पॉली हाउस (प्लास्टिक के हरित गृह) ऐसे ढाँचे हैं जो परम्परागत काँच घरों के स्थान पर बेमौसमी फसलोत्पादन के लिए उपयोग में लाए जा रहे हैं। ये ढाँचे बाह्य वातावरण के प्रतिकूल होने के बावजूद भीतर उगाये गये पौधों का संरक्षण करते हैं और बेमौसमी नर्सरी तथा फसलोत्पादन में सहायक होते हैं। साथ ही पॉली हाउस में उत्पादित फसल अच्छी गुणवत्ता वाली होती है।
ढाँचे की बनावट के आधार पर पॉली हाउस कई प्रकार के होते हैं। जैसे- गुम्बदाकार, गुफानुमा, रूपान्तरित गुफानुमा, झोपड़ीनुमा आदि। पहाड़ों पर रूपान्तरित गुफानुमा या झोपड़ीनुमा डिजायन अधिक उपयोगी होते हैं। ढाँचे के लिए आमतौर पर जीआई पाइप या एंगिल आयरन का प्रयोग करते हैं जो मजबूत एवं टिकाऊ होते हैं। अस्थाई तौर पर बाँस के ढाँचे पर भी पॉली हाउस निर्मित होते हैं जो सस्ते पड़ते हैं। आवरण के लिए 600-800 गेज की मोटी पराबैगनी प्रकाश प्रतिरोधी प्लास्टिक शीट का प्रयोग किया जाता है। इनका आकार 30-100 वर्गमीटर रखना सुविधाजनक रहता है। निर्माण लागत तथा वातावरण पर नियन्त्रण की सुविधा के आधार पर पॉली हाउस तीन प्रकार के होते हैं।
1. लो कास्ट पॉली हाउस या साधारण पॉली हाउस : इसमें यन्त्रों द्वारा किसी प्रकार का कृत्रिम नियन्त्रण वातावरण पर नहीं किया जाता।
2. मीडियम कास्ट पॉली हाउस : इसमें कृत्रिम नियन्त्रण के लिए (ठण्डा या गर्म करने के लिए) साधारण उपकरणों का ही प्रयोग करते हैं।
3. डाई कास्ट पॉली हाउस : इसमें आवश्यकता के अनुसार तापक्रम, आर्द्रता, प्रकाश, वायु संचार आदि को घटा-बढ़ा सकते हैं और मनचाही फसल किसी भी मौसम में ले सकते हैं।
पॉली हाउस में बेमौसमी उत्पादन के लिए वही सब्जियाँ उपयुक्त होती हैं जिनकी बाजार में माँग अधिक हो और वे अच्छी कीमत पर बिक सकें। पर्वतीय क्षेत्रों में जाड़े में मटर, पछेती फूलगोभी, पातगोभी, फ्रेंचबीन, शिमला मिर्च, टमाटर, मिर्च, मूली, पालक आदि फसलें तथा ग्रीष्म व बरसात में अगेती फूलगोभी, भिण्डी, बैंगन, मिर्च, पातगोभी एवं लौकी वर्गीय सब्जियाँ ली जा सकती हैं। फसलों का चुनाव क्षेत्र की ऊँचाई के आधार पर कुछ भिन्न हो सकता है। वर्षा से होने वाली हानि से बचाव के लिए अगेती फूलगोभी, टमाटर, मिर्च आदि की पौध भी पॉली हाउस में डाली जा सकती है। इसी प्रकार ग्रीष्म में शीघ्र फलन लेने के लिए लौकीवर्गीय सब्जियों टमाटर, बैंगन, मिर्च, शिमला मिर्च की पौध भी जनवरी में पॉली हाउस में तैयार की जा सकती है।
टमाटर : सामान्य किस्में- पन्त टी-3, पूसा गौरव संकर किस्में- रूपाली, नवीन, एमटीएच-15, अविनाश-2, मनिषा, नूतन
बैंगन : सामान्य किस्में- पन्त सम्राट, पन्त ऋतुराज, पूसा, उत्तम संकर किस्में- पन्त संकर बैंगन-1, पूसा हाईब्रिड-5, पूसा हाईब्रिड-6, पूसा हाईब्रिड-9
शिमला मिर्च : सामान्य किस्में- केलिफोर्नियावण्डर, योलोवण्डर, बुलनोज, चायनीज जायण्ट संकर किस्में- भारत, इन्दिरा, लैरियो, हीरा, ग्रीनगोल्ड, डीएआरएल-202
मिर्च : पन्त सी-1, पूसा ज्वाला, पूसा सदाबहार, पंजाब सुर्ख, अग्नि
