प्रदूषण चाहे वह दूषित वायु के कारण हो या अत्यधिक ध्वनि के कारण, दोनों ही हमारे मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिये, जीव-जंतुओं के पृथ्वी पर अस्तित्व के लिये तथा सांस्कृतिक धरोहरों के लिये खतरनाक है। इसका निवारण समय रहते आवश्यक है। स्वस्थ वातावरण हमारे स्वास्थ्य एवं विकास के लिये अत्यंत आवश्यक है।
प्रदूषण आज विश्व की सबसे बड़ी चुनौती है, जिसके कारण पृथ्वी पर जीव-जन्तु, वनस्पति, सांस्कृतिक धरोहरों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। विभिन्न प्रकार का प्रदूषण विभिन्न प्रकार के जीवों एवं मानव जाति के लिये खतरे उत्पन्न करता है। वायु प्रदूषण एवं ध्वनि प्रदूषण इतने खतरनाक हैं कि इनमें कार्य करने वाले कर्मचारी एक लंबे समय के बाद कई रोगों के शिकार हो जाते हैं। इसके साथ-साथ प्रदूषण हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। जिससे देश का उत्पादन घटता है, तथा देश को आर्थिक हानि भी उठानी पड़ती है।वास्तव में ‘प्रदूषण’ शब्द अपने आप में काफी विस्तृत है जिसको कुछ शब्दों में परिभाषित करना कुछ कठिन होगा। यू.एस. नेशनल एकेडेमी ऑफ साइंस के अनुसार प्रदूषण वायु, भूमि एवं जल के भौतिक एवं जैविक विशेषताओं में होने वाला ऐसा अनैच्छिक परिवर्तन है जिससे मानव-जीवन, जीव-जन्तु, पेड़-पौधे एवं सांस्कृतिक धरोहर को हानि पहुँचती है। प्रदूषण को मुख्यत: चार वर्गों में बाँटा जा सकता है जैसे (क) वायु प्रदूषण (ख) ध्वनि प्रदूषण (ग) जल प्रदूषण एवं (घ) भूमि प्रदूषण।
अत्यधिक ध्वनि या कंपन से ध्वनि प्रदूषण की उत्पत्ति होती है। प्रत्येक चलने वाली मशीनों से ज्यादा कंपन तथा ध्वनि उत्पन्न होती है। परंतु अत्यधिक ध्वनि या कंपन एक लंबे समय के बाद मानव-स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के लिये खतरनाक हो जाती है। अंतत: प्रभावित कर्मचारियों में बहरापन हो सकता है। बड़े-बड़े शहरों में वाहनों के हॉर्न से अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण होता है जो कि मानव जीवन के लिये कष्टदायक हो जाता है तथा दैनिक जीवन बाधित होता है। ध्वनि प्रदूषण प्रभावित लोगों में उच्च रक्त चाप, मानसिक तनाव, हृदय रोग, पाचन क्रिया में गड़बड़ी, हार्मोन के निकलने में परिवर्तन, दुर्बल स्नायु तंत्र, निद्रा में बाधा, और यहाँ तक की फैक्ट्रियों में कम उत्पादन के लिये उत्तरदायी होता है। सामान्यत: मनुष्य के कान 20-15000 हर्ट्ज की ध्वनि के प्रति संवेदनशील हैं। 800-5000 हर्ट्ज की ध्वनि मानव कान के लिये हानिकारक है। 130 डी.बी. से अत्यधिक ध्वनि मानव कान के लिये अत्यधिक नुकसानदायक एवं कष्टदायक है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार 90 डी. बी. की ध्वनि-ऊर्जा 1/5 तक सुनने की क्षमता को कम कर देती है। कई प्रयोगों से यह निष्कर्ष निकल चुका है कि लगातार ध्वनि-प्रदूषण के कारण फैक्ट्रियों में दुर्घटना हो जाती है तथा गुणात्मक उत्पादन प्रभावित होता है। एक ब्रिटिश अध्ययन के अनुसार जो लोग हीथ्रो हवाई अड्डे के पास रहते थे वे अत्यधिक मानसिक-रोगों से ग्रसित पाये गये। 42 प्रतिशत कर्मचारियों से कार्य में गलतियाँ सिर्फ इसलिये कम हुई जब टेलीग्राफिक कार्यालय में ध्वनिरोधक दीवाल बनाई गई। 96 डी.बी. से 81 डी.बी. ध्वनि प्रदूषण कम करने पर एक बुनाई के प्लॉट में 3 प्रतिशत उत्पादन बढ़ गया। अध्ययन में यह भी पाया गया कि कार्य करते हुए फैक्ट्रियों में हल्का संगीत या धुन बजाने से उत्पादन में वृद्धि हो गई।
