प्रदूषित हो रहा है कश्मीर का पर्यावरण

आज आलम यह है कि इन झरनों के पानी का उपयोग करने वालों को अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़ते हैं और कभी-कभी तो मामला इतना गंभीर हो जाता है कि मरीज को राजधानी कश्मीर के बड़े अस्पताल तक ले जाने की नौबत आ जाती है। इन झरनों के प्रदूषित होने के पीछे यही उद्योग धंधे ही जिम्मेदार हैं जिनसे निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों को झरनों एवं नदियों में बहा दिया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार क्षेत्र में फैलते प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण सलामतवाड़ी और आलूसा गांव के मध्य सरकार द्वारा स्थापित ऐसे कई औद्योगिक प्लांट हैं जिनसे वातावरण को अत्यधिक रूप से प्रदूषित करने वाले जहरीले धुएं निकल रहे हैं।

इतिहास साक्षी है कि अपने पहले कश्मीर दौरा के दौरान जब मुगल बादशाह जहांगीर और उसकी पत्नी नूरजहां की नजर इस क्षेत्र पर गई तो बरबस ही उनकी जुबान से फारसी में यह जुमला निकल पड़ा जिसका अर्थ है ‘यदि धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यही है यही है यही है।’ अपनी खूबसूरती और प्राकृतिक सुदंरता के लिए कश्मीर हमेशा से दुनिया भर के पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है। चाहे गर्मी के दिनों का खुशगवार मौसम हो या फिर सर्दियों में शुन्य से भी नीचे जाते तापमान, जन्नत नजीर इस धरती पर पर्यटकों का आना अनवरत जारी रहता है। बर्फ की चादरों से ढके यहां के पहाड़ और महानगरों के प्रदूषण से मुक्त इस क्षेत्र में आना वाला हर पर्यटक स्वंय को ताजगी से भरा महसूस करता है। परंतु कभी शुद्ध वातावरण प्रदान करने वाला कश्मीर घाटी भी अब धीरे-धीरे प्रदूषण का शिकार होता जा रहा है। राज्य में पर्यावरण का स्तर दिन-ब-दिन खराब हो रहा है। वैश्विक स्तर पर होने वाले प्रदूषण का प्रभाव जहां पहाड़ों पर नजर आ रहा है वहीं क्षेत्रीय स्तर पर भी प्रदूषण को बढ़ाने के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं।

राज्य में तेजी से पांव पसारते उद्योग धंधों ने इस दिशा नकारात्मक भूमिका अदा की है। प्रदूषण से कश्मीर को मुक्त रखने के लिए आवश्यक है ऐसे कल-कारखानों पर प्रतिबंध लगाया जाए जो अत्यधिक जहरीला धुआं उगल कर समूचे क्षेत्र के वातावरण को प्रदूषित कर रहे हैं। इसके कारण लोग विभिन्न प्रकार की बिमारियों से ग्रसित होते जा रहे हैं। कश्मीर का कुपवाड़ा क्षेत्र है ऐसा ही एक जिला है, जहां पीने के स्वच्छ पानी की बेइंतहा कमी हो गई है। इसका सबसे बुरा प्रभाव यहां की गरीब जनता को उठाना पड़ रहा है जिनका दैनिक जीवन इसी पर निर्भर है। ऐतिहासिक प्रमाणों से पता चलता है कि यहां के झरनों से बहता पानी कभी अमृत से कम नहीं हुआ करता था। गांव के बड़े बुजुर्ग उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि जब कभी गांव में किसी का स्वास्थ्य खराब होता था तो उसे डॉक्टरी इलाज की बजाए झरने का ही पानी पीने की सलाह दी जाती थी और वह उस पानी का उपयोग कर वास्तव में ठीक हो जाया करता था। परंतु आज इन्हीं झरनों का पानी इतना प्रदूषित हो चुका है कि यदि कोई गांव में बीमार पड़ता है तो सबसे पहले उससे यही प्रश्न किया जाता है कि क्या उसने झरने का पानी तो नहीं पी लिया है?

