मध्य प्रदेश समेत पूरे देश में बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि से खेती-किसानी जबरदस्त संकट में हैं। इस संकट से बेपरवाह भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था और राजनीतिक लापरवाही ने किसान को बेहद मायूस कर दिया है। किसान को जहाँ खरीफ फसल की बुवाई के दौरान सूखे ने परेशानी में डाला, वहीं ओलावृष्टि और बेमौसम बरसात ने किसान को लगभग तबाह कर दिया है। इस कुदरती आपदा का असर मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा में देखने में आया है। इस कारण जहाँ रबी फसलों की पैदावार में बीस फीसदी की गिरावट आ सकती है, वहीं दलहन उत्पादनों में सात फीसदी तक हानि की आशंका जताई जा रही है। जाहिर है, मौसम की यह मार जहाँ फसलों की गुणवत्ता को प्रभावित करेगी, वहीं महंगाई बढ़ाने वाली भी साबित होगी।
मौसम की मार ने किसानों की मुसीबत बढ़ा दी है। इस मार से गेहूँ, चना, मसूर, सरसों, धनिया, मटर, सन्तरा और आलू की फसलें प्रभावित हुई हैं। इस साल वैसे भी देरी से बारिश होने के कारण समय पर रबी फसलों की बुवाई नहीं हो पाई थी। नतीजतन कृषि मन्त्रालय को पैदावर पिछली साल 10,60,65000 टन की तुलना में इस साल 10,03,40000 टन होने की उम्मीद थी, किन्तु अब इसमें और गिरावाट की उम्मीद बढ़ गई है। जाहिर है, इस बार रबी फसलों की पैदावार में बीस फीसदी तक की गिरावट आएगी। जबकि दालों में सात फीसदी की पैदावार कम होने की उम्मीद है। इस कारण कृषि मंत्रालय के ताजा अनुमान के अनुसार, इस साल देश का दलहन उत्पादन 184.3 लाख टन रह जाएगा। पिछले साल यह उत्पादन 197.8 लाख टन था। इस साल तुअर का उत्पादन सत्ताइस लाख टन और चने का उत्पादन दस फीसदी घटकर 82.8 लाख टन रहने के आसार हैं।
मध्य प्रदेश समेत पूरे देश में बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि से खेती-किसानी जबरदस्त संकट में हैं। इस संकट से बेपरवाह भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था और राजनीतिक लापरवाही ने किसान को बेहद मायूस कर दिया है। किसान को जहाँ खरीफ फसल की बुवाई के दौरान सूखे ने परेशानी में डाला, वहीं ओलावृष्टि और बेमौसम बरसात ने किसान को लगभग तबाह कर दिया है।मौसम की इस मार की गुहार संसद में शून्यकाल के दौरान कोटा-बूँदी के लोकसभा सांसद ओम बिरला ने लगाई थी। बिरला ने राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ व महाराष्ट्र सहित विभिन्न राज्यों में हुई भारी बारिश से नष्ट फसलों का मामला उठाकर किसानों को लागत के आधार पर मुआवजे की माँग केन्द्र सरकार से की थी। लेकिन इस आवाज को केन्द्र सरकार ने कोई ज्यादा तरजीह नहीं दी। जबकि उत्तर प्रदेश में तो फसल का बुरा हाल देखकर एक किसान आत्महत्या भी कर चुका है। क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा गेहूँ की फसल होती है, जिससे किसानों की रोजी-रोटी चलती है। यहाँ के किसान की आमदनी का प्रमुख साधन रबी की फसल ही है। बेमौसम बरसात के पहले तक गेहूँ समेत दलहन और आलू की फसलें बेहतर थीं। किसान को उम्मीद थी कि इस बार उसकी आर्थिक स्थिति सुधर जाएगी, लेकिन कुदरत की मार ने अन्नदाता की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। पूरे उत्तर प्रदेश में तीस से चालीस फीसदी तक के नुकसान का अनुमान कृषि विभाग ने लगाया है, जिसकी भरपाई न तो केन्द्र सरकार करने को तैयार है और न ही उत्तर प्रदेश सरकार।
