क्षमता में वृद्धि करना होगी। उनका कहना है ‘हमें नियमित स्वास्थ्य निगरानी की आवश्यकता है। अब सूचकांक राज्य प्रदूषण निवारण बोर्ड़ों से प्राप्त आंकड़ों के अतिरिक्त, मीडिया रिपोर्ट्स, शोध संगठनों, कानूनी याचिकाओं एवं अन्य सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों से प्राप्त आंकड़ों का भी प्रयोग करेगा।

मंत्रालय ने घोषणा की है कि वह दिल्ली स्थित शोध समूह भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य फाउंडेशन से कहेगा कि वह 88 क्षेत्रों में सार्वजनिक स्वास्थ्य का विश्लेषण कर उसकी रिपोर्ट प्रस्तुत करे। सरकार ने स्वीकार किया है कि यह नई सूची उन 24 गंभीर प्रदूषित क्षेत्रों का स्थान लेगी जो कि बजाए वैज्ञानिक तरीकों के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड़ों के आकलन पर आधारित थी। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने प्रस्तावित किया है कि सभी 88 औद्योगिक क्षेत्रों में अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाली इकाईयां 17 श्रेणियों में बंटी हुई होगी और 54 औद्योगिक इकाइयों को लाल श्रेणी की खतरनाक, हानिकारक, भारी और विशाल औद्योगिक इकाइयों में बांटा जाए। हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि मंत्रालय ने इन इलाकों का चयन किस आधार पर किया है।

मंत्रालय ने यह भी घोषणा की है कि वह अगले बजट में ‘साफ-सफाई कोष’ का भी निर्माण करेगी। परंतु उसने यह स्पष्टीकरण नहीं दिया है कि धन कहां से आएगा और क्या प्रदूषणकर्ताओं को भी भुगतान के लिए कहा जाएगा। प्रदूषण सूचकांक अभी तो सैद्धांतिक स्तर पर ही है। जब तक इसे पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम के तहत अधिसूचित नहीं किया जाता, तब तक इसे लागू भी नहीं किया जा सकता। (सप्रेस/सीएसई, डाउन टू अर्थ फीचर्स)
 
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