वायु प्रदूषण के मुख्यतया तीन कारण हैं। (क) ऑक्सीजन की वातावरण में अत्यधिक कमी (ख) वातावरण में अत्यधिक जहरीली गैसों की उपस्थति जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, निकिल कार्बोनिल के वाष्प या धुँध। (ग) अन्य जहरीली गैसें जैसे- सल्फर डाइऑक्साईड, हाड्रोजन सल्फाइड एवं आर्सीन इत्यादि। वायु प्रदूषण के अन्य कारण भी हैं जैसे कि वाहनों के धुएँ, उद्योगों एवं फैक्ट्रियों के अपशिष्ट पदार्थ, थर्मल पावर स्टेशन एवं न्यूक्लियर विस्फोट से उत्पन्न विकिरण आदि। इसके अतिरिक्त ग्लोबल वार्मिंग के लिये उत्तरदायी गैसें जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, क्लोरोफ्लोरो कार्बन, नाइट्रस ऑक्साइड, हेलोन आदि भी वायु प्रदूषण के लिये जिम्मेदार हैं।
वायु प्रदूषण की तीव्रता उसमें तैरते हुए जहरीली गैस के कणों के नाप पर निर्भर करता है। सामान्यत: 0.1 से 0.25 माइक्रोन के जहरीले कण होते हैं तथा 5 माइक्रोन से बड़े जहरीले कण सांस से संबंधित बीमारियों को उत्पन्न करते हैं। न्यूक्लियर विकिरण भी वायु प्रदूषण का एक सशक्त कारण है इसका उदाहरण हमें 31 दिसंबर 1984 को देखने को मिला जिसके अंर्तगत भोपाल के एक प्लांट से 42 टन तरल मिथाईल आईसोसाइनेट के वातावरण में रिसाव के कारण 60,000 लोग इसके शिकार हुए तथा उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, जिसका पूरा मुआवजा आज तक परिजनों को नहीं मिल पाया। इसके अतिरिक्त इससे प्रभावित लोगों की आँखों में जलन, त्वचा का अल्सर, कोलाइटिस हिस्टीरिया, न्यूरोसिस, कमजोर याददाश्त आदि विकार पाये गये। इसके अलावा इस समय में जिन गर्भवती महिलाओं ने बच्चों को जन्म दिया उनमें अत्यधिक असमानताएं पायी गई तथा कुछ मामलों में बच्चे जन्मते ही मर गये इसी प्रकार अभी हाल में जापान में 11 मार्च 2011 को आये भूकम्प (9 तीव्रता)/सुनामी के कारण फूकुशिमा में स्थापित 6 न्यूक्लियर रियेक्टरों में विस्फोट के कारण फैले रेडिएशन के द्वारा वायु तथा जल प्रदूषित हो गया है जिससे वहाँ के निवासियों के स्वास्थ्य के लिये खतरा पैदा हो गया है। रेडिएशन की तीव्रता इतनी अधिक है कि जापान में खाद्य पदार्थों, समुद्र के पानी, दूध आदि दूषित हो गये हैं। तथा इसके कारण जापान को 300 अरब डॉलर का नुकसान हुआ तथा मृतकों की संख्या 22000 तक पहुँच गई है।
एक अन्य अध्ययन में यह पाया गया कि पश्चिमी युनाइटेड स्टेट के युरेनियम खनन करने वाले मजदूरों में 200 मजदूरों की मृत्यु रेडॉन गैस में अधिक समय तक कार्य करने से कैंसर के कारण हो गई थी। वायु प्रदूषण, वायुमंडल में उपस्थित एक्सरे कॉस्मिक किरणें, रेडियो न्यूक्लिीयोटाईड, न्यूक्लियर परीक्षण, परमाणु घरों की स्थापना एवं रेडियों आइसोटोप्स आदि के विकिरण से भी होता है जोकि मानव जाति के अस्तित्व के लिये गंभीर खतरा है। सामान्यत: विषैले पदार्थ मानव शरीर में सांस के द्वारा, छूने से या आहार के माध्यम से प्रवेश करते हैं तथा विशेष प्रकार की बीमारी शरीर में उत्पन्न करते हैं। उदाहरण के लिये अत्यधिक कार्बन डाइआॅक्साइड गैस की उपस्थिति कर्मचारियों में सांस फूलने की बीमारी अर्थात अस्थमा को उत्पन्न करती है। अन्य बीमारियाँ जैसे ब्रौंकाइटिस, फेफड़े को कमजोर करता है। इसके अतिरिक्त स्ट्रोन्सियम -90, प्लूटोनियम प्रभावित कर्मचारियों में कैंसर का कारण होता है।