इस असामान्य बारिश से मध्य प्रदेश के किसान भी बुरे हाल में हैं। कटाई के लिए तैयार खड़ी गेहूँ-चना की फसल खेत में ही बिछ गई है। इससे दाने में दाग लगने या दाने छोटे रह जाने की आशंका बढ़ गई है। चना और मसूर के साथ धनिया और सब्जियों के लिए भी यह बारिश जानलेवा साबित हुई है। प्रदेश में इस साल 54 लाख हेक्टेयर में गेहूँ की बुवाई की गई है। जिन किसानों ने सिंचाई सुविधा के चलते बुवाई पहले की थी, उनकी फसल पक जाने के कारण कटने की स्थिति में है। जो अचानक बारिश से गीली होकर एवं पानी की मार से खेतों में बिछ गई। इससे दाना कमजोर तो पड़ेगा ही उसमें दाग भी आ जाएँगे। लिहाजा किसान को फसल का उचित मूल्य नहीं मिलेगा।
फसल का यह नुकसान ग्वालिया-चम्बल सम्भाग से लेकर महाकौशल व विन्ध्य तथा मलवा-निमाड़ तक में भी है। मौसम की यह मार पश्चिमी विक्षोभ के कारण बने जलवायु प्रसार का असर बताया जा रहा है। इस विक्षोभ का नब्बे फीसदी तक गेहूँ की फसल पर असर पड़ा है। इस बार किसानों पर मार इसलिए भी ज्यादा पड़ने वाली है, क्योंकि फसल के दागी होने के कारण किसान को वाजिब मूल्य मिलने वाला नहीं है, दूसरे सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य लगभग बन्द कर दिया हैं। केन्द्र सरकार द्वारा प्रदेश के कई जिलों में मनरेगा योजना से भी हाथ खींच लिए गए हैं, यह तय है किसान और किसानी से जुड़े मजदूरों को राहत कार्यों से होने वाली आमद भी बन्द हो जाएगी। मसलन किसान चौतरफा आर्थिक संकट से घिरा अनुभव कर रहा है।
मध्य प्रदेश में यह हालत उस किसान की है, जिसका मध्य प्रदेश की जीडीपी दर में योगदान चौबीस फीसदी है और पिछले चार साल से लगातार मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान कृषि कर्मण पुरस्कार लेकर खेती-किसानी का गौरव-गान करने में लगे हैं। बावजूद प्रदेश सरकार खेती-किसानी की चिन्ता की बजाय उद्योगपतियों की चिन्ता में कुछ ज्यादा ही लगी है। जबकि प्रदेश सरकार को जरूरत है कि वह कृषि और कृषि आधारित उद्योग-धन्धों पर ज्यादा ध्यान दे, जिससे किसान को फसलों का अच्छा मूल्य मिले और कृषि लाभ का धन्धा साबित हो। क्योंकि प्रदेश में खेती-किसानी की हालत लगातार बद्तर हो रही है।
सिंचाई का रकबा बढ़ने के बावजूद चौंसठ फीसदी कृषि भूमि अभी भी असिंचित है। खेतों के आकार भी घट रहे हैं। 2000-01 में जहाँ प्रदेश में औसत जोत का आकार 2.22 हेक्टेयर था, वहीं 2010-11 में यह घटकर 1.78 हेक्टेयर रह गया है। एक कृषि सर्वे के अनुसार, पूरे प्रदेश में महज एक फीसदी किसान ऐसे हैं, जिनके पास दस हेक्टेयर से ज्यादा खेती की जमीन है, जबकि लगभग बहत्तर फीसदी किसान ऐसे हैं, जिनके खेतों का रकबा दो हेक्टेयर से कम है। साफ है, किसान की हरेक स्तर पर हैसियत सिकुड़ती जा रही है। ऐसे में मौसम की मार किसान की आर्थिक लाचारी को और बढ़ाने का काम कर रही है। ऐसे ही हालातों के चलते मध्य प्रदेश में भाजपा के पिछले एक दशक के कार्यकाल में लगभग ग्यारह हजार किसान कृषि सम्बन्धी मजबूरियों के चलते आत्महत्या कर चुके हैं।
