जल में मानक से 180 गुना ज्यादा क्रोमियम
1. कैंसर, चर्म रोग से 80 प्रतिशत गाँव वाले ग्रसित
2. पशुओं के हो जाते हैं गर्भपात
3. मानक 0.05 के सापेक्ष 9 मिग्रा. प्रति लीटर क्रोमियम
जल ही जीवन है। जब यही जल प्रदूषित हो जाता है तो जहर का काम करता है। ये प्रदूषित जल कानपुर से सटे लगभग 20 गाँवों को परोसा जा रहा है। शासन-प्रशासन जानता है ये प्रदूषित जल जनमानस के लिए जहर है इसके बावजूद वो चुप हैं।
देश के नौ बड़े शहरों में से एक सबसे ज्यादा जल प्रदूषित वाला शहर अब कानपुर हो गया है जहाँ लगभग 350 टेनरियाँ हैं। कानपुर के जाजमऊ क्षेत्र में मौजूद इन टेनरियों से निकलने वाला पानी तमाम केमिकल से युक्त होता है जिनके उपयोग करने से जनमानस को जानलेवा बीमारियाँ सौगात में मिलती हैं। कानपुर के पानी को उपचार करने को दो तरह के संयंत्र स्थापित हैं जिनमें एक तो सिर्फ सीवरेज के पानी का उपचार करता है और दूसरा वो है जो टेनरियों से निकलने वाले पानी का उपचार करता है। टेनरियों के पानी को उपचार करने को गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई द्वारा संयंत्र स्थापित है जिसकी क्षमता 36 एमएलडी है। इस संयंत्र की संरचना अनुसार टेनरियों के 9 एमएलडी पानी को उपचार करने के लिए 27 एमएलडी डोमेस्टिक सीवरेज पानी को मिलाया जाता है। जिससे टेनरियों के पानी को डायलूट किया जा सके। इससे ये तो तय हो गया कि टेनरियों से निकलने वाला पानी बेहद हानिकारक तत्वों से मिश्रित है। यही वजह है कि टेनरियों को आदेश है कि वो अपना पानी उपचार करने के बाद ही छोड़ें।
संयंत्र पर टेनरियों द्वारा उपचार किया हुआ पानी उपचार किया जाता है न कि टेनरियों से सीधे आने वाले पानी का उपचार किया जाता है। मालूम हो कि टेनरियों में उपचार से पूर्व निकलने वाले पानी में 3000 से 3500 मिग्रा. प्रति लीटर क्रोमियम होता है, उपचार के बाद यह 170 से 200 मिग्रा. प्रति लीटर रह जाता है जिसका गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई संयंत्र उपचार करता है। सत्यता यह है कि कुछ बड़ी टेनरियों के अलावा ज्यादातर टेनरियाँ अपना पानी बिना उपचार के ही डोमेस्टिक सीवर में डाल देती हैं। सीधे सीवर में डालने वाले बैटरियों के उत्पादक भी हैं जिनके पानी में तेजाब के साथ ही लेड भी होता है जिसे संयंत्र पर भी उपचारित नहीं किया जाता है। गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के दावेदारों की दावेदारी है कि वह 98 प्रतिशत क्रोमियम पानी से निस्तारित कर देते हैं। उपचार किये हुए पानी में सिर्फ 7 से 9 मिग्रा. ही क्रोमियम प्रति लीटर रह जाता है। उपचार किया हुआ पानी नालिओं के जरिये करीब के गाँव की तरफ छोड़ दिया जाता है। इस पानी का प्रयोग गाँव के किसान अपने खेतों के लिए करते हैं।
प्रदूषित पानी होने के कारण लगभग 20 गाँवों के किसानों की खेती अब बेकार हो चली है जहाँ इन खेतों में जबरदस्त फूलों की खेती हुआ करती थी अब केवल पशुओं के लिए चरी ही होती है। खेतों में लगने वाला पानी भू-गर्भ स्थित पानी को भी प्रदूषित कर रहा है जिससे पीने का पानी भी प्रदूषित हो रहा है। पीने के पानी में क्रोमियम, लेड तथा आर्सेनिक की मात्रा मानक से कई गुना ज्यादा होने के कारण लोगों को फेफड़े तथा लीवर में कैंसर, चर्म रोग हड्डियाँ कमजोर होने जैसी बीमारियाँ बहुतायत हो रही हैं। गाँव के पशुओं के गर्भपात भी होने की खबर है।
अभी हाल ही में जे.के. कैंसर हॉस्पिटल के चिकित्सकों ने भी जाजमऊ से सटे गंगा किनारे बसे गाँव में रहने वाले लोगों के बारे में बताया कि आर्सेनिक तथा क्रोमियम प्रदूषित पानी के सेवन करने के कारण गाँव के लोग कैंसर के रोगी हो रहे हैं। ज्ञात हो कि पीने के पानी में 0.05 मिग्रा. प्रति लीटर क्रोमियम से ज्यादा क्रोमियम नहीं होना चाहिए। इस समय पानी में मानक से 180 गुना क्रोमियम है लेड की मात्रा मानक के अनुसार 0.01 मिग्रा. प्रति लीटर तथा टोटल डिजोल्वड सोलिड्स (टीडीएस) 500 मिग्रा. प्रति लीटर ही होना चाहिए। माना जाता है की टीडीएस की मात्रा 500 मिग्रा. से ज्यादा होने पर पानी पीने योग्य नहीं होता है जबकि इस समय पीने के पानी का टीडीएस इन गाँव में 1624 मिग्रा. प्रति लीटर है।
प्रभावित होने वाले गाँव शेखपुर, मोतीपुर, जान्हा, पैबंदी, किशुनपुर, सुखनीपुर, अलौलापुर, मुवैया, भोलापुर, खजुरिया, त्रिलोकपुर, खलर, वाजिदपुर, भुलगंव, रोमा आदि हैं कानपुर शहर के चार क्षेत्र नौरयाखेड़ा, राखी मंडी, रत्तुपुरवा तथा अनवरगंज के भू-गर्भ में भी क्रोमियम की मात्रा मानक से कई गुना ज्यादा है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने वर्ष 2003 में ही राखी मंडी क्षेत्र में रहने वालों को ग्राउंड वाटर को न पीने की सलाह दे दी थी।
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