मटर : आर्किल, पन्त सब्ली मटर-3, पूसा प्रगति, वीएल मटर-7
फ्रेंचबीन : पन्त अनुपमा, पन्त बीन-2, वी.एल. बौनी बीन-1, पूसा पार्वती, कनटेण्डर
भिण्डी : परभनी क्रान्ति, पंजाब-7, अरका, अनामिका
खीरा : सामान्य किस्में- प्वाइनसेट, जापानी लौंग ग्रीन, फुले शुभांगी संकर किस्में- पन्त संकर खीरा, प्रिया डीएआरएल-101, यूएस-6125, मालनी
लौकी : सामान्य किस्में- पूसा नवीन, कल्याणपुरा हरी लम्बी संकर किस्में- पन्त संकर लौकी-1 व 2, पूसा हाईब्रिड-1
करेला : पन्त करेला-1, कल्याणपुर बारामासी, पूसा दो-मौसमी
पॉली हाउस के भीतर उगाई जाने वाली सब्जियों में वे सभी सस्य क्रियाएँ करनी पड़ती हैं जिन्हें खुले खेत में अपनाते हैं। गोबर की खाद का भरपूर उपयोग करना चाहिए। बीच-बीच में मिट्टी का निर्जमीकरण आवश्यक होता है जिसके लिए फार्मेलडिहाइड तथा अन्य रसायन या प्लास्टिक शीट बिछाकर सौर ऊर्जा का उपयोग किया जा सकता है। प्रति इकाई क्षेत्र में पौधों की संख्या बढ़ाकर पौधों की उचित छटाई व ट्रेनिंग द्वारा बेलदार फसलों से अधिक उत्पादन लिया जा सकता है। साधारण पॉली हाउस में दिन में उचित वायु संचार का प्रबन्ध अत्यावश्यक है।
पन्त नगर विश्वविद्यालय में किये गये परीक्षणों में जाड़े में लौकी, खीरा, करेला आदि की बुवाई करके प्रतिवर्ग मीटर क्षेत्र से 18-17 किलोग्राम सब्जियों की पैदावार मिली है। नवम्बर के प्रारम्भ में लगाये गये टमाटर से 15-20 किलोग्राम तथा सितम्बर में लगाई गई शिमला मिर्च से 4-10 किलोग्राम की पैदावार मिली है। उत्पादकता में वृद्धि के साथ-साथ फसल की गुणवत्ता में भी काफी सुधार मिला है। पन्त नगर विश्वविद्यालय में किये गये परीक्षणों में जाड़े में लौकी, खीरा, करेला आदि की बुवाई करके प्रतिवर्ग मीटर क्षेत्र से 18-17 किलोग्राम सब्जियों की पैदावार मिली है। नवम्बर के प्रारम्भ में लगाये गये टमाटर से 15-20 किलोग्राम तथा सितम्बर में लगाई गई शिमला मिर्च से 4-10 किलोग्राम की पैदावार मिली है। उत्पादकता में वृद्धि के साथ-साथ फसल की गुणवत्ता में भी काफी सुधार मिला है। एक 100 वर्गमीटर का एंगिल आयरन का साधारण पॉली हाउस बनाने में लगभग 30,000 रुपए का खर्च आता है। विवेकपूर्ण फसलों के उत्पादन से प्रथम दो वर्ष के भीतर ही लागत वसूल हो सकती है। उसके बाद के वर्षों में केवल उत्पादन लागत तथा 4 वर्षों में प्लास्टिक शीट बदलने का खर्चा शेष रहने से काफी मुनाफा कमाने की सम्भावना रहती है।
ऐसे पहाड़ी क्षेत्र जहाँ पर ठण्ड अधिक पड़ती है तथा ओला एवं विपरीत परिस्थितियाँ भी रहती है। वहाँ पर खुली दशाओं में सब्जियों का उगाना सम्भव नहीं होता है। साथ ही वर्षा ऋतु में अधिक फसल को नुकसान होता है। इन स्थानों के लिए ‘पाली हाउस व ग्लास हाउस’ के अन्दर फसल उगाना काफी लाभप्रद पाया जाता है तथा इससे कृषक अधिक लाभ अर्जित कर सकते हैं। पाली हाउस में विभिन्न सब्जियाँ जैसे- टमाटर, शिमला मिर्च, खीरा, पत्ता गोभी, मिर्च, लौकी आदि सफलतापूर्वक उगाई जा सकती हैं।