इस बेमौसम बारिश की मार से महाराष्ट्र का किसान भी बदहाली का शिकार हुआ है। महाराष्ट्र में सरकार का खजाना खाली है और केन्द्र सरकार की मदद इसलिए नहीं मिल पा रही है क्योंकि नियमों के मुताबिक केन्द्र किसी राज्य की तभी मदद कर सकता है, जब फसलों पर 65 मि.मी. से ज्यादा बेमौसम बरसात की मार पड़ी हो। जबकि महाराष्ट्र में जो 30 मि.मी. बरसात हुई है।इस बेमौसम बारिश की मार से महाराष्ट्र का किसान भी बदहाली का शिकार हुआ है। पिछले साल सूखे से लड़ने वाला किसान अक्टूबर-नवम्बर आते-आते ओले और बेमौसम बरसात से तबाह हो गया था। इससे वह उबर भी नहीं पाया था कि बरसात ने तबाही मचाकर फसलें चौपट कर दी। इस तबाही की चपेट में घर और मवेशी भी आए हैं। महाराष्ट्र में सरकार का खजाना खाली है और केन्द्र सरकार की मदद इसलिए नहीं मिल पा रही है क्योंकि नियमों के मुताबिक केन्द्र किसी राज्य की तभी मदद कर सकता है, जब फसलों पर 65 मि.मी. से ज्यादा बेमौसम बरसात की मार पड़ी हो। जबकि महाराष्ट्र में जो 30 मि.मी. बरसात हुई है, उससे तीन ग्रामीणों की मौत हुई है और बारह जख्मी हुए हैं। 200 घर जमीन्दोज हुए हैं और लगभग एक सैकड़ा पालतू जानवर मरे हैं। 7.49 लाख हेक्टेयर खेती को नुकसान हुआ है। लेकिन यह बेमौसम बरसात तय पैमाने से कम हुई है, इसलिए केन्द्र सरकार आर्थिक मदद करने से मजबूर है। पैमाने की इस विरोधाभासी आँकड़ेबाजी से रूबरू होने के बावजूद केन्द्र सरकार इस मानक पैमाने को बदलने में कोई रुचि नहीं दिखा रही है, जबकि केन्द्र सरकार को इस पैमाने को बदलकर नुकसान का वास्तविक आकलन करके किसानों को हर सम्भव राहत पहुँचाने की जरूरत है।
(लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार हैं)
ई-मेल : pramod.bhargava15@gmail.com
मौसम की मार ने किसानों की मुसीबत बढ़ा दी है। इस मार से गेहूँ, चना, मसूर, सरसों, धनिया, मटर, सन्तरा और आलू की फसलें प्रभावित हुई हैं। इस साल वैसे भी देरी से बारिश होने के कारण समय पर रबी फसलों की बुवाई नहीं हो पाई थी। नतीजतन कृषि मन्त्रालय को पैदावर पिछली साल 10,60,65000 टन की तुलना में इस साल 10,03,40000 टन होने की उम्मीद थी, किन्तु अब इसमें और गिरावाट की उम्मीद बढ़ गई है। जाहिर है, इस बार रबी फसलों की पैदावार में बीस फीसदी तक की गिरावट आएगी। जबकि दालों में सात फीसदी की पैदावार कम होने की उम्मीद है। इस कारण कृषि मंत्रालय के ताजा अनुमान के अनुसार, इस साल देश का दलहन उत्पादन 184.3 लाख टन रह जाएगा। पिछले साल यह उत्पादन 197.8 लाख टन था। इस साल तुअर का उत्पादन सत्ताइस लाख टन और चने का उत्पादन दस फीसदी घटकर 82.8 लाख टन रहने के आसार हैं।
