नाम ना लिखने बावत चम्पावत जिले के सुदूर गाँव के एक व्यक्ति ने अपने उद्गार इस तरह से प्रस्तुत किये कि आम लोगों की भावनाएँ राजनैतिक चकाचौंध प्रभावित कर रही है। इसलिये कि जो राजनैतिक कार्यकर्ता कल तक पाई-पाई के लिये मोहताज था सो रातों-रात माला-माल बन चुका है। क्योंकि ना तो अमुक व्यक्ति को कोई तनख्वाह मिलती है और ना कोई स्थाई रोजगार है। फकत राजनैतिक दलों के झण्डे-डण्डे वे जरूर यत्र-तत्र घुमाता है। राजनैतिक रौब के कारण वह जनहित के मुद्दे भूल बैठ जाता है। यही वजह है कि पर्यावरण से जुड़ी समस्या जल, जंगल, जमीन की उसे नजर ही नहीं आती है। यहाँ यह वाक़या उत्तराखण्ड में सोलह आने सटीक बैठ रही है। बात हाल ही की है, काली और शारदा नदी पर बन रहे पंचेश्वर बाँध की जनसुनवाई का मामला इस तरह सामने आया कि जैसे इस बाँध के बनने से देश में गरीबी मिट जायेगी, स्वरोजगार के साधन यह बाँध उपलब्ध करवा देगा वगैरह आदि। चिन्ता है कि जब आरम्भ में ही लोगों की बात नहीं सुनी जा रही तो भविष्य में इस बाँध का फायदा किसको होने वाला है? जो बार-बार हर एक के जेहन में सवाल खड़ा कर रहा है।
ज्ञात हो कि उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ कमिश्नरी के अन्तर्गत काली और शारदा नदी पर 315 मीटर ऊँचे और 6480 मेगावाट के पंचेश्वर बाँध की जनसुनवाई 9, 11 व 17 अगस्त को चम्पावत, पिथौरागढ़ व अल्मोड़ा जिलों में सम्पन्न हुई। इधर इन तीनों जिलाधिकारियों को 14-09-2006 की जनसुनवाई बावत अधिसूचना की पूरी-पूरी जानकारी होने के बावजूद भी लोगों को ऐसी कोई जानकारी नही पहुँचाई गयी। यहाँ तक कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में सदस्य सचिव को भी इन परिस्थितियों से अवगत करवाना यथा स्थान के जिलाधिकारी की जिम्मेदारी होती है। जबकि अधिसूचना के अनुसार राज्य प्रदूषण बोर्ड का सचिव, जिलाधिकारी की सिफारिश पर जनसुनवाई की तारीख व समय एवं स्थान बदल सकता था। पंचेश्वर बाँध को लेकर ऐसा कुछ भी नजर नहीं आया और सरकारी महकमा ने जमीनी सच्चाई को पूरी तरह से नकार कर मात्र जनसुनवाई की कागजी प्रक्रिया पूरी की। ग्रामीणों से मालूम हुआ कि जनसुनवाई की जानकारी बस एक हवा की तरह उन्हें मिली है। कहीं पटवारी ने ग्राम प्रधान को फोन करके बताया है तो कहीं लोगों को अखबार से खबर मिली है। किसी भी प्रभावित ग्राम प्रधान को अधिकारिक रुप से एक माह पहले ना तो जनसुनवाई की कोई जानकारी दी गई, ना ही जनसुनवाई की सूचना का पत्र प्राप्त हुआ।
जनसुनवाई की ऐसी भी खबर आई कि चम्पावत जिले में पंचेश्वर बाँध से होने वाले प्रभावित ग्राम प्रधानों से 30 जुलाई के बाद जिला, ब्लॉक कार्यालय में एक ही पत्र पर हस्ताक्षर लिये गये थे। बता दें कि अल्मोड़ा, चम्पावत व पिथौरागढ़ जिलों में पंचेश्वर बाँध से होने वाले प्रभावितों की स्थिति एक ही जैसी है। हालात इस कदर है कि बाँध प्रभावित क्षेत्र में शिक्षा और स्वास्थ सेवाओं की स्थिति निम्न स्तर पर है। ऐसे में प्रभावित क्षेत्र के लोगों से कैसे अपेक्षा कर सकते हैं कि अंग्रेजी में लिखी गई पर्यावरण प्रभाव आकलन, सामाजिक प्रभाव आकलन व प्रबंध योजना की रिपोर्टों पर तथा जिनके पास अखबार भी नहीं पहुँचता वे इस पर अपनी राय जनसुनवाई के दौरान प्रस्तुत करें।
