पनबिजली परियोजनाओं की समीक्षा कर रही है सरकार

सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के तहत पारिस्थितिकी और अन्य विषयों के अध्ययन के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाई गई थी। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट मंत्रालय को सौंप दी। समिति के दो सदस्यों ने एक अलग रिपोर्ट में अलग विचार पेश किए हैं। ये दोनों रिपोर्ट सात मई 2014 को शीर्ष अदालत को सौंपी गई।

केंद्र सरकार सभी पनबिजली परियोजनाओं की समीक्षा करने में जुटी है ताकि पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचाए बिना स्वच्छ ऊर्जा की प्राप्ति सुनिश्चित की जा सके। पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान सदस्यों के सवालों के जवाब में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सरकार कुछ पनबिजली परियोजनाओं के क्रियान्वयन पर असम सहित कई अन्य राज्यों की जताई गई चिंता के प्रति संवेदनशील रुख रखती है।

जावड़ेकर ने कहा, ‘असम समेत कुछ अन्य राज्यों द्वारा जताई गई चिंताओं को ध्यान में रखते हुए हमारा जोर इस बात पर है कि पारिस्थितकी को नुकसान पहुंचाए बिना अधिकतम स्वच्छ ऊर्जा कैसे हासिल की जाए। इसलिए हम कुछ परियोजनाओं की समीक्षा कर रहे हैं।’

पनबिजली परियोजनाओं से मिलने वाली ऊर्जा को स्वच्छ ऊर्जा बताते हुए जावड़ेकर ने कहा कि सरकार नदी व्यवस्था व आसपास रहने वाले लोगों पर पनबिजली परियोजनाओं के प्रभाव का आकलन करने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि इस दृष्टि से पड़ने वाले प्रभाव का भी अध्ययन किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि यदि उत्तराखंड में टिहरी और श्रीनगर में पनबिजली परियोजनाएं नहीं होती तो वहां पिछले साल आई भारी बाढ़ के कारण हुए नुकसान की मात्रा और भी अधिक हो सकती थी।

जावड़ेकर ने बताया कि भारतीय तकनीकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की, भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून और बीके चतुर्वेदी की अध्यक्षता में अंतरमंत्रालयी समूह ने जलीय जैव विविधता, नदी पारिस्थितिकी व अलकनंदा एवं भागीरथी नदियों में जल के प्रवाह आदि पर पनबिजली परियोजनाओं के पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया है।

इसी प्रकार अरुणाचल प्रदेश में सात नदी बेसिनों, सिक्किम और पश्चिम बंगाल में तीस्ता नदी बेसिन और हिमाचल प्रदेश में चिनाब व सतलुज नदी बेसिन में जल प्रवाह का भी अध्ययन किया गया है।

पर्यावरण मंत्री ने बताया कि इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के तहत पारिस्थितिकी और अन्य विषयों के अध्ययन के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाई गई थी। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट मंत्रालय को सौंप दी। समिति के दो सदस्यों ने एक अलग रिपोर्ट में अलग विचार पेश किए हैं। ये दोनों रिपोर्ट सात मई 2014 को शीर्ष अदालत को सौंपी गई।

जावड़ेकर ने बताया कि अब शीर्ष अदालत ने मंत्रालय को निर्देश दिया है कि दोनों रिपोर्टों का अध्ययन कर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक ठोस और उचित प्रस्ताव पेश किया जाए। मंत्रालय ने दोनों रिपोर्टों को आइआइटी कंसोरटियम को भेज दिया है और अदालत में एक निर्णायक विचार सौंपा जाएगा।

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