गुप्ता (1990) ने जहरीले पदार्थों का मानव व्यवहार तथा जैविक क्रियाओं (जैसे श्वसन, वृद्धि, पाचन) पर प्रभाव जानने हेतु एक प्रयोग किया। उन्होंने अपने प्रयोग में मरक्यूरिक क्लोराइड के सांद्र घोल को सरसों तथा सेम के अंकुरित बीजों के साथ मिलाया तथा कुछ दिनों के पश्चात अवलोकन करने पर पाया कि मरक्यूरिक क्लोराइड के घोल ने बीजों में अंकुरण की दर को रोक दिया। इसी प्रकार एक अन्य अध्ययन चीन में लेम डब्ल्यू. के. एवं उनके अन्य साथियों ने उन कर्मचारियों पर किया जोकि पेंटिंग एवं स्प्रे के कार्यों में काफी समय से जुड़े थे। उन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि कर्मचारियों/मजदूरों में थकान, चिड़चिड़ापन, बाधित निंद्रा, अवसाद, कमजोर याददाश्त तथा कमजोर-मनो-गतिवाहक प्रणाली पाई गई।
वायु प्रदूषण का मानसिक स्वास्थ्य पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। इस संदर्भ में मिश्रा (1992) ने घरेलू महिलाओं पर एक प्रयोग किया तथा उन्होंने पाया कि भोजन बनाते समय प्रयोग किये गये र्इंधन के कारण महिलाओं में खराब आपसी संबंध, मानसिक स्वास्थ्य एवं दृष्टिकोण तथा अति संवेदनशीलता, आत्ममुग्धता, असुरक्षा की भावना, अप्रसन्नता, अस्थिरता, संवेदना, घबराहट, भय आदि पाया गया तथा उनके व्यक्तित्व में विघटन एवं असमायोजन पाया गया।
प्रदूषण नियंत्रण करने के उपाय
प्रदूषण के कुप्रभावों से बचने के लिये हमें यह कोशिश करनी चाहिए कि प्रदूषण के स्रोतों/कारणों को उनके प्रारंभिक अवस्था से हटा दिया जाये। ध्वनि प्रदूषण के दुष्प्रभाव से बचने के लिये कर्मचारियों/अधिकारियों को सलाह दी जाती है कि वे ध्वनि प्रदूषण वाले क्षेत्र में कार्य करते वक्त साउंड- प्रुफ हेल्मेट, ईयर प्लग, ईयर-मॉस्क, पर्सनल ईयर प्रोटेक्टर्स का प्रयोग करें। फैक्ट्री/कार्यालय का निर्माण करते समय साउंड-प्रूफ दीवाल बनानी चाहिए जोकि ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने में काफी सहायक है। उदाहरण के लिये न्यूयार्क में साउंड-प्रुफ दीवार बनाने के कारण 45 डी. बी. ध्वनि प्रदूषण को कम किया गया।
प्रबंधन को चाहिए कि फैक्ट्री में जहाँ पर ध्वनि प्रदूषण अधिक है, वहाँ पर हर छ: महिने में प्रभावित कर्मचारियों का ऑडियोग्राम द्वारा परीक्षण होना चाहिए तथा प्रभावित कर्मचारी/मजदूर को शांत क्षेत्र में भेजकर उसको बहरेपन से बचाया जा सकता है। ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये शोषण एवं मिसमैच दो उपायों का प्रयोग करना चाहिए इसके लिये कर्मचारियों/मजदूरों को ध्वनि वाले क्षेत्र में कार्य करते वक्त मफलर का प्रयोग करना चाहिए जोकि शोषण एवं मिसमैच के सिद्धांत पर कार्य करता है। प्रबंधन को चाहिये कि फैक्ट्री में इलैक्ट्रिक यंत्रों के स्थान पर न्यूमेटिक यंत्रों का प्रयोग करना चाहिए जोकि ध्वनि को नियंत्रित करने में काफी सहायक हैं। इसके अतिरिक्त ध्वनि उत्पन्न करने वाली मशीनों के बाहरी सतह को इंसूलेट कर देने से भी ध्वनि प्रदूषण को रोका जा सकता है। अत्यधिक ध्वनि को नियंत्रित करने के लिये ध्वनि के स्रोत एवं ग्राही के बीच की दूरी बढ़ा देनी चाहिए। फैक्ट्री/इमारतों को बनाते समय उनके डिजाइन इस प्रकार से बनाने चाहिए ताकि ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके। सरकार को भी ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये कठोर से कठोर नियम बनाने चाहिए ताकि सार्वजनिक स्थानों पर होने वाले ध्वनि प्रदूषण को रोका जा सके।
वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये प्रबंधन का यह प्रयास होना चाहिए कि कर्मचारी/मजदूर जहाँ कार्य करते हैं वहाँ जहरीली गैस/दूषित वायु को हटाने के लिये वायु निकालने वाले पंखे उपलब्ध होने चाहिए ताकि कार्य करने वाले व्यक्ति को शुद्ध वायु मिल सके। इसके अतिरिक्त फैक्ट्रियों में जहाँ विषैले पदार्थ बनते हैं या उत्पन्न होते हैं तथा जहाँ यह संभावना है कि विषैले पदार्थ कर्मचारियों में संपर्क, श्वसन, आहार द्वारा शरीर में प्रवेश कर चुके हैं। ऐसे समय में किसी भी खतरे से निपटने के लिये प्रशिक्षित कर्मचारियों का एक दल होना चाहिए जो प्रभावित कर्मचारी/मजदूर के गंभीर स्थिति में शीघ्र ही एक ‘‘यूनिवर्सल एंटीडोट’’ जोकि पाउडर बर्नट टोस्ट, स्ट्रोंग-टी एवं मैगनीशिया के दूध का बना हुआ होता है दिया जाता है। जोकि उस जहर को शोषित कर लेता है। तथा उस जहर को प्रभावहीन बना देता है।
उपरोक्त के अतिरिक्त वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव से निम्नलिखित उपायों द्वारा बचा जा सकता है :-
1. श्वसन उपकरणों के प्रयोग द्वारा।
2. वायु के शुद्ध करने वाले यंत्रों के प्रयोग द्वारा।
3. विषैली गैसों की दिशा को परिवर्तित करके।
4. कार्यस्थल को हवादार बनाकर
5. एक निश्चित अंतराल के बाद कर्मचारियों को वायु प्रदूषित स्थान से स्थानांतरित करके।
6. जहरीले पदार्थों को भूमि में दबाकर।
फैक्ट्रियों से निकलने वाली विषैली गैसों/ पदार्थों की समय-समय पर प्रयोगशाला में जाँच होनी चाहिए तथा तदनुसार उसको दूर करने का प्रयास करना चाहिए। सरकार को अपनी ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करने के लिये परमाणु घर शहर/आबादी वाले क्षेत्रों से काफी दूर स्थापित करने चाहिए जिससे दुघर्टना के समय होने वाले विकिरण से आम जनता को बचाया जा सके। इसके अतिरिक्त कुछ विषैले रासायनिक पदार्थों के निर्माण पर पूर्णतया: प्रतिबंध लगना चाहिए जैसे मिथाइलब्रोमाइड आदि। वातावरण को दूषित करने वाली गैसें जैसे क्लोरोफ्लोरो कार्बन के उत्सर्जन पर पूर्णतया: प्रतिबंध लगना चाहिए।
न्यूक्लियर पावर स्टेशनों के तथा उद्योगों के अपशिष्ट पदार्थों का शमन इस प्रकार करना चाहिए जिससे आम जनता को उसके दुष्प्रभाव से बचाया जा सके। तथा यह प्रयास होना चाहिए कि अपशिष्ट पदार्थों को पुन: चक्रण द्वारा मानव उपयोगी बनाना चाहिए। ग्लोबल वार्मिंग के लिये मुख्यतया उत्तरदायी गैस CO2 की मात्रा में कमी लाने के लिये जीवाष्म र्इंधन में कमी लाने का प्रयास करना चाहिए। इसके स्थान पर अंधाधुंध पेड़ों की कटाई सरकार द्वारा सख्ती से रोक लगानी चाहिए। इसके अतिरिक्त जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगाना चाहिए तथा वनों में पेड़ लगाने चाहिए, प्रदूषण को नियंत्रण करने के उपायों, पर्यावरण संरक्षण, के प्रति जागरूक बनाने हेतु जन आंदोलन चलाना चाहिए। फैक्ट्री प्रबंधकों को चाहिए कि समय-समय पर प्रदूषण फैलाने वाले पदार्थों का मापन किया जाये तथा उसका सख्ती से निवारण किया जाये ताकि प्रदूषण से होने वाले खतरों से कार्य करने वाले व्यक्तियों को संभावित खतरों से बचाया जा सके।
उपरोक्त विस्तृत विवरण से स्पष्ट है कि प्रदूषण चाहे वह दूषित वायु के कारण हो या अत्यधिक ध्वनि के कारण, दोनों ही हमारे मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिये, जीव-जंतुओं के पृथ्वी पर अस्तित्व के लिये तथा सांस्कृतिक धरोहरों के लिये खतरनाक है। इसका निवारण समय रहते आवश्यक है। स्वस्थ वातावरण हमारे स्वास्थ्य एवं विकास के लिये अत्यंत आवश्यक है।
सम्पर्क
एन. के. तिवारी
भारतीय सर्वेक्षण विभाग, देहरादून
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