प्रदूषित पानी आज भी एक भीषण समस्या

दूषित पानी से पनप रही हैं बीमारियाँ
दूषित पानी से पनप रही हैं बीमारियाँ


आज समूची दुनिया प्रदूषित पानी की समस्या से जूझ रही है। हालात इतने विषम और भयावह हैं कि प्रदूषित पानी पीने से आज इंसान भयानक बीमारियों की चपेट में आकर अनचाहे मौत का शिकार हो रहा है। असलियत यह है कि पूरी दुनिया में जितनी मौतें सड़क दुर्घटना, एचआईवी या किसी और बीमारी से नहीं होतीं, उससे कई गुणा अधिक मौतें प्रदूषित पानी पीने से उपजी बीमारियों के कारण होती हैं।

यदि संयुक्त राष्ट्र की मानें तो समूची दुनिया में हर साल आठ लाख लोगों की मौत केवल प्रदूषित पानी पीने से होती है। संयुक्त राष्ट्र की बीते दिनों जारी एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि एशिया, लैटिन अमरीका और अफ्रीका में हर साल तकरीब 35 लाख लोगों की मौतें दूषित पानी के सम्पर्क में आने से होने वाली बीमारियों के चलते होती हैं। गरीब देशों में यह समस्या और गम्भीर है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि यदि लोगों को पीने का साफ पानी और सेनिटेशन की उचित व स्तरीय सुविधाएँ मुहैया करा दी जाती हैं तो समूची दुनिया में बीमारियों से पड़ने वाले बोझ को 9 फीसदी और भारत समेत दुनिया के 32 सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में 15 फीसदी तक कम किया जा सकता है।

संयुक्त राष्ट्र का आकलन है कि दुनिया में एक अरब से ज्यादा लोगों को पानी उपलब्ध नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनेस्को सहित संयुक्त राष्ट्र की चौबीस एजेंसियों का पानी और दूसरी अन्य बुनियादी सुविधाओं के बारे में किया गया अध्ययन सबूत है कि यदि लोगों को पीने का साफ पानी मुहैया करा दिया जाता है तो हर साल प्रदूषित पानी पीने से होने वाली अतिसार, मलेरिया और दूसरी अन्य बीमारियों से होती एक अरब साठ लाख मौतों को टाला जा सकता है। इसके लिये उक्त एजेंसियाँ अव्यवस्था, भ्रष्टाचार, नौकरशाही का संवेदनहीन रवैया, सक्षम संस्थानों की अनुपलब्धता और बुनियादी सुविधाओं और निवेश के मामलों में अभाव तथा नागरिकों से जुड़ी इन समस्याओं पर सरकार का अंकुश न होना अहम मानती हैं।

अब यह जगजाहिर है कि दुनिया की कुल आबादी के पाँचवें हिस्से को पानी मयस्सर नहीं है। दुनिया के 123 देशों में अपने नागरिकों को दूषित पानी पिलाने वाले देशों में भारत का नम्बर 121वाँ है। जबकि हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश साफ पानी के मामले में हमसे 80वें व श्रीलंका और पाकिस्तान हमसे 40 स्थान ऊँचे हैं। समूची दुनिया में पानी के भारी संकट से प्रभावित होने वाले भारत और चीन की अकेली 40 फीसदी आबादी को इसका सामना करना पड़ रहा है।

जल उपलब्धता के मामले में भारत का स्थान 180 देशों में 133वाँ है। असलियत में दुनिया में 2.6 अरब आबादी को साफ-सफाई, स्वच्छ पेयजल और गन्दे नाले के निकास जैसी बुनियादी सुविधाएँ तक उपलब्ध नहीं हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया में कुल मरने वालों में से 6 फीसदी मौतें प्रदूषित पानी पीने से और सेनिटेशन की समुचित व्यवस्था के अभाव में होती हैं।

हमारे देश में ग्रामीण इलाकों में रहने वाले तकरीब 6.3 करोड़ लोगों को पीने का साफ पानी तक मयस्सर नहीं है। देखा जाये तो यह तादाद ब्रिटेन की कुल आबादी के बराबर है। यह दावा करने वाली ‘वाइल्ड वॉटर रिपोर्ट’ की मानें तो बढ़ती आबादी, पानी की जरूरत में दिनोंदिन हो रही बेतहाशा बढ़ोत्तरी, भूजल स्तर में कमी लाने वाली कृषि पद्धतियाँ और सरकारी योजनाओं के अभाव के कारण पानी की उपलब्धता प्रभावित हो रही हैं। इसके कारण हैजा, मलेरिया, डेंगू, ट्रेकोमा जैसी बीमारियों के साथ-साथ कुपोषण के मामले बढ़ने की भी आशंका है।

यही नहीं खेती पर निर्भर ग्रामीणों को बढ़ते तापमान के बीच खाद्यान्न पैदा करने और पशुओं को चारा जुटाने के लिये संघर्ष करना होगा। साथ ही पानी लाने की जिम्मेवारी उठाने वाली महिलाओं को लम्बे शुष्क मौसम के दौरान अधिक दूरी तय करनी होगी।

