ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना जम्मू-कश्मीर का पल्ली गाँव

ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना जम्मू-कश्मीर का पल्ली गाँव,Pc-कुरुक्षेत्र
ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना जम्मू-कश्मीर का पल्ली गाँव,Pc-कुरुक्षेत्र

हाल ही में जम्मू-कश्मीर के सांबा जिले के पल्ली गाँव को देश का पहला 'कार्बन न्यूट्रल' गाँव घोषित किया गया है, जो ग्रामीण भारत के लिए एक मिसाल बन गया है। पल्ली में 340 घरों को गत वर्ष राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के अवसर पर सौर ऊर्जा की सौगात मिली। पल्ली में 500 केवी क्षमता का सौर संयंत्र स्थापित किया गया है, जिससे कि यह गाँव ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो गया है। अब पल्ली पंचायत के घरों को स्वच्छ बिजली और प्रकाश मिल सकेगा, जिससे यह गाँव भारत सरकार के 'ग्राम ऊर्जा स्वराज' कार्यक्रम के तहत पहली कार्बन तटस्थ पंचायत बनकर उभरा है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान विभाग (डीएसआईआर) के अंतर्गत कार्यरत भारत सरकार के उद्यम सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (सीईएल) द्वारा 20 दिनों के रिकॉर्ड समय में पल्ली में ग्राउंड माउंटेड सोलर पॉवर (जीएमएसपी) संयंत्र स्थापित किया गया है।

प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी और तरल अपशिष्ट से मूल्यवान पोटाश

'सीएसआईआर द्वारा विटामिन डी 2 समृद्ध शीटकेक मशरूम, खाने के लिए तैयार कुरकुरे फल और सब्जियां, पीने के लिए तैयार चाय, टी कैटेचिन, टी विनेगर, टी माउथवॉश के साथ-साथ औद्योगिक रूप से महत्वपूर्ण फसलों जैसे हींग, दालचीनी और केसर से संबंधित प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियां विकसित की गई हैं, जिन्हें देश के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँचाया जा रहा है।'

सीएसआईआर द्वारा गन्ने के शीरे-आधारित अल्कोहल डिस्टिलरी में उत्पन्न स्पेंट वॉश (तरल अपशिष्ट) से मूल्यवान पोटाश की रिकवरी के लिए एक तकनीक विकसित की गई है जिससे विदेशी मुद्रा की बचत हो रही है।

किसानों को आपूर्ति श्रृंखला और माल परिवहन प्रबंधन

प्रणाली से जोड़ने के लिए सीएसआईआर द्वारा किसान सभा ऐप विकसित किया गया है। यह पोर्टल किसानों, ट्रांसपोर्टरों और कृषि उद्योग से जुड़ी अन्य संस्थाओं के लिए वन-स्टॉप समाधान के रूप में कार्य करता है। यह ऐप क्षेत्रीय भाषाओं में भी उपलब्ध है।

गाँव का पानी गाँव में उच्च रिज़ॉल्यूशन एक्चिफर मैपिंग और प्रबंधन मिशन

सीएसआईआर ने चयनित गाँवों में जल संसाधन बढ़ाने के लिए ग्राम स्तरीय जल प्रबंधन योजनाओं को विकसित करने के लिए एक मिशन मोड परियोजना का नेतृत्व किया है। जल जीवन मिशन के तहत जल शक्ति मंत्रालय के सहयोग से उत्तर-पश्चिमी भारत के शुष्क क्षेत्रों में उच्च रिजॉल्यूशन एक्विफर मैपिंग और प्रबंधन मिशन आरंभ किया गया है। मिशन के एक्विफर मैपिंग कार्यक्रम के तहत उन्नत हेलिबॉर्न भू-भौतिकीय सर्वेक्षण और अन्य वैज्ञानिक अध्ययनों का उपयोग प्रारंभ किया गया है। अब तक एक लाख वर्ग किलोमीटर हेलिबॉर्न भू-भौतिकीय सर्वेक्षण डेटा राजस्थान, हरियाणा और गुजरात राज्यों में एकत्र किया गया है। इस सर्वेक्षण से मुंजासर, लोहावत ब्लॉक, जिला जोधपुर, राजस्थान में जल स्रोत की पहचान हुई है।

हाई रिजोल्यूशन ऐक्विफर मैपिंग में हेली-बोर्न भू-भौतिकीय मानचित्रण तकनीक जमीन के नीचे 500 मीटर की गहराई तक उप-सतह की हाई रिजोल्युशन 3d  छवि प्रदान करती है। जल जीवन मिशन के मात्र दो साल के भीतर साढ़े चार करोड़ से अधिक परिवारों को नल से पानी मिलना शुरू हो गया है। भूजल स्रोतों का मानचित्रण भूजल का उपयोग पेयजल के लिए प्रयोग करने में मदद करता है। 'हर घर नल से जल' मिशन के लक्ष्यों को पूरा करने में भी भूजल स्रोतों का मानचित्रण मददगार है।

