जालंधर/ पंजाब/ प्रदूषित पानी के कारण कैंसर से मर रहे लोगों को बचाने के लिए गांवों को साफ पानी मुहैया कराने को तैयार योजना पर अमल की कोई न तो पहल हुई और न ही इस मद में आए 1280 करोड़ रुपयों का हिसाब किसी के पास है। इस रकम में विश्व बैंक का बड़ा हिस्सा है।
रकम पंजाब के वाटर एंड सेनीटेशन विभाग के हवाले की गई थी। इस योजना पर एनजीओ की मदद से काम होना था। हैरानी की बात है कि एनजीओ को काम के लिए शुरुआती रकम भी दी गई लेकिन पानी किसी को नहीं मिला। 1280 करोड़ रुपयों की इस राशि में से 750 करोड़ वर्ल्ड बैंक, 207 करोड़ केंद्र, 245 करोड़ राज्य सरकार व करीब 77 करोड़ की हिस्सेदारी उन गांवों की है जहां योजना पर काम होना था।
योजना क्या है
योजना के दायरे में 2100 गांव शमिल किए गए थे। पहले चरण में सरकार को 2007 तक 500 गांवों में साफ पानी उपलब्ध करवाना था। हालांकि किसी भी गांव में कोई काम शुरू नहीं किया गया है।
योजनानुसार एक एनजीओ को 20 गांवों में काम करना था। जिसके लिए सरकार उसे एक साल में 12 लाख रुपए देती। 5 फीसदी नवंबर 2006 को एनजीओ के साथ एग्रीमेंट के वक्त देना था। एनजीओ के जि?मे काम यह था कि उन्हें संबंधित गांवों का एक प्रोफाइल तैयार कर गांवों की आबादी के अनुसार पानी की खपत का हिसाब लगाकर टंकी और वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगवाना था।
कारण क्या है
पिछले 60 वर्षों से खेती में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग लगातार बढ़ रहा है। सन् 1950-51 0.05 मिलियन टन के उपयोग से बढ़कर सत्र 2004-05 में इनकी खपत 1.84 करोड़ टन हो गई जो कि सत्र 2008-09 में बढ़कर 2.30 करोड़ टन एनपीके एवं 70 लाख टन डीएपी की खपत होने की उम्मीद है। वर्तमान में देश में औसतन 96.4 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से रासायनिक उर्वरकों की खपत हो रही है। जबकि पंजाब में इस राष्ट्रीय औसत का दुगने से भी ज्यादा 197 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया जा रहा है। पंजाब के पड़ोसी राज्य हरियाणा में इसकी खपत 164 किग्रा प्रति हेक्टेयर है। इसी प्रकार उप्र, गुजरात, राजस्थान जैसे राज्यों में भी इन उर्वरकों की अच्छी खासी खपत है। जबकि पूर्वोत्तर के राज्यों में यह खपत 10 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से भी कम है। आंकड़ों के हिसाब से रासायनिक उर्वरकों की खपत पंजाब में सर्वाधिक है।सस्ता यूरिया हमारे लिए अब भस्मासुर ही सिद्ध हो रहा है। बढ़ते यूरिया के उपयोग ने खेतों में पानी की मांग को बढ़ा कर भूजल स्तर को काफी नीचे कर दिया है। यूरिया जैसे नाइट्रोजन युक्त उर्वरक ग्रीन हाउस गैसों के मुख्य स्रोत हैं। इससे उत्सर्जित नाइट्रस ऑक्साइड गैस काबर्न डाय ऑक्साइड की तुलना में 296 गुनी ज्यादा ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव उत्पन्न करने में सक्षम हैं। नाइट्रस ऑक्साइड गैस तेजाबी बारिश की प्रमुख स्रोत हैं। यह वर्षा के जल में घुलकर नाइट्रिक अम्ल बनाती है। यूरिया मिट्टी में घुलकर नाइटे्रट स्वरूप में भी परिवर्तित हो जाता है जो कि भूगर्भ में जाकर भूगर्भीय जल को भी प्रदूषित कर रहा है। पंजाब में कैंसर रोगियों की वृद्धि में इस बात को पुष्ट करती है।
एक साल बाद सरकार ने कुछ एनजीओ को 5 फीसदी रकम तो दे दी लेकिन इस दिशा में काम महज कागजी ही हुआ। एक वर्ष बाद एग्रीमेंट भी खत्म हो गया। अब न तो एनजीओ काम कर रहे हैं और न सरकार ने कोई सुध ली। योजना के तहत विभाग को प्रदूषित पानी को लेकर ग्रामीणों को जागरूक भी करना था कि वे जहरीला हो चुका भू-जल न पींए। लेकिन एक साल हो गया कोई सरकारी अफसर ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए कभी किसी गांव में नहीं गया।
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