आज आलम यह है कि इन झरनों के पानी का उपयोग करने वालों को अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़ते हैं और कभी-कभी तो मामला इतना गंभीर हो जाता है कि मरीज को राजधानी कश्मीर के बड़े अस्पताल तक ले जाने की नौबत आ जाती है। इन झरनों के प्रदूषित होने के पीछे यही उद्योग धंधे ही जिम्मेदार हैं जिनसे निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों को झरनों एवं नदियों में बहा दिया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार क्षेत्र में फैलते प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण सलामतवाड़ी और आलूसा गांव के मध्य सरकार द्वारा स्थापित ऐसे कई औद्योगिक प्लांट हैं जिनसे वातावरण को अत्यधिक रूप से प्रदूषित करने वाले जहरीले धुएं निकल रहे हैं। इसके प्रभाव से क्षेत्र के गुफाबल, शमनाग, करालपूरा, दर्दसन, लोनहेरा, शोलुरा, दर्दपूरा तथा आलूसा जैसे करीब के गांवों की जनता के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इन गांवों की जनता विशेषकर नई पीढ़ी शारीरिक और मानसिक बिमारियों से ग्रसित होती जा रही है। इसके कोई शंका नहीं है कि इन उद्योगों के आ जाने से क्षेत्र की एक बड़ी जनसंख्या के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा हो गए हैं।

क्षेत्र का विकास संभव होने लगा है। परंतु फायदे से ज्यादा नुकसान नजर आने लगे हैं। कभी साफ आबोहवा वाला करालपुरा की छटा प्रदूषण से ग्रसित हो चुकी है। ऐसे में हम सब की जिम्मेदारी है कि जमीनी सतह पर इनसे छुटकारा पाएं और एक सेहतमंद समाज के निर्माण में योगदान दें। इसके लिए जरूरी है कि सरकार की ओर से जनता के स्वास्थ्य के लिए चलाई गई योजनाओं से उन्हें अवगत कराया जाए और इस नेक काम को पूरा करने के लिए किसी सरकारी अथवा गैर सरकारी संस्थाओं का इंतजार किए बगैर खुद गांव के बुद्धिजीवियों को आगे आने की आवश्यकता है। ऐसा नहीं कि हमारे राजनीतिक दल इस दिशा में नहीं सोचते हैं, वह अवश्य चिंतित है और इस दिशा में कोई ठोस पहल भी करना चाहते हैं। कुछ माह पूर्व कश्मीर में पर्यावरण पर आयोजित एक सेमिनार में पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रो. सैफुद्दीन सोज़ ने राज्य में बदलते पर्यावरण पर चिंता व्यक्त करते हुए इसे घाटी के लिए गंभीर खतरे का संकेत करार दिया। इस संबंध में उन्होंने राज्य की जनता से विशेष रूप से आग्रह किया कि उन्हें ही सबसे ज्यादा जागरूक होने की आवश्यकता है, क्योंकि इसका सीधा संबंध उनके दैनिक जीवन से जुड़ा हुआ है। अतः जनस्तर पर एक सशक्त तहरीक की आवश्यकता है।

प्रश्न यह उठता है कि इस प्रदूषण के लिए कौन जिम्मेदार है? केंद्र, राज्य या देश विदेश से आने वाले हजारों पर्यटक अथवा स्वंय कश्मीरी समाज। इसके सरंक्षण की जिम्मेदारी कौन लेगा? सरकार या पर्यटक अथवा स्वंय कश्मीर की जनता। वास्तव में हम सब कहीं न कहीं इसके जिम्मेदार हैं इसलिए हमसब का फर्ज बनता है कि हम लोग मिलकर इस तरफ काम करें न कि किसी एक के सर ठीकरा फोंड़े। इस आरोप-प्रत्यारोप से न तो कोई हल निकलेगा और न ही प्रदूषण पर प्रभावी नियंत्रण हासिल किया जा सकेगा। आवश्यकता है कि हम सब कलम और कदम से सरकार और इस दिशा में कार्य करने वालों का साथ दें ताकि इससे होने वाले नकारात्मक प्रभावों से बचा जा सके। यह बताने की जरूरत नहीं है कि स्वास्थ्य इंसान को दिया प्रकृति का सबसे अनमोल तोहफा है। जिसकी हिफाजत करना हम सब की जिम्मेदारी है क्योंकि एक स्वस्थ्य मनुष्य से एक स्वस्थ्य समाज के निर्माण की प्रक्रिया आरंभ होती है। किसी भी देश की तरक्की का राज उसी में निहित है कि उस देश के निवासी स्वस्थ हों। विशेषकर हमारे देश में जहां सबसे ज्यादा युवाओं की तादाद है। इसके लिए आवश्यक है कि अपने आसपास के वातावरण को प्रदूषण से मुक्त रखने के लिए सिर्फ अपने घर को ही नहीं बल्कि अपने मुहल्लों और गांवों को भी प्रदूषण से मुक्त बनाएं।

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