कौतुहल का विषय यह है कि जनसुनवाई के दौरान तेज बारिश का समय था। प्रशासन ने स्कूलों की छुट्टी का निर्देश दे रखा था। जनसुनवाई स्थल गाँवों से बहुत ही दूर रखा गया था। प्रभावितों को कई किलोमीटर की लम्बी चढ़ाई चढ़कर सड़क पर पहुँचना हुआ, फिर जीप आदि में पैसा खर्च करके जनसुनवाई स्थल तक किसी तरह पहुँच पाये। बड़ी मुश्किल से जनसुनवाई स्थल पर कुछ ही लोग पहुँच पाये तो वहाँ पर उनकी बात अनसुनी कर दी गयी। चम्पावत व पिथौरागढ़ की जनसुनवाई के मंच पर ये नहीं मालूम पड़ा की जनसुनवाई का पैनल कौन सा है? मंचों पर स्थानीय विधायक, ब्लॉक प्रमुख तथा सांसद प्रतिनिधी मौजूद थे। जनसुनवाई में प्रभावितों ने पुनर्वास के बहुत सतही प्रश्न उठाये। मंचासीन लोगों ने बार-बार पुनर्वास से जुड़ी बातों को दोहराया व आश्वासन दिये। जिसका जनसुनवाई से कोई मतलब नहीं था। एक प्रकार से यह लोगों पर एक दवाब लाने की कोशिश थी।
पुनर्वास के संदर्भ में भरोसे का भ्रम पैदा करने की स्थिति जन प्रतिनिधि कर रहे थे। जनसुनवाई बन्द हाल में हुई। मंच से यह भी कहा गया कि बाहर टी.वी. स्क्रीन लग चुकी है जहाँ वे जनसुनवाई देख और सुन सकते हैं। किन्तु अन्दर की सम्पूर्ण कार्यवाही कैमरे पर नहीं थी। हाँ इस जनसुनवाई में जो नहीं होना था वह खूब दिखाई दिया। जैसे पीएसी, स्थानीय व अन्य तरह की पुलिस, महिला व पुरुष जवान काफी संख्या में तीनों ही जनसुनवाईयों में थे। ऐसा लग रहा था कि किसी बहुमूल्य वस्तु की निलामी प्रक्रिया हो रही हो। जनसुनवाई के हॉल में भी पुलिस अधिकारी मौजूद रहे। ताकि बोलने वाले नियंत्रण में रह सके। जबकि सत्तापक्ष के विधायकों व उनके अन्य समर्थकों को बार-बार बिना किसी समय सीमा के बोलने दिया जा रहा था। जबकि जन संगठनों और अन्य लोगों को बात रखने पर रोका व धमकाया तक गया। अल्मोड़ा की जनसुनवाई में वरिष्ठ पत्रकार राजीव लोचन शाह को उपजिलाधिकारी ने सत्तापक्ष के लोगों के साथ बलपूर्वक रोका व माइक तक छीन लिया। इधर जिलाधिकारी ने कहा था कि वे सभी को सुनेंगे।
पहली जनसुनवाई का हस्र
315 मीटर ऊँचे पंचेश्वर बाँध की जनसुनवाई 9 अगस्त को चम्पावत जिले के बाराकोट ब्लॉक के हॉल में हुई। यहाँ बिना सही और पूरी जानकारी प्राप्त किये, बिना ये समझे कि बाँध से क्या होगा? पर्यावरण पर क्या होने वाला है? विस्थपन का क्या होगा? पुनर्वास का क्या होगा? इससे संबंधित सरकारों ने आज तक क्या किया है? सिर्फ बड़े-बड़े आंकड़े और बड़ी धनराशि और बड़े सपनों को दिखाने का वक्तव्य प्रस्तुत करके जनसुनवाई का कागजी काम पूरा किया गया। प्रभावितों को यह पता ही नहीं था कि पर्यावरण प्रभाव आकलन, समाजिक प्रभाव आकलन व प्रबंध योजना रिपोर्टें जनसुनवाई में उनके सामने रखी जाती है। जनसुनवाई के मंच पर ये नहीं मालूम पड़ा की जनसुनवाई का पैनल कौन सा है? हाँ इतना जरूर था कि स्थानीय विधायक, ब्लॉक प्रमुख लोहाघाट, बाराकोट तथा सांसद प्रतिनिधी मौजूद थे। हास्यास्पद यह था कि लोगों की आपत्ति लेने के लिये जनसुनवाई स्थल से पहले ही एक काउंटर बनाया हुआ था।
