जिला मुख्यालय उधमपुर ध्रुव, बौली एवं देविका की भूमि के नाम से प्रसिद्ध हैं, जिसे बाद में जम्मू कश्मीर के डोगरी राज के संस्थापक महेन्द्र गुलाब सिंह के ज्येष्ठ पुत्र राजा उधम सिंह के नाम से जाना गया। यह क्षेत्र शहर बनाये जाने से पूर्व एक घना जंगल था, जहाँ राजा उधम सिंह विशेष अवसरों पर शिकार के लिये आया करते थे। उधमपुर जिला उत्तरी अक्षांश में 32 डिग्री 34 मिनट से 39 डिग्री 30 मिनट तक एवं पूर्वी अक्षांश में 74 डिग्री 16 मिनट से 75 डिग्री 38 मिनट तक फैला है। समुद्र तल से उधमपुर जिला 600 से 3,000 मीटर ऊँचाई पर स्थित है। यह जिला जम्मू कश्मीर राज्य के दक्षिण-पूर्वी भाग में है और यह पश्चिम में राजौरी जिले से, उत्तर-पूर्व में डोडा जिले से, दक्षिण-पूर्व में कथूरा एवं दक्षिण-पश्चिम में जम्मू जिले से सीमाबद्ध है। उधमपुर को देविका नगरी के नाम से भी जाना जाता है।
भारत की जनगणना के अनुसार उधमपुर जिले की कुल जनसंख्या 1,16,727 हैं और यह शहर 6 वर्ग किमी. में बसा है। उधमपुर में काफी प्राकृतिक जलस्रोत हैं जिसे स्थानीय भाषा में बौली कहा जाता हैं। इन बाउलियों का जल सर्दी के मौसम में गर्म एवं गर्मी में ठंड़ा रहता है। उधमपुर जिले की अधिकांश जनसंख्या सुबह के स्नान के लिये इन्हीं बाउलियों में जाती हैं और पीने का पानी भी यहीं से लाती है, ऐसा माना जाता है कि इसका जल पाचन के लिये अच्छा रहता है। सुंदर मंदिर, छायादार वृक्ष, विशालयकाय पत्थर, पीपल के पेड़ आदि सामान्यतः इन्हीं बाउलियों के आस-पास हैं, जहाँ हिंदू श्रद्धा पूर्वक साष्टांग प्रणाम करते हुए प्रार्थना करते हैं।
देविका मंदिर के पास आठ बाउलियों का समूह है। प्रत्येक बौली की अपनी अलग प्रासंगिकता है। जिसमें तीन बौली नहाने के उद्देश्य से चिन्हित हैं और बाकी मंदिर के उपयोग के लिये। इन बाउलियों का जल लोगों द्वारा भगवान शिव को चढ़ाया जाता है, जिसे सुबह के समय मंदिर क्षेत्र में लगी भक्तों की लम्बी कतार के रूप में देखा जा सकता है। बैसाखी के उपलक्ष्य में देविका क्षेत्र में दो दिन तक चलने वाला भव्य मेला लगता है। जम्मू क्षेत्र से आस-पास के लोग मेला में भागीदारी करने आते हैं। पवित्र देविका के किनारे प्राचीन शिव मंदिर है। जहाँ सोम अमावस्या एवं बैसाखी के दिन उधमपुर और उसके आस-पास के गाँवों से भारी मात्रा में लोग मंदिर के दर्शन करने और पवित्र देविका में डुबकी लगाने आते हैं।
देविका मंदिर क्षेत्र की विशेषता है कि यहाँ प्रत्येक समुदाय के लोग एक-दूसरे का सम्मान करते हैं। विभिन्न जातियों एवं मान्यताओं से जुड़े हुए तीर्थयात्री भारी संख्या में मंदिर आते हैं। वे संपूर्ण श्रद्धा से प्रार्थना करते हैं और उनकी मनोकामनाएँ भी पूरी होती है।
उधमपुर के बैथल बालियन के पास लोनडाना गाँव में एक प्राकृतिक जलस्रोत हैं, जिसमें त्वचा रोग से ग्रसित लोग स्थान करके ठीक हो जाते हैं। यह मान्यता है कि यह बाबा लोन्डाना के आशीर्वाद से होता है। लेकिन वैज्ञानिक तर्कों के आधार पर पानी में सल्फर की मात्रा होने से ऐसा होता है।
