पंचायतें बदल सकती हैं : मनरेगा की तसवीर

राजधानी रांची से लगभग 35 किमी दूर बुढ़मू पंचायत के कोटारी गांव में सरयू मुंडा की जमीन पर मनरेगा से कुआं बन रहा है। इस कुआं के बन जाने से कम से कम एक एकड़ जमीन पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होगी। युवा सरयू, जो खुद भी मनरेगा श्रमिक हैं, इन दिनों दूसरे श्रमिकों के साथ पूरे उत्साह से कुआं की खुदाई में जुटे हैं। उनके चेहरे पर संतोष का भी भाव है और पैसों के विलंब से भुगतान होने से उत्पन्न चिंता भी। लेकिन, सरयू पिछले साल हुई ग्रामसभा में इस योजना का अपनी जमीन पर चयन किये जाने को लेकर पंचायत के शुक्रगुजार हैं। अगर सबकुछ सलामत रहा तो मई तक सरयू का कुआं (योजना संख्या 12/13, कोड - 1213060032) खुद जायेगा और उसकी बंधाई भी हो जाएगी।

बुड़मू की मुखिया तारा देवी बताती हैं कि उनकी पंचायत में कुआं व मिट्टी-मोरम पथ का निर्माण मनरेगा से हो रहा है। उनकी कोशिश होती है कि मजदूरों को सही समय पर भुगतान हो जाये और योजनाओं का चयन जरूरतमंदों के लिए ही हो। वे मानती हैं कि पंचायत निकायों के अस्तित्व में आने के बाद मनरेगा के भ्रष्टाचार में 10 प्रतिशत तक कमी आयी है। जिप सदस्य पार्वती देवी भी मानती हैं कि मनरेगा के भ्रष्टाचार पर कुछ हद तक अंकुश लगा है। हालांकि अभी सुधार की बहुत गुंजाइश है। बुड़मू क्षेत्र में भी मनरेगा में कई गड़बड़ियां भी हैं। लेकिन वैसे मामले जहां मुखिया व पंचायत निकाय सक्रिय हैं, वहां बेहतर परिणाम दिख रहे हैं, लेकिन अनकी अरुचि व निष्क्रियता का नुकसान भी हो रहा है।

जैसे, बोकारो के दुग्धा उत्तरी पंचायत के परसाटांड़ गांव में जानकी महतो की जमीन पर मनरेगा से हो रहे तालाब गहरीकरण कार्य के लिए मजदूरों को एक माह से मजदूरी का भुगतान नहीं किया गया है और कार्य की गुणवत्ता की शिकायतें भी की जा रही हैं। मनरेगा के अंकेक्षण कार्य से जुड़े रहे सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश गिरि बताते हैं कि उन्होंने इस मामले की शिकायत पंचायत सेवक व बीपीओ से भी की है। गिरि कहते हैं कि वे जब उस कार्यस्थल का निरीक्षण करने गये तो वहां 14 मजदूर ही कार्य कर रहे थे, जबकि तालाब गहरीकरण के कार्य में 30 से 40 मजदूर होना चाहिए। वे बताते हैं कि अधिकतर मजदूरों के पास जॉब कार्ड नहीं रहता है और वह मेठ या किसी और के पास ही रहता है। गिरि ने इस मामले में वहां के मुखिया से भी बात की कि कार्य की गुणवत्ता कैसे बेहतर हो और मजदूरों का भुगतान कैसे समय पर हो सके, लेकिन मुखिया ने असर्मथता जतायी। जब गिरि ने बीपीओ से बात की तो उन्होंने कहा कि यह जिम्मेवारी मुखिया की है और अगर वे कार्य गुणवत्ता व भुगतान में विफल रहते हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। ऐसे कई मामले हैं, जब मनरेगा में हुई गड़बड़ियों की चपेट में मुखिया भी आये।