मध्य प्रदेश समेत पूरे देश में बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि से खेती-किसानी जबरदस्त संकट में हैं। इस संकट से बेपरवाह भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था और राजनीतिक लापरवाही ने किसान को बेहद मायूस कर दिया है। किसान को जहाँ खरीफ फसल की बुवाई के दौरान सूखे ने परेशानी में डाला, वहीं ओलावृष्टि और बेमौसम बरसात ने किसान को लगभग तबाह कर दिया है।मौसम की इस मार की गुहार संसद में शून्यकाल के दौरान कोटा-बूँदी के लोकसभा सांसद ओम बिरला ने लगाई थी। बिरला ने राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ व महाराष्ट्र सहित विभिन्न राज्यों में हुई भारी बारिश से नष्ट फसलों का मामला उठाकर किसानों को लागत के आधार पर मुआवजे की माँग केन्द्र सरकार से की थी। लेकिन इस आवाज को केन्द्र सरकार ने कोई ज्यादा तरजीह नहीं दी। जबकि उत्तर प्रदेश में तो फसल का बुरा हाल देखकर एक किसान आत्महत्या भी कर चुका है। क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा गेहूँ की फसल होती है, जिससे किसानों की रोजी-रोटी चलती है। यहाँ के किसान की आमदनी का प्रमुख साधन रबी की फसल ही है। बेमौसम बरसात के पहले तक गेहूँ समेत दलहन और आलू की फसलें बेहतर थीं। किसान को उम्मीद थी कि इस बार उसकी आर्थिक स्थिति सुधर जाएगी, लेकिन कुदरत की मार ने अन्नदाता की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। पूरे उत्तर प्रदेश में तीस से चालीस फीसदी तक के नुकसान का अनुमान कृषि विभाग ने लगाया है, जिसकी भरपाई न तो केन्द्र सरकार करने को तैयार है और न ही उत्तर प्रदेश सरकार।
इस असामान्य बारिश से मध्य प्रदेश के किसान भी बुरे हाल में हैं। कटाई के लिए तैयार खड़ी गेहूँ-चना की फसल खेत में ही बिछ गई है। इससे दाने में दाग लगने या दाने छोटे रह जाने की आशंका बढ़ गई है। चना और मसूर के साथ धनिया और सब्जियों के लिए भी यह बारिश जानलेवा साबित हुई है। प्रदेश में इस साल 54 लाख हेक्टेयर में गेहूँ की बुवाई की गई है। जिन किसानों ने सिंचाई सुविधा के चलते बुवाई पहले की थी, उनकी फसल पक जाने के कारण कटने की स्थिति में है। जो अचानक बारिश से गीली होकर एवं पानी की मार से खेतों में बिछ गई। इससे दाना कमजोर तो पड़ेगा ही उसमें दाग भी आ जाएँगे। लिहाजा किसान को फसल का उचित मूल्य नहीं मिलेगा।
फसल का यह नुकसान ग्वालिया-चम्बल सम्भाग से लेकर महाकौशल व विन्ध्य तथा मलवा-निमाड़ तक में भी है। मौसम की यह मार पश्चिमी विक्षोभ के कारण बने जलवायु प्रसार का असर बताया जा रहा है। इस विक्षोभ का नब्बे फीसदी तक गेहूँ की फसल पर असर पड़ा है। इस बार किसानों पर मार इसलिए भी ज्यादा पड़ने वाली है, क्योंकि फसल के दागी होने के कारण किसान को वाजिब मूल्य मिलने वाला नहीं है, दूसरे सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य लगभग बन्द कर दिया हैं। केन्द्र सरकार द्वारा प्रदेश के कई जिलों में मनरेगा योजना से भी हाथ खींच लिए गए हैं, यह तय है किसान और किसानी से जुड़े मजदूरों को राहत कार्यों से होने वाली आमद भी बन्द हो जाएगी। मसलन किसान चौतरफा आर्थिक संकट से घिरा अनुभव कर रहा है।