गौरतलब है कि देश में हर साल मरने वाले 1.03 करोड़ लोगों में से करीब 7.8 लाख लोग प्रदूषित पानी पीने व गन्दगी से पैदा होने वाली बीमारियों से मरते हैं। इनमें डायरिया से मरने वालों की तादाद 4.02 लाख, कुपोषण से 2.17 लाख तथा मलेरिया, डेंगू व जापानी इंसेफलाइटिस से मरने वाले करीब 19,000 के करीब हैं। विडम्बना यह है कि विकसित देशों में प्रदूषित जल व गन्दगी से मरने वालों की तादाद एक फीसदी से भी कम है।

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट की मानें तो पीने के साफ पानी और साफ सफाई की उचित व्यवस्था करने पर समूची दुनिया में तकरीब 7 अरब 34 करोड़ डालर बचाए जा सकते हैं। साथ ही 10 अरब डालर की सालाना प्रॉडक्टविटी बढ़ेगी और इन मौतों से होने वाले नुकसान की भरपाई कर सालाना 3.6 अरब डालर के बराबर अतिरिक्त आय अलग से पैदा की जा सकेगी।

इसमें दो राय नहीं है कि भारत में भूजल के अतिशय दोहन एवं प्रदूषण के कारण नाइट्रेट, अमोनिया, क्लोराइड व फ्लोराइड जैसे तत्वों का भूजल पर अत्याधिक दबाव है, जिसके परिणामस्वरूप उसमें घुलन ऑक्सीजन की मात्रा दिनों-दिन लगातार कम होती जा रही है।

दुनिया के सभी वैज्ञानिक इस बात पर एकमत हैं कि सदियों से पीने का साफ व सुरक्षित माना जाने वाला भूजल कृषि कार्यों में रासायनिक खादों व उद्योगों में रसायनों के बेतहाशा इस्तेमाल और उसके विषाक्त निकास से बुरी तरह प्रदूषित हो गया हैं।

लंदन के शोधकर्त्ताओं ने यह साबित कर दिया है कि जहाँ पेयजल में लिंडेन, मालिथयोन, डीडीटी और क्लोपाइरियोफोस जैसेे कीटनाशक तत्व मौजूद रहते हैं, वहाँ के लोगों में कैंसर, स्तन कैंसर, मधुमेह, रक्तचाप, कब्ज और गुर्दे सम्बन्धी रोग बहुतायत में पाये जाते हैं। इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ता है।

सर्वेक्षण इस बात के प्रमाण हैं कि उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, आन्ध प्रदेश व पश्चिम बंगाल के भूजल में नाइट्रोजन, फास्फेट, पोटेशियम के अलावा सीसा, मैगनीज, जस्ता, निकिल और लौह जैसे रेडियोधर्मी पदार्थ व जहरीले तत्व निर्धारित मान्य स्तर से काफी ज्यादा मात्रा में मौजूद है। मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश व पश्चिम बंगाल के भूजल में सीसा, कैडमियम, डीडीटी आदि कीटनाशकों के साथ-साथ सल्फेट की अधिकांश मात्रा मौजूद है। सच यह है कि किसानों द्वारा अधिक पैदावार लेने के उद्देश्य से भारी मात्रा में रासायनिक खादों के इस्तेमाल से भूजल का प्रदूषण और बढ़ा है। इसमें बराबर वृद्धि हो रही है। रासायनिक खादों का जो भी हिस्सा भूजल से जा मिलता है, वही उस क्षेत्र के भूजल को प्रदूषित करने के लिये काफी है। नाइट्रेट का संकेन्द्रण भूजल के प्रदूषण का प्रमुख कारण है।

औद्योगिक संस्थानों, कारखानों, मिलों द्वारा बहाए जाने वाले रसायन, कूड़ा व प्रदूषित पानी ने जहाँ भूजल व नदियों को प्रदूषित करने में अहम भूमिका निभाई है, वहीं नदियों का प्रदूषित पानी पीने योग्य न रहकर भयंकर जानलेवा बीमारियों को न्यौता दे रहा है। हमारे यहाँ प्रदूषित पानी पीने से हर साल 16 लाख बच्चे अकाल मौत के मुँह में चले जाते हैं। देश में कुल बीमारियों में से 80 फीसदी प्रदूषित पानी पीने के कारण होती है।

दुख इस बात का है कि हमारे यहाँ लोगों को साफ पीने का पानी मुहैया कराने के लिये पानी की शुद्धता की जाँच व उसे कीटनाशक-रसायन विहीन करने की कोई समुचित व्यवस्था ही नहीं है। यही एक प्रमुख कारण है कि यहाँ के लोग विवशता में प्रदूषित पानी पीकर मौत के मुँह में जा रहे हैं। देश की राजधानी भी इससे अछूती नहीं है। यदि समय रहते समुचित उपाय नहीं किये गए तो आने वाले वर्षों में पीने के पानी के भीषण संकट का सामना करना पड़ेगा।
 

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