रांची के बुड़मू प्रखंड के ही चेनेगेड़ा की मुखिया मंजू देवी ही इन दिनों कानूनी मुश्किलों का सामना कर रही है। इसके लिए मुखिया मंजू देवी ने 22 फरवरी 2013 को 13,908 रुपये का चेक काटा। बिना काम कराये इस पैसे की निकासी कर ली गयी। जिसके बाद पंचायत सेवक, रोजगार सेवक व मेठ सह लाभुक जगदेव पाहन सहित मुखिया के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज कर ली गयी। अगर मुखिया सक्रिय रहती और वे कार्य की निगरानी करती तो शायद इस स्थिति से बचा जा सकता था। गिरि कहते भी हैं कि मनरेगा कानून के अनुसार भी मनरेगा की योजनाओं के सफल कार्यान्वयन, निगरानी व गुणवत्ता की जिम्मेवारी मुखिया पर है। लेकिन वे इसको लेकर उदासीन रहते हैं। इससे कार्य गुणवत्ता तो प्रभावित होती ही है, उन्हें परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है। झारखंड में ही कई ऐसी पंचायत भी हैं, जहां के जनप्रतिनिधियों की सक्रियता से वहां मनरेगा का बेहतर कार्यान्वयन हुआ है। अगर पंचायतों की रुचि व मुखिया की सक्रियता बनी रहे तो इसके बेहतर नतीजे ही आएंगे।

कहता है मनरेगा कानून


मनरेगा कानून में अकुशल श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराने की बात कही गयी है। इसमें कहा गया है कि जॉब कार्ड धारी किसी मजदूर को मांग के 15 दिनों के अंदर रोजगार उपलब्ध कराया जाना चाहिए। अगर रोजगार नहीं मिलता है, तो बेरोजगारी भत्ता दिया जाना चाहिए। अब राज्य के विभिन्न जिलों में इ-मस्टर रोल भरे जाने की प्रक्रिया शुरू हो रही है, कुछ जगह शुरू हो भी चुकी है। माना जा रहा है कि यह श्रमिकों को रोजगार दिलाने, भुगतान दिलाने व बेरोजगारी दिलाने में भी मददगार होगा। मनरेगा कानून में ग्रामसभा की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया गया है और कहा गया है कि योजनाएं उसी के माध्यम से पास करायी जानी चाहिए। कम से कम 50 प्रतिशत कार्य ग्राम पंचायत को ही कराना है। कार्यस्थल पर पेयजल, प्राथमिक चिकित्सा उपकरण, शेडों के खेलने की जगह आदि की व्यवस्था होनी चाहिए। साथ ही योजना में काम करने वाले एक तिहाई श्रमिक महिलाएं होनी चाहिए। मनरेगा कानून अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व बीपीएल परिवार का भूमि सुधार की भी अनुमति देता है। यह कानून लोगों के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुनिश्चिात कराने का माध्यम भी है।

पंचायती राज कानून भी है मददगार


झारखंड पंचायती राज अधिनियम की धारा 73 में मुखिया की शक्तियों व जिम्मेवारियों की व्याख्या की गयी है। इसमें कहा गया है कि वह ग्राम पंचायत के अभिलेखों एवं पंजियों की सुरक्षा के लिए उत्तरदायी होगा। वह ग्राम पंचायत के कर्मियों एवं वैसे कर्मियों जिनकी सेवा ग्राम पंचायत के अधीन सौंपी गयी है, उनके कार्यो पर प्रशासनिक नियंत्रण रखेगा एवं उसकी देखभाल करेगा। यानी मुखिया के नियंत्रण व मार्गदर्शन में ही पंचायत सेवक व रोजगार सेवक को कार्य करना चाहिए। लेकिन होता उल्टा है। मुखिया पंचायत सेवकों के मार्गदर्शन में निर्णय लेते हैं।

मुखिया पर यह जिम्मेवारी भी होती है कि वह ग्राम पंचायत के मद में आये पैसे की सुरक्षा करे। धारा 73 के अनुसार ही, उसे भुगतान का प्राधिकार, चेकों को जारी करने व वापसी आदि का अधिकार प्राप्त है। मुखिया झारखंड पंचायती राज अधिनियम की धारा 75 के अनुसार, ग्राम पंचायत को सौंपे गये समस्त कार्यों को कार्यान्वित करने के लिए प्रत्यक्ष तौर पर जिम्मेवार होता है। इसी तरह प्रखंड स्तर पर प्रमुख की जिम्मेवारी होती है कि वह पंचायत समिति के अभिलेखों व पंजियों की सुरक्षा करे, उसके कर्मियों के कार्यों की निगरानी करे व नियंत्रण रखे, साथ ही पंचायत समिति के पैसे को सुरक्षित रखें। जिला स्तर पर इसी तरह की शक्तिया जिला परिषद अध्यक्ष को प्राप्त हैं। इन तीनों निकायों के प्रमुख की अनुपस्थिति पर क्रमश: उपमुखिया, उपप्रमुख व जिप उपाध्यक्ष पर इस तरह की जिम्मेवारी बनती है।

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