टमाटर : निचले पहाड़ी क्षेत्र (घाटियों में) अक्टूबर। मध्य व ऊँचे पहाड़ी क्षेत्र अगस्त में।
शिमला मिर्च : निचले पहाड़ी क्षेत्र (घाटियों में) अगस्त-सितम्बर। मध्य व ऊँचे पहाड़ी क्षेत्र मार्च-अगस्त में।
खीरा : निचले पहाड़ी क्षेत्र (घाटियों में) अक्टूबर। मध्य व ऊँचे पहाड़ी क्षेत्र फरवरी-अगस्त में।
टमाटर की रोपाई हेतु पॉली हाउस के अन्दर भूमि से लगभग 15 से.मी. उठी हुई क्यारियाँ बनानी चाहिए। इन क्यारियों का आकार 1.0 मीटर चौड़ा व 0.15 मीटर ऊँचा तथा लम्बाई आवश्यकतानुसार रखी जा सकती है। पौध से पौध की दूरी 50 से.मी. व लाइन से लाइन की दूरी 60 से.मी. रखी जा सकती है। एक क्यारी में दो लाइन होनी चाहिए। एक क्यारी से दूसरी क्यारी के बीच की दूरी 70 से.मी. से कम नहीं रखनी चाहिए। क्यारियाँ समतल हों जिससे सिंचाई में आसानी होती है। क्यारियाँ तैयार करने के पश्चात् फार्मोलिन का 0.2 प्रतिशत (2 मिलीलीटर) का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। पॉली हाउस को एक दिन के लिए बन्द रखें। यह छिड़काव पौध लगाने से लगभग 20 दिन पूर्व करना चाहिए। इसके द्वारा फफून्दी से लगने वाली बीमारियों की रोकथाम हो जाती है।
टमाटर की फसल के लिए 35 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर तथा 150:100:80 किलोग्राम एनपीके खेत की तैयारी के समय डालें। रासायनिक उर्वरकों को पूरे फसल चक्र में तीन भाग बनाकर डालें। उपरोक्त मिश्रण का लगभग 15 ग्राम प्रति पौधे के हिसाब से रोपाई के पहले प्रत्येक कूड़ में दें। रोपाई के 20 दिन बाद 20 ग्राम प्रति पौधा व 50-50 दिन बाद पुनः 10 ग्राम प्रति पौधा देकर फसल की अच्छी तरह से गुड़ाई करनी चाहिए।
टमाटर (अ)- 60 गुणा 50 से.मी. (डण्डों के सहारे पौधों को साधना शाखाओं की कटाई न करने पर) (ब)- 50 गुणा 15-20 से.मी. (प्रत्येक पौधे के केवल मुख्य तनों को रस्सी के सहारे साधने पर)।शिमला मिर्च- 15 गुणा 50 से.मी.। खीरा- 100 गुणा 50 से.मी.।
प्रत्येक वर्ष प्रतिवर्ग मीटर 3 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद मिट्टी में मिलाएँ। इसके अतिरिक्त उपरोक्त फसलों में 12-15 ग्राम नत्रजन, 6-9 ग्राम फास्फोरस तथा 6-9 ग्राम पोटाश प्रतिवर्ग मीटर क्षेत्र में दें।
टमाटर की अल्प परिमित तथा अपरिमित के सघन रोपण में केवल मुख्य तने को पतली रस्सी की डोरी के सहारे बढ़ने दिया जाता है। शाखाओं को समय-समय पर छाँटते रहना चाहिए। किसी भी बेलवाली सब्जी को डण्डे तथा सुतली के सहारे साधना आवश्यक है।
साधारण पॉली हाउस में ठण्ड के समय रात में खिड़की-दरवाजे बन्द रखे जाते हैं जबकि ग्रीष्म में तापक्रम न बढ़ने देने के लिए दिन रात खुला रखने की आवश्यकता पड़ती है।
विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान, अल्मोड़ा में किये गये परीक्षण में टमाटर-टमाटर-पालक, शिमला मिर्च-टमाटर-पालक एवं विलायती कद्दू-फ्रेंचबीन-टमाटर-पालक फसल-चक्र अत्यन्त लाभकारी मिला है।