उत्तर पश्चिमी भारत में शुष्क क्षेत्र राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और पंजाब राज्यों के कुछ हिस्सों में फैले हुए हैं, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 12% है और इस क्षेत्र में 8 करोड़ से अधिक लोग रहते हैं। 100 से 400 मिमी. से कम की वार्षिक वर्षा के साथ यह क्षेत्र पूरे वर्ष पानी की भारी कमी का सामना करता है। इस क्षेत्र में भूजल संसाधनों को और बढ़ाने के लिए भी हाई रिजोल्यूशन ऐक्विफर मैपिंग और प्रबंधन का प्रस्ताव है। इस परियोजना का अंतिम उद्देश्य भूजल निकासी और संरक्षण के लिए संभावित स्थलों का मानचित्रण करना है और प्राप्त परिणामों का उपयोग शुष्क क्षेत्रों (ऐरिड एरिया) में भूजल संसाधनों के जलभृत मानचित्रण (ऐक्विफर मैपिंग), पुनार्जीवन (रिजुवेनेशन) और प्रबंधन के व्यापक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया जाएगा।

ग्रामीण आत्मनिर्भरता से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण तकनीकी योजनाएं

आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (एबीडीएम) का उद्देश्य भारत के एकीकृत डिजिटल हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे का विकास करना 2 है। स्वास्थ्य सेवा उद्योग में शहर और गाँव या  चिकित्सक और सुदूर क्षेत्रों के मरीजों के बीच की दूरी को पाटने के लिए डिजिटल मार्गों का विकास किया गया है।

नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क (एनओएफएन) सभी राज्यों की राजधानियों, जिलों और मुख्यालयों को ब्लॉक स्तर तक नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क द्वारा जोड़ा गया है। मौजूदा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू), फाइबर (बीएसएनएल, रेलटेल और पॉवर ग्रिड) का उपयोग करके और नए फाइबर बिछाकर देश की 2,50,000 ग्राम पंचायतों को जोड़ा जा रहा है। डार्क फाइबर नेटवर्क द्वारा बनाई गई बढ़ी हुई बैंडविड्थ से ग्राम पंचायतों को लाभ होगा। इस प्रकार, ग्राम पंचायतों और ब्लॉकों के बीच कनेक्टिविटी की दूरी को पाटने के प्रयास हो रहे हैं।

डिजिटल इंडिया कार्यक्रम

डिजिटल इंडिया देश को ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था और डिजिटल रूप से सशक्त समाज में बदलने के लिए भारत की प्रमुख पहल है। डिजिटल इंडिया में तीन आवश्यक क्षेत्र शामिल हैं। सभी नागरिकों के लिए उपयोगिता के रूप में डिजिटल बुनियादी ढांचा, शासन और ऑन डिमांड सेवाएं, ओर डिजिटल प्रौद्योगिकी के माध्यम से नागरिक सशक्तीकरण।

कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) सीएससी कार्यक्रम डिजिटल इंडिया कार्यक्रम की मिशन मोड परियोजनाओं में से एक हैं। सीएससी देश के ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों के लिए आवश्यक सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं, सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों, स्वास्थ्य सेवा, वित्त, शिक्षा, कृषि सेवाओं और विभिन्न प्रकार की व्यवसाय-से-उपभोक्ता सेवाओं के लिए पहुँच बिंदु के रूप में काम करता है।

डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (डीआईएलआरएमपी) केंद्रीय क्षेत्र की इस योजना का उद्देश्य उचित एकीकृत भूमि सूचना प्रबंधन प्रणाली (आईएलआईएमएस) विकसित करने के लिए भूमि रिकॉर्ड में मौजूदा समानताओं का लाभ उठाना है।

ग्रामीण आजीविका और जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए महिला प्रौद्योगिकी पार्क (डब्ल्यूटीपी) कार्यक्रम

'ग्रामीण महिलाओं के जीवन में बदलाव लाने के प्रयासों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के तहत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी महिला योजना के महिला प्रौद्योगिकी पार्क (डब्ल्यूटीपी) कार्यक्रम का संचालन किया जा रहा है। इसके अंतर्गत देश में 46 महिला प्रौद्योगिकी पार्क स्थापित किए गए हैं। पिछले 5 वर्षों में इस योजना से 10.000 से अधिक ग्रामीण महिलाएं लाभान्वित हुई हैं।

