पराली से प्रदूषण, जमीनी स्तर पर हो काम

पराली से प्रदूषण, जमीनी स्तर पर हो काम
पराली से प्रदूषण, जमीनी स्तर पर हो काम

हमारे देश की राजधानी दिल्ली व आस-पास के इलाकों में पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को लेकर खूब होहल्ला मचा, यह केवल इसी साल की बात नहीं है, पिछले कई सालों से धान की कटाई होने के बाद और इसे जलाने को लेकर प्रदेश की सरकारों में एक-दूसरे पर आरोप लगाने का दौर चलता है और देश की अदालत को भी इसमें अपना दखल देना पड़ता है। आखिरकार नतीजा भी कुछ खास नहीं निकलता और समय के साथ और मौसम में बदलाव होने पर यह मामला अपने आप खत्म हो जाता है।

हाँ, इस प्रदूषित वातावरण के माहौल को लेकर राजनीतिक दलों में जरूर बन आती है,जो एक दूसरे पर कीचड़ उछालने का काम करते हैं और ले-दे कर निशाना किसानों को बनाते हैं। टेलीविजन चैनलों की आपस में होड़ लग जाती है कि कौन कितना बढ़ा-चढ़ा कर  हौआ पैदा करे। नतीजा मास्क बनाने वालों की पौबारह हो जाती है, जो औने-पौने दामों पर जनता को लूटती है। इस समस्या का समाधान अपने-अपने हिसाब से निकालने की नाकाम कोशिश करते हैं।

पराली प्रदूषण को लेकर देश की राजधानी दिल्ली में यातायात में ऑड-ईवन जैसे नियम लागू कर दिए जाते हैं, जिसमें आम जनता जरूर परेशान होती है, पर नतीजा नहीं निकलता भवन निर्माण जैसे कामों पर रोक लगा दी जाती है। इसका फायदा वे सरकारी कर्मचारी उठाते हैं, जो लोगों से अच्छी खासी रकम वसूलते हैं और चोरीछिपे यह काम भी चलता है।

प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों पर भी रोक लगाई जाती है, लेकिन लेदे कर चोरीछिपे वह भी चलती है और जब कभी ऊपर से बड़े अधिकारियों का दबाव आता है तो बिचौलियों के माध्यम से फैक्टरी मालिकों को पहले ही आगाह कर दिया जाता है कि फला दिन  फला समय अधिकारियों का दौरा है, इसलिए फैक्टरियां बंद रखें।

 कहने का मतलब है कि सरकार का काम नियम बनाना है, लेकिन उसको अमलीजामा पहनाना सरकारी मुलाजिमों का काम है, इसलिए सभी को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी, चाहे वे आम आदमी हो या सरकारी मुलाजिम, सरकार हो या किसान, तभी इस तरह की समस्या का समाधान सम्भव है।

किसानों का कहना है कि धान की फसल कटाई और गेहूँ बोआई के बीच का समय कम रहा है और सभी किसानों के पास ऐसे संसाधन नहीं हैं जो पराली को इतने कम समय में ठिकाने लगा सकें। ज्यादातर किसानों की पहुँच ऐसे कृषि यंत्रों या ऐसी तकनीक तक नहीं है, जो पराली नष्ट करने में काम आते हैं।

पराली की खाद बनाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने अनेक तरीके बताए हैं। उसकी जानकारी भी समय पर किसानों तक नहीं पहुँच पाती। इस दिशा में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा पराली से खाद बनाने के लिए वेस्ट डीकंपोजर व पूरा संस्थान, नई दिल्ली द्वारा कैप्सूल बनाए हैं, जिनमें बहुत ज्यादा असरकारक बैक्टीरिया मौजूद होते हैं, जो तय समय में पराली को सड़ा कर खाद बनाने का काम करते हैं।

एक किसान का कहना है कि सरकार केवल प्रचार ही करती है, समस्या के समाधान के लिए जमीनी स्तर पर काम नहीं किया जाता। अगर किसानों की समस्या का सही निदान किया जाए तो किसान पराली क्यों जलाएगा? पराली जलाने से खेत की मिट्टी तो हमारी भी खराब होती है, अनेक पैदावार में फायदा देने वाले तत्व भी नष्ट हो जाते हैं, लेकिन हम क्या करें, हमें अगली फसल भी तो लेनी होती है।