पॉली हाउस की संरचना
ढाँचे की बनावट के आधार पर पॉली हाउस कई प्रकार के होते हैं। जैसे- गुम्बदाकार, गुफानुमा, रूपान्तरित गुफानुमा, झोपड़ीनुमा आदि। पहाड़ों पर रूपान्तरित गुफानुमा या झोपड़ीनुमा डिजायन अधिक उपयोगी होते हैं। ढाँचे के लिए आमतौर पर जीआई पाइप या एंगिल आयरन का प्रयोग करते हैं जो मजबूत एवं टिकाऊ होते हैं। अस्थाई तौर पर बाँस के ढाँचे पर भी पॉली हाउस निर्मित होते हैं जो सस्ते पड़ते हैं। आवरण के लिए 600-800 गेज की मोटी पराबैगनी प्रकाश प्रतिरोधी प्लास्टिक शीट का प्रयोग किया जाता है। इनका आकार 30-100 वर्गमीटर रखना सुविधाजनक रहता है। निर्माण लागत तथा वातावरण पर नियन्त्रण की सुविधा के आधार पर पॉली हाउस तीन प्रकार के होते हैं।
1. लो कास्ट पॉली हाउस या साधारण पॉली हाउस : इसमें यन्त्रों द्वारा किसी प्रकार का कृत्रिम नियन्त्रण वातावरण पर नहीं किया जाता।
2. मीडियम कास्ट पॉली हाउस : इसमें कृत्रिम नियन्त्रण के लिए (ठण्डा या गर्म करने के लिए) साधारण उपकरणों का ही प्रयोग करते हैं।
3. डाई कास्ट पॉली हाउस : इसमें आवश्यकता के अनुसार तापक्रम, आर्द्रता, प्रकाश, वायु संचार आदि को घटा-बढ़ा सकते हैं और मनचाही फसल किसी भी मौसम में ले सकते हैं।
सब्जियों का चुनाव
पॉली हाउस में बेमौसमी उत्पादन के लिए वही सब्जियाँ उपयुक्त होती हैं जिनकी बाजार में माँग अधिक हो और वे अच्छी कीमत पर बिक सकें। पर्वतीय क्षेत्रों में जाड़े में मटर, पछेती फूलगोभी, पातगोभी, फ्रेंचबीन, शिमला मिर्च, टमाटर, मिर्च, मूली, पालक आदि फसलें तथा ग्रीष्म व बरसात में अगेती फूलगोभी, भिण्डी, बैंगन, मिर्च, पातगोभी एवं लौकी वर्गीय सब्जियाँ ली जा सकती हैं। फसलों का चुनाव क्षेत्र की ऊँचाई के आधार पर कुछ भिन्न हो सकता है। वर्षा से होने वाली हानि से बचाव के लिए अगेती फूलगोभी, टमाटर, मिर्च आदि की पौध भी पॉली हाउस में डाली जा सकती है। इसी प्रकार ग्रीष्म में शीघ्र फलन लेने के लिए लौकीवर्गीय सब्जियों टमाटर, बैंगन, मिर्च, शिमला मिर्च की पौध भी जनवरी में पॉली हाउस में तैयार की जा सकती है।
उन्नत किस्में
टमाटर : सामान्य किस्में- पन्त टी-3, पूसा गौरव संकर किस्में- रूपाली, नवीन, एमटीएच-15, अविनाश-2, मनिषा, नूतन
बैंगन : सामान्य किस्में- पन्त सम्राट, पन्त ऋतुराज, पूसा, उत्तम संकर किस्में- पन्त संकर बैंगन-1, पूसा हाईब्रिड-5, पूसा हाईब्रिड-6, पूसा हाईब्रिड-9
शिमला मिर्च : सामान्य किस्में- केलिफोर्नियावण्डर, योलोवण्डर, बुलनोज, चायनीज जायण्ट संकर किस्में- भारत, इन्दिरा, लैरियो, हीरा, ग्रीनगोल्ड, डीएआरएल-202
मिर्च : पन्त सी-1, पूसा ज्वाला, पूसा सदाबहार, पंजाब सुर्ख, अग्नि
मटर : आर्किल, पन्त सब्ली मटर-3, पूसा प्रगति, वीएल मटर-7
फ्रेंचबीन : पन्त अनुपमा, पन्त बीन-2, वी.एल. बौनी बीन-1, पूसा पार्वती, कनटेण्डर
भिण्डी : परभनी क्रान्ति, पंजाब-7, अरका, अनामिका