बिलान बौली- यह बौली उधमपुर के मुख्य पोस्टऑफिस के पास में स्थित है। इसके सामने शिव मंदिर है। इसका पानी बिल्कुल साफ रहता और पाचन के लिये भी उपयुक्त है। बौली के आस-पास रहने वाले लोग प्राकृतिक स्रोत के जल को पीने के उद्देश्य से इस्तेमाल करते हैं। इसलिये इस क्षेत्र को स्थानीय भाषा में बिलान बौली मोहल्ला कहते हैं।
कल्लार बौली - यह बौली उधमपुर के पश्चिम में कालार के पास धार रोड पर है। इसके पास ही में एक शिव मंदिर है। स्थानीय निवासियों के द्वारा यह कुण्ड 1953 में बनाया गया, जिसमें सुंदर हरे पहाड़ों से पानी रिसकर आता है और इस कुण्ड में जमा हो जाता है।
खर्तारिया बौली - यह बौली संगूर बरैंन के पास स्थित है। उधमपुर बाईपास रोड से इस बौली तक पहुँचा जा सकता है। यहाँ दो प्रकार की बौली हैं, एक ढकी हुई और दूसरी खुली। खुली बौली में पानी पहाड़ी की ओर से आता है। मंदिर के आस-पास चिनार के पेड़ हैं। बौली क्षेत्र में एक शिव मंदिर है और इस क्षेत्र में तीन कैनाल भी हैं।
मियान बाग बौली - यह बौली एयरफार्स स्टेशन के बाईं ओर स्थित है। और इसी क्षेत्र में एक प्राचीन शिव मंदिर भी है।
रताईरी बौली - यह बौली रेलवे रोड के पास पम्प स्टेशन में स्थित है।
साकेन बौली - साकेन, डोगरी के पास है जिसका मतलब एक पुरूष का दो महिलाओं से संबंध होना है। ये बौलियां उधमपुर रेलवे स्टेशन के पास स्थित हैं। इनके जल का उद्गम पहाड़ी की सतह पर है जहाँ से जल दो कुण्डों में बराबर विभाजित हो जाता है।
संसु बौली - यह बौली उधमपुर शहर से 4 किमी दूर पंचारिसम के रास्ते में है। इसके पास में एक शिव मंदिर है।
मंगु दी बौली - यह बौली देविका घाट के पास स्थित है, इसे 1941 में धर्मनिष्ठ व्यक्ति मंगु ने बनाया था। और इसी व्यक्ति ने एक बड़ा तालाब कटरा जाने वाले रास्ते में पंथल गाँव में भी बनाया, जिसे बाद में ‘मंगु दा तालाब’ नाम ने जाना जाने लगा।
लेखक परिचय
चंदेर एम. भट्ट
चंदेर एम. भट्ट का जन्म 20 मार्च, 1960 में उत्तर कश्मीर में मुर्रान गाँव में हुआ, वे वर्तमान में भारत सरकार के पोस्ट विभाग में सहायक अधीक्षक के रूप में कार्यरत हैं। उनके डाक एवं प्रकृति से जुड़े हुए गैर-राजनीतिक लेख देश भर की विभिन्न पत्रिकाओं और अखबारों में प्रकाशित होते हैं। उनके द्वारा सम्पादित एवं पोस्ट विभाग द्वारा प्रकाशित बुकलेट ‘‘हाउ टू कलेक्ट स्टैम्प्स’’ की खूब प्रशंसा हुई। उन्होने मुर्रान गाँव के ग्रामवासियों की विरासत पर शोध कार्य किया, जो व्यापक रूप से प्रशंसित ‘‘मुर्रान-मेरा गाँव’’ पुस्तक के रूप में आयी। गम्भीर चिन्तनयुक्त चंदेर एम. भट्ट ने अपनी विभिन्न सुन्दर कविताओं को ‘‘ओसिएन बाई ड्रॉप’’ पुस्तक में संकलित किया। ‘‘जम्मू कश्मीर का प्राचीन इतिहास’’ पुस्तक से उनकी शोध क्षमता एवं कौशल का पता चलता है। उनके विभिन्न शोध पत्रों ने कश्मीरी पंडितों के समुदाय के निवासन के समय समुदाय का मार्गदर्शन करने का काम किया, जिसके वे स्वयं भी सदस्य हैं।
वर्तमान में लेखक ‘‘ओल...दे नेस्ट’’ के छटे संस्मरण प्रोजेक्ट, जो कश्मीरी पंडितों के गाँवों पर आधारित है, पर काम कर रहे हैं।
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अनुवाद - मुकेश बोरा
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