पराली न जलाने वाले घर से लेकर आए बहू

वायु प्रदूषण
वायु प्रदूषण

यह बहुतों को अजीब लग सकता है, लेकिन अपने बेटे की शादी से पहले मेरी पहले शर्त यही थी कि मैं बारात को दिखावा बिल्कुल नहीं करूँगा। हर किसी को हानि पहुँचाने वाला फिजूल खर्च न करने के साथ मैंने लड़की के पिता से यह भी पक्का कर लिया था कि वह अपने खेतों में पराली न जलाते हों तभी यह शादी होगी। मैं अपनी बेटी की शादी भी ऐसे ही परिवार में करूँगा। दरअसल इन अलग तरह की शर्तों के पीछे मेरी एक जिद है। मैं स्वच्छ पर्यावरण की खातिर पिछले अट्ठारह वर्षों से खेतों में पराली जलाने के खिलाफ अभियान चला रहा हूँ।

मैं पंजाब के तरनतारन में रहने वाला सत्तावन वर्षीय किसान हूँ। मैं करीब चालीस एकड़ खेत में किसानी करता हूँ। खेती के अपने लम्बे सफर में मैंने अनुभव किया है कि पराली जलाने से उत्पन्न होने वाला प्रदूषण हमारी जिन्दगी पर किस तरह असर डालता है। लेकिन यह एक ऐसी चीज थी, जिसके लिये हम किसानों के अलावा दूसरा कोई जिम्मेदार नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि पराली जलाने के सिवा किसानों के पास दूसरा कोई विकल्प नहीं होता है। कई ऐसी मशीनें ईजाद हो चुकी हैं, जिनके इस्तेमाल से पराली खेतों में छोड़ने की विवशता नहीं होती। जरूरत बस इसी बात की थी कि किसान संकल्प लेकर किसी ऐसे विकल्प पर विचार करें, जिससे हर साल अक्टूबर-नवम्बर में पंजाब से लेकर दिल्ली/एनसीआर तक प्रदूषण की मार झेलने वाले करोड़ों लोगों को कुछ सहूलियत मिले।

यह साफ था कि सिर्फ मेरे सोच लेने से स्थिति में रत्ती भर बदलाव नहीं आता। इसलिये मैंने अपने साथी किसानों को इस बाबत मनाना शुरू कर दिया। इस काम के लिये मैंने कृषि विज्ञान केन्द्र की भी मदद ली। वक्त लगा, पर धीरे-धीरे मैंने कुल चालीस किसानों को पराली न जलाने की मुहिम में शामिल कर लिया हम सबने धान काटने की वह तकनीक अपनाई, जिसमें पराली खेतों में ही जलाने की मजबूरी नहीं होती।

हम सभी किसानों के इस कदम से पर्यावरण को तो फायदा हुआ ही, साथ ही एक बड़ा फायदा यह भी हुआ कि साल दर साल हमारे खेतों की उर्वरता बढ़ती गई। इससे मुझे अपनी मुहिम को धार देने का एक और बहाना मिल गया। मिट्टी की बेहतर गुणवत्ता का प्रचार मैंने जोर-शोर से किया, ताकि और ज्यादा किसान मेरे अभियान में शामिल हों। ऐसा हुआ भी।

हरदेव जैसे किसान तो मेरी बात मानने के बाद अगली फसल के दौरान हैरत में थे कि उन्हें अपने खेतों में पहले की तुलना में आधी खाद डालनी पड़ी। मैं लोगों को समझाता हूँ कि किस तरह वे पराली न जलाकर अपनी आय बढ़ा सकते हैं। मेरे कामों से प्रभावित होकर कृषि विज्ञान केन्द्र ने मुझे मुखिया बनाकर कई प्रशिक्षण कैम्पों की भी व्यवस्था की। अनेक किसानों ने इन कैम्पों में हिस्सा लेकर मेरी बातों में विश्वास जताया। किसान नू किसान दी गल जल्दी समझ आउंदी है, तभी तो कृषि विज्ञान केन्द्र वाले मुझसे कहते हैं कि किसानों को जो बात हम वर्षों से नहीं समझा पाते, वह आप बड़ी आसानी से समझा देते हैं।

मुझ पर कृषि विज्ञान केन्द्र ने एक डॉक्यूमेंटरी फिल्म भी बनाई है। मैं गुरु नानक देव जी के उस उपदेश को मानता हूँ, जिसमें उन्होंने हवा को गुरु, पानी को पिता और धरती को माँ बताया था। दुर्भाग्य है कि उन्हें मानने वाले लोग आज उन्हीं की कही बातों पर अमल नहीं करते हैं।

-विभिन्न साक्षात्कारों पर आधारित

Path Alias

/articles/paraalai-na-jalaanae-vaalae-ghara-sae-laekara-ae-bahauu

Post By: editorial
×