खीरा : सामान्य किस्में- प्वाइनसेट, जापानी लौंग ग्रीन, फुले शुभांगी संकर किस्में- पन्त संकर खीरा, प्रिया डीएआरएल-101, यूएस-6125, मालनी
लौकी : सामान्य किस्में- पूसा नवीन, कल्याणपुरा हरी लम्बी संकर किस्में- पन्त संकर लौकी-1 व 2, पूसा हाईब्रिड-1
करेला : पन्त करेला-1, कल्याणपुर बारामासी, पूसा दो-मौसमी
सस्य क्रियाएँ एंव देखभाल
पॉली हाउस के भीतर उगाई जाने वाली सब्जियों में वे सभी सस्य क्रियाएँ करनी पड़ती हैं जिन्हें खुले खेत में अपनाते हैं। गोबर की खाद का भरपूर उपयोग करना चाहिए। बीच-बीच में मिट्टी का निर्जमीकरण आवश्यक होता है जिसके लिए फार्मेलडिहाइड तथा अन्य रसायन या प्लास्टिक शीट बिछाकर सौर ऊर्जा का उपयोग किया जा सकता है। प्रति इकाई क्षेत्र में पौधों की संख्या बढ़ाकर पौधों की उचित छटाई व ट्रेनिंग द्वारा बेलदार फसलों से अधिक उत्पादन लिया जा सकता है। साधारण पॉली हाउस में दिन में उचित वायु संचार का प्रबन्ध अत्यावश्यक है।
उपज तथा आय की सम्भावनाएँ
पन्त नगर विश्वविद्यालय में किये गये परीक्षणों में जाड़े में लौकी, खीरा, करेला आदि की बुवाई करके प्रतिवर्ग मीटर क्षेत्र से 18-17 किलोग्राम सब्जियों की पैदावार मिली है। नवम्बर के प्रारम्भ में लगाये गये टमाटर से 15-20 किलोग्राम तथा सितम्बर में लगाई गई शिमला मिर्च से 4-10 किलोग्राम की पैदावार मिली है। उत्पादकता में वृद्धि के साथ-साथ फसल की गुणवत्ता में भी काफी सुधार मिला है। पन्त नगर विश्वविद्यालय में किये गये परीक्षणों में जाड़े में लौकी, खीरा, करेला आदि की बुवाई करके प्रतिवर्ग मीटर क्षेत्र से 18-17 किलोग्राम सब्जियों की पैदावार मिली है। नवम्बर के प्रारम्भ में लगाये गये टमाटर से 15-20 किलोग्राम तथा सितम्बर में लगाई गई शिमला मिर्च से 4-10 किलोग्राम की पैदावार मिली है। उत्पादकता में वृद्धि के साथ-साथ फसल की गुणवत्ता में भी काफी सुधार मिला है। एक 100 वर्गमीटर का एंगिल आयरन का साधारण पॉली हाउस बनाने में लगभग 30,000 रुपए का खर्च आता है। विवेकपूर्ण फसलों के उत्पादन से प्रथम दो वर्ष के भीतर ही लागत वसूल हो सकती है। उसके बाद के वर्षों में केवल उत्पादन लागत तथा 4 वर्षों में प्लास्टिक शीट बदलने का खर्चा शेष रहने से काफी मुनाफा कमाने की सम्भावना रहती है।
पर्वतीय क्षेत्र में पॉली हाउस
ऐसे पहाड़ी क्षेत्र जहाँ पर ठण्ड अधिक पड़ती है तथा ओला एवं विपरीत परिस्थितियाँ भी रहती है। वहाँ पर खुली दशाओं में सब्जियों का उगाना सम्भव नहीं होता है। साथ ही वर्षा ऋतु में अधिक फसल को नुकसान होता है। इन स्थानों के लिए ‘पाली हाउस व ग्लास हाउस’ के अन्दर फसल उगाना काफी लाभप्रद पाया जाता है तथा इससे कृषक अधिक लाभ अर्जित कर सकते हैं। पाली हाउस में विभिन्न सब्जियाँ जैसे- टमाटर, शिमला मिर्च, खीरा, पत्ता गोभी, मिर्च, लौकी आदि सफलतापूर्वक उगाई जा सकती हैं।
टमाटर : निचले पहाड़ी क्षेत्र (घाटियों में) अक्टूबर। मध्य व ऊँचे पहाड़ी क्षेत्र अगस्त में।
शिमला मिर्च : निचले पहाड़ी क्षेत्र (घाटियों में) अगस्त-सितम्बर। मध्य व ऊँचे पहाड़ी क्षेत्र मार्च-अगस्त में।