मध्य प्रदेश में यह हालत उस किसान की है, जिसका मध्य प्रदेश की जीडीपी दर में योगदान चौबीस फीसदी है और पिछले चार साल से लगातार मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान कृषि कर्मण पुरस्कार लेकर खेती-किसानी का गौरव-गान करने में लगे हैं। बावजूद प्रदेश सरकार खेती-किसानी की चिन्ता की बजाय उद्योगपतियों की चिन्ता में कुछ ज्यादा ही लगी है। जबकि प्रदेश सरकार को जरूरत है कि वह कृषि और कृषि आधारित उद्योग-धन्धों पर ज्यादा ध्यान दे, जिससे किसान को फसलों का अच्छा मूल्य मिले और कृषि लाभ का धन्धा साबित हो। क्योंकि प्रदेश में खेती-किसानी की हालत लगातार बद्तर हो रही है।
सिंचाई का रकबा बढ़ने के बावजूद चौंसठ फीसदी कृषि भूमि अभी भी असिंचित है। खेतों के आकार भी घट रहे हैं। 2000-01 में जहाँ प्रदेश में औसत जोत का आकार 2.22 हेक्टेयर था, वहीं 2010-11 में यह घटकर 1.78 हेक्टेयर रह गया है। एक कृषि सर्वे के अनुसार, पूरे प्रदेश में महज एक फीसदी किसान ऐसे हैं, जिनके पास दस हेक्टेयर से ज्यादा खेती की जमीन है, जबकि लगभग बहत्तर फीसदी किसान ऐसे हैं, जिनके खेतों का रकबा दो हेक्टेयर से कम है। साफ है, किसान की हरेक स्तर पर हैसियत सिकुड़ती जा रही है। ऐसे में मौसम की मार किसान की आर्थिक लाचारी को और बढ़ाने का काम कर रही है। ऐसे ही हालातों के चलते मध्य प्रदेश में भाजपा के पिछले एक दशक के कार्यकाल में लगभग ग्यारह हजार किसान कृषि सम्बन्धी मजबूरियों के चलते आत्महत्या कर चुके हैं।
इस बेमौसम बारिश की मार से महाराष्ट्र का किसान भी बदहाली का शिकार हुआ है। महाराष्ट्र में सरकार का खजाना खाली है और केन्द्र सरकार की मदद इसलिए नहीं मिल पा रही है क्योंकि नियमों के मुताबिक केन्द्र किसी राज्य की तभी मदद कर सकता है, जब फसलों पर 65 मि.मी. से ज्यादा बेमौसम बरसात की मार पड़ी हो। जबकि महाराष्ट्र में जो 30 मि.मी. बरसात हुई है।इस बेमौसम बारिश की मार से महाराष्ट्र का किसान भी बदहाली का शिकार हुआ है। पिछले साल सूखे से लड़ने वाला किसान अक्टूबर-नवम्बर आते-आते ओले और बेमौसम बरसात से तबाह हो गया था। इससे वह उबर भी नहीं पाया था कि बरसात ने तबाही मचाकर फसलें चौपट कर दी। इस तबाही की चपेट में घर और मवेशी भी आए हैं। महाराष्ट्र में सरकार का खजाना खाली है और केन्द्र सरकार की मदद इसलिए नहीं मिल पा रही है क्योंकि नियमों के मुताबिक केन्द्र किसी राज्य की तभी मदद कर सकता है, जब फसलों पर 65 मि.मी. से ज्यादा बेमौसम बरसात की मार पड़ी हो। जबकि महाराष्ट्र में जो 30 मि.मी. बरसात हुई है, उससे तीन ग्रामीणों की मौत हुई है और बारह जख्मी हुए हैं। 200 घर जमीन्दोज हुए हैं और लगभग एक सैकड़ा पालतू जानवर मरे हैं। 7.49 लाख हेक्टेयर खेती को नुकसान हुआ है। लेकिन यह बेमौसम बरसात तय पैमाने से कम हुई है, इसलिए केन्द्र सरकार आर्थिक मदद करने से मजबूर है। पैमाने की इस विरोधाभासी आँकड़ेबाजी से रूबरू होने के बावजूद केन्द्र सरकार इस मानक पैमाने को बदलने में कोई रुचि नहीं दिखा रही है, जबकि केन्द्र सरकार को इस पैमाने को बदलकर नुकसान का वास्तविक आकलन करके किसानों को हर सम्भव राहत पहुँचाने की जरूरत है।
(लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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Post By: birendrakrgupta