हाल-ए-हवा
ग्लोबल वार्मिंग और वायु प्रदूषण में ज्यादा दूरी नहीं है। हाल ही में एक रिपोर्ट आई है जिसमें हिन्दुस्तान के शहरों की हवा को सबसे ज्यादा प्रदूषित बताया गया है, वहीं हिन्दुस्तान ने यूएन में एक रिपोर्ट भेजी है जिसमें बताया गया है कि हिन्दुस्तान का कार्बन उत्सर्जन नियन्त्रण में है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा हिन्दुस्तान के महानगरों में हवा की गुणवत्ता को दुनिया में सबसे बदतर बताया गया है। प्रदूषित महानगर में इसीलिये इन दिनों श्वसन सम्बन्धी समस्याओं में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है। श्वसन सम्बन्धी समस्या बच्चों, वयस्कों और कुपोषण से पीड़ित लोगों में काफी बढ़ रही हैं। इण्डियन काउंसिल आॅफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) की एक बुलेटिन में बताया गया है कि जब घर के अन्दर कोई प्रदूषक तत्व रिलीज होता है, तो बाहर निकलने वाले प्रदूषकों की तुलना में इसके लोगों के फेफड़े तक पहुँचने की सम्भावना हजार गुणा अधिक होती है। विश्व में हर साल करीब 16 लाख लोगों की खासतौर से महिलाओं एवं बच्चों की इंडोर स्मोक (धुआँ) के उच्चतम स्तर के कारण असामयिक मौत हो जाती है। चौंकाने वाली बात यह है कि यह आँकड़ा बाहरी प्रदूषण के कारण हो रही मौतों की तुलना में लगभग दोगुना है।सबसे अच्छी बात है कि अब लोगों ने इस मामले की गम्भीरता को समझना शुरू कर दिया है। यही नहीं, वे इसके समाधानों की तलाश में भी जुट गए हैं। इसके पहले भी कई अध्ययनों में पहले ही वायु प्रदूषण और श्वसन सम्बन्धी अस्वस्थता के बीच मजबूत सम्बन्ध बताए गए हैं। कई अध्ययनों में इंडोर वायु प्रदूषण और श्वसन सम्बन्धी अस्वस्थता के बीच भी सम्बन्ध का पता चला है। जिससे स्पष्ट है कि अब महानगरों में हवा की गुणवत्ता को सुधारना आवश्यक हो गया है। इतना ही नहीं घरों में इंडोर वायु प्रदूषण के स्रोतों को कम करना भी अनिवार्य हो गया है।
लीलावती अस्पताल के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. प्रशांत छाजेड़ कहते हैं कि आधुनिक हिन्दुस्तानी शहरों में वायु प्रदूषण एक सबसे प्रमुख स्वास्थ्य चुनौती के तौर पर सामने आया है। श्वसन से सम्बन्धित बढ़ती समस्याओं और अस्वस्थता के कारण, अब जरूरी हो गया है कि हम घर के बाहर व अन्दर मौजूद प्रदूषकों और उनसे होने वाले खतरों के प्रति सजग हो जाएँ।
बाहरी वायु प्रदूषण को कम करने की बात लम्बे समय से चल रही है, लेकिन चहारदीवारी के अन्दर की हवा की गुणवत्ता को सुधारने के लिये हमें कोशिश करनी चाहिए। ताकि प्रदूषित हवा में रहने वाले कुल समय को कम करने में मदद मिल सके। डॉ. छाजेड़ का कहना है कि देश में अगरबत्ती और धूप जलाने की लम्बी परम्परा रही है। अध्ययन बताते हैं कि इनसे निकलने वाला धुआँ हानिकारक प्रदूषकों को छोड़ता है। इसके अलावा, तम्बाकू और कुकिंग से निकलने वाला धुआँ, कालीनों, फर्नीचर और पर्दों आदि पर जमा धूल इंडोर वायु प्रदूषण को और बढ़ा देती है। यह फेफड़ों के लिये अत्यन्त नुकसानदेह होती है। इण्डिया हेड-ब्लू एयर के विजय कानन का कहना है कि इसीलिये अब एयर प्यूरिफायर के इस्तेमाल में वृद्धि हो रही है। यही वहज है कि शहरों में एयर प्यूरिफायर की माँग में अब वाकई में बढ़ोत्तरी हुई है।
महानगर में दीवाली जैसे त्योहारों के बाद एयर प्यूरिफायर की बिक्री लगभग दोगुनी हो जाती है। अब लोगों ने घर के अन्दर की हवा को साँस लेने योग्य बनाने के महत्त्व को समझना शुरू कर दिया है। एयर प्यूरिफायर इस काम में काफी उपयोगी साबित हो रहा है। एयर प्यूरिफायर जैसी टेक्नोलॉजी न सिर्फ अस्थमा व अन्य श्वसन सम्बन्धित बीमारियों से परेशान लोगों की मदद कर रहा है बल्कि शहरों में लगातार बढ़ रही श्वसन सम्बन्धी बीमारियों की दर को घटाने में भी योगदान दे रहा है। एक ओर जब डम्पिंग ग्राउंड से उठते धुएँ ने लोगों को परेशान कर रखा है वही अब घर में भी होने वाले प्रदूषण की ओर भी ध्यान देना अब जरूरी हो गया है। अन्यथा यह प्रदूषण भविष्य में लोगों के स्वास्थ्य के लिये नई मुसीबत बन सकता है।
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