दिवाली के तीन दिन बाद राजधानी दिल्ली में प्रदूषण का प्रभाव सामने आया है। लोगों की सेहत पर अब इसका दुष्प्रभाव स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। एक अनुमान के मुताबिक, दिल्ली-एनसीआर के सभी छोटे बड़े, सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों को मिलाकर तकरीबन एक हजार से ज्यादा मरीजों को साँस लेने में तकलीफ और फेफड़ों में संक्रमण है। बताया जा रहा है कि एम्स से ज्यादा दिल्ली सरकार के अस्पतालों में मरीज इलाज कराने पहुँच रहे हैं।
बढ़ी बीमारियाँ
बीएलके अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर संदीप नायर के मुताबिक दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने से सिर्फ लोगों को साँस लेने में ही दिक्कत नहीं हो रही है बल्कि इससे पूरा शरीर प्रभावित हो रहा है।
त्वचा, आँख, नाक, दिल और फेफड़ों पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। अस्थमा पीड़ितों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। इसके अलावा प्रदूषण बढ़ने से बीमारियों के बढ़ने की आशंका भी बढ़ जाती है।
बच्चे भी परेशान
आकाश हेल्थ केयर के वरिष्ठ डॉ. पुनीत खन्ना ने बताया कि हवा में प्रदूषण बढ़ने के कारण बच्चे भी परेशान हो रहे हैं। अस्पतालों में छोटे-छोटे बच्चों के तादाद को देख स्थिति का अन्दाजा लगाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि इस समय धुन्ध के साथ पटाखों की वजह से खतरनाक और जानलेवा रसायनों की परत भी जम चुकी है। सुबह और देर शाम में हालात और भी ज्यादा खराब दिखाई दे रहे हैं।
तत्काल सड़क की धूल साफ करें : ईपीसीए
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की कई प्रमुख सड़कें उच्चतम न्यायालय से अधिकार प्राप्त ईपीसीए की निगरानी में आ गई हैं। ये सड़कें खराब हालत में हैं। ईपीसीए या पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण ने क्षेत्र में अधिकारियों से ऐसी सड़कों की सूची तैयार करने को कहा है। दिल्ली, नोएडा और गुड़गाँव में तीन-तीन सड़कों की पहचान की जाये। यह इसलिये अहमियत रखता क्योंकि आईआईटी कानपुर ने दिल्ली के वायु प्रदूषण पर एक अध्ययन किया था जिसने सड़क पर धूल को शहर में सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर को सबसे बड़ा बताया है।
ईपीसीए के अध्यक्ष भूरे लाल ने कहा कि उच्च प्रभाव वाली सड़कों की पहचान करने के बाद प्रदूषण स्तर को कम करने के लिये वृहद कार्य योजना के तहत तत्काल धूल नियंत्रण के उपाय किये जाएँगे। दीपावली के बाद धूल में इजाफा हुआ है। ईपीसीए ने कहा कि समस्या जितनी बड़ी है उसके मुकाबले पहल का पैमाना छोटा लगता है। कई और सड़कें ईपीसीए की निगरानी में आएँगी और उन्हें बाद में कार्य योजना के दायरे में लाया जाएगा। दिल्ली पर्यावरण विभाग और हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों को पीडब्ल्यूडी और एनएचएआई समेत सम्बन्धित एजेंसियों के साथ समन्वय करके सड़कों की पहचान करने के लिये जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिये गए हैं।
हवा की गुणवत्ता बहुत खराब दिल्ली में तेज हवाएँ चलने से प्रदूषक गायब होने में मदद मिली और इस कारण हवा की गुणवत्ता में सुधार हुआ। दिवाली की रात आतिशबाजी के कारण प्रदूषक बढ़ गए थे। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने हवा की गुणवत्ता ‘बहुत खराब’ रिकॉर्ड की और सूचकांक में यह 319 अंक था। पड़ोसी गुड़गाँव में स्थिति बेहतर है जहाँ हवा की गुणवत्ता ‘खराब’ की श्रेणी में रखा गया है। नोएडा और गाजियाबाद में हवा की गुणवत्ता ‘बहुत खराब’ की श्रेणी में रखी गई है। सीपीसीबी की वायु गुणवत्ता जाँच प्रयोगशाला के प्रमुख दीपांकर साहा ने कहा कि हवा की गति 12 किलोमीटर प्रति घंटे थी जिससे प्रदूषक कण गायब हो गए। उन्होंने कहा, बंगाल की खाड़ी से उठे विक्षोभ के कमजोर पड़ने और इसके धीरे-धीरे असम की ओर से बढ़ने से हवा के गुजरने का मार्ग तैयार हुआ। तेज हवाओं ने प्रदूषक को काफी हद तक साफ कर दिया है। |
आँकड़ों में प्रदूषण का दुष्प्रभाव | |
अस्पताल | ओपीडी मरीजों की अनुमानित तादाद |
लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल | 40 से ज्यादा मरीज |
डीडीयू, डॉ. हेडगेवार और डॉ. भीमराव अम्बेडकर अस्पताल | करीब 140 मरीज |
एम्स ओपीडी | 150 से ज्यादा मरीज |
वेंकटेश्वर अस्पताल | 140 से ज्यादा मरीज |
बीएलके सुपर स्पेशलिटी अस्पताल | 150 से ज्यादा मरीज |
मैक्स पटपड़गंज और फोर्टिस अस्पताल | 100 से ज्यादा मरीज |
पारस अस्पताल | 300 से ज्यादा मरीज |
ये हैं प्रमुख कारण
एम्स के डॉ. करन मदान ने बताया कि दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने के लिये कई कारण जिम्मेदार हैं। दिवाली पर पटाखों के अलावा वाहनों की भारी संख्या और निर्माण कार्य भी सहायक भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर हवा की गुणवत्ता में जल्द ही कोई सुधार होता है तो इससे अस्थमा सहित अन्य तमाम बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को फायदा पहुँचेगा।
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