इस कार्यक्रम के अंतर्गत देहरादून की 280 ग्रामीण महिलाओं के जीवन में बदलाव लाया गया है और उन्हें विभिन्न प्रकार के उत्पादों को बनाने तथा बेचने के लिए प्रशिक्षित किया गया है। तकनीकी प्रशिक्षण के जरिए महिलाओं को स्थानीय रूप से उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों जैसे बांस, जूट, खजूर के पत्तों को आभूषण उत्पादों एवं सजावट के सामान में बदलने का प्रशिक्षण दिया गया है और औषधीय पौधों की कृषि तकनीकों से अवगत कराया गया है। यह कार्यक्रम उत्तराखंड के देहरादून स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज द्वारा संचालित किया जा रहा है।

आंध्र प्रदेश में भी महिला प्रौद्योगिकी पार्क योजना के अंतर्गत लगभग 350 ग्रामीण महिलाओं को प्रशिक्षित किया है और उन्हें हर्बल उत्पादों, खाद्यान्न सामग्री और कॉस्मेटिक्स जैसे उत्पादों के बारे में प्रशिक्षण दिया गया है। श्रीपद्मावती महिला विश्वविद्यालय, तिरुपति की शिक्षक टीम ने ग्रामीण महिलाओं की उद्यमिता क्षमताओं का पता लगाने के लिए घर-घर सर्वेक्षण किया। इसके अलावा, राज्य के विभिन्न जिलों के स्कूल एवं कॉलेजों की लड़कियों से भी पूछा गया, ताकि उनके ज्ञान, कौशल में सुधार कर उद्यमिता के सपने को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की मदद से साकार किया जा सके। इस कार्यक्रम में 30 विभिन्न प्रकार के उत्पाद विकसित किए हैं, जिनमें खाद्य सामग्री और सौंदर्य प्रसाधन शामिल हैं।

प्रौद्योगिकी मॉडयूलेशन, अनुकूलन एवं प्रशिक्षण केंद्र

महिला प्रौद्योगिकी पार्कों को ग्रामीण एवं अर्ध-नगरीय क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी मॉडयूलेशन, अनुकूलन एवं प्रशिक्षण केंद्रों के रूप में स्थापित किया गया है और इनमें कृषक समुदाय से जुड़ी महिला समूहों को प्रशिक्षण दिया जाता है। इन प्रशिक्षण केंद्रो में उपयुक्त प्रौद्योगिकियों के विकास और उन्हें अपनाने, लाभदायक सिद्ध हुई तकनीकों के अंतरण और प्रौद्योगिकी मॉल्स के प्रदर्शन पर बल दिया जाता है, ताकि महिला रोजगार के साथ ग्रामीण आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित किया जा सके। ये प्रशिक्षण केंद्र एक ऐसा माहौल तैयार करते है, जहां विभिन्न संगठनों से जुड़े वैज्ञानिक और तकनीकी विशेषज्ञ इन महिला समूहों को उपयुक्त तकनीकों की जानकारी प्रदान कर सकें, जिसे वे अपने खेतों अथवा अपने कार्य स्थल पर प्रयोग में ला सकें।

इन महिला समूहों ने जिन नवाचार तकनीकों के बारे में प्रशिक्षण हासिल किया है, उनमें श्रेडर मशीन और विनिर्माण के लिए चुनिंदा ई-कचरे के कुछ अंशों का इस्तेमाल, सीएनसी हॉटवायर कटर, वैक्यूम की मदद से सुखाए गए फूलों और उडी चॉकलेट प्रिंटिंग मशीन आदि शामिल हैं। इसके अलावा, जल्दी नष्ट होने वाली कच्ची सामग्रियों को बाजार की जरूरतों के मुताबिक परिवर्तित करने, खासकर शुद्ध नारियल तेल, प्राकृतिक नारियल सिरका, नारियल के रेशों से बनाए जाने वाले उत्पादों, हर्बल उत्पादों, फल एवं सब्जियों को संरक्षित करने की जानकारी प्रदान की जा रही है। इस प्रकार प्रौद्योगिकी आधारित मूल्य वृद्धि से न केवल इनकी आय में इजाफा हो रहा है, बल्कि इसके जरिए वे ऐसे उत्पादों के भंडारण और उपयोग में लाई जाने वाली अवधि को भी बढ़ा सकती हैं। 

इक्विटी एम्पॉवरमेंट एंड डेवलपमेंट (सीड) विभाग और टेक्नॉलजिकल एड्वांसमेंट फॉर रूरल एरियाज़ (तारा) योजना 

