सांसद डॉ. अनिल माधव दवे ने लिया व्यवस्था का जायजा
नर्मदा समग्र की विशिष्ट पहल से मिल रहा मरीजों को लाभ
धार : आदिवासी बहुल धार जिले के डही क्षेत्र में बुधवार को नर्मदा समग्र के प्रमुख व सांसद डॉ. अनिल माधव दवे ने नदी एम्बुलेंस की व्यवस्था का जायजा लिया। दरअसल पहाड़ी वाले तथा भौगोलिक रूप से ऐसे क्षेत्र जो कि शासकीय दवाखानों से दूर हैं उन इलाकों के नर्मदा तट पर कैसे लोगों को सेवा दी जाए यह सोच के साथ इस नदी एम्बुलेंस की शुरुआत की गई थी।
अब जबकि लोगों की यह जरूरत बन चुकी है तो इसके विस्तार के लिए भी प्रयास किया जा रहा है। इधर इस तरह की सेवा देखकर महाराष्ट्र बॉर्डर के गांवों के लोगों ने भी ऐसी सेवा के लिए पुकार लगाई तो इसे डॉ. दवे ने स्वीकार करके औपचारिकता पूरी करने के बाद वहां भी सेवा शुरू करने की बात कही है।
धार जिला भौगोलिक रूप से बहुत ही भिन्न है। इस वजह से कई बार यहां दिक्कतें होती हैं। डही ऐसा ही क्षेत्र है जहां पर स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं के मामले में लाभ नहीं मिलने से परेशानी होती है। इसीलिए नर्मदा तट के दसाणा, सत्राणा, धरमराय, छाछकुआ गांवों में नदी एम्बुलेंस पहुंच रही है। नर्मदा समग्र नामक संस्था द्वारा 2011 से इस व्यवस्था को लाया गया है। यह देश की पहली और एकमात्र सेवा है।
नर्मदा का तट बन जाता है अस्पताल
बुधवार को धरमराय में खुद नर्मदा समग्र के प्रमुख व सांसद डॉ. अनिल माधव दवे पहुंचे और उन्होंने नदी एम्बुलेंस की व्यवस्था को देखा। एम्बुलेंस एक ऐसी बोट पर है जो कि विभिन्न सुविधाओं से सज्जित है। बुधवार को धरमराय में ऐसा नजारा देखने को मिला जहां ऐसा लग रहा था मानो नर्मदा का तट अस्पताल बन गया हो।
मरीज बोट की आवाज सुनकर अपने परिजनों की मदद से नर्मदा किनारे आ जाते हैं और फिर शुरू हो जाता है उनका इलाज। चिकित्सक उनकी जांच पड़ताल करने के बाद में उन्हें आवश्यक दवाई उपलब्ध करवाता है। इस तरह नदी एम्बुलेंस सीधे तौर पर चलित चिकित्सालय जैसी व्यवस्था है। यह योजना वर्ष 2011 से अब तक सतत् चली आ रही है।
नदी एम्बुलेंस पर डॉ. अनिल माधव दवे से प्रेमविजय पाटिल की हुई बातचीत का कुछ अंश।
नदी एम्बुलेंस के लिए नर्मदा तट पर पहुंचने की क्या वजह रही?
मैं खुद देखना चाहता था कि धार जिले के नर्मदा तट वाले क्षेत्रों में क्या स्थिति है। कैसे सेवाएं दी जा रही हैं।
क्या भविष्य में इसके विस्तार की कोई योजना है?
यह बात सही है कि लोगों की जरूरत अधिक है। इस बात को हमने समझा है। इसमें हम सरकार से कोई मदद नहीं लेते हैं। जरूरत के हिसाब से आगामी दिनों में संख्या बढ़ाई भी जा सकती है।
कहीं और से भी इस तरह की सेवा की मांग उठी?
महाराष्ट्र और गुजरात के लोग भी हमारे ही लोग हैं। उन तक भी यह सेवा पहुंचना चाहिए। हां, महाराष्ट्र के कुछ गांवों से तो मांग भी की गई।
महाराष्ट्र बॉर्डर के ग्रामों में सेवाएं उपलब्ध करवाने की पहल होगी?
इस बारे में हम महाराष्ट्र बॉर्डर के गांवों में सेवा देने को तैयार हैं। किंतु वहां के सरपंच व पंचायतों से इस बारे में लिखित रूप से आवेदन लिया जाएगा। इसके बाद हम वहां सेवा देना शुरू करेंगे।
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