खीरा : निचले पहाड़ी क्षेत्र (घाटियों में) अक्टूबर। मध्य व ऊँचे पहाड़ी क्षेत्र फरवरी-अगस्त में।
टमाटर की रोपाई हेतु पॉली हाउस के अन्दर भूमि से लगभग 15 से.मी. उठी हुई क्यारियाँ बनानी चाहिए। इन क्यारियों का आकार 1.0 मीटर चौड़ा व 0.15 मीटर ऊँचा तथा लम्बाई आवश्यकतानुसार रखी जा सकती है। पौध से पौध की दूरी 50 से.मी. व लाइन से लाइन की दूरी 60 से.मी. रखी जा सकती है। एक क्यारी में दो लाइन होनी चाहिए। एक क्यारी से दूसरी क्यारी के बीच की दूरी 70 से.मी. से कम नहीं रखनी चाहिए। क्यारियाँ समतल हों जिससे सिंचाई में आसानी होती है। क्यारियाँ तैयार करने के पश्चात् फार्मोलिन का 0.2 प्रतिशत (2 मिलीलीटर) का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। पॉली हाउस को एक दिन के लिए बन्द रखें। यह छिड़काव पौध लगाने से लगभग 20 दिन पूर्व करना चाहिए। इसके द्वारा फफून्दी से लगने वाली बीमारियों की रोकथाम हो जाती है।
टमाटर की फसल के लिए 35 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर तथा 150:100:80 किलोग्राम एनपीके खेत की तैयारी के समय डालें। रासायनिक उर्वरकों को पूरे फसल चक्र में तीन भाग बनाकर डालें। उपरोक्त मिश्रण का लगभग 15 ग्राम प्रति पौधे के हिसाब से रोपाई के पहले प्रत्येक कूड़ में दें। रोपाई के 20 दिन बाद 20 ग्राम प्रति पौधा व 50-50 दिन बाद पुनः 10 ग्राम प्रति पौधा देकर फसल की अच्छी तरह से गुड़ाई करनी चाहिए।
बुवाई एवं रोपण की दूरी
टमाटर (अ)- 60 गुणा 50 से.मी. (डण्डों के सहारे पौधों को साधना शाखाओं की कटाई न करने पर) (ब)- 50 गुणा 15-20 से.मी. (प्रत्येक पौधे के केवल मुख्य तनों को रस्सी के सहारे साधने पर)।शिमला मिर्च- 15 गुणा 50 से.मी.। खीरा- 100 गुणा 50 से.मी.।
खाद एवं उर्वरक
प्रत्येक वर्ष प्रतिवर्ग मीटर 3 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद मिट्टी में मिलाएँ। इसके अतिरिक्त उपरोक्त फसलों में 12-15 ग्राम नत्रजन, 6-9 ग्राम फास्फोरस तथा 6-9 ग्राम पोटाश प्रतिवर्ग मीटर क्षेत्र में दें।
पौधों की काट-छाँट व सहारा देना
टमाटर की अल्प परिमित तथा अपरिमित के सघन रोपण में केवल मुख्य तने को पतली रस्सी की डोरी के सहारे बढ़ने दिया जाता है। शाखाओं को समय-समय पर छाँटते रहना चाहिए। किसी भी बेलवाली सब्जी को डण्डे तथा सुतली के सहारे साधना आवश्यक है।
तापक्रम पर नियन्त्रण
साधारण पॉली हाउस में ठण्ड के समय रात में खिड़की-दरवाजे बन्द रखे जाते हैं जबकि ग्रीष्म में तापक्रम न बढ़ने देने के लिए दिन रात खुला रखने की आवश्यकता पड़ती है।
पॉली हाउस के अन्दर फसल चक्र
विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान, अल्मोड़ा में किये गये परीक्षण में टमाटर-टमाटर-पालक, शिमला मिर्च-टमाटर-पालक एवं विलायती कद्दू-फ्रेंचबीन-टमाटर-पालक फसल-चक्र अत्यन्त लाभकारी मिला है।
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