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के इक्विटी एम्पॉवरमेंट एंड डेवलपमेंट (सीड) विभाग विभिन्न योजनाओं के माध्यम से ग्रामीण आत्मनिर्भरता और सुदूर क्षेत्रों में विज्ञान और तकनीकी पात्रता का विकास कर रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में आवास, प्रकाश और स्वच्छ ईंधन, कृषि और पशुपालन, खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों में प्रयोगशालाओं में विकसित तकनीकों को सर्वसुलभ बनाते हुए, दूरदराज के क्षेत्रों में स्थानीय प्रौद्योगिकी क्षमताओं का निर्माण भी किया जा रहा है। इन वैज्ञानिक ग्रामीण योजनाओं में स्थान विशिष्ट चुनौतियों की पहचान के बाद स्थानीय लोगों और संगठनों के साथ वैज्ञानिक समाधानों पर कार्य किया जाता है। ग्रामीण, दूरदराज और कठिन इलाकों में रहने वाले समाज और समुदायों के वंचितों को लक्षित करते हुए उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास किए जाते हैं।

इस विभाग द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में तकनीकी उन्नति के लिए टेक्नॉलजिकल एड्वांसमेंट फॉर रूरल एरियाज (तारा) योजना का संचालन किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य मुख्य रूप से ग्रामीण अनुप्रयोग और सामाजिक लाभ के लिए अनुकूल अनुसंधान को प्राथमिकता और प्रोत्साहन देना है। इसके लिए नवीन व्यावहारिक प्रौद्योगिकी पैकेज और मॉडल का विकास किया जा रहा है और कई नवाचारों को ग्रामीण स्तर पर प्रौद्योगिकी विकास और पहुँच के लिए स्केल-अप किया जा रहा है।

यह योजना ग्रामीण और अन्य वंचित क्षेत्रों में विज्ञान आधारित स्वैच्छिक संगठनों और क्षेत्रीय संस्थानों को दीर्घकालिक को सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण है ताकि उन्हें 'एसएंडटी इनक्यूबेटर' और 'एक्टिव फील्ड लैबोरेटरीज' के रूप में बढ़ावा दिया जा सके। इस कार्यक्रम के उद्देश्यों में ग्रामीण आवश्यकताओं के लिए प्रौद्योगिकी के स्थानीय अनुप्रयोगों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है ताकि उपयुक्त तकनीक गाँवों तक पहुँच सके। 'तारा' योजना में ग्रामीण समस्याओं के लिए वैज्ञानिक समाधान स्वतंत्र संगठनों के साथ काम करके दिए जाते हैं। इस योजना में स्वच्छ ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में प्रासंगिक कौशल, नवाचार, उत्पाद और ग्रामीण प्रौद्योगिकियों के साथ-साथ आवास, कृषि और मूल्य संवर्धन, शुष्क क्षेत्र के लिए प्रौद्योगिकी, वानिकी और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में ग्रामीण इंजीनियरिंग और नवीन उत्पादों को विकसित करने में मदद की जाती है। इस कार्यक्रम से 50,000 से अधिक महिला एसएचजी सदस्य और 51,000 से अधिक किसान सीधे तौर पर लाभान्वित हुए हैं।

देश के ग्रामीण क्षेत्रों को तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए आज देश के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय से सम्बद्ध प्रयोगशालाओं द्वारा योजनाबद्ध तरीके से प्रयास किए जा रहे है, जिसमें स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप अन्न उत्पादन, जल और ऊर्जा से जुड़ी तकनीकों और सस्ती प्रौद्योगिकियों को प्राथमिकता दी जा रही है। डिजिटलीकरण के साथ गाँवों में तकनीक विस्तार ने ग्रामीण विकास की गति को तेज कर दिया है। भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में वैज्ञानिकों और किसानों के बीच सीधे संवाद से आत्मनिर्भरता की नींव को नई तकनीक से भरा जा रहा है। गाँवों के आत्मनिर्भर विकास की समावेशिता और स्थिरता में युवाओं, महिलाओं, किसानों, पंचायतों, लघु उद्यमियों और स्थानीय निकायों सभी को शामिल किया जा रहा है। आने वाले 25 वर्षों के अमृतकाल में प्रयोगशालाओं से गाँवों और खेतों तक तकनीक की पहुँच खेतों से उत्पादन वृद्धि और किसानों की आय में बढ़ोत्तरी से ग्रामीण समृद्धि और आत्मनिर्भरता का एक नया अध्याय रचने जा रही है।

स्रोत :-कुरुक्षेत्र, दिसम्बर 2023

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Post By: Shivendra
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