फिर भी जनसुनवाई में प्रभावितों ने पुनर्वास के बहुत प्रश्न उठाये। मात्र कुछ ग्रामीणों द्वारा जमीन, मकान व अन्य मुआवजे जैसे विषय पर सवाल खड़े किये। मंचासीन लोगों ने बार-बार पुनर्वास से जुड़ी बातों को दोहराया व आश्वासन दिये। यही जनता के नुमाइन्दे बार-बार स्पष्टीकरण दे रहे थे कि चम्पावत जिले में बाँध प्रभावित 26 गाँवों के लोगों को यहाँ पहुँचना संभव नहीं था। पर जनसुनवाई के हॉल में सरकारी कर्मचारियों की संख्या बहुतायत और आम लोगों की कमतर दिखाई दी।
इस जनसुनवाई में पीएसी की दो पलाटून यानि लगभग 90 लोग व स्थानीय पुलिस के 60-70 महिला व पुरुष जवान मौके पर थे। जब इस जनसुनवाई के दौरान ग्रामीण ओंकार सिंह धौनी ने कुछ बात कहनी आरम्भ की तो पुलिसकर्मीयों ने बाजू से पकड़ कर रोकने की कोशिश की। ओंकार सिंह धौनी का प्रश्न था कि गाँव के स्तर पर पंचेश्वर बाँध परियोजना से संबंधी कागजातों का सार-संक्षेप निर्माण करने वाली कम्पनी व सरकार ने कब दिया? उनके गाँव पंचेश्वर में मात्र 4 दिन पहले ही ये जानकारी दी गयी थी। उन्होंने कहा कि दूरस्थ गाँवों में अखबार भी नहीं जाता तो वेबसाइट की जानकारी तो ग्रामीणों के लिये दूर की कौड़ी लगती है। इस दौरान पर्यावरण जैसे संवेदनशील विषय पर चर्चा नाममात्र की हुई। पर्यावरण कार्यकर्ता अरुण सिंह ने जिन प्रश्नों को उठाया उनका भी सही उत्तर वेबकॉस कम्पनी के पास नहीं था। माटू संगठन के विमल भाई को अन्त तक बोलने से रोका गया। पैनल में कौन है, इस पर जिलाधिकारी ने कहा कि वे कानूनी बात यहाँ ना उठायें। गाँवों में कागजात व जनसुनवाई की सूचना समय पर नहीं पहुँची।
अंग्रेजी में लिखी गयी पर्यावरण प्रभाव आकलन, समाजिक प्रभाव आकलन व प्रबंध योजना रिपोर्टों की जानकारी तक ग्रामीणों को नहीं है, 900 पन्नों की ये रिपोर्टें उपस्थित कोई अधिकारी या अन्यों ने पढ़े हैं? इसका जवाब भी गोल-मोल कर दिया। चम्पावत जिले में वन स्वीकृति के लिये भी जल्दबाजी में गाँव स्तर की प्रक्रिया चला कर ग्रामीणों से अनापत्ति ली गयी? इस पर जिलाधिकारी का कहना था कि वह अलग प्रक्रिया है उन्होंने वह काम जल्दी के लिये ऐसा किया। इधर वेबकॉस कम्पनी ने कहा कि नेपाल में कागजात तैयार करने व जनसुनवाई की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। मंच पर बैठे जब तमाम जनप्रतिनिधि आक्रमक हुये तो जिलाधिकारी ने उन्हें बोलने से रोका। वेबकॉस कम्पनी के प्रतिनिधी बार-बार कहते रहे कि लोगों को पूरी जानकारी दी गयी है और तो और पूरी जनसुनवाई में भी वे ही उत्तर देते रहे। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व प्रशासन के अधिकारी इस जनसुनवाई में मूक दर्शक बने रहे।
ग्रामीणों ने मांग की है कि जनसुनवाई स्थगित मानी जाये, पर्यावरण प्रभाव आकलन, सामाजिक प्रभाव आकलन व प्रबंध योजना रिपोर्टें सरल हिंदी में प्रभावितों को समझायी जाए, जन सुनवाईयों के स्थल बाँध प्रभावित क्षेत्रों में ही रखी जाएँ। जन सुनवाईयों का समय मानसून के बाद का ही होना चाहिए। जनसुनवाईयों में पुलिस बल का प्रयोग ना हो और पैनल पर सिर्फ पैनल के ही लोग बैठे।
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