प्रदूषण की मार

जल प्रदूषण
जल प्रदूषण

भारत में प्रतिदिन 61,948 मिलियन लीटर शहरी सीवेज उत्पन्न होता है। यह बात केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 2015 की अपनी रिपोर्ट में कही है। लेकिन शहरों में बने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की क्षमता कुल उत्पन्न होने वाले सीवेज का 38 फीसदी ही है। इसका अर्थ है कि इसके बाद का सीवेज बिना उपचार के ही नदियों या अन्य जल निकायों में बहा दिया जाता है। इसमें ग्रामीण क्षेत्र का सीवेज शामिल नहीं है। हाल ही में केन्द्रीय जल आयोग के अध्ययन में बताया गया है कि देश की 42 नदियों में कम-से-कम दो विषैली भारी धातुओं की मात्राएँ अपनी तय सीमा से अधिक पाई गईं।

अध्ययन के दौरान देश की 16 नदी घाटियों के पानी का परीक्षण किया, इन नदियों से पानी का नमूना शरद, ग्रीष्म और वर्षा तीनों मौसम के दौरान लिया गया। 69 नदियों में सीमा से अधिक लेड पाया गया और 137 नदियों में आयरन सीमा से अधिक था। देश की सबसे पवित्र और राष्ट्रीय नदी का दर्जा प्राप्त गंगा में क्रोमियम, कॉपर, निकल, लेड और आयरन पाया गया है।

आयोग द्वारा देशभर की नदियों के 414 स्टेशनों से पानी के नमूने एकत्र किये गये थे। परीक्षण के बाद इनमें से 136 स्थानों का पानी उपयोग लायक पाया गया जबकि 168 स्थानों के पानी में आयरन की मात्रा अधिक मिलने के कारण वह पीने योग्य नहीं था। भारत की नदियों में अभी भी प्रदूषण स्तर में सुधार का कोई संकेत नहीं दिख रहा है। यमुना नदी की सफाई 19193 से चल रही है लेकिन अब तक इसके पानी में किसी प्रकार का सुधार नहीं हुआ है। 2017 में भी इसका पानी नहाने लायक नहीं हो पाया था।

देश के पाँच राज्यों (महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल और असम) की नदियों में अधिकतम प्रदूषण की स्थिति विद्यमान है। ऐसी नदियों की लम्बाई लगभग 12,363 किलोमीटर आंकी गई है। अकेले बड़ी संख्या में सीवेज प्रोजेक्ट के निर्माण से ही नदियाँ प्रदूषण मुक्त नहीं होंगी।

दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने एक अध्ययन में कहा है कि अर्द्धनिर्मित सीवेज नेटवर्क और बिना किसी विशिष्ट योजना के डिजाइन किये गये सीवेज से नदियों को प्रदूषण से मुक्त नहीं कराया जा सकता।

प्रदूषण

केंद्रीय जल आयोग द्वारा 2012-13 और 2016-17 के बीच 222 नदी क्षेत्रों में पानी की गुणवत्ता की जाँच की गई। इनमें 67 स्थानों पर पानी की गुणवत्ता निर्धारित सीमा से अधिक थी। 67 स्थानों में से 14 स्थान कैटेगरी-1 (गम्भीर प्रदूषित) और 12 स्थान कैटेगरी-2 के तहत पाये गये। इनमें दो सबसे अहम और बेहद प्रदूषित गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी घाटियाँ भी शामिल थीं।

बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) क्या है?

पानी में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा अनिवार्य है ताकि जैविक वस्तुएँ घुल सकें। पानी में प्रदूषण का स्तर मापने के लिये इसका प्रयोग किया जाता है। अगर बीओडी का स्तर 3 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक है तो पानी को पीने योग्य नहीं माना जाता।

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