साल 2010 से उत्तराखण्ड में प्राकृतिक आपदाओं ने अपना विद्रुप रौब दिखाना आरम्भ किया। जिससे लाखों जानें गईं तो करोड़ो का नुकसान लोगों को उठाना पड़ा। कई घर उजड़ गये तो हजारों बच्चे अनाथ हुए। यही नहीं सैकड़ों बच्चे आज भी अपने माँ-बाप के मिलने की आस लगाये बैठे हैं जो आये दिन अखबारों की खबरें बनती जा रही है। सरकार का आपदा प्रबन्धन विभाग भी अपने सूक्ष्म संसाधनों से आपदा प्रबन्धन के कामों में हाथ बँटाता है। बहरहाल प्रकृति को समझना मनुष्य के बस से बाहर है। इसलिए आपदा कब घटेगी यह महत्त्वपूर्ण नहीं है, महत्त्वपूर्ण यह है कि आपदा के दौरान सुरक्षा के इन्तजाम कैसे हो इस पर राज्य का आपदा प्रबन्धन विभाग कछुआ गति से काम कर रहा है। हाल में विभाग ने आपदा में हुए नुकसान की एक सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक की है। इस रिपोर्ट का लब्बोलुआम सिर्फ यही है कि आपदा में सरकारी संसाधनों का कितना नुकसान हुआ और पिछले बरसात के तीन माह में कितने लोगों ने आपदा में जान गँवाई है। रिपोर्ट में इस बात का जिक्र कतई नहीं है कि आपदा की घटनाएँ मानव जनित है या प्राकृतिक है।
उल्लेखनीय हो कि उत्तराखण्ड में पिछले दो महीने से हुई भारी बारिश, भूस्खलन, बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं की मार झेल रहे लोगों के लिये यह खबर और बुरी है। आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से कराए गए हालिया सर्वे में पूरे राज्य में 235 ऐसे स्थान चिह्नित किए गए हैं, जो प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से खतरनाक हैं। दूसरी ओर सर्वे में यह बात सामने आई है कि प्राकृतिक आपदाओं में अब तक विभिन्न इलाकों में 90 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 10 लोग लापता हैं, जिनकी एनडीआरएफ, एसडीआरएफ तलाश कर रही है। सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक प्राकृतिक आपदाओं में अब तक 650 करोड़ की संपत्ति का नुकसान हुआ है। आपदा प्रबंधन विभाग के उपसचिव संतोष बडोनी के मुताबिक इस वर्ष मानसून के दौरान आई आपदाओं में 90 लोगों की जान जा चुकी है जबकि 10 लोग लापता हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि इस वर्ष की प्राकृतिक आपदाओं के चलते अवस्थापना सुविधाओं को काफी नुकसान पहुँचा है। जिलों एवं विभागों से भेजी गई रिपोर्ट के मुताबिक 650 करोड़ की संपत्ति का नुकसान हुआ है। बकौल उप सचिव श्री बडोनी विभाग की ओर से पूरे राज्य में आपदा के लिहाज से 235 खतरनाक जोन चिह्नित किए गए हैं, जहाँ आपदा प्रबंधन विभाग और जिला प्रशासन की ओर से सुरक्षा के इंतजाम किए जा रहे हैं। उल्लेखनीय पहलू यह है कि ज्यादातर खतरनाक जोन चारधाम यात्रा मार्गों पर चिह्नित किए गए हैं। उप सचिव के मुताबिक आपदा से प्रभावित 341 गाँव में से 100 गाँव का सर्वे करा लिया गया है। इन गाँवों के ग्रामीणों को आपदा राहत सहायता पहुँचाई जा रही है। प्राकृतिक आपदाओं के दौरान जानमाल का नुकसान न हो, इसके लिये नदी के आस-पास के क्षेत्रों में निगरानी के लिये जिला प्रशासन को पहले ही अलर्ट कर दिया गया है। नदी के किनारे जल पुलिस को तैनात करने के साथ ही बाढ़ राहत चौकियों को सक्रिय कर दिया गया है। आपदाओं के चलते कई राजमार्गों और संपर्क मार्गों पर यातायात बाधित है। जिसे दुरुस्त किया जा रहा है, ताकि यातायात बहाल किया जा सके।
अधूरा सर्वेक्षण
आपदा प्रबन्धन विभाग द्वारा कराये गये सर्वेक्षण में सिर्फ जानमाल और सरकारी सम्पत्ति के नुकसान का जिक्र है। जबकि इस सर्वेक्षण में आपदा के कौन से ऐसे खतरनाक जोन हैं जहाँ पर प्राकृतिक आपदा सर्वाधिक घट रही है। ऐसे खतरनाक जोन पर किस तरह का विकास हो रहा है उसकी पुष्टी करनी चाहिए थी। क्या ऐसे खतरनाक जगहों पर बाँध बन रहे हैं, क्या सड़क निर्माणाधीन है यदि है तो निर्माण में कौन सी मशीनें और संसाधन उपयोग में लाये जा रहे हैं, क्या गाँव में शत-प्रतिशत शौचालय है यदि हैं तो उनके सीवर की कैसी व्यवस्था है? आदि सवाल आपदा प्रबन्धन विभाग की इस सर्वेक्षण रिपोर्ट के सामने खड़े हैं। राज्य के तमाम पर्यावरण विज्ञानी यही सवाल खड़े कर रहे हैं कि जहाँ-जहाँ आपदा घटी वहाँ पर मौजूदा विकास की तस्वीर कैसी है।
विकास पर पुनर्विचार
विकास और पर्यावरण में अब अन्तर्द्वन्द स्पष्ट नजर आ रहा है। पहाड़ों को विशालकाय मशीनें तोड़ रही है जो मौजूदा विकास की दुहाई दे रहे हैं। डाईनामेट और अन्य प्रकार का ब्लास्ट पहाड़ को तोड़ने के लिये किया जा रहा है। जिससे पहाड़ की छाती छलनी हो रही है। पहाड़ की छाती पर ही गाँव बसे हैं। इन्हीं गाँव के निचे से सुरंग बनाई जा रही है। सुरंग के ऊपर गाँव और जंगल है। जहाँ प्राणी जगत की बहुविविधता है। लेकिन इन कच्चे पहाड़ों को तोड़ने के लिये कैसी मशीनें इस्तेमाल किया जाये, कहाँ कितना दोहन किया जाये जिससे कम से कम जन-धन और पर्यावरण का नुकसान हो। विकास के नाम पर जो प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जा रहा है उस पर वर्तमान में पुनर्विचार करने की प्रबल आवश्यकता है। ऐसा मानना है पर्यावरणविद अनिल प्रकाश जोशी और सुरेश भाई का।
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