4 कैप्सूल से 1 एकड़ की पराली बनेगी खाद

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली के कृषि वैज्ञानिकों ने एक ऐसा कैप्सूल तैयार किया है, जिसकी कीमत महज 5 रुपए है। इसके 4 कैप्सूल ही एक एकड़ खेत की पराली को खाद बनाने में सक्षम है। इसके इस्तेमाल से पराली की खाद तो बनती ही है, इसके अलावा जमीन में नमी भी बनी रहती है। यह कैप्सूल जो एक तरफ तो पराली को सड़ा कर खाद बनाते हैं, वहीं दूसरी तरफ खेत की मिट्टी को उपजाऊ भी बनाते हैं।

कैसे इस्तेमाल करें

कृषि वैज्ञानिक युद्धवीर सिंह के मुताबिक, सबसे पहले हमें 150 ग्राम पुराना गुड़ लेना है। उसे पानी में उबालना है। उबालते समय उसमें जो भी गदंगी आती है, उसे निकालकर फेंक देना है। फिर उस घोल को ठंडा करके लगभग 5 लीटर पानी में घोल देना है। इसमें लगभग 50 ग्राम बेसन भी घोल कर मिला दें। इसके बाद इसमें पूसा संस्थान से खरीदे गए 4 कैप्सूलों को खोलकर उसी घोल में मिला दें। इस काम के लिए बड़े आकार यानी चौड़ाई वाला प्लास्टिक या मिट्टी का बर्तन लाना है।

अब इस घोल को हल्के गरमाहट वाले किसी स्थान पर लगभग 5 दिनों के लिए रख दें। अगले दिन इस घोल की ऊपरी सतह पर एक परत जम जाएगी। इस परत को डंडे की मदद से उसी घोल में फिर मिला देना है। यह प्रक्रिया लगातार 5 दिनों तक करनी है। इस तरीके से आप का कम्पोस्ट घोल तैयार हो जाएगा। यह 5 लीटर घोल लगभग 10 क्विंटल पराली को खाद बनाने के लिए काफी है।

अब इस तैयार घोल को आप खेत में फैली पराली पर छिड़क दें। फिर खेत में रोटावेटर चला दें। लगातार 20-25 दिनों में पराली की खाद बन जाएगी। इसके अलावा सिंचाई द्वारा भी इस घोल को पानी में डाल सकते हैं। यह घोल समान रूप से पानी में मिल कर पराली वाले खेतों में पहुँच जाए। 20-25 दिनों में ही पराली को खाद में बदल देते हैं।

कृषि यंत्रों का होना जरूरी

इस काम में कृषि यंत्रों का होना बेहद जरूरी है जो पराली को खेत में मिला सके। इस दिशा में केन्द्र सरकार ने कदम उठाया है और 600 करोड़ रुपए की धनराशि मुहैया कराई है, बाकी राशि राज्य सरकारों को वहन करनी है।

उन्नत किस्म के कृषि यंत्रों को किसानों तक पहुँचाने के लिए कस्टम हायरिंग सेंटर बनाए गए हैं, जिन्हें किसान समितियों द्वारा मिल कर चलाया जा रहा है। इस स्कीम के तहत 80 फीसदी अनुदान पर यह यंत्र किसानों की समितियों को मुहैया कराए जाते हैं, जिन्हें किसान अपनी खेती में तो इस्तेमाल करेंगे ही, बल्कि दूसरे किसानों के लिए भी यंत्र किराए पर दे सकेंगे। बदले में उनसे तय किराया लेना चाहिए।

किसानों की पहुँच के लिए कस्टमर हायरिंग सेंटर को मोबाइल एप सीएचसी से जोड़ा गया है। इस एप के जरिए किसान इन यंत्रों का फायदा ले सकते हैं। एक कस्टमर हायरिंग सेंटर 50 किलोमीटर के दायरे में बनाया गया है, जहाँ से कोई भी छोटा-बड़ा किसान अपने नजदीकी सेंटर में कृषि यंत्रों को किराए पर मगाकर उनका इस्तेमाल कर सकता है।

पराली में काम आने वाले यंत्रों में मल्चर, एमबी प्लाऊ, रोटावेटर व सीडर है, जो पराली को काटकर मिट्टी में दबा देते हैं या अवशेषों को जमीन में दबा देते हैं। जीरो टिलेज या हैप्पी सीडर जैसे यंत्र से धान के कटने के बाद खेत में गेहूँ की सीधे बोआई कर सकते हैं। हैप्पी सीडर यंत्र धान की पराली को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर खेत में मिला देता है, जिसकी खाद बन जाती है और साथ ही, गेहूँ की बोआई भी करता है। इस तरीके से किसान के एक साथ काम हो जाते हैं।

 

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Post By: Shivendra
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